निर्भया-2

एक कहानी रोज़-85

 *निर्भया-2*

         *विंध्या* को आज पहली बार अपने पहने हुये छोटे कपडों पर गुस्सा आ रहा था। इन्हें विंध्या के शरीर से अलग करने में उन बदमाशों को अधिक मेहनत नहीं करनी पड़ी। वो चार थे और विंध्या अकेली। उस पर रात का सन्नाटा। चारों तरफ सिवायें आवारा कुत्तों के कोई नहीं था। विंध्या समझ चुकी थी की आज उसका सकुशल बच पाना कठिन है। अब उसके पास दो ही रास्ते थे, या तो वह स्वयं को उन वहशीयों के समक्ष आत्मसमर्पित कर दे अथवा जब तक उसके पास थोड़ी
भी शक्ति शेष है वह लड़ती रहे। उसे यह भी ज्ञात था की दोनों ही सुरतों में विजय की कम और पराजय की अधिक संभावना थी। विंध्या शुरू से ही जुझारू थी। उसने आखरी दम तक लड़ना ही अंतिम विकल्प के रूप में चुना। उसने अपने शरीर की संपूर्ण शक्ति अपने दाहिने पैर में एकत्रित की। संम्मुख खड़े युवक के पेट के निचले भाग पर विंध्या ने अपनी लात से जोरदार प्रहार किया। यह प्रहार इतना शक्तिशाली था की वह युवक लडखड़ाते हुये दूर जा गिरा। पास ही भौंक रहा एक कुत्ता वहां उसे सूंघने दौड़ पड़ा। विंध्या का आत्मविश्वास बढ़ गया। अब वह स्वयं को दोनों ओर से कसकर पकड़ खड़े अन्य दो युवकों पर टूट पड़ी। अपनी दोनों लातों को उसने संपूर्ण शक्ति से दाये-बायें घुमाया। इसका परिणाम यह हुआ कि वे दोनों युवक भी इधर-उधर जा गिरे। चौथा युवक जो दुर खड़ा होकर यह सब देख रहा था, तुरंत सावधान हो गया। उसने अधजली सिगरेट तुरंत फेंक दी। लोहे की राड हाथों में लेकर वह विंध्या की ओर लपका। विंध्या भी सावधान थी। चौथा युवक जो उसी के पास आ रहा था, विंध्या उसके हमले से बचने का प्रयास करने लगी। उसकी नज़र अपने हैंड बेग पर पड़ी जो वहीं नीचे गिरा पड़ा था। विंध्या तेजी से बेग पर झपटी। अपना बेग खोलकर उसने मिर्च स्प्रे बाहर निकाला। चौथा युवक विंध्या पर राड से हमला करने ही वाला था की विंध्या ने उसके चेहरे पर स्प्रे छिंटक दिया। वह तिलमिला उठा। उसकी आंखों में तीव्र जलन होने लगी। आंखों को मलते हुये वह यहां-वहां भागने लगा। यह विंध्या की दुसरी जीत थी। अब उसके हाथों में हथियार था। नीचे गिरे पड़े युवक खड़े होकर विंध्या के हाथ में मिर्च स्प्रे से डरते हुये उससे दुरी बनाये रखने पर विवश थे। किन्तु हाथ आये शिकार को वे इतनी सरलता से जाने नहीं देना चाहते थे।
विंध्या के पास पर्याप्त समय था। उसने पर्स से मोबाइल निकाला। निश्चित ही वह पुलिस को फोन करने का मन बना चूकी थी। हड़बड़ाहट में विंध्या के हाथों से मिर्च स्प्रे नीचे गिर गया। विंध्या तुरंत उसे उठाने के लिये झुकी। अगला प्रहार उन युवकों की तरफ से था। लोहें की राड सीधे विंध्या के सिर पर लगी। वह अचेत होकर पृथ्वी पर पछाड़ खाकर गिर पड़ी। विंध्या चीरनिंद्रा में पहूंच गई। उसे वह सब याद आया जिसे वह अब तक जीती आ रही थी। एक मध्यम परिवार की जिद्दी बेटी विंध्या। जितनी पढ़ाई-लिखाई में तेज थी उतनी ही खेलकुद और शरारत में भी अव्वल थी। मां भानुमति को विंध्या के काॅलेज जाते ही उसकी शादी की चिंता सताने लगी। पिता वासुदेव के सर्मथन के कारण वह जाॅब कर रही थी। छोटा भाई अशोक बंगलुरु में इंजीनियरिंग कर रहा था। एमबीए पास ऑउट विंध्या निजी मोबाइल कंपनी में सेल्स मैनेजर थी। ऑफिस स्टाॅफ की पार्टी नाइट में भानुमति ने विंध्या को जाने