एक कहानी रोज़-90
*शमशान घाट- लघुकथा*
*संसद* भवन में विपक्ष सत्तारूढ़ नेताजी पर जोरदार प्रहार कर रहा था।
"गांव के विकास और उन्नति के लिए नेताजी ने आज तक कुछ नहीं किया। जबकी वर्षों से गांव के लोग नेताजी को वोट देकर जितवाते आये है।" विपक्ष ने तंज कसा।
नेताजी बोले- "आदरणीय सभापति जी महोदय! ये सत्य है की संबंधित गांव से हमेशा मुझे प्यार और सम्मान मिलता रहा है। पिछले पंद्रह वर्षों से रामपुर गांव से मैं चुनाव में विजयी होता आया हूं। मगर विपक्ष का यह आरोप निराधार है कि मैंने संबंधित गांव में कुछ नहीं किया। मैं आपको एक-एक कर गिनाता हूं की मैंने उक्त गांव में कितने विकास कार्य करवाये।" नेताजी पन्ने खंगालने लगे।
"आदरणीय सभापति जी! गांव में पिछले कई वर्षो से कोई भी पक्का श्मशान घाट नहीं था। इससे ग्रामीणों को बहुत परेशानी उठानी पढ़ती थी। शव जलाने के लिए ग्रामीणों को पड़ोस के गांव जाना पड़ता था। लेकिन कई बार पड़ोसी गांव के लोग संबंधित गांव के मरे हुये शवों को जलाने की अनुमति नहीं देते थे। कई मर्तबा मुर्दा को या तो जमींन में दफनाना पड़ता था या नदि-नालों में बहा देना पड़ता था। जब से हम चुनाव जीते कर आये है, हमने गांव की इस घोर समस्या पर गंभीरता से विचार किया। अधिकारीयों को बैठकें ली और उन्हें खूब दौड़ाया। दिल्ली से श्मशान घाट निर्माण का पैसा जारी करवाया तब जाकर आज उस गांव में एक बहुत ही अच्छा और बड़ा श्मशान घाट तैयार खड़ा है। हमने गांव वासीयों से साफ-साफ कह दिया अब खूब मरो और शान से जलो।" नेताजी बोले। सदन में मेज़ थपथपाई जाने लगी।
"इतना ही नहीं! इसी गांव में कभी एक भी शराब की दुकान नहीं थी। बेचारे गांव के लोगों को अपनी मेहनत-मजदूरी का पैसा शराब में खर्च करने दूर हाइवे रोड़ पर जाना पड़ता था। इससे सड़क दुर्घटना का खतरा बड़ जाया करता था। गांव के बहुत से लोग उसी हाईवे सड़क पर शराब के नशे में दुर्घटनाग्रस्त हुये थे। हमने इसका भी हल निकाला। हमारी सरकार ने गांव में ही एक शराब की दुकान खुलवा दी, जिससे की दिन भर के काम से थके-मांदे घर आये ग्रामीणों को गांव में ही अच्छी और सस्ती शराब का सेवन करने का सुख मिल सके और गांव वालों की मेहनत का पैसा गांव में ही रहे।"
"और सुनिये सभापति महोदय! गावं वाले मेरे पास आये और निवेदन किया कि गांव में कोई स्कूल नहीं है। अतः मैं उनके बच्चों के लिए स्कूल भवन बनवा कर दूं। शिक्षा पाना सबका अधिकार है। हमारी सरकार ने गांव में दस लाख रुपए की लागत से एक विशाल स्कूल भवन का निर्माण करवाया। मैं खुद शाला भवन का उद्घाटन करके आया हूं। हां! लेकिन हम ये कोशिश कर रहे है की स्कूल में जल्द ही कोई शिक्षक पढ़ाने के लिए नियुक्त हो जाए!"
