थप्पड़

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     एक कहानी रोज़

                *थप्पड़*

*घोषणा- कहानी पुर्णतः काल्पनिक है। इसका किसी व्यक्ति, समुदाय अथवा घटना से कोई संबंध नहीं है।*

       *पुलिस* की चैकिंग चल रही थी। सभी तरह के वाहनों को रौककर जांचा जा रहा था। कुछ लोगों की पुलिस कर्मियों से बहस भी हो रही थी। सिग्नल ग्रीन था। प्रताप ने बाइक की गति तेज़ कर दी। उसके पीछे बाइक पर विकास बैठा था। वे दोनों चौराहे के बीच में पहूंचे ही थे की सिग्नल रेड हो गया। पुलिस को सामने देख विकास घबरा गया। डर के बादल प्रताप के चेहरे पर भी घिर आये थे। मगर अब किया भी क्या जा सकता था! सम्मुख खड़े पुलिसकर्मियों ने प्रताप को सिग्नल तोड़ते हुये देख लिया। वे लोग दोनों की अगवानी करने को आतुर थे। इतने में सब इन्स्पेक्टर निशा ने प्रताप को हाथों के इशारें से मोटरसाइकिल साइड में लगाने को कहा।
"रोकना मत प्रताप! आगे बढ़ा ले।" विकास ने प्रताप से घबराते हुये कहा।
वह जानता था आज बाइक के कागजात भी घर छुट गये है। अगर पुलिस ने रोक लिया तो बहुत बड़ा जुर्माना देना होगा।
"नहीं यार! अब भाग नहीं सकते। ये लोग तुरंत दबोच लेंगे।" प्रताप ने कहा।
"तुम लोगों को रेड लाइट दिखी नहीं। लगाओ गाड़ी साइड में।" निशा गुस्से में बोल रही थी।
"मैडम! हम बीच रास्ते पर आ गये थे। तब तक सिग्नल ग्रीन था।" विकास ने दलील दी।
"बकवास मत कर। नीचे उतर। साले आवारा कहीं के।" निशा बोली।
"मैडम! जरा तमीज से बात करे। हम कोई अपराधी नहीं है।" प्रताप ने कहा।
निशा का गुस्सा सातवें आसमान पर था।
"आजा नीचे उतर। तमीज़ से बात करती हूं तुझसे।" निशा ने प्रताप की काॅलर पकड़ ली। उसने खींचकर प्रताप को बाइक से उतारा।
"देखीये! आप ये गल़त कर रही है। इस तरह किसी शरीफ़ आदमी को आप बेईज्ज़त नहीं कर सकती।" विकास बोला।
"अच्छा! वर्ना तु क्या कर लेगा।" निशा दहाड़ी।
"हम आपकी कम्पलेन करेंगे।" विकास डरते हुये बोला।
"विकास चुप हो जा। मैडम इसे माफ़ कर दिजिए। इसकी तरफ़ से मैं माफी मांगता हूं।" प्रताप बात को संभालते हुये बोला।
"ठीक है। अब इसकी तरफ से थप्पड़ भी खां।" निशा ने प्रताप को एक थप्पड़ जड़ दिया।
विकास की आखें फटी की फटी रह गयी।
"अब बोल। करेगा मेरी कम्पलेन!" निशा ने विकास से बोला।
विकास का गला सुख रहा था। अधिक विरोध करने का अर्थ था कि उसे भी मार खानी पड़ती। वह चूपचाप खड़ा  हो गया। प्रताप कांटो तो खुन नहीं वाली परिस्थिति में था। उसने अपने आसपास देखा। सभी लोग उसे देख रहे थे। वह बहुत ही शर्मिंदंगी अनुभव कर रहा था।
"आप इस तरह बीच सड़क पर किसी शरीफ़ आदमी को थप्पड़ नहीं मार सकती। मैं इस बात का विरोध करता हूं। आपको अपने किये पर माफी मुझसे मांगनी होगी।" अब दहाड़ने की बारी प्रताप की थी।
