वह समझ गयी-कहानी
एक कहानी रोज़-87
*वह समझ गयी - लघुकथा*
*बारात* घर के एकदम निकट आ चुकी थी। पुरा घर दुल्हन की तरह सजाया गया था। देख कर ही लगता था कि नीता के पिता ने बहुब खर्चा किया था नीता की शादी के लिए। नीता अपने कमरे में तैयार हो रही थी। घर से भागने के लिए। दरअसल ये विवाह उसकी रजामंदी के विरूद्ध हो रहा था।
नीता तो पास ही के मोहल्ले के संजय से प्रेम करती थी और उसी से शादी करना चाहता थी।
यकायक नीता के पिता अशोक जी ने नीता को घर की खिड़की से रस्सी बांध कर भागने की कोशिश करते हुये रंगे हाथों पकड़ लिया।
अशोक जी ध्यैर्य से काम लिया। उन्होनें नीता को प्यार से समझाना शुरू किया। नीता को पास बैठाकर उसके सिर पर हाथ रखकर अशोक जी बोले-
"देखों बेटी! मैं जानता हूं की तुम संजय से शादी करना चाहती हो। लेकिन बेटी! उसका चाल-चलन किसी से छिपा नही है। मारपीट, गुण्डागर्दी और न जाने कौन-कौन से प्रकरण उस पर चल रहे है। संजय गरीब होता, बेरोजगार भी होता, तो भी खुशी- खुशी मैं उसकी शादी तुमसे करवा देता। आखिर मेरा जो है वो सब तेरा और तेरे होने वाले पति का ही तो है।"
नीता मौन थी। जैसे वह सबकुछ समझने का प्रयास कर रही थी।
"मगर बेटा उसके और हमारे स्तर के बारे में तो सोच! हमारे यहां कोई शराब छुता तक नहीं और संजय शराब पीने का कितना आदि है। और फिर तुझसे ज्यादा मैंने दुनिया देखी है। प्यार-मोहब्बत की जिन्दगी पानी के बुलबुलें जितनी होती है। संजय तुझे रखेगा कहां? खिलायेगा क्या? न उसके आज की खब़र है न कल की। घर में जब पैसों की आवक नहीं होती तब क्लेश शुरू हो जाता है। पति-पत्नी में लड़ाई-झगड़ा शुरू हो जाता है। इसमें कोई संदेह नहीं है शराबी संजय तुम पर हाथ भी उठायेगा। गाली-गलोच करेगा। मजबूरन तुम्हे नौकरी करनी पड़ेगी। तुम्हें अकेले ही अपने बच्चों को पालना पड़ेगा। क्या तुम ऐसे माहौल में अपने बच्चों को अच्छी परवरिश दे पाओगी? नहीं न! एक न एक दिन संजय की मारपीट से तंग आकर या तो तुम खूद खुशी कर लोगी या फिर उसकी पुलिस मे शिकायत कर दोगी।
दोनों ही सुरतों में हार का मुंह तो तुम्हे ही देखना होगा।"
"ये तो कुछ भी नहीं है इससे कहीं ज्यादा बद से बदतर हालत कर देगा वह तुम्हारी। हो सकता है वह दरिदां तुम्हे मार के कही फेंक दे। और तुम्हारी लाश भी हमें न मिले।"
नीता बड़े ही ध्यान से अपने पिता की बातें सुन रही थी। अशोक जी को विश्वास होने लगा की नीता को उनकी बातें धीरे-धीरे समझ में आ रही थी।
"अब मनोज को ही देख!" अशोक जी आगे बोले।
"अच्छी-ख़ासी सरकारी नौकरी है। नायाब तहसीलदार है। पिता खुद रिटायर्ड फौजी है। मां कॉलेज में प्रिन्सिपल पद पर है। संस्कारित खानदान है। शादि के बाद वे तुझे आगे पढ़ने का भी कह रहे है। इससे तु न केवल स्वावलंबी होगी बल्कि तेरा स्वाभिमान भी जीवित रहेगा। कुल मिलाकर मनोज से शादी करने में तुझे कोई परेशानी नहीं होगी इस बात की ग्यारण्टी मैं देता हूं।"
"ऐसी हम सबकी राय है। आगे तेरी मर्जी। तु चाहे तो रस्सी से कुद के भाग जा या पुरे मान-सम्मान के साथ मनोज के साथ शादी कर ले। मैं दोनो ही सुरतो मे तुझे रोकूगां नहीं। तेरे पास एक घंटा है सोचने के लिए। बारात आ चुकी है। मैं फिर आऊंगा हूं।"
इतना कहकर अशोक जी नीता के कमरे से बाहर चले गये। नीता सोचने पर मजबूर हो गयी थी।
तभी एक जोर दार पटाखों की लड़ की तीव्र आवाज़ से उपस्थित सभी मेहमानों के कान सुन्न पड़ गये। नीता के बेडरूम को खंगाला गया। वह कमरे में नहीं थी। नीता घर से जा चुकी थी। रिश्तेदारों में खुसूर-फुसूर शुरू हो गयी।
अशोक जी ने अपनी स्कूटर की चाबी उठायी और चल पड़े पुलिस थाने की ओर। नीता की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवाने।
समाप्त
--------------------------------------------
प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमती है।
©®सर्वाधिकार सुरक्षित
लेखक--
जितेन्द्र शिवहरे
177, इंदिरा एकता नगर पूर्व रिंग रोड मुसाखेड़ी इंदौर मध्यप्रदेश
मोबाइल नम्बर
7746842533
8770870151
Jshivhare2015@gmail.com Myshivhare2018@gmail.com
