*ससुर जी- कहानी*
*एक कहानी रोज़-89* *(12/07/2020)*
*आरती* के स्वर आज कुछ बदले-बदले थे। जब से वह मायके से लौटी थी, तब ही से उसके हाव-भाव शांति के प्रतिक बने हुये थे। दरअसल आरती चाहती थी कि उसके ससुर घर में अतिरिक्त आमदनी के लिए कुछ काम-धंधा शुरू करे। जिससे घर की व्यवस्था चलाने में उसे सरलता हो। एक अकेले राजेश की पगार के रूपयों से छः - छः सदस्यों का गुजर बसर संभव नहीं हो पा रहा था। आरती के ससुर रामप्रसाद होटल व्यवसायी से सेवानिवृत होकर घर पर आराम कर रहे थे। स्वयं राजेश ने ही उन्हें घर पर आराम करने को राज़ी किया था। दो किशोरवय बच्चों के साथ बुढ़े सास-ससुर और दोनों पति-पत्नी एक अकेले राजेश की मासिक पगार पर निर्भर थे। आर्थिक तंगहाली के बीच आरती ने अपने ससुर रामप्रसाद को गाॅर्ड की नौकरी करने की सलाह तक दे डाली। कुरसी पर बैठे-बैठे छः हजार की तनख़्वाह से घर खर्च में उसे बड़ी मदद मिल सकती थी। किन्तु राजेश इसके लिए राज़ी नहीं था। आरती की सास सुधा तिलमिला उठी। इस बात पर दोनों सास-बहु की बहुत कहा-सुनी हुयी। रामप्रसाद गाॅर्ड की नौकरी करने के लिए तैयार हो गये। क्योँकी ऐसा करने से उनके घर में शांति बनी रह सकती थी।
"आपकी बहन भी तो अपने ससुर को काम करने बाहर भेज रही है। उसमें गल़त क्या है?" अनिता बोल रही थी। "देखीए! ससुर जी कौ बैठे-बैठे चौकीदारी ही तो करना है। आने-जाने वालों का नाम-पता लिखना है बस। और तनख़्वाह! महिने के पुरे सात हजार रूपये! इन रुपयों से बच्चों की पढ़ाई और बाकी खर्चों में बहुत मदद मिलेगी।" अनिता अपने पति कृष्णा से कह रही थी।
भाभी अनिता के मुख से अपने पिता के संबंध में उक्त बातें सुनकर आरती के पैरों तले जमींन खींसक गयी। उसका जी तो चाहता था कि वह अपनी भाभी को इस विषय पर खूब-खरी खोटी सुनाये। लेकीन ये सब आखिर उसी की प्रेरणा से तो हो रहा था। इसलिए वह चूप रही। आरती आत्मग्लानी से भर उठी। वह बिना कुछ कहे अपने ससुराल लौट आयी। रात में खाना खाते समय उसने अपने ससुर से माफी मांगी। और उन्हें गाॅर्ड की नौकरी नहीं करनी पड़े, इसका उसने रास्ता भी निकाल लिया। अपने खाली समय में वह रेडीमेड कपड़े सीलेगी। घर पर ही कटलरी और महिलाओ के साज-श्रृंगार की प्रसाधन सामग्री विक्रय किया करेगी। इतना ही नहीं! घर के आंगन में रिक्त पड़ी थोड़ी जगह पर वह किराना दुकान निर्माण करने के लिए महिला स्व सहायता समूह से ॠण लेगी। वहां घर उपयोगी किराना सामग्री रखेगी। जहां उसके सास और ससुर सम्मान पुर्वक घर पर ही रहकर सर्व उपयोगी किराना सामग्री विक्रय किया करेंगे। दोनों बच्चें विवेक और प्राची किराना दुकान में अपने दादा-दादी की मदद करेंगे। आरती के इस प्रस्ताव को सभी सदस्यों ने हरी झण्डी दिखा दी। प्रत्येक सदस्यों ने यथोचित सहयोग देना सहर्ष स्वीकार किया। बस फिर क्या था, आरती अगले ही दिन से अपनी उक्त परियोजना को पूर्ण करने में जी-जान से जुट गयी।
समाप्त
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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमती है।
©®सर्वाधिकार सुरक्षित
लेखक--
जितेन्द्र शिवहरे
