नेताजी धरने पर है-कहानी

 *नेताजी धरने पर है-कहानी*

          *नेताजी* के विषय में जिसने भी सुना, सुनकर हक्का-बक्का रह गया। हालांकि अभी नेताजी सठियाने की आयु से कुछ साल दूर थे। फिर न जाने क्यों पार्टी कार्यकर्ता इन्हें पागल कहने से भी नहीं चूके। नेताजी धरने पर बैठे थे और वह अपनी प्रिय जनता के खिलाफ। जनता के लिए यह आनन्द का विषय था तो वही मीडिया जगत के लिए किसी सनसनीखेज न्यूज से कम नहीं था। पार्टी आलाकमान तक बात पहूंची। उन्होंने आखिरकार नेताजी को पार्टी की सदस्यता से निलम्बित करने की संभावना तलाशना आरंभ कर दि। क्योंकि नेताजी द्वारा जनता के विरोध में धरना प्रदर्शन करना आगामी आम चुनाव में उनकी पार्टी के वोट बैंक को अच्छा खासा प्रभावित कर सकता था। वहीं एकदम से इतने वरिष्ठ राजनीतिज्ञ को पार्टी निकाला भी नहीं दिया जा सकता था। नेताजी के कानों तक बात पहूंची की पार्टी आलाकमान उन्हें हटाने पर विचार कर रही है। किन्तु उनकी कान पर जूं तक नहीं रेंगी। वे निडर होकर धरने पर बैठे रहे। नेताजी कभी इतने प्रसिद्ध नहीं हुये जितना इस अनोखे धरने पर बैठने से हो गये थे। चहूं ओर नेताजी के चर्चे जंगल में आज की तरह फैल रहे थे। नेताजी का कदम सही था या गल़त! ये तो विवाद का विषय था। लेकिन उनके इस प्रयोग ने जनता और सभी पार्टियों का ध्यान अपनी अवश्य खींच लिया था। कुछ तो इसे नेताजी की सोची-समझी साजिश करार दे रहे थे। क्योंकि इस कदम से नेताजी और उनकी पार्टी को बहुत प्रसिद्धी मिल रही थी। नेताजी के पास भीड़ बढ़ती ही जा रही थी। मजबुरन पुलिस विभाग द्वारा नेताजी को सुरक्षा प्रदान करनी पड़ी।

उपस्थित एक मीडिया कर्मी ने माइक सीधे नेताजी के मुंह में घूंसेड़ दिया। और पुछा-

"नेताजी! ये क्या बचपना है। जनता के विरोध में धरना! क्या ये कोई मज़ाक है?" पत्रकार ने पुछा।

"नहीं बंधु! ये मज़ाक नहीं है। मज़ाक तो जनता करती आयी है अब तक! हम नेताओं के साथ!" नेताजी ने जवाब दिय।

"वह कैसे?" पत्रकार ने अगला सवाल दाग़ दिया।

"अब देखीये। आम जनता हमेशा नेताओं पर आरोप लगाती आयी है कि हम लोग उनकी कसौटी पर कभी खरे नहीं उतरते! लेकिन जनता हम नेताओं की कसौटी पर कब खरी उतरी?" नेताजी ने बताया।

"क्या मतलब?" पत्रकार ने पुछा।

"देखीये! सुबह-सुबह हम नेताओं की नींद भी नहीं खुलती मगर आम लोग हमारे दरवाज़े पर आ खड़े होते है। और कहते है की उनकी ड्रेनेड लाइन चौक हो गयी है। चलकर देखे। सुबह-सुबह नेताओं का मुंह भी नहीं धुलता और हमें इनके मोहल्ले में जाकर ड्रेनेज का गंदा-विषैला पानी देखना पड़ता है।" नेताजी ने बताया।

"लेकीन ये आप की ड्यूटी है। यह तो करना ही होगा न!" पत्रकार ने कहा।

"सही कहा। ड्यूटी! आपने एक नेता की ड्यूटी याद दिला दी। किन्तु किसी ने जनता को उसकी ड्यूटी याद दिलाने की कोशिश की?" नेताजी ने पुछा।

