निर्णय (कहानी) {सीरीज-महिला युग}

 निर्णय- कहानी (महिला युग)

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जिस निर्णय पर गायत्री आज तक अडिग थी क्या उसी रास्ते पर महिमा चल रही थी? कोई नहीं जानता था कि महिमा के मन में क्या है। जब भी शादी की बात होती वह काम का बहाना कर टाल देती। उसकी सहेलियां भी हार मान चूकी थी। गायत्री की तरफ से महिमा को फ्री हैण्ड था। शायद इसीलिए महिमा का साहस सातवें आसमान पर था।

      गायत्री के निर्णय को भी कोई बदल नहीं सका था। अतीत में जो कुछ उसके साथ हुआ उसे सहकर भी वह आज शान से जी रही थी। उसकी बहादुरी के किस्सें जिसने भी सुने दाँतो तले उंगलियाँ दबा ली। गायत्री कभी नहीं चाहती थी की दुनियां को महिमा की मां का इतिहास पता चले। इसीलिए वह शहर ही नहीं बल्की प्रदेश छोड़कर यहां रह रही थी।

        महिमा जब शादी योग्य हुई तब पहली बार गायत्री ने अपनी बेटी को सच्चाई बताई। गायत्री की आपबीती सुनने के बाद ही महिमा ने शादी नहीं करने का निर्णय लिया। क्योंकि उसे पता था कि सबकुछ सुनने के बाद कोई लड़का कभी महिमा से शादी नहीं करेगा।

        गायत्री के साथ हुये हादसे की जानकारी ओम को भी थी। और सबकुछ जानते हुये भी वह गायत्री को स्वीकारना चाहता था। किन्तु गायत्री ने उसे साफ इंकार कर दिया और यहाँ चली आई। महिमा के लिए रिश्तें आना अब भी कम नहीं हुये थे। किन्तु हर बार वह मना कर देती। लेकिन देव न चाहते हुये महिमा से ही शादी करने के लिए प्रयत्न शील था। उसने महिमा की मां गायत्री से मिलकर उसे भरोसा दिलाया की वह महिमा को बहुत खुश रखेगा। लेकिन गायत्री ने बताया कि यह निर्णय महिमा का है। वह जो चाहती है वही होगा।

     देव की कोशिशों में कोई कमी न थी। वह महिमा के इर्द-गिर्द बने रहने का पूरा प्रयास करता। मगर हर बार उसे मुंह की खानी पड़ती। इतने में महिमा का बिजनेस चल निकला। वह इतनी बिजी हो गयी कि शादी की बात के लिए भी उसके पास वक़्त नहीं था।

                 14 साल की सज़ा काटने के बाद जयचंद समाज सेवी बन चूका था। दुष्कर्म के अपराधी की सुधरी हुई स्थिति देखकर दुनियां उसके अपराध को भूलने लगी थी। दोनों हाथों से दान करने वाला जयचन्द आज समाज का महान व्यक्ति समझा जाने लगा था। बिजनेस मीटिंग में जयचंद और महिमा की पहली बार भेंट हुई। वह महिमा को बेटी के रूप में स्वीकारने के लिए तैयार था ताकी समाज में उसका और अधिक नाम हो। गायत्री इसके लिए कभी तैयार नहीं हुई। उसने जयचंद की दूसरी बीवी बनने से कर दिया। उसने निर्णय लिया की वह यह शहर भी यह छोड़ देगी।


मगर महिमा के मन में कुछ ओर ही चल रहा था। उसने एक षडयंत्र रचने की ठान ली। जिस व्यक्ति ने तीन माह तक उसकी मां को बंधक बनाकर उसका शारीरिक शोषण किया, जिसकी उपज से महिमा जन्मी, वह उसे ऐसे ही नहीं छोड़ सकती थी। बाॅयोलोजीकली जयचंद उसका बाप था मगर महिमा के लिए वह केवल एक शत्रु था जिसने उसकी और उसकी मां की जिन्दगी बर्बाद कर दी थी।

         महिमा के कहने पर देव उस रास्ते पर चल निकला था जहां उसकी जान भी जा सकती थी। मगर महिमा के हृदय में जमे बेहिसाब क्रोध को बाहर निकलना जरूरी था। इसलिए उसने अंकिता को अपने झूठे प्रेम के जाल में फंसाना शुरू कर दिया। अंकिता ऐसे ही उसे अपना दिल नहीं दे सकती थी। देव के पहले भी बहूत से लड़कों को वह रिजेक्ट कर चूकी थी। मगर देव भी कहाँ हारने वाला था? जब महिमा जैसी लावा ऊगलने वाली उसके प्यार को स्वीकार कर सकती थी तो सीधी-साधी अंकिता कब तक उससे दूर रहती। आखिरकार देव के प्रेम के आगे वह हार गयी। क्योंकि  देव ही था जिसने उसके नृत्य के शौक को हवा दी। कत्थक और भरतनाट्यम जैसे नृत्य सीखने में  देव ने न केवल उसकी मदद की बल्की उसका होंसला भी बढ़ाया। क्योंकि अंकिता लाख कोशिशों के बाद भी पारंपरिक नृत्य सीख नहीं पा रही थी। इसकी प्रमुख वज़ह थी कि अक्सर नृत्य करते हुये उसे मिर्गी का दौरा पड़ जाता था। इसी बात से परेशान होकर घरवालों ने उसे नृत्य नहीं करने की सख्त सज़ा सुना दी थी। क्योंकि मिर्गी के दौरे के बाद उसकी हालत और भी खराब हो जाती। देव ने अंकिता का हाथ थामते हुये उसकी हर परिस्थति में साथ दिया। और फिर एक नेशनल अवार्ड जीतकर अंकिता ने इतिहास रच दिया। अब देव ही अंकिता का सबकुछ था। उसने देव से शादी करने का निर्णय घरवालों को बता दिया। जयचंद खुश थे। अपनी जरूरत से ज्यादा भोली भाली अंकिता के लिए देव जैसा समझदार वर पाकर उनके पैर जमीं पर नहीं टिक रहे थे। उन्होंने शादी की तैयारियाँ शुरू कर दी।