"हमने गांव में एक वृहद पुस्तकालय खुलवाया है। और आपको बता दू अगले आम चुनाव तक उसमें देश-विदेश की पुस्तकें आम आदमी को पढ़ने के लिए उपलब्ध हो भी जायेंगी।"
"हमने गांव में व्यायामशाला बनवायी है। जिसमें गावं के युवा लोग अखाड़े के दांव पेंच सीखेंगे। साथ ही शारीरिक ह्रष्ट- पुष्ट भी बनेंगे। बहुत ही जल्दी हम उस व्यायामशाला में वर्जिस करने का सांजों सामान उपलब्ध कराने का प्रयास करेंगे।"
"गांव की आंगनबाड़ी में बच्चों को खाना नहीं मिलने की शिकायते हमारे पास बहुत बार आयीं है। लेकिन डरने की कोई बात नहीं। आंगनबाड़ी हर रोज़ खुल रही है यही बड़ी बात है! पुर्व नेता के समय तो आंगनवाड़ी में सिर्फ ताला ही जड़ा देखा गया। हमने वहां के ताले तुड़वाये और आंगनवाड़ी शुरू करवायी। उसमें बच्चों को खाना भी मिलने लगेगा, ऐसी हम प्रभावी कोशिश करेंगे।"
"गांव के स्वास्थ्य केन्द्र के ताले भी खुलेंगे और बहुत जल्दी ही वहां डाॅक्टर आकर गावं वालों का मुफ़्त इलाज करेंगे। हमारी सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठा रही है। गांव वालों से आग्रह है की जरा चुनाव आने तक सब्र रखे।" नेताजी बोलकर बैठ गये।
नेताजी कहिन बातों की उपलब्धियों पर पुरा सदन तालियों से गुंजायमान हो उठा।
समाप्त
--------------------------------------------
प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमती है।
©®सर्वाधिकार सुरक्षित
लेखक--
जितेन्द्र शिवहरे
177, इंदिरा एकता नगर पूर्व रिंग रोड मुसाखेड़ी इंदौर मध्यप्रदेश
मोबाइल नम्बर
7746842533
8770870151
Jshivhare2015@gmail.com Myshivhare2018@gmail.com
*शमशान घाट- लघुकथा*
*संसद* भवन में विपक्ष सत्तारूढ़ नेताजी पर जोरदार प्रहार कर रहा था।
"गांव के विकास और उन्नति के लिए नेताजी ने आज तक कुछ नहीं किया। जबकी वर्षों से गांव के लोग नेताजी को वोट देकर जितवाते आये है।" विपक्ष ने तंज कसा।
नेताजी बोले- "आदरणीय सभापति जी महोदय! ये सत्य है की संबंधित गांव से हमेशा मुझे प्यार और सम्मान मिलता रहा है। पिछले पंद्रह वर्षों से रामपुर गांव से मैं चुनाव में विजयी होता आया हूं। मगर विपक्ष का यह आरोप निराधार है कि मैंने संबंधित गांव में कुछ नहीं किया। मैं आपको एक-एक कर गिनाता हूं की मैंने उक्त गांव में कितने विकास कार्य करवाये।" नेताजी पन्ने खंगालने लगे।
"आदरणीय सभापति जी! गांव में पिछले कई वर्षो से कोई भी पक्का श्मशान घाट नहीं था। इससे ग्रामीणों को बहुत परेशानी उठानी पढ़ती थी। शव जलाने के लिए ग्रामीणों को पड़ोस के गांव जाना पड़ता था। लेकिन कई बार पड़ोसी गांव के लोग संबंधित गांव के मरे हुये शवों को जलाने की अनुमति नहीं देते थे। कई मर्तबा मुर्दा को या तो जमींन में दफनाना पड़ता था या नदि-नालों में बहा देना पड़ता था। जब से हम चुनाव जीते कर आये है, हमने गांव की इस घोर समस्या पर गंभीरता से विचार किया। अधिकारीयों को बैठकें ली और उन्हें खूब दौड़ाया। दिल्ली से श्मशान घाट निर्माण का पैसा जारी करवाया तब जाकर आज उस गांव में एक बहुत ही अच्छा और बड़ा श्मशान घाट तैयार खड़ा है। हमने गांव वासीयों से साफ-साफ कह दिया अब खूब मरो और शान से जलो।" नेताजी बोले। सदन में मेज़ थपथपाई जाने लगी।
