सुकन्या-कहानी
सुकन्या-कहानी
*रामपुर* गांव में पंचायत संजने वाली थी। गांव के प्रत्येक ग्रामीण के मुख में सुकन्या और उसके देवर अनिल के रिश्तें को लेकर विभिन्न तरह की अटकले लगाई जा रही थी। रामकिशोर जेल में था। ग्रामीणों की कानाफुंसी और सुकन्या पर अनर्गल बातों ने सास-ससुर को सुकन्या का भयंकर विरोधी बना दिया था। सुकन्या ने स्वयं अपने हाथों अपने पति रामकिशोर को पुलिस के हाथों गिरफ्तार करवाया था। यही वजह थी की सुकन्या अपने ससुराल में एकदम अकेली पढ़ गयी थी। उसकी सास रुकमा ,पति केसरसिंग और देवर अनिल सुकन्या से नाराज़ थे। लेकिन जैसे ही पहली ग्राम पंचायत की बैठक में सुकन्या को अनिल के साथ विवाह करने का सुझाव दिया गया, अनिल की जैसे वर्षों पुरानी कोई मुराद पुरी होने वाली हो! वह अंदर-अंदर ही बहुत प्रसन्न था। अपनी भाभी सुकन्या के यौवन पर अनिल शुरू से ही मोहित था। वह कई बार उसे छीपते-छिपाते नहाते हुये देख चुका था। सुकन्या अनिल की मंशा जानती थी। उसने अनिल को चेतावनी देकर छोड़ दिया था। किन्तु अनपढ़ और ठीठ टाइप अनिल कहां मानने वाला था। वह तो जब तब भाभी सुकन्या के बदन को छुकर मसखरी करने की फिराक में रहता। सुकन्या के थप्पड़ पर थप्पड़ खाता मगर अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आता। सुकन्या अपने देवर की अश्लील हरकतों से बहुत तंग आ चूकी थी। उसने मन बना लिया था। आज की ग्राम पंचायत में वह मुखियां जी और अन्य पंचगणों को साफ-साफ कह देगी की वह अनिल से शादी नहीं कर सकती। क्योंकी न अनिल के इरादें अच्छे है और न हीं वह आदमी अच्छा है। ऊपर से वह कोई काम काज भी नहीं करता। वह खुद क्या खायेगा और उसे क्या खिलायेगा? रामकिशोर और सुकन्या के दो छोटे बच्चें चिराग और पायल के भविष्य को लेकर बुलाई गयी पंचायत बैठक ग्रामीणों से खचाखच भरी हुयी थी। बहुत से ग्रामीण नीचे जमींन पर बैठे थे। सुभाष चौधरी और गांव के मुखिया अशोक ठाकुर कुछ ऊंचे चबुतरे पर बैठकर मामले की सुनवाई कर रहे थे। उनके साथ पंचगण भी उपस्थित थे।
"प्यारे पंचगणों! और मेरे गांव वासियों! देवर का अर्थ होता है द्वी-वर अर्थात दूसरा वर! हमारी संस्कृति में वर्षों से परम्परा चली आ रही है, जिसमें यदि एक भाई की किसी कारण मृत्यु हो जाए या वह कहीं चला चाए जहां से उसके लौटने की कोई संभावना नहीं हो! तब ऐसी परिस्थिति में उसकी पत्नी का ब्याह उसी के छोटे भाई से किया जा सकता है। और चूंकी रामकिशोर जेल में है और उस पर बहुत सारी हत्या, लुटपाट और अवैध खनन के मामले दर्ज है। जिसे देखकर लगता कि अब वह चाहकर भी वापिस लौटकर नहीं आ सकेगा। ऐसे में उसके दोनों छोटे-छोटे बच्चें और सुकन्या के भविष्य की चिंता करते हुये हम पंचों ने निर्णय लिया है कि सुकन्या का ब्याह उसके देवर अनिल से कर दिया जाए। आप सभी ग्रामीण अपना समर्थन हाथ उठाकर कर सकते है।" मुखियां अशोक ठाकुर ने कहा।
