राष्ट्रध्वज--लघुकथा
एक कहानी रोज़--67
(लघु कथा दिवस विशेष)
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राष्ट्रध्वज--लघुकथा
*स्कूल* बेग पीठ पर लादे मोहित बस की प्रतिक्षा कर रहा था। आदतन उसकी नज़रे यहां-वहां दौड़ रही थी। यकायक उसकी नज़र पीछे गिफ्ट ऑयटम की एक दुकान पर पड़ी। वह दुकान अभी खुल रही थी। उसका मालिक दुकान के शिशे एक कपड़े से साफ कर रहा था। यह कपड़ा किसी देश का राष्ट्रीय ध्वज था। बारह वर्षीय मोहित से रहा नहीं गया। वह दुकान के मालिक के पास गया।
"अंकल! आप ये मेरा रूमाल ले लो। इससे आपकी दुकान के शिशे साफ कर लिजीए।"
मोहित ने दुकानदार से कहा।
"लेकिन मैं तुम्हारे रूमाल से अपने यहाँ की सफाई क्यों करूं? इससे तो तुम्हारा रूमाल गंदा हो जायेगा!" दुकानदार ने कहा।
"कोई बात नहीं अंकल! आप मेरा रूमाल रख लिजीए। अब से इसी से साफ-सफाई कीजियेगा। बदले में आपके हाथों में जो नेशनल फ्लेग है वह मुझे दे दीजिए।"
मोहित ने मीठे स्वर में कहा।
"लेकिन बेटा जी! ये हमारे देश का राष्ट्रीय ध्वज नहीं है। ये दूसरे देश का है। इससे साफ-सफाई करने में भला किसी को क्या आपत्ति हो सकती है?"
दुकानदार ने कहा।
"देश कोई भी हो अंकल! हर देश का अपना विशेष सम्मान होता है। यहाँ टूरिस्ट आते-जाते है। अपने देश के नेशनल फ्लेग की ऐसी दशा देखकर उन पर क्या बितेगी? जब हम ही किसी दुसरे देश का सम्मान नहीं करेंगे तब कोई हमारे देश का सम्मान क्यों करेगा?"
मोहित ने कहा।
इतने में स्कूल बस आ गयी। दुकानदार के हाथों से उसने ध्वज ले लिया और बदले में उन्हें अपना रूमाल देना चाहा। मगर दुकानदार ने वह रूमाल लौटा दिया।
छोटे बच्चें के मुख से इतनी बड़ी बात सुनकर दुकानदार हतप्रद था।
मोहित बस में चढ़ गया। दुकानदार अब भी बस की तरफ देख रहा था, जहां खिडकी से हाथ बाहर निकाले प्रसन्न मुद्रा में मोहित उसे बायं-बायं कर रहा था।
समाप्त
-------------------------
प्रमाणीकरण-- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमती है।
©®सर्वाधिकार सुरक्षित
लेखक--
जितेन्द्र शिवहरे
177, इंदिरा एकता नगर पूर्व रिंग रोड मुसाखेड़ी इंदौर मध्यप्रदेश
मोबाइल नम्बर
7746842533
8770870151
Jshivhare2015@gmail.com Myshivhare2018@gmail.com
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मोहित ने दुकानदार से कहा।
"लेकिन मैं तुम्हारे रूमाल से अपने यहाँ की सफाई क्यों करूं? इससे तो तुम्हारा रूमाल गंदा हो जायेगा!" दुकानदार ने कहा।
"कोई बात नहीं अंकल! आप मेरा रूमाल रख लिजीए। अब से इसी से साफ-सफाई कीजियेगा। बदले में आपके हाथों में जो नेशनल फ्लेग है वह मुझे दे दीजिए।"
मोहित ने मीठे स्वर में कहा।
"लेकिन बेटा जी! ये हमारे देश का राष्ट्रीय ध्वज नहीं है। ये दूसरे देश का है। इससे साफ-सफाई करने में भला किसी को क्या आपत्ति हो सकती है?"
दुकानदार ने कहा।
"देश कोई भी हो अंकल! हर देश का अपना विशेष सम्मान होता है। यहाँ टूरिस्ट आते-जाते है। अपने देश के नेशनल फ्लेग की ऐसी दशा देखकर उन पर क्या बितेगी? जब हम ही किसी दुसरे देश का सम्मान नहीं करेंगे तब कोई हमारे देश का सम्मान क्यों करेगा?"
मोहित ने कहा।
इतने में स्कूल बस आ गयी। दुकानदार के हाथों से उसने ध्वज ले लिया और बदले में उन्हें अपना रूमाल देना चाहा। मगर दुकानदार ने वह रूमाल लौटा दिया।
छोटे बच्चें के मुख से इतनी बड़ी बात सुनकर दुकानदार हतप्रद था।
मोहित बस में चढ़ गया। दुकानदार अब भी बस की तरफ देख रहा था, जहां खिडकी से हाथ बाहर निकाले प्रसन्न मुद्रा में मोहित उसे बायं-बायं कर रहा था।
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