एक कहानी/व्यंग्य रोज़-119


*सुहाग चिह्न-व्यंग्य*


     *हाल* ही के कुछ वर्षो पुर्व तक विवाहित महिलाओं को दो-तीन किलोमीटर दूर से ही देखकर अनुमान लग जाया करता था की संबंधित महिला शादी-शुदा है। क्योंकि प्रमाण में उसके माथे पर चन्द्रमा के आकार की बहुत बड़ी बिन्दी, मांग में लम्बा चौड़ा क्षेत्रफल घेरे लिपा-पोता गया कुमकुम, इस बात का पुख्ता सबूत था की सम्बन्धित महिला ने अपना सर्वस्व जीवन अपने पति परमेश्वर के चरणों में सादर समर्पित कर दिया है। और फिर उसके गले में बड़े आकार का मंगलसूत्र भी चीख-चीख कर उसके शादीशुदा होने की गवाही दे रहा होता था न!

वर्तमान समय में महिलाओं को देखकर निर्णय लेना कठिन हो जाता है की महिला कुँवारी है या शादीशुदा? क्योंकि आज की महिलाएं एक तो सिन्दूर-कुमकुम इतना कम लगाती है की देख पाना मुश्किल हो जाता है। दूसरा ये की मंगलसूत्र तो इतना पतला और अदृश्य धातु का पहनती है कि दूरबीन लगा के देखा जाये तब ही समझ पाना संभव हो सकता है की महिला ने मंगलसूत्र पहन रखा है।

कामकाजी महिलाए तो मंगलसूत्र पहनती ही नहीं है। इसके पीछे वे तर्क देती है की हमें कार्य के संपादन में कई मर्तबा उठना, बैठना, भागना-दौड़ना पड़ता है, जिसमें मंगलसूत्र व्यवधान उत्पन्न करता है। और यह भी की मंगलसूत्र को हर प्रकार की ड्रेस में एडजस्ट नहीं किया जा सकता। तिसरा यह की मंगलसूत्र का कामकाज के दौरान गिरने-गूमने-चोरी हो जाने की अत्यधिक संभावना बनी रहती है जिससे उनका ऑफिस वर्क प्रभावित होता है। इसलिए कामकाजी महिलाएं किन्हीं विशेष अवसरों पर ही मंगलसूत्र धारण करती है। प्रत्येक कार्य दिवस पर वे मंगलसूत्र नहीं पहन सकती।

पुरुष इस विषय पर महिलाओं से जवाब तलब नहीं कर सकते। कारण यह है की कहीं महिलाओं ने इस सम्बन्ध में पुरूषों से ही जवाब मांग लिया की हम महिलाएं तो वर्षों से पुरूष पतियों की निशानीयां अपने मस्तक और गले में संजाती आयी है किन्तु पुरूष पतियों ने एक भी ऐसी निशानी आज तक नहीं पहनी जिससे ये झलकता हो की वह भी अपनी पत्नी पर अगाध प्रेम रखता हो? दुसरे शब्दों में पति हमेशा कुंवारा ही दिखाई देता है और सदैव दिखना चाहता भी है।

संझेप में यह कहना उचित होगा कि आजकल की पढ़ी-लिखी महिलाएं जितना ध्यान स्वयं के आकर्षक होने में लगाती है उतना ही वे ये भी प्रयास करती है की समय के अनुसार अपना पति व्रता धर्म का पालन करने में उनसे कुछ कमी हो भी जाती है तो भी उन्हें इस पर दोषारोपण करने के लिए पुरूष प्रजाति के पास कोई ठोस तथ्य या तर्क दिखाई नहीं देता जिससे की पुरूष प्रधान समाज महिला रूपी सर्वशक्तियुक्त से मंगलसूत्र आदि सुहाग की निशानीयों के पहनने अथवा न पहनने के संबंध में जवाब तलब कर सके।


व्यंग्यकार - जितेंद्र शिवहरे

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