उपस्थित सभी ग्रामीण मुखिया जी के इस फैसले पर सहमती देते हुये हाथ खड़े करने लगे।
"नहीं मुखियां जी! मुझे यह फैसला मंजूर नहीं है।" सुकन्या ग्रामीणों के बीच खड़ी होकर बोली।
"यहां तुम्हें बोलने की अनुमति नहीं है।" सुभाष चौधरी गुस्से में बोल पड़े।
"नहीं चौधरी साहब! समय बदल रहा है। पंचायत को सुकन्या के मन की बात भी सुननी चाहिये। उसे बोलने दीजिए।" मुखिया अशोक ठाकुर ने हाथों के इशारे से अपने बगल में बैठे सुभाष चौधरी से कहा।
"अरे! जिसको खुद अपना ख्याल रखना नहीं आता वो मेरा और मेरे बच्चों का क्या ख्याल रखेगा? न काम न धंधा। खुद भी भूखो मरेगा और हमें भी भूखों मारेगा।" सुकन्या बोली।
"विवाह की जिम्मेदारी के बाद वह सुधर जायेगा और तुम्हारी जमींन भी तो है, मिलकर खेती करना और अपना परिवार का पालन पोषण करना।" मुखिया अशोक ठाकुर ने सलाह दी।
"नहीं मुखिया जी! मैं ये दकियांनुसी विचारों को मानने से साफ इंकार करती हूं। मैं अकेले ही अपना और अपने बच्चों का पालन पोषण करने में सक्षम हूं। मुझे किसी के सहारे की जरूरत नहीं है।" सुकन्या बोली।
सुकन्या की मजबुत ईच्छा शक्ति के आगे पंचायत को झुकना पड़ा। पंचायत का निर्णय सुकन्या के पक्ष में था। सुभाष चौधरी मुखियां जी द्वारा दिये गये निर्णय से प्रसन्न नहीं थे। उनका मानना था की मुखियां जी को अब अपने पद से हटा दिया जाना चाहिये। क्योंकी वे गांव की परम्परा और रीति रिवाजों की रक्षा करने में असमर्थ रहे है। कुछ पंचगण भी आने वाले भावि सरपंच सुभाष चौधरी के साथ आ खड़े हुये थे। सुभाष चौधरी की नज़र गांव की रेत खदानों पर थी। बिना सरपंच बने यह कठीन कार्य था। राजनीतिक उठापटक कर वे अशोक ठाकुर को अपने रास्ते से हटाने का समर्थन जुटाने में वे सफल भी हो जाते किन्तु अशोक ठाकुर की साफ-स्वच्छ और ईमानदार छवी के कारण उनकी दाल सरलता से नहीं गल पा रही थी। आखिरकार सुभाष चौधरी ने अशोक ठाकुर को जान से मारने की योजना बनाई। और योजना की गोपनीयता बनाये रखते हुये उन्होंने इस काम को अंजाम देने का कार्य अपने कुछ विश्वसनीय लोगों की सहायता से शुरू कर दिया।
अगले दिन सुबह सुकन्या खेत से होकर घर लौटी। उसने अपने दोनों बच्चों को नहला-धुलाकर स्कूल भेज दिया। उसके सास-ससुर खेत पर निंदाई का काम करने में व्यस्त थे। सुकन्या स्वंय नहाने गयी। इतने में अनिल आ धमका। वह सुकन्या से भोजन मांगने लगा। सुकन्या ने बाथरूम से ही कहा की खाना तैयार रखा है। वह थाली में निकालकर खा ले। अनिल कुछ मन बनाकर वहां आया था। उसने देशी शराब का क्वार्टर बाॅटल अपनी जेब से निकाला और एक सांस में पुरी बाॅटल गटक गया। पंचायत के सामने सुकन्या द्वारा उसे अस्वीकार करने से वह बहुत आहत था। अनिल वह अपना होश खो बैठा। वह