एक कहानी रोज़-132


   *तेरे लिए*


  *अथर्व* ने निर्णय लिया कि वह अपने हृदय की बात मानसी को बता देगा। मानसी जानती थी की अथर्व उसे पसंद करने लगा है।

"मैं जानती हूं अथर्व! तुम मुझसे प्रेम करते हो।" अथर्व कुछ कहे इससे पुर्व ही मानसी ने उसके हृदय की बात जान ली।

"हां मानसी! मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं। क्या मैं  तुम्हारे योग्य हूं?" अथर्व ने पुछा।

"मुझे ज्ञात है कि लड़कीयों से दिल्लगी करना तुम्हारा स्वभाव है।" मानसी ने कहा।

अथर्व ने समझाया कि वह इस बार मानसी के प्रति गंभीर है। वह मानसी से ही विवाह करेगा।

"अथर्व! प्रेम और विवाह जितना सरल दिखता है, उतना सरल नहीं है। केवल प्रेम के सहारे संपूर्ण  जीवन निकाला नहीं जा सकता।" मानसी ने तर्क दिये।

"तब तुम ही बताओ! तुम्हें प्रसन्न करने के लिए मैं क्या करूं?" अथर्व ने पुछा।

"मुझे कुछ अधिक नहीं चाहिए अथर्व! सर्वप्रथम एक उचित रोजगार ढूंठो। स्वयं के परिश्रम से धन कमाना आरंभ करो। काम छोटा हो या बड़ा, मुझे परहेज नहीं है! काम अनैतिक न हो बस!" मानसी बोली।

"इसमें तो अधिक समय लगेगा।" अथर्व बोला।

"तुम साहस तो करो। अपना कॅरियर बनाने के लिए तुम्हारे पास मूल्यवान पांच वर्ष है। इन पांच सालों में स्वयं को प्रमाणित करो। मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी।" मानसी बोली।

मानसी स्वयं आत्मनिर्भर और स्वावलंबी थी। अपने होने वाले जीवनसाथी में भी वह यहीं गुण देखना चाहती थी। 

अथर्व के चेहरे पर चिंता के भाव उभर आये। मानसी ने उसके दोनों हाथों को अपने हाथों में लेकर कहा- "मैं भी तुमसे बहुत प्रेम करती हूं अथर्व! जीवन के संघर्ष को तुम करीब से देखो, अनुभव करो और विजय प्राप्त करो। मैं यही चाहती हूं।"

मानसी ने अथर्व को गले लगा लिया। मानसी के हृदय लगकर अथर्व को संबल मिला। वह अपने जीवन को संवारने निगल पड़ा।

अथर्व संकट में था। व्यापार-व्यवसाय आरंभ करे अथवा नौकरी का प्रयास? इस दुविधा को उसे स्वयं ही समाप्त करना था। व्यवसाय आरंभ करने के लिए हाथ में पुंजी का होना आवश्यक था। बैंक ॠण हेतु योग्यता और अनुभव दोनों का उसके पास अभाव था। विचारों के मंथन में अन्ततः वह उबर ही आया। उसने प्रतियोगी परिक्षा में सफलता प्राप्त करने का निश्चय किया। यह भी सरल कार्य नहीं था। उसे आर्थिक सहयोग लिये बिना ही परिक्षा में सफल होना था। प्रतियोगी परिक्षा की तैयारी हेतु धन की आवश्यकता थी। अखबार में 'ड्राइवर की आवश्यकता है' काॅलम को चिन्हित कर वह डॉ. ॠषभ सक्सेना से मिला। सक्सेना जी ने उसे अपने यहां ड्राइवर रख लिया। सक्सेना जी और उनकी पत्नी दोनों एमबीबीएस डाॅक्टर थे। शहर भर के हाॅस्पीटल में उन दोनों को पेसेन्ट देखने बुलाया जाता था। आर्या उनकी एकमात्र अवयस्क बेटी थी। वह स्वयं मेडीकल ऐक्ट्रेंस एक्जाम क्वालीफाई करने की तैयारी कर रही थी। आर्या को कॉलेज छोड़ना और वहां से घर लाने का दायित्व अथर्व पर था। यदा-कदा वह मि. एण्ड मिसेस सक्सेना को हाॅस्पीटल लाने-ले जाने का कार्य भी करता। ड्राइवरी के वेतन से उसकी परिक्षा की तैयारी सुगमता से हो रही थी।

अथर्व ने सुचित किया कि आर्या का झुकाव उसके प्रति था। अथर्व आश्चर्य में पढ़ गया जब उसने अपने मोबाइल में आर्या का 'आई लव यू' वाला मैसेज देखा। आर्या अभी अवयस्क थी। उसे समझाया जाना आवश्यक था की प्रथम वह अपनी पढ़ाई पुरी करे। मगर आर्या कहां मानने वाली थी? कार में अथर्व से सटकर बैठना। उसे धोखे से गालों पर चूमना, अथर्व को यहां-वहां छु कर उसे तंग करना, अब उसकी नियमित दिनचर्या बन गई थी। अथर्व ने आर्या को संयम बरतने हेतु आग्रह किया। किन्तु वह इन आनंद के पलों में ही प्रसन थी। एक शाम काॅलेज कुछ विलम्ब से छुटा। आर्या अपने चिरपरिचित व्यवहार से अथर्व को छेड़ रही थी। क्षुब्ध होकर अथर्व ने कार रोक दी। अथर्व, आर्या की ओर झुका। वह उसे गले लगाना चाहता था। कुछ पल तक अथर्व की इस प्रतिक्रिया पर आर्या की सहमती थी। किन्तु अथर्व अब आर्या पर झपट पड़ा था। आर्या असहज हो गयी। उसने हाथों के बल से अथर्व को स्वयं से दुर किया--