की अनुमति नहीं दी थी। मगर पिता वासुदेव की लाडली विंध्या पार्टी में चली गई। पार्टी देर रात तक चली। घर लौटने के लिये विंध्या अपनी स्कुटी पर सवार हो गयी। विराज के साथ कपल डांस कर वह प्रसन्न थी। आज विराज ने उसे विवाह हेतू प्रपोज किया था। विंध्या को विराज पसंद था। अतः उसने बिना विलंब किये विराज का प्रेम प्रस्ताव स्वीकार कर लिया था। विंध्या अपने भावी जीवन साथी के सुमधुर स्वप्न में खोई सुनसान सड़क पर चली जा रही थी। अब वह मुख्य सड़क से सर्विस रोड पर आ चुकी थी। यहां चहल-पहल नहीं थी। कुछ दुरी पर पान पार्लर शाॅप थी। जो बंद हो चूकी थी। उसी के पीछे एक अन्य हार्डवेयर की बंद दुकान के बरामदे में बैठकर चार युवक शराब पी रहे थे। उन्होंने शायद विंध्या को दूर से ही देख ही लिया था। कुछ ही पलों में विंध्या वहां से गुजरने वाली थी। विंध्या को मोपेट का ब्रेक लगाना पड़ा। चारों युवक विंध्या का रास्ता रोककर जो खड़े थे। विंध्या का स्वप्न टूटा। अपने सम्मुख अपराधीयों के समान युवकों को देखकर वह भयभीत थी। उसे उन लोगों के इरादें समझते देर नहीं लगी। विंध्या ने तुरंत मोपेट को पलट कर घुमाया। वह विपरीत दिशा में जल्द से जल्द भागना चाहती थी। युवकों ने भी विंध्या को पकड़ने के लिये दौड़ लगा दी। अचानक विंध्या की मोपेट बंद हो गयी। विंध्या ने तुरंत सेल्फ स्टार्ट का बटन बार-बार दबाया। मोपेट पुनः शुरू तो हो गयी किन्तु पुर्व में मोपेट के बंद हो जाने से मोपेट की गति धीमी हो गयी थी। पुनः इस गती को प्राप्त करने के लिए कुछ क्षणों के आवश्यकता थी। किन्तु विंध्या के पास समय नहीं था। युवकों ने विंध्या को पकड़ ही लिया। वे लोग विंध्या को मोपेट से उतारकर दुकान के बरामदे में ले जाने की कोशिश करने लगे। क्योंकी यहां पर्याप्त अंधेरा व्याप्त था। जो उनके लिये सहायक था। विंध्या छटपटा रही थी।
"छोड़ दो "जाने दो" "बचाओ-बचाओ" , विंध्या चीखने लगी। तब ही एक अन्य युवक ने विंध्या का मुंह रुमाल से बांध दिया। दो अन्य युवक विंध्या को दायें-बायें हाथों से पकड़ खड़े थे। एक युवक सिगरेट फुंकने कुछ ही दुरी पर चला गया। विंध्या के संम्मुख खड़ा युवक अपनी काम इच्छा तृप्ति के लिये आगे बढ़ा।
हाथों मे तख्तियां लेकर लोग सड़कों पर उतर आये थे। धरना, आन्दोलन शुरू हो चूके थे। मीडिया विंध्या के साथ हुये व्याभिचार को पर्याप्त कवरेज दे रही थी। मंदिर, मस्जिदों में विंध्या की सकुशल सलामती के लिये भीड़ जमा हो रही थी। बच्चे, बुढ़े और नौजवान, सभी चाहते थे की से विंध्या हॉस्पीटल से स्वस्थ्य होकर लौटे। सरकारी मशीनरी विंध्या के उपचार में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती थी। चारों अपराधी युवकों को गिरफ्तार कर लिया गया था। फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई के दौरान आम नागरिकों ने इन चारों अपराधीयों की धुनाई कर दी। विंध्या का देश और विदेश में समुचित उपचार किया जा रहा था। किन्तु उसके स्वास्थ्य में सुधार नहीं हो रहा था। सरकार बीच-बीच में विंध्या के कुशलक्षेप की न्युज बुलोटिन जारी कर देती। ताकी आम लोगों की उत्सुकता कम की जा सके। अंततः वह समाचार भी प्रसारित हुआ जिसने हर आंख भिगो दी। तीन दिवस के सघन उपचार के बाद विंध्या ने आखरी सांस ली। विंध्या के शव को स्वदेश लाया गया। लोगों में