घर की छत पर पहूंच गया। क्रांक्रीट की छत से लगे देशी खप्पर और कवेलू की छत थी जिसके नीचे नहाने की व्यवस्था थी। अनिल दबे पांव चुपके से आरसीसी की छत पर नीचे बैठ गया। उसने अपना हाथ बढ़ाकर एक देशी खप्पर (कवेलू) को थोड़ा खिसका दिया। जिससे की नीचे नहा रही उसकी भाभी सुकन्या को वह नहाते हुये देख सके। अनिल की आंखों में वासना ऊतर आयी थी। वह नशे में था। सुकन्या को स्नान करता हुआ देखकर वह कामुकता में पड़कर अधीर हुआ जा रहा था। सुकन्या वस्त्र हीन सोकर बेफ्रिकी से स्नान कर रही थी। वह अपने बदन पर साबुन मल रही थी। साबुन का झाग उसके शरीर को सफेद कर चूका था। अगला लौटा पानी भरकर उसने अपने सिर पर डाला ही था की ऊपर छत से आ रही रोशनी पर उसकी नज़र पढ़ी। उसने अनिल को देख लिया। अनिल घबरा गया। वह वही गिर पड़ा। सुकन्या आगबबूला हो गयी। उसने तुरंत नहाया और साड़ी लपेटकर वह अनिल को दण्डित करने आगे बढ़ी। अनिल न जाने क्या सोचकर सुकन्या के सम्मुख आ खड़ा हुआ। सुकन्या उसे अपनी क्रोधाग्नि में झुलसा देना चाहती थी। मगर अनिल सामान्य मुख मुद्रा में खड़ा होकर धीरे-धीरे सुकन्या की तरफ बढ़ रहा था। सुकन्या का एक हाथ पीछे बंधा था। वह अपनी ओर बढ़ रहे अनिल के इरादे समझ चूकी थी। अनिल अपनी भाभी पर टुट पड़ने ही वाला था। सुकन्या के बाल अब भी गीले थे जिससे पानी टपक रहा था। उसके सुन्दर गले में पानी की बुंदे चमचमा रही थी। अनिल आपा खो चुका था। वह कभी सुकन्या के कमर पर नज़र दौड़ाता तो कभी उसकी भरी पुरी छाती देखकर आहे भरने लगता। वह सुकन्या के एक दम नजदीक आ चुका था। उसने अपने दोनों हाथों से सुकन्या के कन्धे थाम लिये। वह सुकन्या का मुख चुमना चाहता था। क्रोध से भरी सुकन्या ने अपना एक हाथ नीचे की बढ़ा दिया। अनिल की प्रसन्नता का कोई छोर नहीं था क्योंकी उसकी भाभी इस कामकला में उसका सहयोग कर रही थी। अनिल अपने निजी अंग पर सुकन्या के हाथ का स्पर्श पाकर चरम सुख का आनंद लुटने लगा। अगले ही पल सुकन्या ने अपने उस हाथ की पकड़ मजबुत कर दी। अनिल कराह उठा। सुकन्या ने अपने दुसरे हाथ में धारदार चाकू पकड़ा हुआ था। उसने उसी हाथ में पकड़ कर रखे चाकू से अनिल के निजी अंग पर ज़ोरदार वार कर वह अंग काट दिया। अनिल तड़प उठा। बहते हुये लाल रक्त से उसकी पुरी पतलुन लाल रंग की हो गयी। सुकन्या वही खड़ी-खड़ी हुयी यह सब देख रही थी। अनिल चिखना चाहता था, रोना चाहता था मगर सुकन्या ने उसे जो दण्ड दिया था उसके कारण अनिल की आवाज़ भी नहीं निकल रही थी। इससे पहले की आसपास के लोगों को उसके इस हालात की जानकारी मिले वह खेत की तरफ भाग निकला। कुछ लोगों ने उसे खुन से सने कपड़े पहने भागते हुआ देखा भी। ग्रामीणों में खुसूर-फुसूर आरंभ हो गयी।।सुकन्या के सास-ससुर दोपहर में घर लौटे। सुकन्या ने स्वयं पुलिस को फोन लगाकर वहां बुलवा लिया। पुलिस अनिल को खोज रही थी। कुछ ही घण्टों बाद वह गांव के एक में पेड़ से टंगा हुआ मिला। उसने पेड़ पर रस्सी बांधकर फांसी लगा ली थी। पुलिस ने अनिल के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। और सुकन्या को गिरफ्तार कर पुलिस स्टेशन ले गयीं।