     महिमा के सामने ऐसी दुविधा भरी स्थिति निर्मित हो चूकी थी जिसकी उसने कभी कल्पना भी न की थी। वह चाहती थी की देव, अंकिता को अपनी दीवानी बनाकर छोड़ दे ताकी जयचन्द को पता चल सके की खुद की बेटी के साथ दुर्व्यवहार हो तो कैसा लगता है। मगर देव ने खेल को आगे ले जाने से साफ इंकार कर दिया। उसने अंकिता को सबकुछ बता दिया और उसे महिमा के सामने ला खड़ा किया। महिमा की नज़रे झुकी थी वह अंकिता का सामना नहीं कर पा रही थी। अंकिता को महिमा के धोखे से ज्यादा देव के षड्यंत्र में शामिल होने का दुःख था। वह देव को किसी भी मूल्य पर खोना नहीं चाहती थी। मगर महिमा की मां गायत्री के साथ अपने पिता द्वारा किये गये दुष्कर्म पर वह शर्मिन्दा थी। उसने देव को माफ कर दिया और महिमा को उसे सौंपकर घर लौट आई। 

       जयचंद अपनी बेटी की खुशियाँ यूं ही छीनते हुये नहीं देख सकते थे। उन्होंने वही किया जो एक बेटी के पिता को उस समय ठीक लगा। वे गायत्री के पैरों पर गिर गये। कानून से सज़ा भुगतने के बाद वे अब भी हर तरह की सज़ा भुगतने को तैयार थे। उनकी एक ही इच्छा थी की अंकिता को देव दे दिया जाएं। मगर महिमा नहीं मानी।

       सभी को देव के निर्णय की प्रतीक्षा थी। अंकिता ने पहले ही कह दिया था कि जो देव कहेगा वह वैसा ही करेगी। महिमा को विश्वास था कि देव उसे ही चूनेगा क्योंकि ऐसी उन दोनों की पुर्व में डील हो चूकी थी। गायत्री को पहली बार आभास हुआ कि ओम का हाथ थामकर वह महिमा को एक सुखद भविष्य दे सकती है। जयचंद अपना सबकुछ खर्च कर भी अंकिता की खुशियाँ खरीदने के कटिबद्ध थे। देव का निर्णय सुनकर एक पल तो किसी को यकिन नहीं हुआ। देव जैसा बुद्धिमान युवक ऐसा कैसे कर सकता है। उसने महिमा को स्वीकार तो किया लेकिन अंकिता को ठुकराया भी नहीं। इस फैसले ने ऊथल-पुथल मचा दी। दोनों को एक साथ अपनाना, कोई कैसे पचा पाता। अंकिता तैयार थी लेकिन महिमा नहीं! वह कैसे मान जाती? जीवन भर सौतन के साथ एक ही घर में रहना कोई हंसी खेल था क्या? उस पर गृह क्लेश और आये दिन की नौटंकी! यह सब सोचकर ही वह दहल जाती। क्या ये सब इतना सरल था जितना देव बता रहा था? देव के पास इसका भी उपाय था जो महिमा के लिए एक ओर नयी परेशानी से भरा था। देव अंकिता के साथ भी होगा और महिमा के साथ भी। बस तीनों एक साथ नहीं होंगे।

     यह शादी कितनी स्पेशल थी इसका अनुमान यहाँ पहूंचने वाले मेहमानों की संख्या से लगाया जा सकता था। एक दुल्हे की दो दुल्हने मंडप पर बैठी थी। देव ने विधि विधान से अंकिता और महिमा के गले में मंगलसुत्र बांधकर दोनों के साथ अग्नि के सात फेरे लिए। बहुत पूंछने पर देव ने बताया कि उसने दोनों के साथ शादी क्यों की। महिमा देव का पहला प्यार थी इसलिए उसे तो वह हर मूल्य पर पाना चाहता था। जबकि अंकिता के साथ उसने झूठा प्यार का नाटक रचकर उसके दिल में अपने लिए सच्चा प्रेम जगाया था। वह अंकिता को धोखा नहीं देना चाहता था इसलिए उसने अंकिता को भी अपनी बीवी का दर्जा दिया। उसने दोनों को स्वीकार कर लिया। और सबसे महत्वपूर्ण बात ये थी की अंकिता और महिमा ने देव के निर्णय को माना और उसके साथ शादी करने का अपना निर्णय आख़िरकार ले ही लिया।


समाप्त

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जितेन्द्र शिवहरे इंदौर 

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