"ज्यादा हीरो गिरी दिखायेगा तो लाॅकअप में डाल दूंगी।" निशा का क्रोध बढ़ता ही जा रहा था।
"मगर मेरा दोष क्या है! जो आप मुझे लाॅकअप डालने की धमकी दे रही हैं?" प्रताप ने जानना चाहा।
"जाने दे यार! फाइन भर के चलते है यहां से।" विकास ने प्रताप को समझाया।
"नहीं विकास! हम भी लाॅ स्टूडेंट है। कानुन हमें भी पता है। गलती करने पर पुलिस फाइन कर सकती है मगर युं सड़क पर थप्पड़ मारने का अधिकार इन्हें किसने दिया।"
प्रताप बोल रहा था।
मामला बढ़ता देखता एक अन्य महिला आरक्षक बीच बचाव में उतर आई। उसने प्रताप को फाइन भरने को कहा। उसके बाद वे लोग जा सकते थे। मगर प्रताप थप्पड़ की मार से अंदर तक चोटिल हो गया था। वह जिद पर अड़ गया। वह फाइन भरने को तैयार था मगर इससे पहले सब इन्स्पेक्टर निशा को प्रताप से माफी मांगनी थी। निशा इस बात के लिए तैयार नहीं थी। मजबुरन उसने प्रताप को पुलिस वैन में बैठाकर थाने भिजवा दिया। विकास भी साथ ही था।
"क्या बात हो गयी भई! इतनी गर्मी क्यों पकड़ रहा है।" थाना प्रभारी अशोक भागवत प्रताप से बोले।
"सर! मैंने रेड सिग्नल तोड़ कर यातायात नियमों को तोड़ा है। मैं इस बात को स्वीकार करता हूं और माफी मांगता हूं। मैं फाइन भरने को तैयार हूं।" प्रताप ने कहा।
"ठीक है। तो फाइन भर दो और घर को जाओ।"
थाना प्रभारी कुर्सी पर बैठते हुये बोले।
"मगर सर! सब इन्स्पेक्टर निशा जी ने मुझे बीच सड़क पर सैकड़ों लोगों के बीच बिना कोई उचित कारण के थप्पड़ जड़ दिया। इस बात से मेरी आतंरिक भावनाएं आहत हुई है। मैं कोई क्रिमीनल नहीं हूं। चाहें तो मुझसे चार गुना फाइन भरवा लेवे मगर सब इन्स्पेक्टर निशा को मुझसे सबके सामने माफी मांगनी पड़ेगी।" प्रताप निर्भीक था। उसकी बातों में स्वाभिमान झलक रहा था।
"क्यों भई! तु कोई कलेक्टर है जो तुमझे माफी मांगनी पड़ेगी।" थाना प्रभारी तेस में आकर बोले।
"नहीं सर! मैं एक आम आदमी हूं। और एक आम आदमी की भी वही इज्जत होती है जितना किसी कलेक्टर की होती है।" प्रताप बोला।
"अरे! इस आम आदमी को लाॅकअप में डालों। अब इसकी इज्जत हम वही करेंगे।" थाना प्रभारी बोले।
"सर! आप ये गल़त कर रहे है। बजाये अपने स्टाॅफ को उनके गल़त व्यवहार पर डांटने के आप मुझे ही अंदर कर रहे है। मगर सर मत भुलिये, कानुन सबके लिए बराबर है। मैंने अपने कुछ मीडियाकर्मी दोस्तों को यहां बुलवाया है। वे सब बाहर ही खड़े है। अगर आप चाहते है कि यह मामला आगे बढ़े तो मुझे बेशक अंदर कर देवे। और यदि आप इस बात को यही खत्म करना चाहते है तो सब इन्स्पेक्टर निशा से कहिये की मुझसे माफी मांगे। मैं सबकुछ भुलकर यहां से चला जाऊंगा।" प्रताप बोल रहा था। संपूर्ण थाना परिसर और वहां उपस्थित लोग प्रताप की वीरता अपनी आंखों से देख रहे थे। वहां कुछ मीडिया कर्मी भी आ चुके थे। थाना प्रभारी नहीं चाहते थे की ये छोटी सी बात अखबारों में छपे। उन्होंने निशा से कहा की वह प्रताप से माफी मांगे।