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सुकन्या के पति रामकिशोर की गांव की रेत खदान में अवैध उत्खनन करते पुलिस से मुधभेड़ हो गयी। दोनों ओर से गोलियां बरस रही थी। रामकिशोर जीवित रहते आत्मसमर्पण करने को तैयार नहीं था। पुलिस ने उसे चारों ओर से घेर लिया था। रामकिशोर के पास बंदुक की गोलियां खत्म होने लगी। उसने सुकन्या को फोन लगाया और उसे गोलियां लाने का आदेश दे दिया। सुकन्या थैली में गोलियां भरकर खदान की तरफ भागी। वह तेज कदमों से कभी दौड़ती, कभी जल्दी-जल्दी चलती। उसका सुहाग संकट में था। सुकन्या ने बहुत बार अपने पति से यह अवैध खनन नहीं करने की विनती की थी। किन्तु रामकिशोर ने जब अपने सगे माता-पिता की नहीं सुनी वह अपनी पत्नी की क्या सुनता। पुलिस के जवानों रामकिशोर को समाप्त करने का निश्चय कर लिया था क्योंकि रामकिशोर की बंदूक से निकलीं गोलियों ने दो पूलिस वालों को गंभीर घायल कर दिया था। इंचार्ज इंस्पेक्टर ने जवानों को खुली छूट दे दी। रामकिशोर का जीवित बच पाना संभव नहीं था। सुकन्या घटनास्थल पर पहूंच चूकी थी। उसने दुर से देखा। उसका पति पुलिस के चंगूल में बुरी तरह फंस चूका था। अब वह गोलियां किस तरह अपने पति तक पहुंचायें! यह संकट उसके सामने था। यकायक वह उसने कुछ तय किया। उसने गोलियों से भरी थैली को अपनी नाभी के नीचे पेटीकोट में धंसा लिया और उसे साड़ी के पल्लू से ढंक लिया। वह युद्ध स्थल के बीचों-बीच जा पहूंची। जहां एक तरफ से उसका पति फायरिंग कर रहा था तो दुसरी ओर से पुलिस की गोलियां चल रही थी। सुकन्या को युद्ध क्षेत्र के बीच में खड़ा हुआ देखकर पुलिस ने फायरिंग रोक दी। रामकिशोर भी खाली हो चुका था। सुकन्या को देखकर वह प्रसन्न हो गया। उसे विश्वास हो गया की उसकी पत्नि उसके लिये कारतूस अवश्य लाई होगी। सुकन्या पुलिस वालों की तरफ हाथ जोड़कर खड़ी थी और पीठ के पीछे रेत के ढेर के पीछे छिपकर खड़े रामकिशोर की तरफ धीरे-धीरे पीछे की ओर चलने लगी। वह किसी तरह रामकिशोर के पास पहूंचना चाहती थी। पुलिस इंचार्ज ने उसे वहां से हट जाने को हुक्म दिया। लेकिन वह नहीं मानी। वह दबे पांव अपनी पति के पास और पास धीरे-धीरे चलती रही। रामकिशोर से थोड़ी नजदीक पहूंचकर उसने अपने पेट में दबा रखी गोलियों की थैली पुलिस से नज़र बचाकर पीछे की ओर फेंक दी। किन्तु वह थैली रामकिशोर से कूछ दूर जा गिरी। पुलिस इंचार्ज सुकन्या को बार-बार धमका रहा था। यदि सुकन्या वहां से नहीं हटी तो मजबूरन उन्हें