"इतना ही नहीं! इसी गांव में कभी एक भी शराब की दुकान नहीं थी। बेचारे गांव के लोगों को अपनी मेहनत-मजदूरी का पैसा शराब में खर्च करने दूर हाइवे रोड़ पर जाना पड़ता था। इससे सड़क दुर्घटना का खतरा बड़ जाया करता था। गांव के बहुत से लोग उसी हाईवे सड़क पर शराब के नशे में दुर्घटनाग्रस्त हुये थे। हमने इसका भी हल निकाला। हमारी सरकार ने गांव में ही एक शराब की दुकान खुलवा दी, जिससे की दिन भर के काम से थके-मांदे घर आये ग्रामीणों को गांव में ही अच्छी और सस्ती शराब का सेवन करने का सुख मिल सके और गांव वालों की मेहनत का पैसा गांव में ही रहे।"
"और सुनिये सभापति महोदय! गावं वाले मेरे पास आये और निवेदन किया कि गांव में कोई स्कूल नहीं है। अतः मैं उनके बच्चों के लिए स्कूल भवन बनवा कर दूं। शिक्षा पाना सबका अधिकार है। हमारी सरकार ने गांव में दस लाख रुपए की लागत से एक विशाल स्कूल भवन का निर्माण करवाया। मैं खुद शाला भवन का उद्घाटन करके आया हूं। हां! लेकिन हम ये कोशिश कर रहे है की स्कूल में जल्द ही कोई शिक्षक पढ़ाने के लिए नियुक्त हो जाए!"
"हमने गांव में एक वृहद पुस्तकालय खुलवाया है। और आपको बता दू अगले आम चुनाव तक उसमें देश-विदेश की पुस्तकें आम आदमी को पढ़ने के लिए उपलब्ध हो भी जायेंगी।"
"हमने गांव में व्यायामशाला बनवायी है। जिसमें गावं के युवा लोग अखाड़े के दांव पेंच सीखेंगे। साथ ही शारीरिक ह्रष्ट- पुष्ट भी बनेंगे। बहुत ही जल्दी हम उस व्यायामशाला में वर्जिस करने का सांजों सामान उपलब्ध कराने का प्रयास करेंगे।"
"गांव की आंगनबाड़ी में बच्चों को खाना नहीं मिलने की शिकायते हमारे पास बहुत बार आयीं है। लेकिन डरने की कोई बात नहीं। आंगनबाड़ी हर रोज़ खुल रही है यही बड़ी बात है! पुर्व नेता के समय तो आंगनवाड़ी में सिर्फ ताला ही जड़ा देखा गया। हमने वहां के ताले तुड़वाये और आंगनवाड़ी शुरू करवायी। उसमें बच्चों को खाना भी मिलने लगेगा, ऐसी हम प्रभावी कोशिश करेंगे।"
"गांव के स्वास्थ्य केन्द्र के ताले भी खुलेंगे और बहुत जल्दी ही वहां डाॅक्टर आकर गावं वालों का मुफ़्त इलाज करेंगे। हमारी सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठा रही है। गांव वालों से आग्रह है की जरा चुनाव आने तक सब्र रखे।" नेताजी बोलकर बैठ गये।
नेताजी कहिन बातों की उपलब्धियों पर पुरा सदन तालियों से गुंजायमान हो उठा।
समाप्त
--------------------------------------------
प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमती है।
©®सर्वाधिकार सुरक्षित
लेखक--
जितेन्द्र शिवहरे
177, इंदिरा एकता नगर पूर्व रिंग रोड मुसाखेड़ी इंदौर मध्यप्रदेश
मोबाइल नम्बर
7746842533
8770870151
Jshivhare2015@gmail.com Myshivhare2018@gmail.com
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें