पंडित जी-कहानी


पंडित जी-कहानी

*घोषणा- कहानी पुरी तरह काल्पनिक है। व्यक्ति विशेष अथवा पंथ, संप्रदाय आदि से इसका कोई संबंध नहीं है। कहानी वाचन उपरांत यदि किसी पाठक की अंतः भावना आहत होती है तो मैं लेखक के रूप में सादर क्षमाप्रार्थी हूं।*


       *शहर* में शायद ही कोई होगा जो पंडित रामकिशन जी को नहीं जानता हो! साधारण सफेद रंग की धोती और सिन्दूरी कुर्ता जैसे उनकी पहचान थे। माथे पर कुमकुम का टीका और कांधे पर लटका हुआ वर्षों पुराना थैला। पंडित जी बताते है कि पंडिताईन से विवाह के फलस्वरूप आदरणीय ससुर जी की सप्रेम भेंट थी यह। इसमें रखे पोथी-पुराण भी उन्हीं की देन है। निर्धनता में जन्में और पले-बढ़े पंडित रामकिशन जी आज भी वैसे ही है जैसे विवाह के पुर्व थे। पंडिताईन इस बात से सदैव नाराज़ रहती। पंडित जी के समकक्ष अन्य पुजारियों ने बड़ी-बड़ी कोठीयां बना ली थी। लक्जरी वाहनों के स्वामी बन चुके थे। अत्याधुनिक संसाधनों का बेजा इस्तेमाल करते हुये पंडिताईन उन्हें जब भी देखती, बरबस ही अपनी तंकहाली पर आसूं बहाती। तीन-तीन बच्चों के भविष्य के लिए पंडित रामकिशन जी ने अब तक कुछ नहीं किया था। भगवान भरोसे हाथ पर हाथ धरे बैठे थे। स्व-मकान की तरह मंदिर भी वर्षों पुराना था। जीर्ण-शीर्ण। वहां की दान पेटी तक पंडित जी ने हटवा दी थी। दर्शनार्थी जो भी थाली में चढ़ा जाते, उसी को अपना भाग्य और प्रभु का प्रसाद समझकर रख लेते। घर-घर कथा इत्यादि आयोजनों में यजमान से कभी दक्षिणा की जिद नहीं की। यही कारण था की उनके पास काम पर्याप्त था किन्तु धन की आवक बहुत ही कम थी। बड़े से बड़ा धनाढ्य और निर्धनतम वर्ग तक पंडित रामकिशन जी की पहूंच थी। वे गंदी-मलीन बस्ती में भी कथा पढ़ने जाते। गणेशोत्सव और नवदुर्गा उत्सवों में भक्तों के सात नाचते-गाते। किन्तु पंडित जी को धन के लोभ ने कभी आकर्षित नहीं किया। पंडिताईन से अक्सर इस विषय पर विवाद हो जाता। कल तो पंडिताईन ने यहाँ तक सुना दिया कि वे निर्धनता में बड़े शौक़ में रहे, उन्हें कोई आपत्ति नहीं है किन्तु बच्चों को सर्वसुख देना पंडित जी का धर्म भी है और कर्तव्य भी। 

इस बात से पंडित रामकिशन जी विचलित हो गये। आये दिन घर में होने वाले विवादों से पहली बार पंडित रामकिशन जी अप्रसन्न दिखाई दिये। उन्होंने निश्चित किया की परिवार की परेशानी दूर करेंगे।

शहर में निर्मित हो रहे सबसे बड़े और भव्य मंदिर के भुमि पुजन हेतु उन्हें भी निमन्त्रण आया। नामजीन पुजारियों की पैनल में यदि वे सम्मलित हो गये तो वारे-न्यारे समझो। मंदिर की ख्याति विश्वप्रसिद्ध थी। चहूं ओर से दान-दानताओं द्वारा चढ़ावे की भरपुर आवक हो रही थी। ऐसे में प्रमुख पुजारी के साथ-साथ रामकिशन जी पर्याप्त लाभान्वित होंगे इसमें संदेह न था। किन्तु अचानक पण्डित रामकिशन को ये क्या सूझी जो उन्होंने मंदिर निर्माण के भूमि पुजन में सम्मिलित होने में अपनी असहमति जता दी। पण्डिताईन तो काटों तो खून नहीं वाली परिस्थिति से गुजर रही थी। सबकुछ बांधकर अपने ससुराल भी नहीं जा सकती थी। मायके वाले कब तक खिलायेंगे! पंडित रामकिशन जी को भी अधिक सुना नहीं सकती थी। गहरा अघात लेकर कहीं निकल गये तो बच्चों को पालन वह अकेली कैसे कर पायेगी?