विंध्या के साथ हुये दुर्व्यवहार को लेकर बहुत गुस्सा था। विंध्या की मृत्यु की खबर ने अशांति फैला दी। लोग हिंसक हो चुके थे। गली-मोहल्लों और सडकों पर आवारा मजनूओं की खुलेआम पिटाई शुरू हो गयी थी। छेड़खानी के संदिग्ध मात्र युवक सामुहिक मार-पिटाई के भागी बन रहे थे। प्रशासन के लिये यह एक नई मुसीबत थी। लोग कानुन हाथ में ले रहे थे। विवश होकर पुलिस को वह बयान जारी करना पड़ा जो आखिर समय में विंध्या ने पुलिस को दिया था। विंध्या के बयान का वह वीडीयों नेशनल टीवी नेटवर्क और आकाशवाणी पर प्रसारित किया गया।
जिसमें विंध्या ने कहा था- "मुझे जिन्होनें भी नुकसान पहुंचाया, उन्हें कठोरतम सजा अवश्य दी जाये मगर इसके साथ ही इन चारों युवकों के माता-पिता और उनके घरों के बढ़ें-बूढ़ों को भी दण्डित किया जाये। मेरे साथ हुये कुकर्म के जितने ये चार लोग दोषी है उतना ही इनका परिवार भी गुनाहगार है। इनके परिवार के सदस्यों ने इन्हें क्यों नहीं समझाया कि औरतों की अस्मत के साथ इस प्रकार का दुर्व्यवहार किसी पाप से कम नहीं है।
मेरे लिये न्याय की मांग करने वाले, सडकों पर मोमबत्तियाँ लेकर चलने वाले लोगों का मैं आभार व्यक्त करती हूं। प्रशासन पर मुझे पुर्ण भरोसा है कि वह मेरे हत्यारों पर उचित कार्रवाही करेगा। उन्हें फांसी की सजा भी मिल जायेगी। मगर मुझे इन सब से शांति नहीं मिलेगी। मुझे सांत्वना तब मिलेगी जब आप लोग अपने घरों की बहन-बेटीयों की ही तरह दुसरो की बहन बेटीयों का भी समुचित सम्मान करेंगे। घर की बहु बेटीयों की निगरानी के लिये तो बहुत सी आंखें तैयार खड़ी रहती। किन्तु घर का बेटा, भाई घर के बाहर क्या कर रहा है? उसकी चौकसी कोई क्यों नहीं करता? मेरे बलात्कारी क्या कहीं बाहर से आये थे? नहीं ! वो हमारे बीच के ही थे। यदि आरंभ से ही बेटीयों पर जितनी बंदिशें और उनके घर से बाहर निकलने पर जितनी टर्म एण्ड कडिंशन जारी होती है, उतने में से यदि आधी भी बेटों पर अप्लाई होने लगे तब विश्वास के साथ कह सकती हूं कि जो मेरे साथ हुआ वह किसी दुसरी लड़की के साथ नहीं होगा। लड़कीयों के साथ ही बुरा व्यवहार होता है और निगरानी भी उसी की रखी जाती है। जबकी छेड़खानी करने वाले युवक पुरी स्वतंत्रता लिए होते है। रक्षा बंधन पर कोई बहन अपने भाई से किसी भी प्रकार का उपहार न ले। बल्कि वह अपने भाई से सिर्फ यह वचन ले कि वह अपनी सगी बहन के समान ही दुसरे की बहन का सम्मान करेगा। कोई आश्चर्य की बात न होगी यदि भविष्य में आपके बीच का ही कोई आपका भाई या बेटा अन्य किसी लड़की के बलात्कार के अपराध में पकड़ा जाये। यदि ऐसा होता है तो संपूर्ण मोहल्लें वाले आपको भी बलात्कारी समझेंगे। वह स्थिति आपके लिए निश्चित ही अप्रिय और कष्टदायी होगी। अतः उचित होगा कि जितने जिम्मेदार हम लडकियों को बनाते है उतना ही जिम्मेदार हम लड़कों को भी बनाये। मेरे लिये असली न्याय वही होगा और तब ही मुझे सही मायने में आत्मिय शांति मिलेगी।"
निर्भया चली गई मगर लोगों के हृदय में महिलाओं के प्रति सम्मान और पुरूषों के प्रति पारिवारिक चिंता की मशाल जला गई। जिसका प्रकाश अनंत काल तक सदविचार की रोशनी फैलाता रहेगा।

समाप्त
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लेखक-
जितेन्द्र शिवहरे
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