पत्रकार को कुछ पल विचार करना पड़ा।

"आप कहना क्या चाहते है, जरा खुलकर बताईये।" पत्रकार ने पुछा।

"बंधु! मैं यही बताना चाहता हूं की सभी को नेताजी द्वारा  अपने कर्तव्य न करने की चिढ़ होती है किन्तु आम जनता के भी कुछ कर्तव्य होते है। केवल वोट देने मात्र से आम लोग अपनी जिम्मेदारी से भाग नहीं सकते।"

नेताजी बोले।

"ओह! तो आप आम जनता के कर्तव्य बोध के लिए धरने पर बैठे है।" पत्रकार ने पुछा।

"अब सही समझा आपने?" नेताजी प्रसन्न होकर बोले।

"तो आप ही बता दीजिये कि आम जनता के क्या कर्तव्य है, जिनका वो पालन नहीं करते और जिसकी वज़ह से आपको यह धरना प्रदर्शन करना पड़ रहा है?" पत्रकार ने पुछा।

"आम जनता सब कुछ जानते हुये भी उसी को वोट देकर  जिताती आई है जिसे वह पसंद नहीं करती। क्योंकी बल्क की तादात में लोग संबंधित उम्मीदवार को वोट दे रहे होते है। कहीं उसका एक वोट बेकार न हो जाए। बस इसी चक्कर में आम आदमी उसी नेता को वोटे देता है जो सदियों से उसी परम्परा गत सीट पर जितता आया है। फिर भले ही वह उम्मीदवार कभी उस आदमी से प्रत्यक्ष मिला भी न हो।"

कुछ पलों की शांति के बाद नेताजी पुनः बोले-

"जनता हमेशा कहती कि राजनीतिक में अच्छे लोग नहीं आते! जब उन्हें पता है कि राजनीतिक में अच्छे लोगों की कमी है। तो फिर जनता हम बुरे लोगों को वोट देने क्यों आ जाती है? इसका सीधा सा अर्थ है की शराब, साड़ी और कंबल का लोभ इन्हें मतदान केन्द्रों तक खींच लाता है। अब इतनी सस्ती दरों में अपने वोट दोगे तो नेता भी तो सस्ते ही मिलेंगे न।"

"लेकिन नेताजी! कुछ अच्छी छवी के लोग भी राजनिती में आ रहे है। इस बात से आप इंकार नहीं कर सकते।" पत्रकार ने कहा।

"आपने सच कहा। लेकिन वो अच्छे लोग मोहल्लों की गली-आंगन की राजनीत तक ही सिमट कर रह जाते है। मैं उस जनता से पुछना चाहता हूं कि उसने ऐसे कितने अच्छी छवी के लोगों को वोट देकर जीताया? यकीनन एक भी नहीं। मैं तो कहूंगा की जनता ही जनता की दुश्मन है। उन्हें पता है की उनका पड़ोसी अच्छा व्यक्ति होकर चुनाव लड़ रहा है लेकिन ये उसे वोट नहीं देंगे। क्योँकी यह लोग शुरू से ही मान लेते है की उनका पड़ोसी उम्मीदवार निश्चित हारेगा। अरे! जब उसे अपने घर-बार और पड़ोस से ही वोट नहीं मिलेंगे, तब वह कैसे जीतेगा?" नेताजी बोले।

नेताजी के प्रतिउत्तर रोचक होते जा रहा थे। अन्य पत्रकार भी इसे रोमांचक बनाने में कोई कमी नहीं छोड़ना चाहते थे।

"बिजली-पानी और सड़क की समस्या सदियों से नेता लोग हल नहीं कर सके है या यूं कहे इसी के दम पर नेतागण चुनाव जितते आये है, इसलिए वे जानबूझकर ये समस्याएं हल नहीं करते ताकी वर्षों-वर्षों तक ये इन्हें मुद्दा बनाकर चुनाव जीत सके। आपके क्या विचार है?" एक फत्रकार ने अगला प्रश्न पुछा।

