एक कहानी रोज़-130 (22/08/2020)
*बिट्टू- स्टोरी विथ स्क्रिप्ट*
दृश्य-एक
शहर के एक फुटपाथ का दृश्य। फुटपाथ के पास ही एक झोपड़ी बनी है। जिसमें अनिल नाम का दस-ग्यारह वर्ष का बच्चा अपने परिवार के साथ रह रहा है। अनिल फुटपाथ से गुजरते हुये उन बच्चों को देखता है जो अपनी पीठ पर स्कूल बेग टांगे स्कूल जा रहे है। वह उन बसों को बड़ी आशा भरी नज़रो से देखता है जिसमें बैठकर बच्चें स्कूल जा रहे होते है। उसके बाद अनिल एक पुरानी कपड़े की थैली उठाता हो जिसमें एक काॅपी और कुछ किताबें है। उन्हें थैली में रखकर अनिल ने अपनी सरकारी स्कूल की तरफ दौड़ लगा दी।
उसी फुटपाथ पर बिट्टू अपनी स्कूल बस की प्रतिक्षा के दौरान अक्सर अनिल को देखा करता। न जाने उसे क्या सुझी जब एक दिन उसने अनिल से बात की। बातों ही बातों में बिट्टू को आभास हो गया की अनिल को शिक्षण सामग्री की आवश्यकता है जिसके कारण वह ग्लानि वश अपनी पढ़ाई मन लगाकर पुरी नहीं कर पा रहा है। बस तब ही से बिट्टू अपने पास की काॅपी, पेन और अन्य शिक्षण सामग्री जो उसके पिता उसके लिए खरीद कर लाते है वह उसी में कुछ सामग्री अपने नवागत दोस्त अनिल को दे देता है। अनिल इस मदद को पाकर गदगद है और पुरा मन लगाकर पढ़ाई कर रहा है।
बिट्टू के घर का दृश्य।
*"सुनिये जी!* आजकल बिट्टू के स्कूल बेग से चीज़ें बहुत गायब हो रही है।" आरती ने अपने पति विनोद से कहा।
"क्या मतलब?" विनोद ने पुछा। विनोद ऑफिस जाने के तैयार हो रहे थे।
"मतलब की कल ही मैंने बिट्टू को नयी नोटबुक और पेन दिये थे। मगर आज वो इसके बेग में नहीं है।" आरती ने पुछा।
"अरे! तो इसमें इतना टेंशन लेने वाली क्या बात है? बिट्टू ने कहीं रख दिये होंगे या अपने किसी फ्रेण्ड्स को दे दिये होंगे।" विनोद ने कहा।
"आप ही पुछ कर देखीये उससे। मुझे तो कुछ बताता नहीं है।" आरती ने कहा।
"अच्छा बाबा मैं ही पुछ लेता हूं उससे! अब चलो नाश्ता लगाओं मुझे ऑफिस के लिए लेट हो रहा है।" विनोद ने कहा।
"नाश्ता रेडी ही है। चलिए।" आरती ने कहा।
दोनों डायनिंग टेबल के पास आते है। जहां बिट्टू नाश्ता कर रहा होता है।
"क्यों बिट्टू! तुम्हारी नयी काॅपी और पेन कहां गये।" विनोद ने पुछा।
"वो पापा...पापा.... वो मेर बेग से कहीं गिर गये।" बिट्टू ने जवाब दिया। उसकी जबान लड़खड़ा रही थी।
"गिर गये?" विनोद ने हैरानी से पुछा। फिर पास ही खड़ी अपनी पत्नी की ओर देखा।
"मेरा मतलब है कि वो चोरी हो गये है.....अच्छा पापा। मेरी स्कूल बस का टाइम हो गया.... मैं चलता हूं... बाय।" इतना कहकर विनोद स्कूल बेग उठाकर तेजी से घर से बाहर निकल गया।
दोनों पति-पत्नी हैरानी से एक-दुसरे को देख रहे थे। उन्हें साफ-साफ दिखाई दे रहा था कि बिट्टू झुठ बोल रहा है।
"देखीए जी! मुझे तो लगता है कि बिट्टू को उसका कोई फ्रेण्ड परेशान कर रहा है। वो जबरदस्ती बिट्टू से चीज़े छीन लेता होगा।" आरती ने संदेह व्यक्त किया।
"यदि ऐसा है तो उसकी क्लास टीचर से फोन पर बात करो। जरूरी हुआ तो हम ही कल उसके स्कूल जायेंगे।" विनोद ने कहा।
"ठीक है। मैं आज ही बिट्टू की क्लास टीचर से बात करती हूं।" आरती ने कहा।
"अच्छा अब मैं भी ऑफिस के लिए निकलता हूं। बाय।" विनोद ने कहा।