अब निशा के चेहरे पर हवाईयां उड़ने लगी। सबके सामने वह कैसे प्रताप से माफी कैसे मांगे? इस पर प्रताप की जिद थी की उसी घटना स्थल पर निशा उससे माफी मांगे जहां प्रताप को उसने थप्पड़ मारा था। सहयोगी पुलिसकर्मी वाणी ने निशा को सांत्वना दी और कहा की वह हिम्मत कर प्रताप से साॅरी बोल दे। मामला यही रफा-दफा हो जायेगा। मन मार के निशा तैयार हुई। उसने प्रताप से घटना स्थल पर चलने को कहा।
"क्या आप सबके सामने मुझसे माफी मांगने के लिए तैयार है?" प्रताप ने निशा से पुछा।
"हां! मुझे अपनी भुल का एहसास है और भविष्य में इस तरह का व्यवहार मैं कभी नहीं दोहराऊंगी।" निशा ने बुझे मन से कहा।
"ठीक है निशा जी! अब आपको कहीं जाने की जरूरत नहीं। आपको अपनी भुल का एहसास हो गया। मुझे मेरी माफी मिल गयी।" प्रताप बोला।
"अबे! ये क्या कह रहा है तू?" विकास बीच में बोल पड़ा।
"विकास! किसी को नीचा दिखाना मेरा उद्देश्य नहीं था। मुझे तो निशा जी के मन में यह भाव जगाना था कि आम आदमी की भी वैसी ही रिस्पेक्ट होनी चाहिए जो अन्य बड़े लोगों की होती है।" प्रताप बोला।
"मगर जब निशा कह रही है कि वह तुझसे सभी के सामने माफी मांगने को तैयार है तब तु क्यों इंकार कर रहा है। ऐसा मौका किस्मत वालों को मिलता है बेटा!" एक वरिष्ठ पुलिसकर्मी बीच में बोल पड़े।
"अंकल! खाकी हमारे देश की शान है। सबके सामने ये मेरी वज़ह से शर्मिंदा हो, ऐसा मैं कभी नहीं चाहूंगा। मैंने निशा जी को माफ कर दिया है।" प्रताप बोला।
उसके विचारों ने उपस्थित सभी को प्रभावित किया।
"क्यों बे! कौन से तेरे दोस्त मीडिया वाले थे। जिन्हें तुने यहाँ बुलावा था।" विकास ने आश्चर्य से पुछा।
दोनों फाइन भरकर पुलिस स्टेशन से बाहर आ चूके थे।
"कोई नहीं यार! मैंने वहां झुठ बोला था।" प्रताप ने कहा।
"कहीं पकड़े जाते तो! बहुत मार पड़ती।" विकास ने कहा।
"नहीं यार! संयोग से वहां मिडीयां वाले आ गये थे। जिन्हें देखकर मैंने उन्हें अपना जान-पहचान का बता दिया। अगर पुलिस को पता भी चल जाता कि वे लोग मेरी जान-पहचान के नहीं है तब भी यदि उन मीडिया के लोगों से मैं मदद मांगता तो निश्चित ही वे हमारी मदद अवश्य करते।" प्रताप ने कहा। वह अपना मोबाइल देखने लगा।
"मगर ये बहुत रिस्की था।" विकास बोला।
"रिस्की था! मगर निशा का नम्बर भी तो मिल गया। ये देख उसका मैसेज आया है। साॅरी लिखा है।" प्रताप ने उत्साहित होकर कहा।
"उसका थप्पड़ भूल गया क्या! जो इतना खुश हो रहा है!" विकास चिढ़ते हुये बोला।
"नहीं यार। वो थप्पड़ तो हमेशा याद रख रहेगा और निशा भी।" प्रताप ने गाल पर हाथ फेरते हुये कहा।
निशा के दिल में उसी दिन से प्रताप घुसपैठ कर चूका था। वह प्रताप के विचारों में खोयी थी।

