एक कहानी रोज़ - 138 (31/08/2020)


          *ठर्की*


      *कैलाशचन्द्र* गायकवाड़। रिटायर्ड बैंक कर्मी। उम्र अठ्ठावन साल। बालों में सफेदी आ गयी लेकिन इनका रंगमिजाज प्राॅविडेन्ड फण्ड की तरह दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा था। बैंक में आयी महिला ग्राहकों को ताड़ने की आदत से पुरा बैंक परेशान था। पचासों बार इन्हें समझाया जा चुका था। इनके डर से महिला स्टाॅफ सिर से लेकर पांव तक स्वयं को ढक कर आने पर मजबूर थी। क्योंकि कैलाश चन्द्र की आंखें एक्स-रे मशीन से कम नहीं थी। इनकी आंखें महिलाओं के अंदर तक उतर कर आंखों ही आंखों में सबकुछ कर गुजरती। जिस दिन कैलाश चन्द्र बैंक नहीं आते, उस दिन सबकी जान में जान आती। इन्होंने तो महिला मैनेजर को भी नहीं बख्शा। केबिन में काम के बहाने घुसे कैलाश चन्द्र ने जानबूझकर अपने हाथ से फाइलें नीचे गिरा दी। मदद के स्वभाव वश नीजे झुककर मैनेजर प्रमीला जैन फाइलें उठाने में कैलाश चन्द्र की मदद करने लगी। मगर कैलाश चन्द्र तो कुछ और ही दृश्य देखकर लार टपका रहे थे। इस असहनीय हरकत पर प्रमीला जैन रूष्ठ हो गयी। उन्होंने सहायक बैंक प्रंबधक कैलाश चन्द्र के विरूद्ध विभागीय जांच का आवेदन दे दिया। कुछ ही दिनों में तीन सदस्यों की टीम बैंक कैलाश चन्द्र के स्वभाव की जांच करने आयी।

"क्या आप मानते है कि आप महिला स्टाॅफ को घूर-घूर के देखते है?" महिला उत्पीड़न जांच समिति की प्रमुख नेहा भार्गव ने कैलाश चन्द्र से पुछा। उनके साथ अरुणिमा वर्मा और एन श्री निवासन भी थे।

"नहीं जी! मेरी कोई गल़ती नहीं है। मैं तो सभी को उसी तरह देखता हूं जैसा कि आप लोग देखते है?" कैलाश चन्द्र अपने बचाव में बोले।

"लेकिन हमने सुना है आप बैंक में लेडिज ग्राहकों को परेशान करते है। आप उन्हें जबरन छुने की कोशिश करते है?" अरुणिमा वर्मा ने पुछा।

"यह सही नहीं है! ये मेरे विरूद्ध षड्यंत्र है!" कैलाश चन्द्र बोले।

"कौन कर रहा है आपके विरूध्द षडयंत्र? आपको किसी पर शक है?" नेहा भार्गव ने अगला प्रश्न किया।

"जी वो अsss!" कैलाश चन्द्र बोलते-बोलते रूक गये।

उनकी नज़र नेहा भार्गव पर जम चुकी थी। जिनका आंचल अभी-अभी टेबल फैन की हवा से कुछ उड़ सा गया था।

प्रमीला जैन और बाकी स्टाॅफ कैलाश चन्द्र की यह हरकत सीधे देख रहा था। अरुणिमा वर्मा ने नेहा भार्गव को सावधान किया। किन्तु नेहा उनके संकेत समझ नहीं सकी। श्रीनिवासन पुरूष होने के नाते स्वयं असहज थे। वे चाहकर भी नेहा जी को यह बता न सके की उनका आंचल हवा में उड़ चुका है। अरुणिमा ने नेहा के कान में उनके आंचल सरकने की बात कही। और बताया कि कैलाश चन्द्र उसे ही घुर रहा था। नेहा भार्गव ने अपना आंचल ठीक किया। उन्हें विश्वास हो गया की कैलाश चन्द्र के विरूद्ध जो भी शिकायतें आयी है वे सत्य थी।

उन्हें सज़ा सुनाई गयी। लेकिन चूंकि वे बहुत पुराने बैंक कर्मी थे। इस बात का भी ध्यान रखा गया। अंतः उनकी आयु का ध्यान रखते हुये उन्हें पुलिस प्रकरण से मुक्त रखा जाकर अनिवार्य सेवा निवृत्ति दे दी गयी।