एक दिन दोपहर में मंत्री जी की कार पंडित रामकिशन जी के घर के आगे आकर रूकी। चेले-चपाटे भी संग ही थे। खूब चहल-पहल थी उनके साथ।

"प्रभु! दास से कुछ भुल हो गयी! जो आपने भुमि पुजन में पधारने से मना कर दिया!" मंत्री जी हाथ जोड़कर रामकिशन जी से बोले।

"नहीं माननीय! ऐसा कुछ नहीं है!" पण्डित रामकिशन जी बोले।

"फिर क्या बात हो गयी, जो शहर के इतने बड़े आयोजन में आपकी उपस्थिति नहीं होगी।" मंत्री जी ने पुछा।

"माननीय मंत्री जी! आयोजन निश्चित ही बड़ा है, इसमें कोई संदेह नहीं है। देशभर के साधु-संतु सम्मिलित हो रहे है इससे बड़ी प्रसन्नता की बात भला क्या होगी?" पंडित रामकिशन जी ने कहा।

"मेरा प्रश्न अब भी वहीं खड़ा है दीनदयाल! जहां से चला था।" मंत्री जी अधीर होकर बोले।

"मंत्री जी! इस भव्यता और वृहद आयोजन में मैं स्वयं को समायोजित नहीं कर पाऊंगा। क्योंकि यह मेरी रूचि और स्वभाव अनुसार नहीं है। ईश्वर की प्राण प्रतिष्ठा करने वाले हम कौन होते है। वे तो घट-घट वासी है। मंदिर-मस्जिद में रखने के बजाए ईश्वर-खुदा को हम लोग हृदय में स्थापित करे तो अति-उत्तम होगा। असंख्य धन व्यय कर भव्यतम मंदिर के निर्माण के स्थान पर भव्य  चिकित्सालय अथवा विद्यालय-महाविद्यालय स्थापित किया जाता तब मैं अवश्य ही भुमिपुजन में सहर्ष उपस्थित होता। आशा है आप मेरी मंशानुरूप मेरी इच्छा का सम्मान करते हुये मुझे अपने साथ चलने हेतु विवश नहीं करेंगे।" पंडित रामकिशन जी बोल चूके थे।

मंत्री जी निराश होकर लौट गये। किन्तु पंडित रामकिशन जी ने पंडिताईन को अब और दुःखी न देने का संकल्प किया। उन्होंने अपने दोनों किशोरवय बेटों को कथावाचन और अन्य धार्मिक आयोजनों के लिए तैयार किया। पण्डित जी ने यह व्यवस्था की कथा, विवाह, यज्ञ अथवा अन्य कोई भी धार्मिक आयोजनों में यज्ञ-हवन आदि में प्रयुक्त समस्त सामग्री वे स्वयं यजमान को विक्रय करेंगे। इससे यजमान को स्थान-स्थान पर विभिन्न सामग्रियों के लिए भटकना नहीं होगा। पण्डिताईन ने आंगन में कैले आदि के पौधे रोप दिये। जिसके पत्ते कथा आयोजन में प्रयुक्त होते है। शहर में इसे प्राप्त करने लिए यजमान को बहुत भटकना होता था। ये सरलता से प्राप्त नहीं होते थे। इसके अलावा हवन में उपयुक्त मानी जाने वाली आम के पेड़ की सुखी लकड़ीयां और उसके पत्तें भी पण्डित जी अपने साथ नि:शुल्क ले जाते। पंडिताईन  गाय का गौ मुत्र, दुध और कुछ उपले भी पंडित को दे देती। अन्य सामाग्री के साथ यह सामग्री भी जब यजमान को एक ही स्थान पर मिलने लगी तब पण्डित जी की ख्याति और भी अधिक बढ़ने लगी। दक्षिणा की न्यूनतम दर पर पण्डित जी ने निश्चित कर दी। कथा के फलस्वरूप दक्षिणा पांच सौ रूपये, विवाह संस्कार के एक हजार रूपये तथा अन्य यज्ञ आदि धार्मिक आयोजनों में पंडित जी ग्यारह सौ रूपये लेते। इसके अतिरिक्त उन्होंने कथा आदि के बीच-बीच में यजमान द्वारा दक्षिणा चढ़ावे की प्रथा पुरी तरह बंद कर दी। पण्डित रामकिशन जी के दोनों पुत्र पिता के समान ही कथा आयोजन इत्यादि में व्यस्त रहने लगे। शिघ्र ही पण्डित जी ने अपने मंदिर के पास एक दुकान खुलवा दी। जिसमें धार्मिक पुस्तकें, घंटे-घड़ियाल और देवी-देवताओं के मुर्तीयां आदि विक्रय हेतु रखी गयी। पुजन सामग्री भण्डार की व्यवस्था भी वहां की गयी। पण्डिताईन और उनकी पुत्री बारी-बारी से वहां अपनी सेवाएं देती। उचित मुल्य पर धार्मिक वस्तुएं विक्रय की जाने लगी। कुछ ही वर्षों में पण्डित रामकिशन जी और उनके परिवार की निर्धनता जाती रही। पण्डिताईन और तीनों बच्चें प्रसन्न थे जिन्हें देखकर पण्डित रामकिशन जी भी प्रसन्न हो जाते।


समाप्त 

-----------------------------------------------------

प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमती है।


©®सर्वाधिकार सुरक्षित

लेखक--

जितेन्द्र शिवहरे 

177, इंदिरा एकता नगर पूर्व रिंग रोड मुसाखेड़ी इंदौर मध्यप्रदेश

मोबाइल नम्बर

7746842533

8770870151

Jshivhare2015@gmail.com Myshivhare2018@gmail.com

एक कहानी रोज़-110 (01/08/2020)

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

हरे कांच की चूड़ियां {कहानी} ✍️ जितेंद्र शिवहरे

लव मैरिज- कहानी

तुम, मैं और तुम (कहानी)