177, इंदिरा एकता नगर पूर्व रिंग रोड मुसाखेड़ी इंदौर मध्यप्रदेश
मोबाइल नम्बर
7746842533
8770870151
Jshivhare2015@gmail.com Myshivhare2018@gmail.com
*एक कहानी रोज़-89* *(12/07/2020)*
*आरती* के स्वर आज कुछ बदले-बदले थे। जब से वह मायके से लौटी थी, तब ही से उसके हाव-भाव शांति के प्रतिक बने हुये थे। दरअसल आरती चाहती थी कि उसके ससुर घर में अतिरिक्त आमदनी के लिए कुछ काम-धंधा शुरू करे। जिससे घर की व्यवस्था चलाने में उसे सरलता हो। एक अकेले राजेश की पगार के रूपयों से छः - छः सदस्यों का गुजर बसर संभव नहीं हो पा रहा था। आरती के ससुर रामप्रसाद होटल व्यवसायी से सेवानिवृत होकर घर पर आराम कर रहे थे। स्वयं राजेश ने ही उन्हें घर पर आराम करने को राज़ी किया था। दो किशोरवय बच्चों के साथ बुढ़े सास-ससुर और दोनों पति-पत्नी एक अकेले राजेश की मासिक पगार पर निर्भर थे। आर्थिक तंगहाली के बीच आरती ने अपने ससुर रामप्रसाद को गाॅर्ड की नौकरी करने की सलाह तक दे डाली। कुरसी पर बैठे-बैठे छः हजार की तनख़्वाह से घर खर्च में उसे बड़ी मदद मिल सकती थी। किन्तु राजेश इसके लिए राज़ी नहीं था। आरती की सास सुधा तिलमिला उठी। इस बात पर दोनों सास-बहु की बहुत कहा-सुनी हुयी। रामप्रसाद गाॅर्ड की नौकरी करने के लिए तैयार हो गये। क्योँकी ऐसा करने से उनके घर में शांति बनी रह सकती थी।
"आपकी बहन भी तो अपने ससुर को काम करने बाहर भेज रही है। उसमें गल़त क्या है?" अनिता बोल रही थी। "देखीए! ससुर जी कौ बैठे-बैठे चौकीदारी ही तो करना है। आने-जाने वालों का नाम-पता लिखना है बस। और तनख़्वाह! महिने के पुरे सात हजार रूपये! इन रुपयों से बच्चों की पढ़ाई और बाकी खर्चों में बहुत मदद मिलेगी।" अनिता अपने पति कृष्णा से कह रही थी।
भाभी अनिता के मुख से अपने पिता के संबंध में उक्त बातें सुनकर आरती के पैरों तले जमींन खींसक गयी। उसका जी तो चाहता था कि वह अपनी भाभी को इस विषय पर खूब-खरी खोटी सुनाये। लेकीन ये सब आखिर उसी की प्रेरणा से तो हो रहा था। इसलिए वह चूप रही। आरती आत्मग्लानी से भर उठी। वह बिना कुछ कहे अपने ससुराल लौट आयी। रात में खाना खाते समय उसने अपने ससुर से माफी मांगी। और उन्हें गाॅर्ड की नौकरी नहीं करनी पड़े, इसका उसने रास्ता भी निकाल लिया। अपने खाली समय में वह रेडीमेड कपड़े सीलेगी। घर पर ही कटलरी और महिलाओ के साज-श्रृंगार की प्रसाधन सामग्री विक्रय किया करेगी। इतना ही नहीं! घर के आंगन में रिक्त पड़ी थोड़ी जगह पर वह किराना दुकान निर्माण करने के लिए महिला स्व सहायता समूह से ॠण लेगी। वहां घर उपयोगी किराना सामग्री रखेगी। जहां उसके सास और ससुर सम्मान पुर्वक घर पर ही रहकर सर्व उपयोगी किराना सामग्री विक्रय किया करेंगे। दोनों बच्चें विवेक और प्राची किराना दुकान में अपने दादा-दादी की मदद करेंगे। आरती के इस प्रस्ताव को सभी सदस्यों ने हरी झण्डी दिखा दी। प्रत्येक सदस्यों ने यथोचित सहयोग देना सहर्ष स्वीकार किया। बस फिर क्या था, आरती अगले ही दिन से अपनी उक्त परियोजना को पूर्ण करने में जी-जान से जुट गयी।
समाप्त
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