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एक कहानी रोज़--65
 
     *छलावा*

    *"प्राॅमिस* करो! स्वयं को यही रोक लोगे!"
निधि पुनित से दुर जा खड़ी हुई।
"मगर क्यों? क्या तुम मुझसे प्रेम नहीं करती?"
पुनित व्याकुल था।
"ये प्रेम नहीं है पुनित!" निधि बोली।
"तो फिर क्या है? हम दोनों की परस्पर इतनी बेचेनी! यह प्रेम नहीं तो फिर क्या है?" पुनित क्रोधित था।
"हां पुनित! यह प्रेम नहीं अपितु वासना है।" निधि बोली।
"हूअं! तुमने कभी इसे आकर्षण कहा था। अब वासना कह रही हो। किस बात पर भरोसा करूं?" पुनित बोला।
"देखो पुनित! मैं इन सब चीजों को बहुत पीछे छोड़ आई  हूं। अब ये वर्किंग वुमन हाॅस्टल ही मेरा जीवन है। अच्छा होगा तुम भी अपना भविष्य संवारो।" निधि ने कहा।
"मेरा भविष्य तो तुम हो निधि।"
"ये संभव नहीं। दरअसल दोष मेरा ही है। न मैं इतने आगे आती और ये सब होता।" निधि अपने आंसु पोछ रही थी।
"अब भी हम यहां से लौट सकते है पुनित। प्रथम भूल क्षमा योग्य होती है।" निधि बोली।
"मेरे प्रेम को भुल न कहो डियर। ये सुनना मेरे लिए बहुत कष्टदायी है।" पुनित ने अपने हाथों की परिधि बनाकर निधि के चारों ओर फैला दी।
"छोड़ो पुनित। यही रूक जाओ। अन्यथा मैं शोर मचा दुंगी।" निधि पुनित की बाहों से छुटने का असफल प्रयास कर रही थी।
"ठीक है। मचा दो शोर। ऐसा कर तुम मेरा काम और भी सरल कर दोगी।" पुनित ने अपनी जकड़ और भी अधिक मजबुत कर दी।
"क्यों कर रहे है मेरे साथ ऐसा? मुझे त्याग दो। तुम्हारे लिए बहुत सी नव युवतियां तैयार बैठी है।" निधि ने याचना की।
"नहीं। मेरे लिए तुम ही उपयुक्त हो।" पुनित ने कहा।
"मुझे इसका अधिकार नहीं। मुझे अब कोई भी सुख प्राप्ति का लक्ष्य नहीं है। क्योंकि इस नौकरी से मैं संतुष्ट हूं।" निधि ने धक्का देकर पुनित को स्वयं से दूर किया।
"अपने सुख का तुम्हें ख्याल है किन्तु मेरा सुख का क्या? वह तो तुम्हारे साथ रहने में ही है।"
पुनित पुनः बोला।
"किन्तु मेरे लिए प्रेम का मार्ग निषेध है। मैंने अपने कर्म को ही अपना सर्वस्व स्वीकार किया है। पुनः गृहस्थ मार्ग पर लौटना मेरे लिए संभव नहीं है।" निधि दृढ़ थी।
"मुझे विश्वास है आज नहीं तो कल तुम मुझे स्वीकार अवश्य करोगी।" कहते हुये पुनित हाॅस्टल से लौट गया।
निधि उसे लौटकर जाते हुये देख रही थी। मानो वह हृदय से पश्चाताप कर रही हो। 'वह भी जब पुनित को पसंद करती है तब उसने यह प्रेम स्वीकार क्यों नहीं किया?' पुनित उससे दस वर्ष छोटा था। भरा-पुरा परिवार था उसका। उसका जीवन अभी आरंभ ही हुआ है। पुनित के परिवार वाले एक अधेड़ आयु की विधवा को कभी स्वीकार नहीं करेंगे। कहने वाले इसका सारा दोष निधि पर ही थौपेंगे। कहेंगे पुनित तो नादान था, किन्तु निधि को तो समझदारी से काम लेना चाहिए था। इन्ही विचारों मे मग्न निधि की आंखों से नींद गायब थी। वह करवट बदल रही थी। रात बितने का नाम ही नहीं ले रही थी। फोन की घंटी ने उसे झंझोड़ा।
"हॅलो मेम! दरवाजा खोलिये। मैं बाहर खड़ी हूं।" फोन पर तमन्ना थी।
"ओह! तुम हो। मुझे लगा•••।" कहते हुये निधि रूक गयी।
"आपको क्या लगा! आप पुनित के फोन का इंतजार कर रही थी न!" तमन्ना ने मसखरी की।
" अरे नहीं! आ गई तुम। रूको मैं अभी आती हूं।" निधि की चोरी पकड़ी गयी थी।
"इतनी देर कहां लगा दी तुमने?" गेट खोलते हुये निधि बोली।
"आप ही का काम करने गयी थी। भुल गयी आप?" तमन्ना अंदर आखर बोली।
"हां अब रहने दो। रात बहुत हो गयी है अब जाकर सो जाओ।" निधि बोली।
"नहीं दी। पहले आपको उस आशिक का चेहरा तो बता दूं।" तमन्ना बोली।
"क्या मतलब?" निधि ने पुछा।
"दी! मैंने सुबह आपसे कहा था न! शाम तक मैं उसकी पुरी जन्म कुण्डली निकाल लुंगी।" तमन्ना ने मोबाइल निकाला।
निधि ध्यान से उसकी बात सुन रही थी।
"देखो दी! मैंने पुनित से सोशल मीडिया फर दोस्ती की। उसे अपना झुठा परिचय दिया। वह तो जैसे एक दम तैयार ही बैठा था।" तमन्ना ने उन दोनों की टेक्स चैटिंग दिखाई।
"मैंने यह भी पता किया है कि वह दिल फेंक आशिक है। उम्रदराज औरतों को अपने झुटे प्रेम जाल में फंसाचर उनसे रूपये ऐंठता है।" तमन्ना ने पुनित की अलग-अलग आई डी बताई। जिसमें पुनित धनाढ्य और अकेली महिलाओं के साथ विभिन्न मुद्राओं में आनंद लुट रहा है।
निधि को धंका लगा। वह स्वयं पुनित पर हजारों रूपये उड़ा चूकी थी। पुनित ने झुठ बोलकर निधि से रूपये उधार लिये और अपनी ऐशो-आराम पर खर्च कर दिये। निधि कहीं न कहीं पुनित को अपने हृदय में जगह दे चूकी थी। लेकिन उसकी वास्तविकता जानकर वह शोक में डुब गयी। पुनित भी बाकी युवकों की ही तरह निकला। उसकी आंखों से झर्र-झर्र आंसुओं की धार बह निकली।
"ऑह कमाॅन दी! आप कोई नई नवेली प्रेम में पड़ी लड़की नहीं है जो दिल टुटने पर यूं दहाड़ मारकर रो रही है।" तमन्ना ने मजाक किया।
"शटअप! तमन्ना। बुरा तो लगता है। उस चीटर को मैं छोड़ूगी नहीं।" निधि गुस्से में आगबबूला थी।
"ठीक है। आप उसे सुबह यहां बुलाईये। मिलकर उसकी धुनाई करते है।" तमन्ना बोली।
"मगर यहां। सभी मेरे विषय में क्या सोचेंगे? उफ्फ! मैं कैसे बेवकूफ बन सकती हूं।" निधि पश्चाताप में डूब चूकी थी।
"दीदी! आपने कोई गल़त नहीं किया। बल्कि गल़त तो पुनित ने किया है, आपका विश्वास तोड़कर।" तमन्ना बोली।
निधि अपने आसुं पोछ रही थी।
"आब सबकुछ भुलकर सो जाईये। कल सनडे है। सुबह जब पुनित यहां आयेगा तब हम हाॅस्टल की सभी लडकियां मिलकर सनडे को फनडे की तरह मनायेंगी। आप उसे कल यहां आने का मैसेज कर दो।" तमन्ना उत्साहित थी।
निधि ने ऐसा ही किया। तमन्ना की जासुसी ने उसकी आंखें खोल दी थी। निधि अब स्वयं को पहले से अधिक हल्का महसुस कर रही थी। उसने ठण्डे पानी से मुंह धोया और बिस्तर पर जाकर लेट गयी। एक लम्बी सासं लेकर वह नींद के आग़ोश में चली गयी।

समाप्त

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प्रमाणीकरण-- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमती है।


©®सर्वाधिकार सुरक्षित
लेखक--
जितेन्द्र शिवहरे
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