उस पर भी गोलियां चलानी होगी। सुकन्या जानती थी कि पुलिस सख़्त एक्शन के मुड में है। अब वह अपने पति की जान कैसे बचाएँ? इसी उधेड़बुन में उसने बड़ी तेजी के साथ फुर्ती से रेत के ढेर पर छलांग लगा दी। पुलिस समझ पाती इससे पहले ही वह ढेर के पीछे रामकिशोर के पास जा पहूंची। पुलिस इंचार्ज ने पुनः फायरिंग करने का आदेश दे दिया। बंदूक की गोलियां रेत को पुनः हवा में उड़ाने लगी।
सुकन्या भी अब पुलिस की दुश्मन थी। अतः वो सुकन्या पर अब किसी भी तरह नर्मी नहीं बरतने वाले थे। यही सोचकर सुकन्या ने रामकिशोर की कनपटी पर बंदूक तान दी। उसने हवा में सफेद कपड़ा फहरा दिया। शांति का प्रतिक जानकर पुलिस ने फायरिंग की दिशा बदल दी। सुकन्या अपने पति की कनपटी पर बंदूक ताने बाहर आ गयी। पुलिस यह देखकर हैरत में थी।
"इन्हें जिन्दा गिरफ्तार कर लिजिए इंस्पेक्टर साहब!" सुकन्या दहाड़ी।
पुलिस इंस्पेक्टर अमन सोच में डूब गये। लेकिन उनके साथी सहकर्मी किसी भी तरह रामकिशोर को जीवित पकड़ने के पक्ष में नहीं थे। उन्होंने इंस्पेक्टर अमन से कहा की वे रामकिशोर को धोखे से गोली मारकर उसकी जीवनलीला यही समाप्त कर देते है। पुलिस का सिरदर्द बन चूका रामकिशोर मोस्ट वाटेंड अपराधी था। पिछले माह ही उसने एरिया के एसडीएम साहब को ट्रेक्टर से कुचलने का असफल प्रयास किया था। रेत की खान चोरल नदि पर अपना पुश्तैनी हक़ समझने वाला रामकिशोर बहुत सालों से उसका अवैध उत्खनन करता आ रहा था। असंख्य अपराध उस पर पंजीकृत हो चूके थे। पुलिस और प्रशासन से उसकी आये दिन की मगजमारी होती आ रही थी। प्रारंभिक सफलता ने उसे बहुत अधिक धनवान बना दिया। जिससे वह अपने रास्ते में रोड़ा बन रसे अधिकारी-कर्मचारियों को खरीद लिया करता था। रामपुर गांव के साथ-साथ आसपास के गांव में रामकिशोर की जबरदस्त धाक थी। सातों गांव में उसकी आज्ञा के बिना पत्ता तक नहीं हिलता था। राजनीतिक में बहुत बड़े-बड़े नाम उसे अपनी पनाह दिये हुये थे। यही कारण था की वह अब तक बिना खौफ के अपना अवैध करोबार चला रहा था। किन्तु इंस्पेक्टर अमन की पोस्टिंग जब से रामकिशोर के क्षेत्र में हुयी थी, रामकिशोर का अवैध धंधा बहुत मंदा हो चुका था। अमन धीरे-धीरे कर रामकिशोर के निजी सहायकों को डरा- धमका कर रामकिशोर का साथ छोड़ने पर मजबूर कर चूका था। एक-एक कर जब रामकिशोर के साथी उसे छोड़कर चले गये तब रामकिशोर ने इंस्पेक्टर अमन को रास्तें से हटाने की सोची। अमन को मारकर वह पुनः अपनी बादशाहत कायम करना चाहता था।