"ये क्या कर रहे हो अथर्व? प्लीज दुर रहो?" आर्या बोली।

"तुम्हें जो पंसद है मैं वही कर रहा हूं।" अथर्व बोला।

यह आर्या के लिए बहुत बड़ी शिक्षा थी। जिसे योजना के माध्यम से अथर्व ने उसे दी थी। अथर्व अब आर्या को ओर भी अधिक प्रिय लगने लगा। वह उसे रियल हीरो स्वीकार चूकी थी। ऐसा उसने फिल्मों में ही देखा था। अथर्व ने डा. सक्सेना को सबकुछ बताकर वहां से नौकरी छोड़ दी। आर्या अथर्व को अपने से दुर जाते देख व्याकुल हो गई। उसने सारा घर आकाश पर उठा लिया। आर्या अपने जिद्दी स्वभाव के वशीभूत होकर हिंसक हो जाती थी। शहर में अपने नाम की बदनामी के भय से डा. सक्सेना ने अथर्व को पुनः घर बुलाया। अथर्व को अपने सम्मुख देखकर आर्या उसके हृदय से लिपट गई। मानसी को अथर्व ने अपने साथ घटित हो रही घटनाओं पर सहयोग मांगा।

"अथर्व! यदि मैं आर्या को तुमसे दुर रहने के लिए कहूंगी तब हो सकता है कि वह मुझे भी यही सब कहे। हम दोनों में से तुम्हारे लिए कौन उपयुक्त है? इसका चयन तो तुम्हें ही करना है।" मानसी ने स्पष्ट कह दिया।

अथर्व पुनः दुविधा में था। एक ओर मानसी का परिपक्व और निस्वार्थ प्रेम था तो दुसरी ओर जिद्दी और अध कच्चे प्यार की तलवार हाथों में लेकर तैयार खड़ी अबोध आर्या थी।

डॉ. सक्सेना की कार में घुमने से मना करने वाली मानसी अथर्व की मेहनत की कमाई की सायकिल पर बैठना गर्व समझती थी। आर्या का प्रेम अस्वीकार  करने का अर्थ था, उसके द्वारा उठाये जान वाले उचित-अनुचित कदम के लिए तैयार होना। इन्हीं विचारों में मग्न अथर्व कुछ निश्चय कर आर्या से जाकर मिला।

"आर्या! तुम मुझसे प्यार करती हो और मैं तुम्हारी प्रसन्नता चाहता हूं।" अथर्व की सहमती सुनकर आर्या प्रसन्न हो उठी।

"किन्तु अभी तुम अठारह वर्ष की नहीं हो। मैं तुम्हारे वयस्क होने तक प्रतिक्षा करूंगा।" आर्या अथर्व के हृदय से लिपट गई।

"तब तक अगर तुम एमबीबीएस डाॅक्टर बन जाओ, तब मेरी प्रसन्नता ओर भी अधिक बढ़ जायेगी।"

आर्या ने मन लगाकर पढ़ाई आरंभ कर दी। अथर्व के लिए वह पुर्व से अधिक परिश्रम करने लगी। आर्या में आये परिवर्तन को देखकर सक्सेना दम्पति प्रसन्नचित थे। मेडिकल ऐक्ट्रेंस एक्जाम वह उत्तीर्ण कर चूकी थी। उसे नई दिल्ली स्थित मेडीकल कॉलेज आबंटित हुआ था। सभी के मनाने पर वह दिल्ली जाकर एमबीबीएस की पढ़ाई करने के लिए तैयार हो गयी।

दिल्ली में जाकर आर्या व्यस्त हो गई। पढ़ाई की लगन में वह अथर्व को भी कम ही याद करती। तीन वर्ष व्यतीत हो चूके थे। एक दिन आर्या की चिठ्ठी अथर्व को मिली। जिसमें उसने अथर्व से अपने अबोध प्रेम के लिए क्षमा मांगी। उसने यह भी उल्लेख किया कि डॉ. आशुतोष ने उसे विवाह का प्रस्ताव दिया है। सक्सेना दम्पति इस विवाह के लिए सहमत थे। अतएव अथर्व, आर्या को भुलाकर अपना जीवन यथोचित तरीके से व्यतीत करने हेतु स्वतंत्र है।

अथर्व उस चिठ्ठी को लेकर मानसी के पास पहूंचा। मानसी अथर्व की इस विजय से प्रसन्न थी। तब अथर्व ने अपनी जेब से एक और चिठ्ठी निकालकर मानसी के हाथों में रख दी। अथर्व का चयन सब इंस्पेक्टर हेतु हो चूका था। यह दुसरी चिठ्ठी उसी का अपाॅईमेन्ट लेटर थी। मानसी ने अथर्व को हृदय से लगा लिया। अथर्व पुरे पांच वर्षों के वनवास के बाद मानसी से मिल रहा था। मानसी अथर्व का हाथ थामें घर के अन्दर चल पढ़ी। वह अपने पिता से अथर्व को मिलाना चाहती थी। मानसी ने अथर्व से विवाह करने का निर्णय कर लिया था।


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जितेन्द्र शिवहरे

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