नेताजी हंस पढ़े।

"आप सबको सब पता है। मीडिया भी आम जनता का ही प्रतिरूप है। इन सबके बाद भी आप लोग हमें वोट देते आ रहे है और हम लोग विजय हासिल कर रहे है। यदि नेतागण दो मुंहे है तो जनता भी दो मुंही है। एक ओर जहां दिल खोलकर वे लोग हमारी बुराई करते है तो वही दबे पांव हमारे ही नाम पर चुनावी मतदान की मोहर लगा आते है। सड़क, बिजली, पानी की समस्या कोई समस्या नहीं है। ये राजनीति में टिके रहने और प्रशासन तथा आम जनता पर हुकुमत करने के हथियार है जिन्हें नेता सदैव अपने पास रखता है और समय-समय पर इनका उपयोग कर अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका का प्रतिपादन समाज के समक्ष प्रस्तुत करता रहता है। लोगों के मन में प्राचीन काल से ये धारणा घर चूकी है की बिना राजनितिज्ञों के बिजली-पानी और सड़क की समस्या कभी हल हो ही नहीं सकती। इसलिए वो हमें अपना सबकुछ मानकर हम पर अंधविश्वास करते है जिसका नेतागण भरपूर गल़त फायदा उठाते रहते है।" नेताजी ने कहा।

यकायक पुलिस साइरन की आवाज़ ने उपस्थित सभी का ध्यान भंग किया। पुलिस के कुछ बड़े पदाधिकारी  नेताजी को धरने से हटने की समजाईश देने लगे। किन्तु नेताजी तो पुरा मन बनाकर आये थे। आज उन्हें जनता की आंखें खोलनी ही थी। लेकिन पुलिस भी मन बनाकर आई थी कि नेताजी को प्यार से या तकरार से, किसी भी तरह धरने से हटाना था। और फिर जो हुआ वह आश्चर्यचकित कर देने वाला था। नेताजी का तम्बु और बम्बू उखाड़ दिया गया। हंगामा होने के पुरे-पुरे आसार बन रहे थे। नेताजी के समर्थक पुलिस के साथ झुमा-झटकी करने लगे। देखते ही देखते पार्टी के बहुत से कार्यकर्ता वहां जमा हो गये। पुलिस सख़्त एक्शन के मुड में थी। इतने में चारों दिशाओं से आम नागरिकों की टोली जुलुस और रैली की शक्ल में वहाँ पहूंचने लगी। नेताजी का धरना और उनके टीवी पर उद्गार सुनकर ये लोग नेताजी को अपना मसीहा मानने लगे थे। अब ये लोग नेताजी के लिए कुछ भी कर गूजरने को तैयार थे। असंख्य लोगों की बड़ती भीड़ को पुलिस युं सरलता से नियंत्रित नहीं कर सकती थी। हवा में गोली चली और लाठी चार्ज का आदेश जारी हुआ। पुलिस और जनता के बीच जोरदार भिंडत हुयी। इस उपद्रव में केवल जनता ही घायल नहीं हुयी अपितु पुलिस के बहुत से जवान भी घायल हुये। भगदड़ मचने से बहुत से निर्दोष लोगों को अपनी जान से भी हाथ धौना पड़ा। नेताजी पर एफआईआर हुयी। उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। कुछ ही समय के बाद खब़र आयी की नेताजी को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया जा रहा है। जनता पिछले सभी दुःख भुलकर अपने मसीहा की फोटो को दूध से नहलाने लगी। स्थान-स्थान पर उनके स्वागत-सत्कार और वंदन द्वार संजाये गये। नेताजी के लम्बी आयु और सुखद स्वास्थ्य के लिए यज्ञ-हवन किये जाने लगे। नेताजी अब सड़क छाप नेता नहीं थे। वो अब लोगों के दिल में जगह बना चूके थे। जहां से उन्हें निकालना विपक्ष के लिए टेड़ी खीर थी। नेताजी ने जिस उद्देश्य के लिए यह नवीन नवाचार अपने धरना प्रदर्शन में किया था, प्रदेश का मुखिया बनकर वह उद्देश्य आज पुरा हो गया था।


 समाप्त 

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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमती है।


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जितेन्द्र शिवहरे 

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*एक कहानी रोज़-103 (26/07/2020)*

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