एक कहानी रोज़-136 (29/08/2020)
*इश़्क दा रंग भाग-1*
*संभ्रांत* परिवार का अमर मध्यम वर्गीय अनिता के प्यार में पागल था। अनिता का नशा उसके सिर चढ़कर बोल रहा था। उसने अपने घरवालों को साफ-साफ कह दिया था कि वह शादी करेगा तो अनिता से वरना आजीवन कुंवारा रहेगा। अंततः अग्रवाल परिवार अपने बेटे की खुशी के आगे झुक गया। मगर अनिता को यह विवाह मंजूर नहीं था। वह बहुत ही प्रैक्टीकल लड़की थी। वह अपना भविष्य देख सकती थी। यदि उसने अमर से शादी की तो निश्चित ही भावि समय उसके मायके वालों के लिए कांटों भरी डगर से कम नहीं होगा।
सर्व-सम्पन्न अग्रवाल परिवार में बहू बनकर जाना अन्य के लिए गर्व का विषय हो सकता था लेकिन अनिता के लिए नहीं। देर-सवेर अग्रवाल परिवार कभी न कभी मिश्रा परिवार की मध्यमवर्गीयता से अवश्य प्रभावित होगा। हो सकता है वे अनिता को मायके आने-जाने से भी रोके-टोके। और फिर उसके मायके वाले इन धनवान लोगों की आवभगत आशानुरूप न कर सके तो उन्हें आत्मग्लानी होगी वो भी निश्चित है। वे सदैव असहज रहेंगे। अमर पर अभी प्यार का भुत संवार है लेकिन जिस दिन भी ये नशा उतरेगा, अमर की नज़रों में अनिता की हैसियत घर की किसी नौकरानी से अधिक नहीं होगी। वह तब अपनी गलती पर अवश्य पछतायेगा और अनिता भी। अमर को विवाह हेतु अस्वीकृती देने वाली अनिता ने बहुत सोच-समझकर यह निर्णय लिया था। उसने अमर से यह भी कहा कि वह भले ही अनिता से प्रेम करता हो लेकिन वह अमर से प्रेम नहीं करती। और न हीं अमर उसे पसंद है।
अमर कुछ पल शांत था। शहर की चौपाटी बीच पर मिलने आयी अनिता के तेवर देखते ही बनते थे।
"हमे इस बात को यही खत्म कर देनी चाहिए अमर! आईन्दा से हम कभी नहीं मिलेंगे।" अनिता ने अमर से साफ-साफ कह दिया।
"तुमने सच कहा अनिता। तुम मुझसे कभी प्यार नहीं कर सकती। लेकिन मैं तुमसे करता हूं। और हमेशा करता रहूंगा।" अमर ने कहा।
अनिता के चेहरे पर संशय के भाव थे। मानो वह कुछ कहना चाहती थी मगर कह नहीं पा रही थी।
"अनिता! जहां प्रेम की बात है और जितना मैं प्यार को समझ सका हूं उसके बाद इतना तो जरूर कह सकता हूं की प्यार जात-पात, ऊंच-नीच, अमीरी-गरीबी नहीं देखता। मैंने सिर्फ तुमसे प्यार किया था तुम्हारे स्टेटस से नहीं। लेकिन तुम्हें मुझसे पहले मेरी अमीरी दिखाई दी और इसलिए मैं कह सकता हूं कि तुम मुझसे प्यार कभी नहीं कर सकती।" अमर इतना बोलकर जा चुका था।
अनिता कुछ पल यू हीं मौन खड़ी रही। अमर के द्वारा बोले गये एक-एक शब्द उसके कानों में गूंज रहे थे। उसका किसी काम में मन नहीं लग रहा था। रसोई घर में सब्जी बनाते समय सब्जी की कढ़ाई में नमक की जगह शक्कर डाल दी। उस रात पुरे परिवार को मजबुरन मीठी सब्जी खानी पड़ी। अगली सुबह चाय में शक्कर की स्थान पर नमक डाल दिया। सुनैना अपनी बेटी अनिता को जानती थी। अनिता की परेशानी उसे समझ आ रही थी। क्योंकि अमर के विषय में सुनैना को सारी बातें पता थी। इससे पहले की अनिता के प्रेम की खब़र उसके भाई दिनेश और पिता शेखर तक पहूंचती, सुनैना ने अनिता को प्यार से समझाया।