"कुछ किया भी नहीं और सज़ा मिल गयी।" कैलाश चन्द्र मन ही मन बड़ बड़ाएं जा रहे थे।

अब से कैलाश चन्द्र घर पर ही रहेंगे ये सोचकर मोहल्ले वालों की नींद उड़ गयी। मोहल्ले का प्रत्येक घर-परिवार अपनी-अपनी सुरक्षा में व्यवस्था में जुट गया। खिड़कीयों और दरवाजों पर पर्दे और उंचे लगा दिये गये। घर की छतों पर जालियां तान दी गयी। ताकी कैलाश चन्द्र की नज़रे उनकी बहु- बेटियों तक न पहूंच सके। सर्वाधिक परेशान कैलाश चन्द्र की पत्नी दमयंती और उनकी तीन जवान बेटीयां थी। रूचि सबसे बड़ी थी। स्वाति मंझली और तनु सबसे छोटी। तीनों काॅलेज में थी। ये तीनों अपने पिता की सभी हरकतों से वाकिफ थी। कैलाश चन्द्र के होते उनकी सामाजिक जिन्दगी सरल नहीं थी। दमयंती ने कैलाश चन्द्र को अपने गांव चले जाने की सलाह दे दी। क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि कैलाश चन्द्र उनकी बेटियों की पढ़ाई में बाधक बने। कैलाश चन्द्र अब किसी को क्या बताये? यहां शहर में तो लोग उसके भय से अपनी बहु बंटियों को छिपाते है मगर गांव मे! गांव में तो कैलाश चन्द्र को देखते ही गांश वाले अपनी गाय भैंस और बकरीयां तक छुपा लेते थे। बूझे मन से कैलाश चन्द्र ने घर छोड़ने का निर्णय लिया। वह वहां जाना चाहता था जहां उसे कोई न पहचाने। एक नये नाम और नयी पहचान के साथ वह जीना चाहता था। उसने अज्ञातवास में जाने का निर्णय लिया। कुछ दुर एक अन्य शहर के मध्य भाड़े पर कमरा लेकर वहां रहने लगा। अब यहां उसे कोई रोकने टोकने वाला नहीं था। अपने खर्चे के लिए पेंशन का सहारा तो था ही। बस फिर क्या था। जुट गया वह अपने सभी शौक़ पुरे करने में। मकान की छत से वह महिलाओं को ताड़ सकता था। उसके पास दूर तक देखने वाली दूरबीन थी जो गर्ल्स होस्टल के बाथरुम तक जाकर देख सकती थी। सड़क से गुजरती प्रत्येक महिला उसकी जद में थी। वह निर्भिक होकर उनके संपूर्ण दर्शन कर सकता था। इतना ही नहीं अब वह उन्हें छु भी सकता था। बस, मेट्रो और ऑटो में भी लड़कीयों को बहुत पास से देख सकता था। उन्हें कामुकता से भरे इशारे कर सकता था। मौका पाकर वो महिलाओं के पृष्ठ भाग पर अपना हाथ फेर देता। उनकी पतली कमर और गर्दन तक छु जाता। कभी-कभी वह सीने तक भी पहूंच जाता। उसकी हरकते बढ़ती ही गयी। क्योंकी कभी वह पकड़ा नहीं गया। वह चतुर-चालक था। महिलाओं को स्पर्श कर ऐसा चेहरा बनाता था की उसने कुछ किया ही नहीं। उसकी छेड़छाड़ की शिकार महिला कैलाश चन्द्र पर शक नहीं कर पाती। क्योंकी कैलाश चन्द्र का अभिनय कमाल का होता था। किन्तु हमेशा वह बच निकलता ऐसा भी नहीं था।


एक दिन की बात है।

बस में संवारियां ठसां-ठस भरी थी। भीड़ इतनी थी की अभस्थ कन्डेक्टर भी बमुश्किल ही निकल पा रहा था। उसकी नज़रे हर उस संवारी को ढुंढ रही थी जो अभी हाल ही के स्टाॅप से बस में चढ़ी थी। वह चुन-चुन कर संवारियों के टीकीट बना रहा था। कैलाश चन्द्र ने देखा कुछ महिलाएं खड़ी थी। उसने स्वयं की सीट पर एक वृध्द महिला को बैठने का आग्रह किया। ताकी वह खड़ा हो सके। उसे तो अपनी इच्छां पुरी करनी थी। सम्मुख खड़ी युवती से सटकर वह खड़ा हो गया। उसके क्रियाकलाप एक अन्य स्त्री देख रही थी। कैलाश चन्द्र जबरन धक्का खाने का अभिनय करता। जब वह युवती पलट कर देखती तो चालाक कैलाश चन्द्र पिछे देखने का स्वांग रचता। युवती को शक था कि ये ठर्की बुढ्ढा जान बुझकर उसे स्पर्श कर यहा है। वह युवती अब पलट चूकी थी। उसकी मुस्कराहट देखकर कैलाश चन्द्र का चेहरा खिल गया। आज तो उसे बिन मांगें ही मोती मिलना वाले थे। वह युवती शर्माते हुये कैलाश चन्द्र पर अपनी अदा की बिजली गिरा रही थी। कैलाश चन्द्र ने तुरंत अपना एक हाथ उस युवती के दांए कंधे पर रख दिया। युवती के चेहरे की भाव भंगिमा ही बदल गयी। वह अब रोद्र रूप धारण कर चूकी थी। उसने अपना पैर हवा में उठा लिया। फिर घुटने से जोरदार प्रहार कैलाश चन्द्र के निजी अंग पर कर दिया। वह कराह उठा। दोनों हाथों हे उसने कमर से नीचे वाले भाग को दबा लिया। बस की गति अधिक होने से उसका संतुलन बिगड़ गया। वह पीछे की ओर गिर पड़ा। सवारिया चौंक पड़ी। पास ही बैठी शुरू से सबकुछ देख रही एक अन्य स्त्री को कैलाश चन्द्र का बुरी तरह पराजित होना बहुत ही अच्छा लगा। उसने तालियां बजाकर इस विजय का उत्सव मनाया। उसने कैलाश चन्द्र का ठर्कीपन सवारियों को बता दिया। इस पर लोगों ने कैलाश चन्द्र को बहुत बुरा भला कहा और मारा-पीटा भी। बस ड्राइवर ने बस रोक दी। कैलाश चन्द्र को पुलिस के हवाले कर दिया गया। जहां और भी बेहतर तरीके से उसकी आव भगत की गयी।