"बाय।" आरती ने हाथ के इशारे से कहा।
दृश्य दो
आरती फोन पर बिट्टू की क्लास टीचर सलुजा वर्मा से बात कर रही है।
"मैडम! क्या क्लास में बिट्टू को कोई परेशान करता है।" आरती ने फोन पर पुछा।
"नहीं तो। लेकिन आप ऐसा क्यों पुछ रहीं है?" मिसेस सजुला ने पुछा।
"दरअसल बिट्टू हर आठ-दस दिन में कभी पेन, पेन्सिल और काॅपी की डिमांड करता है। और कुछ ही दिन में वो सब उसके बेग से अपने आप गायब हो जाते हैं।" आरती ने बताया।
"आप कहना क्या चाहती है?" मिसेस वर्मा ने पुछा।
"मुझे शक़ है कि बिट्टू का कोई फ्रेण्ड उससे जबरन ये सब चीजें छीन लेता है।" आरती ने बताता।
"आपको किस पर शक़ है?" मिसेस वर्मा ने पुछा।
"पता नहीं। इसीलिए तो आपसे पुछ रही हूं।" आरती ने कहा।
"देखीये मिसेस महाजन! अलबत्ता तो ये चोरी जैसा छिछोरा काम हमारे यहाँ के बच्चें नहीं करते। क्योंकि आप ही की तरह यहाँ सभी सम्पन्न परिवार के बच्चें पढ़ने आते है। फिर भी आपकी तसल्ली के लिए मैं एक बार क्लास में सभी बच्चों से इस विषय पर डिसकस करूंगी।" मिसेस वर्मा ने कहा।
"ओके मैडम! थैंक्यू वेरी मच।" आरती ने प्रसन्न होकर कहा।
"यूं मोस्ट वेलकम!" मिसेस वर्मा ने कहा और फोन रख दिया।
दृश्य तीन
बिट्टू से लाख पुछने पर भी वह अपने माता पिता को नहीं बताता की वह अध्यनन सामग्री किसे दे देता है या कौन उससे यह सब छीन लेता है।
बिट्टू की चुप्पी से आरती और विनोद भी व्याकुल हो गये। उन्होंने तय किया की वह बिट्टू को फाॅलो करेंगे। स्कूल बस में बैठने से पहले और शाम के वक्त गार्डन में खेलते समय वह किस-किस से मिलता-जुलता है इस पर नज़र रखी जाने लगी।
दृश्य चार
शहर के फुटपाथ का दृश्य।
बिट्टू अपने घर से निकल पड़ा। बाहर ही एक सब्ज़ी के ठेले पर बिट्टू की मां सब्जियां खरीद रही थी। तब ही बिट्टू वहां से गुजरा। बिट्टू को देखकर मिसेस महाजन ने उसका पीछा करने की ठानी। वो जानना चाहती थी की बिट्टू आखिर किससे मिलता-जुलता है। बिट्टू के हाथ में एक थैली लटकी है। 'हो न हो इसी में काॅपी,पेन और अन्य किताबें रखी होंगी' बिट्टू की मां ने सोचा। और अगले ही पल वह बिट्टू का पीछा करने लगी।
चलते-चलते बिट्टू उसी फुटपाथ पर आ गया जहां से वह अपनी स्कूल बस पकड़ता था। वहां का दृश्य देखकर आरती आश्चर्य में डुब गयी।
बिट्टू फुटपाथ पर रहने वाले अनिल को एक सामान की थैली दे रहा था। चोरी-छिपे यह दृश्य आरती देख रही है।
"ये लो अनिल! इसमें कुछ काॅपीया और एक्जाम एक्सरसाइज़ नोट बुक है। मेरी तरह तुम्हारी भी एक्जाम है न! मन लगाकर पढ़ना। मुझे विश्वास है कि प्राइमरी बोर्ड एक्जाम में तुम फर्स्ट आओगे।" बिट्टू ने अनिल से कहा।
"लेकिन बिट्टू! ये सब चीज़े तो तुम्हारे माता-पिता तुम्हारे लिए लाये है। अगर ये सब मैं ले लुंगा तो तुम पढ़ाई कैसे करोगे?" अनिल ने बिट्टू से पुछा।
"तुम मेरी चिंता मत करो। डैडी मेरे लिए ये सब और ले आयेंगे।" बिट्टू ने कहा।
"पेन, पेन्सिल और काॅपी देकर तुम हमेशा मेरी मदद करते आये हो। इस बात से तुम्हें घर पर कितनी डांट खानी पड़ती होगी?" अनिल ने पुछा।