*वह समझ गयी - लघुकथा*
*बारात* घर के एकदम निकट आ चुकी थी। पुरा घर दुल्हन की तरह सजाया गया था। देख कर ही लगता था कि नीता के पिता ने बहुब खर्चा किया था नीता की शादी के लिए। नीता अपने कमरे में तैयार हो रही थी। घर से भागने के लिए। दरअसल ये विवाह उसकी रजामंदी के विरूद्ध हो रहा था।
नीता तो पास ही के मोहल्ले के संजय से प्रेम करती थी और उसी से शादी करना चाहता थी।
यकायक नीता के पिता अशोक जी ने नीता को घर की खिड़की से रस्सी बांध कर भागने की कोशिश करते हुये रंगे हाथों पकड़ लिया।
अशोक जी ध्यैर्य से काम लिया। उन्होनें नीता को प्यार से समझाना शुरू किया। नीता को पास बैठाकर उसके सिर पर हाथ रखकर अशोक जी बोले-
"देखों बेटी! मैं जानता हूं की तुम संजय से शादी करना चाहती हो। लेकिन बेटी! उसका चाल-चलन किसी से छिपा नही है। मारपीट, गुण्डागर्दी और न जाने कौन-कौन से प्रकरण उस पर चल रहे है। संजय गरीब होता, बेरोजगार भी होता, तो भी खुशी- खुशी मैं उसकी शादी तुमसे करवा देता। आखिर मेरा जो है वो सब तेरा और तेरे होने वाले पति का ही तो है।"
नीता मौन थी। जैसे वह सबकुछ समझने का प्रयास कर रही थी।
"मगर बेटा उसके और हमारे स्तर के बारे में तो सोच! हमारे यहां कोई शराब छुता तक नहीं और संजय शराब पीने का कितना आदि है। और फिर तुझसे ज्यादा मैंने दुनिया देखी है। प्यार-मोहब्बत की जिन्दगी पानी के बुलबुलें जितनी होती है। संजय तुझे रखेगा कहां? खिलायेगा क्या? न उसके आज की खब़र है न कल की। घर में जब पैसों की आवक नहीं होती तब क्लेश शुरू हो जाता है। पति-पत्नी में लड़ाई-झगड़ा शुरू हो जाता है। इसमें कोई संदेह नहीं है शराबी संजय तुम पर हाथ भी उठायेगा। गाली-गलोच करेगा। मजबूरन तुम्हे नौकरी करनी पड़ेगी। तुम्हें अकेले ही अपने बच्चों को पालना पड़ेगा। क्या तुम ऐसे माहौल में अपने बच्चों को अच्छी परवरिश दे पाओगी? नहीं न! एक न एक दिन संजय की मारपीट से तंग आकर या तो तुम खूद खुशी कर लोगी या फिर उसकी पुलिस मे शिकायत कर दोगी।
दोनों ही सुरतों में हार का मुंह तो तुम्हे ही देखना होगा।"
"ये तो कुछ भी नहीं है इससे कहीं ज्यादा बद से बदतर हालत कर देगा वह तुम्हारी। हो सकता है वह दरिदां तुम्हे मार के कही फेंक दे। और तुम्हारी लाश भी हमें न मिले।"
नीता बड़े ही ध्यान से अपने पिता की बातें सुन रही थी। अशोक जी को विश्वास होने लगा की नीता को उनकी बातें धीरे-धीरे समझ में आ रही थी।
"अब मनोज को ही देख!" अशोक जी आगे बोले।
"अच्छी-ख़ासी सरकारी नौकरी है। नायाब तहसीलदार है। पिता खुद रिटायर्ड फौजी है। मां कॉलेज में प्रिन्सिपल पद पर है। संस्कारित खानदान है। शादि के बाद वे तुझे आगे पढ़ने का भी कह रहे है। इससे तु न केवल स्वावलंबी होगी बल्कि तेरा स्वाभिमान भी जीवित रहेगा। कुल मिलाकर मनोज से शादी करने में तुझे कोई परेशानी नहीं होगी इस बात की ग्यारण्टी मैं देता हूं।"
"ऐसी हम सबकी राय है। आगे तेरी मर्जी। तु चाहे तो रस्सी से कुद के भाग जा या पुरे मान-सम्मान के साथ मनोज के साथ शादी कर ले। मैं दोनो ही सुरतो मे तुझे रोकूगां नहीं। तेरे पास एक घंटा है सोचने के लिए। बारात आ चुकी है। मैं फिर आऊंगा हूं।"
इतना कहकर अशोक जी नीता के कमरे से बाहर चले गये। नीता सोचने पर मजबूर हो गयी थी।
तभी एक जोर दार पटाखों की लड़ की तीव्र आवाज़ से उपस्थित सभी मेहमानों के कान सुन्न पड़ गये। नीता के बेडरूम को खंगाला गया। वह कमरे में नहीं थी। नीता घर से जा चुकी थी। रिश्तेदारों में खुसूर-फुसूर शुरू हो गयी।
अशोक जी ने अपनी स्कूटर की चाबी उठायी और चल पड़े पुलिस थाने की ओर। नीता की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवाने।
समाप्त
--------------------------------------------
प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमती है।
©®सर्वाधिकार सुरक्षित
लेखक--
जितेन्द्र शिवहरे
177, इंदिरा एकता नगर पूर्व रिंग रोड मुसाखेड़ी इंदौर मध्यप्रदेश
मोबाइल नम्बर
7746842533
8770870151
Jshivhare2015@gmail.com Myshivhare2018@gmail.com
उसने ऐसा क्यों किया
जवाब देंहटाएं