अमन ने सुकन्या से कहा की वह रामकिशोर को पुलिस के हवाले कर दे। वे उसे जिंदा ही पकड़ कर अदालत में प्रस्तुत करेंगे। सुकन्या के मन को धीरज मिला। उसे इंस्पेक्टर अमन की बातों पर भरोसा था। मगर रामकिशोर अपनी पत्नी के हाथों गिरफ्तार नहीं होना चाहता था। उसने चालाकी से काम लेकर सुकन्या की बदूंक छीन ली और उसी की कनपटी पर रख दी। बाजी पलट चूकी थी। ये चाल सुकन्या और रामकिशोर की सोची समझी साजिश थी। अमन ने अपने साथी हवलदारों को सतर्क कर दिया। रामकिशोर ने इंस्पेक्टर अमन और बाकी पुलिस जवानों को अपने-अपने हथियार फेंकने को कहा। अमन मजबुर था मगर उसने अपने हथियार फेंकने के लिए मना कर दिया। वह दोनों पति-पत्नी की चालाकी समझ चुका था। वह दोनों को गिरफ्तार करने के लिए आगे बढ़ा।
"अब कोई चालाकी नहीं चलेगी रामजी! अब आपको गिरफ्तार होना ही पड़ेगा।" सुकन्या अपने पति रामकिशोर से बोली।
"नहीं सुकू! मुझे जीते-जी कोई गिरफ्तार नहीं कर पायेगा। तु हिलना मत। मैं यहां से बचकर निकल जाऊंगा।" रामकिशोर बोला।
"आप यहां से जिंदा बचकर नहीं निकल सकते। मेरी बित मानिए और सरेंडर कर दीजीए। वर्ना बे-मौत मारे जायेंगे।" सुकन्या बोली।
"नहीं कभी नहीं। ऐसा कभी नहीं हो सकता।" रामकिशोर दहाड़ा।
"आप समझने को तैयार क्यों नहीं है। आप बचकर नहीं निकल सकते।" सुकन्या ने कहा।
मगर रामकिशोर किसी भी तरह मानने को तैयार नहीं था। वह सुकन्या से झुमाझटकी कर भागने की कोशिश करने लगा। सुकन्या ने गज़ब की फुर्ती दिखाते हुये रामकिशोर को पटखनी देखर जमींन पर औधें मुंह गिरा दिया। उसने पुलिस को स्वयं आमन्त्रित किया की आकर रामकिशोर को गिरफ्तार कर ले। पुलिस ने हथकड़ी लगाकर रामकिशोर को गिरफ्तार कर लिया। सुकन्या पर मेहरबानी दिखाकर अमन ने उसे छोड़ दिया। आखिरकार उसी की बदौलत रामकिशोर गिरफ्तार हो पाया था।
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सुभाष चौधरी अपने कुछ साथियों को लेकर अशोक ठाकुर के घर की ओर बढ़ रहे थे। अशोक ठाकुर के परिवार वाले किसी शादी समारोह में सम्मिलित होने गया थे। अशोक ठाकुर की तबीयत ठीक नहीं थी। इसलिए वे आयोजन में न जाकर घर ही आराम कर रहे थे। रात गहरा चूकी थी। झिंगूर की आवाज़ से वातावरण गूंज रहा था। पैरों की आहट साफ सुनी जा सकती थी। सुभाष चौधरी और साथी पुलिस की जीप को देखकर वही छिप गये। पुलिस जीप में इंस्पेक्टर अमन और सुकन्या बैठी थी। अमन, सुकन्या को घर छोड़ने आया था। जीप मुखियां अशोक ठाकुर के घर के आगे से दौड़ती हुयी निकली और कुछ दुरी पर आकर रूक गयी।
"ये क्या इंस्पेक्टर साहब! यहां जीप क्यों रोक दी?" सुकन्या ने अमन से पुछा।
"क्यों? क्या तुम्हें डर लग रहा है?" अमन ने मज़ाक में कहा।
"मैं किसी से नहीं डरती अमन जी!" सुकन्या बोली।
"जानता हूं। तब ही तो आधी रात में यहां तुम्हें लाया हूं।" अमन ने कहा।
"बोलिये! आप क्या कहना चाहते है?" सुकन्या ने कहा।
"तुम जानती हो मैं क्या कहना चाहता हूं।" अमन ने कहा।
"नहीं इंस्पेक्टर साहब! आप जो चाहते है वो नहीं हो सकता।" सुकन्या बोल। वह जीप से उपर गयी।
