एक कहानी रोज--112


     *सक्षम-लघुकथा*


     *ललिता* को उसके पड़ोसी समझा रहे थे। सरकारी स्कूल में आंखों की जांच का शिविर लगाया गया था। निर्धन समुदाय के लिये यह एक अच्छी योजना थी। ललिता जब नहीं मानी तब आसपास की महिलाओं को यह विश्वास हो गया कि उसे अपने पुत्र के नौकरी पर घमंड हो गया है। ललिता का परिवार पुर्व में असमर्थ और बहुत सारी भौतिक वस्तुओं से वंचित था। परिवार में इतना भी सामर्थ्य न था कि वे ठीक से सदस्यों का पेट पाल ले। किन्तु जब से अभिनव की नौकरी लगी थी, परिवार की कायापलट हो गयी। उनका घर पहले से अधिक पक्का और मजबुत बन गया था। ललिता अब कामकाजी महिला नहीं थी। अपितु गृहणी बनकर विश्राम करने लगी थी। घर में खाने-पीने की बहुत सी वस्तुएं उपलब्ध रहती। बहु अंजली के आगमन ने ललिता को और भी अधिक सुख दिया। ललिता अब गृह स्वामिनी थी। उसकी पुछ-परख घर में पति चैनसिंह जितनी ही थी। अभिनव अपने माता-पिता को अपना आदर्श मानता था। जिन्होंने उसकी पढाई-लिखाई में बहुत परिश्रम कर उसे आज इस लायक बनाया था। पास-पड़ोसी चाहते थे कि अन्य महिलाओं के साथ ललिता भी अपनी आंखों का फ्री में ऑपरेशन करवा ले। जब शासन घर-घर जाकर यह सुविधा उपलब्ध करवा रहा है तब इसे स्वीकार करने में ललिता को इतनी आपत्ति क्यों है? ललिता को मात्र एक झुठ ही तो बोलना था। उसे शिविर में अपने परिवार को तंगहाल और आर्थिक रूप से खस्ताहाल बताना था। बदले में जो उपचार निजि अस्पताल में बहुत अधिक मंहगा था वो शिविर में एक दम मुफ्त हो जायेगा। ऊपर से खाने-पीने में स्वादिष्ट व्यंजन मिलेंगे सो अलग। ललिता इसके लिये कतई तैयार नहीं थी। उसकी अंतरात्मा झुठ बोलने से सर्वथा इंकार कर रही थी। अभिनव ने उसे शीघ्र ही उसकी आंख का ऑपरेशन करवाने का वादा किया था। डाॅक्टर से अभिनव की भेंटवार्ता पक्की हो चूकी थी। अगले हफ्तें उसकी आंखों का ऑपरेशन एक निजि हाॅस्पीटल में निश्चित किया गया था। अभिनव स्वयं नहीं चाहता था कि उसकी मां शिविर में उपचार करवाये। दरअसल उसका मानना था कि जब तक वह समर्थ नहीं था उसे शासन की योजनाओं का लाभ मिलता रहा। किन्तु आज वह सक्षम है। यदि वह अब इन सुविधाओं का भोग करने प्रस्तुत हुआ तब हो सकता उक्त लाभ किसी पात्र उम्मीदवार को न मिल पाये? सरकार की भी यही मंशा है कि पात्र नागरिकों को उपयुक्त लाभ मिले। अभिनव ने घर आई अपनी मां की सहेलियों को स्पष्ट मना कर दिया। उसने तर्क दिया कि उसकी मां अब अभिनव की जिम्मेदारी है। उसका उपचार करवाने में वह समर्थ है। तब वह अन्य से इस संबंध में सहायता क्यों ले? अभिनव की बातों का पास-पड़ोस की महिलाओं के पास कोई प्रत्युत्तर नहीं था। वे स्वयं विचार मग्न थी। लौटते समय उन सभी की आंखों में एक ही प्रश्न था 'क्या शिविर का लाभ लेने के लिए वे पात्र है?'



समाप्त

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प्रमाणीकरण-- लघुकथा मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कथा प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमती है।



©®सर्वाधिकार सुरक्षित

लेखक--

जितेन्द्र शिवहरे 

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