उसने अमर के विचारों को सही ठहराया। सच्चा प्रेम वहीं कर सकता है जिसमें इसे निभाने का सामर्थ्य हो और अमर सर्वधा इसके उपयुक्त था। अपनी मां के प्रोत्साहन और दिन-रात अमर के खयालों में खोई हुयी अनिता को स्वयं स्वीकार करना ही पड़ा की वह भी अमर से प्रेम करने लगी है। मगर अनिता की छोटी बहन तमन्ना ने आकर उसे बताया की अमर और श्रुति की जल्दी ही शादी होने वाली है। श्रुति अमर के पिता के दोस्त की बेटी है। और कल ही उन दोनों की सगाई सैरेमनी का आयोजन एक बहुत बड़े होटल में रखा गया है।
"नहीं! मैं ऐसा नहीं होने दूंगी।" अनिता ने स्वयं से कहा।
वह अमर से बात करना चाहती थी मगर उसका मोबाइल स्वीच ऑफ आ रहा था। अनिता अमर के घर भी गयी लेकिन अमर से उसकी मुलाकात नहीं हो सकी। अंततः उसने तय किया की वह सगाई सेरेमनी के दिन ही अमर से मिलेगी।
स्टेज पर खड़ी अनिता को देखकर सारे मेहमान आश्चर्यचकित थे। और उसने जो अमर से कहा उसे सुनकर तो उपस्थित सभी मेहमानों का मुंह खुला की खुला रह गया। अनिता ने अमर से कहा कि वह अमर से प्यार करती है और किसी भी किमत पर उसी से शादी करेगी। श्रुति को महान आश्चर्य का सामना करना पड़ रहा था क्योंकि वह अमर को सगाई की अंगूठी पहना चूकी थी और अमर उसे। अब ऐसे में कोई लड़की हजारों मेहमानों के बीच आकर उसके होने वाले पति से प्यार का इजहार करती है, तब वह स्वयं समझ नहीं पा रही थी की वह क्या करे? क्या न करे?
"नहीं अनिता! अब मेरे जीवन में श्रुति है। अच्छा होगा अब तुम मुझे भुल जाओ।"
अमर ने अनिता से कहा।
"नहीं अमर! अब ये मुमकिन नहीं। तुम्हारी शादी मुझी से होगी, किसी ओर से नहीं।" अनिता ने जवाब दिया।
"ये क्या बकवास है। अमर मेरा है।" श्रुति बहस में कुद पड़ी।
"ये बकवास नहीं है। यही सच है। अच्छा होगा तुम हम दोनों के बीच से हट जाओ।" अनिता ने स्वर कठोर थे।
कुछ रिश्तेदार स्टेज पर आये। वे अनिता को समझाने का प्रयास करने लगे। मगर अनिता और श्रुति दोनों ही सुनने और समझने को तैयार नहीं थी। आनन्द अग्रवाल ने पुलिस को बुलाने की धमकी दे डाली। अनिता इस बात भी डिगी नहीं। अमर ने अपने पिता आनन्द अग्रवाल और शेष रिश्तेदारों से क्षमा मांगी। वह इस प्रकरण को स्वयं हल करना चाहता था। सगाई सेरेमनी का वही समापन किया गया। अनिता घर लौट आई। अमर और श्रुति भी अपने-अपने बेडरूम मै चिन्तामंग्न थे। अचानक आई इस मुसीबत ने श्रुति का घर बसने से पहले ही उजाड़ दिया था। वह अनिता पर बेहद गुस्सा थी। भगर गुस्से से काम बिगड़ सकता था। उसने ठण्डे दिमाग से काम लिया और अनिता को पार्क में मिलने बुलाया। अनिता के हाथों में एक लाख रूपये नकद देकर श्रुति ने कहा कि अनिता उसे भुल जाये।
अनिता ने अपने पर्स में से दो लाख रूपये निकाले और श्रुति को देकर कहा कि वह अमर को भूल जाएं। एक मध्यमवर्गीय लड़की की दिलेरी देखकर श्रुति हतप्रद थी। वह हर प्रकार से अनिता को समझा चुकी थी लेकिन अनिता तो जैसे कुछ भी सुनने को तैयार ही नहीं थी। अनिता ने उससे स्पष्ट कह दिया कि वह अमर को पाकर ही रहेगी। अगर उसके वश में है तो उसे रोक ले। अनिता ने यह भी कहा कि एक अवसर वह श्रुति को भी देगी।
क्रमशः ...........
*(पाठकों को पसंद आने पर तथा मांग किये जाने पर अगला भाग प्रसारित किया जायेगा)*
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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमती है।
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लेखक--
जितेन्द्र शिवहरे
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