वहीं कुछ दुरी पर पेड़ के पीछे सुभाष चौधरी और उसके साथी खड़े थे। अमन और सुकन्या के वहां से जाते ही वे लोग अशोक ठाकुर के घर में प्रवेश करने वाले थे। मगर अमन और सुकन्या की बातें ही खत्म नहीं हो रही थी। उन दोनों से बचना भी जरूरी था। यदि सुभाष चौधरी को उन दोनों ने देख लिया तो अशोक ठाकुर की हत्या वे कभी नहीं कर पायेंगे क्योंकि इससे सीधा शक़ उस पर ही जायेगा।
"सुकन्या! मैं तुम्हारे दोनों बच्चों को अपना नाम दुंगा। तुम्हें अपनी धर्मपत्नी बनाकर समाज में इज्जत के साथ रखूंगा।" अमन ने सुकन्या के कन्धे पर अपने दोनों हाथ रख दिये। जिसे सुकन्या ने तुरंत छिटचर दूर कर दिया।
"नहीं अमन जी! ऐसा कभी नहीं होगा। आपको बहुत सी लड़कीयां मिल जायेंगी किन्तु मैं अपने पति को धोखा नहीं दे सकती। और यदि आप मने दोबारा यह बात की तो मैं आपसे भी दुरी बना लुंगी।" सुकन्या नाराज़ हो चूकी थी।
अमन समझ चूका था कि उसे अभी सुकन्या का इंतजार अभी और करना होगा। जीप में बैठकर वे दोनों वहां से चले गये।
अशोक ठाकुर के सीने में चाकू घोंपकर सुभाष चौधरी वहां से भागने ही वाला था की सुकन्या को सम्मुख खड़ा देखकर उसके होश उड़ जये। सुकन्या ने सुभाष चौधरी और उसके साथीयों को अशोक ठाकुर के घर पास छिपते छुपाते हुये देख लिया था। अमन को संदेह व्यक्त कर उसने कुछ देर बाद जीप पुनः अशोक ठाकुर के दौड़ा दी। अमन ने फोन कर अपने कुछ जवानों को बुलवा लिया। उन्होंने सुभाष चौधरी और उसके साथियों को गिरफ्तार कर लिया।
"सुकन्या बेटी! समय आ गया है कि अब तुम गांव की मुखियां बनकर रामपुर गांव के सर्वांगीण विकास के लिए काम करो।" हाॅस्पीटल में बेड पर लेटे-लेटे अशोक ठाकुर ने सुकन्या से कहा।
"हां! सुकन्या! तुम सर्वथा योग्य हो। और फिर तुम हमेशा से कुछ नया और कुछ बड़ा करना चाहती थी। आने वाले सरपंच चुनाव में तुम ही सरपंच का चुनाव जीतोगी, हम सभी को ऐसा विश्वास है।" इंस्पेक्टर अमन ने अशोक ठाकुर की बात का समर्थन करते हुये कहा।
"ठीक है ठाकुर साहब! यदि आप लोग ऐसा सोचते है तो मैं सरपंच चुनाव लड़ने को तैयार हूं।" सुकन्या ने सहमती दे दी।
ग्रामीणों में सुकन्या की बढ़ती लोकप्रियता देखकर साफ अंदाजा लगाया सकता था कि सरपंच चुनाव सुकन्या ही जीतेगी। हुआ भी वही। सरपंच चुनाव जीतकर सुकन्या ने गांव की समस्याओं को बारी-बारी से हल करना आरंभ कर दिया। इंस्पेक्टर अमन अब भी सुकन्या की प्रतिक्षा में थे। लेकिन सुकन्या को अपने बच्चों और गांव के विकास के आगे कुछ दिखाई नहीं दिया। वह राजनीति में आगे और आगे निरंतर बढ़ती रही।
समाप्त
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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमती है।
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लेखक--
जितेन्द्र शिवहरे
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