मानव

        *मानव-संस्मरण*


एक कहानी रोज़-107 (30/07/2020)


               *टपोरी* टाइप का वह युवक भंयकर गर्जना के साथ बरस रहा था। पास ही खड़ी एक नव विवाहिता भी उसके कड़वे वचनों का यथोचित प्रतिउत्तर दे रही थी। लेकिन देखने से लगता था की युवती जल्द ही उस युवा तरूणाई और हिसंक प्रवृत्ति धारित युवक के आगे अपने अस्त्र-शस्त्र डाल देगी। उस युवक की भाव भंगिमा और क्रोधाग्नि में झुलस-झुलस कर बाहर आ रही विभिन्न शारीरिक मुद्राओं को देखकर उपस्थित हर कोई भय खा जाता। उपस्थित सभी जन मानस के मन में प्रश्न आ रहा था कि कहीं कुछ ऊंच-नीच न हो जाये! मोहल्ले में बहुत से रहवासी इस उपद्रव का सीधा प्रसारण देख रहे थे। किन्तु कोई भी इस मामला शांत करने आगे नहीं आ रहा था। क्योंकी किसी में इतनी हिम्मत नहीं थी कि एक जंगली बाघ से पंगा ले। मैंने अनुमान लगाया कि निश्चित ही ये कोई चोर है जो उस युवा स्त्री के हत्थे चढ़ गया है! लेकिन जैसा की उल्टा चोर कोतवाल को डांटता है, वह युवक भी ऐसा ही कर रहा होगा! युवक अपने मुख से असंख्य गाली-गलोच का उपयोग कर रहा था। जबकी युवती ने अब भी अपनी मर्यादा नहीं छोड़ी थी। कुछ पलों के बाद एक अधेड़ उम्र की महिला कमर पर हाथ रखे वहां आई। उसने युवक को बड़ी विनम्रता से समझाने का प्रयत्न आरंभ कर दिया। किन्तु युवक ने एक न सुनी। अपितु महिला का हाथ छिटककर अपने शरीर से दुर कर दिया। परिणाम स्वरूप वह बेचारी नीचे पृथ्वी पर गिरते-गिरते बची। मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ! क्योंकि कोई भी इस युवक को कुछ नहीं कह रहा था। वह युवक चिखता-चिल्लाता रहा किन्तु किसी की मज़ाल नही थी कि उसे नियंत्रित कर सके। अब एक उम्रदराज डरा-सहमा हुआ आदमी उस युवक के पास आया। देखकर लगा कि यह आदमी निश्चित ही अपने अनुभवों के दम पर उस खुले साण्ड को काबु में कर लेगा। उस आदमी ने अपने स्तर पर प्रयास आरंभ कर दिये। वह भांति-भांति के शब्दों के प्रकार से युवक को समझाता और उसे शांत होकर घर लौटने की विनती करता। एक पल को आभास हुआ की वह युवक उस आदमी की बात मान लेगा! लेकिन यह क्या? उस युवक ने अपने पिता समान पुरूष को गाली-गलोच देना आरंभ कर दिया। इससे भी जब युवक का मन नहीं भरा तो वह नशेड़ी सम्मुख खड़े उस आदमी से हाथापाई करने पर उतारूँ हो गया। और इससे भी युवक की मंशा पुरी नहीं हुई तब उसने आदमी पर अपने हाथों से प्रहार पर प्रहार करना शुरू कर दिये। पास ही खड़ी नव विवाहिता से रहा नहीं गया। वह टपोरी युवक पर टूट पड़ी। अधेड़ आयु की महिला भी बीच बचाव में उतर आयी। लेकिन वह युवक घुम-घुम कर किसी फिल्मी नायक की तरह तीनों पर आक्रमण कर रहा था। वह हाथों से और लातों से उन्हें मारता-पिटता। विवाहिता स्त्री ने पास ही जमींन पर पड़ा एक लठ्ठ उठा लिया और उससे युवक की धुनाई आरंभ कर दी। मगर युवक ने मात्र एक-दो लठ्ठ ही खाये होंगे कि उसने अपने तीव्र वेग और जबरदस्त हार्स पावर के बल पर बाजी पटल दी। विवाहिता स्त्री से लठ्ठ छीनकर उसने उसी पर प्रहार शुरू कर दिये। विवाहिता स्त्री को बचाने में वह अधेड़ उम्र की महिला बुरी तरह घायल हो गयी। उम्रदराज आदमी भी अपना सिर पकड़कर नीचे बैठ गया, उसके सिर से भी रक्त बह रहा था। नव विवाहिता भी कुछ दूर एक मकान की दिवार पर जा गिरी। युवक युद्ध जीत चूका था। तीनों प्रतिद्वंद्वी जमींन पर चारों खाने चित्त होकर बासुध पड़े थे। उनके बीचों बीच खड़ा युवक अपनी विजय पर आकाश जितने ऊंचे अट्टहास के साथ आसपास खड़े लोगों का अभिवादन स्वीकार रहा था।

