पत्नी पीड़ित संघ - व्यंग्य*
एक कहानी/व्यंग्य रोज़ - 118
*पत्नी पीड़ित संघ - व्यंग्य*
*रविवार* का दिन एक पति ने अपने इष्ट मित्रों के साथ मनाने का संकल्प लिया था। वह संज धज कर बहुत प्रसन्न मुद्रा में गीत-गुनगुनाते हुये ही घर के बाहर निकला भी था कि घर के अन्दर से पत्नी की आवाज इको साउंड में गर्जना करती हुयी सुनायी दी-
"अकेले••अकेले•••अकेले•••कहां जा रहे हो•••रहे हो••रहे हो•••।
अकेले--अकेले कहां जा रहे हो, हमें साथ ले लो जहां जा रहे हो!"
पति बेचारा जहां डिस्को पब में जाने का विचार कर रहा था, वह हड़बड़ाहट में बोल पड़ा- "पास ही में जगत बाबा प्रवचन सुना रहे है उन्हें ही सुनने जा रहा हूं।"
पत्नी तपाक से बोली- "शादी से लेकर अब तक मैं तुम्हें इतने प्रवचन सुनाती आ रहीं हूं, क्या उससे तुम्हारा जी नही भरा? जो अब किसी बाबा के प्रवचन सुनने की जरूरत हो रही है?"
पति बेचारा निरुत्तर सा बड़ी बेकार और घृणित हंसी 'हीss हीss हीss' हंसते हुये कहता है -- "जाने दो न डार्लिंग! तुम्हें यकीन न हो तो तुम भी साथ में चलो।"
"नहीं-नहीं मुझे तुम्हारे जैसा फालतू का समय नहीं है। घर में कितना काम पड़ा है। तुम्हारी तो छुट्टी है, मेरी नहीं। हम पत्नियों की तो काम से कभी छुट्टी नहीं होती। हमें पुरे हफ्तें एक जैसा काम करना पड़ता है। तुमसे ये भी नहीं की रविवार के दिन घर पर हो तो घर के काम-धाम में कुछ हाथ बटा ले , पर नहीं। बस मुंह उठाया और चल दिये मटरगश्ती करने अपने आवारा दोस्तों के साथ।" वह अपने शब्द रूपी अंगारों से पति को झूलसा कर पैर पटकती हुयी घर के अन्दर चली गयी।
पति अनमना मन कर घर से बाहर चल पड़ा। उसने विचार किया की 'क्यों न आज महाराज के प्रवचन ही सुन लिया जाये? शायद भटकती आत्मा को कुछ क्षण भर की शांती मिल जाये?'
उसने महाराज के भव्य पांडाल में प्रवेश किया ही था की पत्नी का फोन आ गया। पति ने काॅल को अवाॅइट कर सीधे सभास्थल की ओर दौड़ लगा दी और ठीक महाराज के समीप नीचे जमींन पर बैठ कर ही सांस ली। उसने कुछ समय तक प्रवचन श्रवण किये।
महाराज जी अपने प्रवचन में कह रहे थे - "भक्तजनों! अपने शत्रु से डरकर मुहं छिपाकर भागों मत। उससे डट कर मुकाबला करो। सामना करो। उसकी आंखों में आंख डालकर बहादुर बन कर उसके सभी प्रश्नों के उत्तर दो। तुम उससे भी प्रश्न करो। जिस तरह वह तुम्हारा अपमान करती है, तुम भी कतई उसका सम्मान मत करो। अपने दिन भर का ब्यौरा हम ही उसे क्यों दे? उसने भी पुरे दिन भर घर में क्या किया? ये सब जानना हमारा भी अधिकार है। याद रखों पतियों! संविधान पतियों को भी उतनी ही स्वतंत्रता और समान अधिकार देता है जितना की पत्नियों को।"
अब यह जो पति कथा सुनने आया था उसका माथा ठुनका। उसने विचार किया -- "ये मैं कहां आ गया? यहां ये सब क्या हो रहा है?" उसने मन में विचार किया।
फिर कुछ सोचकर उठकर भागने ही वाला था की दुर ही उसे अपनी सगी पत्नी आती हुयी दिखी। उसके होश तब और भी ज्यादा उड़ गये जब प्रवचन दे रहे महाराज जी के ठीक पीछे दीवार पर टंगे बेनर पर उसकी नज़र पड़ी।
बेनर पर लिखा था-
"पत्नी पीड़ित संघ"
'सब दुखियारे पतियों का पत्नी से प्रताड़ित पतियों का हम हार्दिक स्वागत करते है।'
अब इस बेचारे पति को ये भयंकर डर सताने लगा की कहीं मुझे मेरी पत्नी ने यहां इन हालात में देख लिया तब मेरा क्या होगा? और हुआ भी वही! श्रीमती जी ने अपने पति को पत्नी पीड़ित संघ के कार्यक्रम में शिरकत करते हुये रंगे हाथ पकड़ लिया।
अब आप अनुमान लगाये की पत्नी ने अपने पति की घर आकर क्या खातिर-ओ-तव़ज्जो की होगी?
और हां आपने जो उस पति की होने वाली दुर्दशा की कल्पना की हो वह मुझे जरूर बताये!
समाप्त
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प्रमाणीकरण- रचना मौलिक व्यंग्य रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। व्यंग्य रचना प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमती है।
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लेखक--
जितेन्द्र शिवहरे
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