"जो युवक थाने में घुसकर एक पुलिस ऑफिसर को माफी मांगने पर मजबूर कर सकता है वो कितना डेयरींग होगा।" वाणी ने निशा से कहा।
प्रताप की इस वीरता और पुलिस के प्रति सम्मानित भावना ने निशा को उसके और अधिक करीब ला दिया था।
"मुझे लगता है ये लड़का ही तेरे योग्य है।" वाणी बोली
"वो कैसे?" निशा ने पुछा।
"देख! तु भी गुस्से वाली, प्रताप भी गुस्से वाला। हुआ न परफेक्ट मैच।" वाणी ने अपना तर्क दिया।
"अरे नहीं बुद्धू! दोनों में से एक नरम और एक गरम प्रवृत्ति का होना चाहिए तब जाकर गृहस्थी अच्छी तरह से चलती है। हम दोनों एक ही स्वभाव के है। घर में रोज़ महाभारत होगी देखना।" निशा हंसते हुये बोली।
"तुने देखा नहीं। आखिर में वह कितना सोफ्ट हो गया था। यानि की उसे चीज़े मैनेज करना आती है।" वाणी बोली।
"ठीक है। देखते है। आगे क्या होता है?" निशा बोली।
"जरा सावधान रहना। अच्छे लड़कें इतनी आसानी से नहीं मिलते। और फिर प्रताप जैसा डेसिंग पर्सनैलिटी का युवक! उस पर तो बहुत-सी लड़कीयां मरती होंगी। और फिर उसने तुझसे माफी न मंगवाकर यह सिद्ध कर दिया की उसके दिल में तेरे लिए कुछ तो है?" वाणी बोली।
"उसके दिल में मेरे लिए नहीं! पुलिस की इस खाकी वर्दी के लिए सम्मान की भावना है, तब ही उसने ऐसा कहा।" निशा ने बोली।
"वो जो भी हो। तुने अगर सोचने में देर की तो समझ लेना प्रताप जैसा लड़का छु मंतर हो जायेगा। फिर मलती रहना अपने खाली हाथ।" वाणी यह बोलकर अपने ऑफिस वर्क में व्यस्त हो गयी। वाणी की बातें रह-रहकर निशा के कानों  में गुंज रही थी। वह प्रताप के विषय में और अधिक जानना चाहती थी।
प्रताप और निशा की प्रारंभिक बातें व्हाहटसप पर शुरू हुई जो जल्दी ही मुलाकातों में बदल गयी। वह दिन भी आया जब प्रताप ने निशा को प्रेम का प्रस्ताव दे ही दिया।
"जिस लड़की ने तुम्हें सभी के सामने थप्पड़ मारा। उसे ही प्रेम प्रस्ताव दे रहो हो?" निशा ने प्रताप से कहा।
वे दोनों एक शाम शहर की चौपाटी पर घुमने आये हुये थे।
"वही थप्पड़ मारने वाली निशा! मुझे आज सभी के सामने आई लव यू बोलकर उसी गाल कर किस करेगी जिस पर उसने मुझे थप्पड़ मारा था।" प्रताप ने उत्साहित होकर कहा।
"नहीं! मैं ये नहीं करूंगी।" निशा ने नखरे दिखाये।
"ऐसा कोई काम नहीं निशा! जिसे तुम नहीं कर सकती।" प्रताप निशा के पीछे-पीछे चल रहा था।
निशा नारियल पानी पीते-हुये तेजी से आगे की ओर चलती जा रही थी।
"निशा! यदि तुम सबके सामने मुझे थप्पड़ मार सकती हो तो सबके सामने आई लव यू भी बोल सकती हो।" प्रताप ने कहा। वह वही खड़ा हो गया। निशा सुन रही थी। वह प्रताप से कुछ आगे निकल आयी थी। उसने पलट के देखा। प्रताप उससे कुछ दुरी पर खड़ा मुस्कुरा रहा था। निशा कुछ निश्चय कर प्रताप की तरफ मुंह कर खड़ी हो गयी। उसने अपने हाथों में रखा नारीयल फेंक दिया।
"प्रताप! आई लव यूं।" निशा ने ऊंचे स्वर में प्रताप को प्रपोज कर दिया। प्रताप अपनी विजय पर मुस्करा था। उसने निशा की ओर अपनी दोनों बाहें फैला दी। निशा दौड़कर उसके गले लग गयी। आसपास खड़े लोगों ने तालियाँ बजाकर इस लव बर्डस् का स्वागत किया। निशा ने प्रताप का गाल चूमकर अपना प्रेम प्रताप के प्रति जाहिर कर दिया था।
निशा और प्रताप दोनों एक-दुसरे को जीवनसाथी के रूप पाकर प्रसन्न थे।

समाप्त
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प्रमाणीकरण-- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमती है।


©®सर्वाधिकार सुरक्षित
लेखक--
जितेन्द्र शिवहरे
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