"हां... डांट तो खानी पड़ती है। लेकिन मुझे पता है की मैं कोई बुरा काम नहीं कर रहा हूं। तुम्हें पढ़ना-लिखना पसंद है और मूझे भी। बस यही सोचकर मैं अपने पैरेन्टस को बिना बताये ये सब सामान तुम्हें देता हूं। यदि ये बात मैं अपने पैरेन्टस को बताता तो हो सकता था कि वो मुझे एक-दो बार तुम्हारी मदद करने देते लेकिन बाद में वे मुझे तुमसे मिलने नहीं देते। और मैं तुम्हें एक्जाम में पास होते हुये देखना चाहता हूं।" बिट्टू ने कहा।
"ठीक है दोस्त! अगर तुम मेरे लिए इतना सबकुछ कर रहे हो तो मैं तुमसे प्राॅमिस करता हूं की पांचवी बोर्ड एक्जाम में अच्छे नहीं बहुत अच्छे नम्बरों से पास होकर दिखाऊंगा।" अनिल ने कहा।
"वेल सेड अनिल! मुझे तुम पर पुरा विश्वास है। गाॅड ब्लेस यूं।" बिट्टू ने कहा।
दोनों एक-दुसरे के गले लग जाते है। तब ही बिट्टू की स्कूल बस आ जाती है और वह उसमें बैठकर चला जाता है।
दूर खड़ी बिट्टू की मां आरती ये सब देखकर अपने बेटे के इस पुनित कार्य पर गर्व कर रही थी। वो चुपचाप अपने घर लौट गयी।
दृश्य पांचवा
बिट्टू के घर का दृश्य
"मां... मां...मां....!" बिट्टू चिल्लाते हुये घर के अंदर प्रवेश करता है।
"क्या हुआ बिट्टू!" आरती ने पुछा।
"मां मैं फर्स्ट डिवीजन मार्क्स से पास हुआ हूं। ये देखीये मेरा रिजल्ट!" बिट्टू मार्कशीट दिखाते हुये बोला।
"अरे वाह! काॅग्रेंचूलेशन!" अपने बेटे का रीजल्ट देखकर उसका माथा चूमती है।
"और वो तुम्हारे दोस्त अनिल का रिजल्ट कैसा रहा?" विनोद ने पुछा।
"क...क...कौन अनिल?" बिट्टू ने हैरानी से पुछा।
"वही अनिल जिसे छिपते-छिपाते तुम अपनी स्कूल की चीजें देते हो।" आरती ने शरारत भरे लहजे में कहा।
"ओहss तो आपको सब पता चल गया!" बिट्टू ने पुछा।
"हमें तो यह भी पता है कि तुम्हारा दोस्त अनिल भी पांचवी की परिक्षा में फर्स्ट डिवीजन से पास हुआ है।" विनोद ने बताया।
"कैसे..? क्या वो....?" बिट्टू ने पुछा।
"सरप्राइज.....!" आरती ने बिट्टू से कहा।
(अंदर के कमरे से नये कपड़े पहने अनिल बाहर आता है)
"अगर तुम हमें बता देते तो हम तुम्हें अनिल की मदद करने से रोकते नहीं।" विनोद ने कहा।
"बल्की अनिल जैसे कुछ और होनहार बच्चों की हम मदद करते।" आरती ने कहा।
"साॅरी माॅम साॅरी डैड! आगे से मैं आपसे कुछ नहीं छुपाऊंगा।" बिट्टू ने कहा।
"देस्टस लाइक अ गुड ब्वाॅय!" विनोद ने कहा।
"आप सभी को पता है। अनिल ने फुटपाथ पर रहकर पांचवी बोर्ड एक्जाम में फर्स्ट डिवीजन हासिल किया है जिसके लिए जिला शिक्षा अधिकारी बिट्टू को सम्मानित करने जा रहे है। और हां इसे रहने लिए पक्का मकान भी मिलेगा।" बिट्टू ने बताता।
"अरे वाह! ये तो बड़े गर्व की बात है।" आरती ने कहा।
"ये सब बिट्टू के कारण संभव हो पाया है।" अनिल ने कहा।
"नहीं दोस्त! ये तुम्हारी सच्ची लगन और मेहनत का परिणाम है।" बिट्टू ने कहा।
दोनों गले मिलते है।
(आरती अपने पति विनोद को देखकर) भगवान करे! दुनिया के हर अनिल को बिट्टू से जैसा दोस्त मिले।"
"और हर मां-बाप को बिट्टू जैसा बेटा।" विनोद ने कहा।
"सही कहा।" आरती बोली।
दोनों अनिल और बिट्टों को गले मिलते हुये देख रहे थे।
समाप्त
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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमती है।
©®सर्वाधिकार सुरक्षित
लेखक--
जितेन्द्र शिवहरे
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