मझे अब भी समझ नहीं आया की इस युद्ध में नायक और खल नायक की भूमिका में कौन था? मैंने पास ही खड़े एक रहवासी से पता किया तो उसने मुझे चौंका दिया।

उसने मुझे बताया की ये खुनी लड़ाई किसी बाहरी पक्ष के लोगों के मध्य नहीं हो रही थी अपितु एक ही परिवार के सदस्यों का आंतरिक गृह युद्ध चल रहा था। अधेड़ आयु का वह आदमी और उसी के समकक्ष उम्र की महिला आपस में पति-पत्नी थे। नव विवाहिता वह युवती उनकी बेटी है जो वहीं पड़ोस में ही ब्याही गयी थी। अपने मायके का क्लेश सुनकर वह दौड़ी चली आई थी। मैंने पुछा की वह युवक कौन है जो इन सभी को मार-पीट रहा था। तब उन सज्जन ने बताता की वह युवक और कोई नहीं, उस दम्पति का सगा बेटा था। नव विवाहिता का भाई। मैं हैरत में था। बाप-बेटे और भाई बहन में इतना खूनी संघर्ष! कैसे! मेरा चित्त मानने को तैयार नहीं था। तब उस पड़ोसी महोदय ने बताया की ये घटना इस मोहल्ले में आये दिन कि बात थी। यह युवक जब-तब शराब पीकर आता है और अपने मां-बाप को शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित करता है। रहवासीयों ने युवक को बहुत समझाया किन्तु वह न माना। अपितु समझाने आये लोगों पर ही बरस बड़ा। गुस्सैल लोगों ने बहुत बार युवक के होश ठिकाने लगाये थे। किन्तु मां-बाप हर उसे बचा लेते थे। मां तो उल्टा पड़ोसियों ही डांटती। कहती है कि उसके बेटे को कुछ कहने वाले पड़ोसी कौन होते है? मां को हर स्थिति में अपनी संतान प्रिय होती है यह उदाहरण उस दिन देख भी लिया।

किन्तु वह युवक इतना दुष्ट कैसे हो गया? आरंभ से कोई इतना बुरा तो नहीं हो सकता? मैं स्वयं से प्रश्न करता हुआ पास की चाय दुकान पर चाय पीने चला गया। वहां खड़े कुछ लोग हालियां घटित घटना पर टीका-टिपण्णी करते हुये चाय की चुस्कियां ले रहे थे। एक सज्जन का मत था की पवन को बिगाड़ने में उसके माता-पिता का बहुत बड़ा हाथ है क्योंकि वे आजीवन मेहनत-मजदुरी में ऐसे खोये की उनका बेटा घर में, पड़ोस में क्या कर रहा है? इस बात की जानकारी उन्होनें कभी नहीं ली। दिनभर आवारा गिर्दी करने वाला पवन गल़त संगत में बुरी तरह बिगड़ गया।

एक अन्य सज्जन ने परिवेश को पवन का दुश्मन बताया तो तीसरे ने अशिक्षा और शराब के मत्थे पवन के बिगड़ेल स्वभाव का ठिकरा फोड़ दिया। कुल मिलाकर तीनों के मत-मतान्तर में भिन्नता थी जो पवन के व्यवहार की समीक्षा करने में समर्थ होते हुये भी अपनी-अपनी योग्यता सिद्ध करने के लिए संघर्ष कर रहे थे।

कुछ देर बात वहां का वातावरण इतना ज्यादा शांत हो गया कि मानों कुछ हुआ ही न हो। उस घर के चारों सदस्य हाथ- पैर में ड्रेसिंग पट्टी बांधे एक साथ कदमताल चलकर अपने घर लौट रहे थे। पवन का नशा उतर चुका था। वह अपनी मां को अपना सहारा देकर घर ले जा रहा था। उसकी बहन ने अपने पिता का हाथ पकड़ रखा था। चारों के चेहरे पर अब द्वेष के भाव न होकर एक-दुसरे के प्रित प्रेम था। आदर और समर्पण था। जो लोग अभी कुछ देर पहले एक-दुसरे के खुन के प्यासे थे, उनका आपसी सौहार्द्र देखकर मुझे मानवीय व्यवहार को और अधिक समझने और पढ़ने की आवश्यकता अनुभव हुयी। मैं उक्त विषय पर चिंतन-मनन करते हुये घर लौट आया।


समाप्त 

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प्रमाणीकरण- कहानी/संस्मरण मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमती है।


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लेखक--

जितेन्द्र शिवहरे 

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