"आपको इस उम्र में ऐसी हरकतें शौभा नहीं देती।" एक नव युवती कैलाश चन्द्र को डांट रही थी।

कैलाश चन्द्र- (मन में) 'इसे कैसे पता चला की शौभा अपनी मुझे देती नही।'

"आप चले जाईये यहां से।" वह युवती पुनः दहाड़ी।

"सोच लो। एक किस के बदले दस हजार रूपये! घाटे का सौदा नहीं है।" कैलाश चन्द्र ने कहा।

शहर के पार्क में खड़े दोनों बात कर रहे थे। बेरोजगारी की मार झेल रही उस युवती के लिए ये राशी बहुत बड़ी थी। सोच में डुबी वह लड़की अंततः मान ही गयी।

"मगर यहां सब देख रहे है।" उस लडकी ने कहा।

"तब ही तो दस हजार रूपये दे रहा हूं। वर्ना तो तुम जानती हो इतने पैसें में कितनी राते रंगीन बनायी जा सकती है।" कैलाश चन्द्र ने कहा।

"ठीक है। जल्दी करो।" लड़की ने कहा।

"ओके।" कैलाश चन्द्र उस युवती के ओर झुके।

"अरे! ये क्या! गाल की जगह आप•••।" युवती असहमत थी।

"मैंने होंठों की बात की थी।" कैलाश चन्द्र बोले। 

युवती न-नुकुर करती रही मगर कैलाश चन्द्र नहीं माने। उन्होंने अपनी मन की कर ली। लड़की की आंखें भर आयी थी। रूपये लेकर वह तेजी से निकल गयी।

अपने मोबाइल पर प्रंक वीडियो देखकर कैलाश चन्द्र भी नये-नये करतब आजमाने लगे थे। उन्होंने आज ही किसिंग प्रंक वीडियो देखकर इसे स्वयं करने का मन बनाया था।

कैलाश चन्द्र के जीवन में शौभा आई। शौभा खुले विचारों की थी। उसे कैलाश चन्द्र के स्वभाव का पता था। इन सबके बाद भी अपनी आयु से कुछ वर्ष बढ़े कैलाश चन्द्र से दोस्ती बनाये हुये थी। वह कैलाश चन्द्र की आंखों में अपने लिए हवस देख चूकी थी किन्तु मजाल थी कैलाश चन्द्र उसे छु भी पाये। कैलाश चन्द्र के रूपये से ऐश्वर्य का आनंद लेती शौभा कैलाश चन्द्र को केवल मीठी-मीठी बातों में घुमाये रखती।

शौभा वह जिसने अपने पति विनोद से बेहिसाब प्रेम किया। वह विनोद जो कभी शौभा के पैतृक घर में ड्राइवर था। उसके चंगूल में ऐसे फंसी की अपने मां-बाप के घर किमती जेवर और नकदी चुराकर विनोद को दे बैठी। विनोद ने शौभा के घर से चोरी छिपे भागकर शादी कर ली। शादी के कुछ महिनों में शौभा को पता चल गया की विनोद केवल उसकी दौलत के पीछे था। उसका यही काम था। अमीर घरानों की लड़कीयों को अपने झुठे प्यार के जाल फंसाना और उनका सबकुछ छिनकर रफूचक्कर हो जाना। उस सुबह भी यही सब हुआ। किराये की खोली में सुबह-सुबह दरवाजे पर जोरदार दस्तक सुनकर शौभा की नींद की खुली। उसने अपने आसपास देखा। विनोद वहां नहीं था। शौभा ने उठकर दरवाजा खोला। यह मकान मालिक रमन था। उसने शौभा को कठोर स्वर में पिछले तीन महिने का किराया आज ही जमा करने को कहा अन्यथा की स्थिति में कमरा खाली करने की धमकी दे डाली। शौभा अचरज में थी। इससे पहले रमन किराया मांगने क्यों नहीं आया? वह सबकुछ समझ गयी। विनोद फरार हो चुका था। अब उसे किसी तरह विनोद को ढुंढकर उससे बदला लेना था। मगर विनोद उसे बहुत ढुंढने पर भी नहीं मिल रहा था। शौभा अपने घर भी नहीं जा सकती थी क्योंकि परिवार वालों ने उसका बहिष्कार कर दिया था। उसने अपने जीवन लक्ष्य विनोद को सज़ा देना निश्चित कर लिया था। बदले की आग में झुलसती शौभा कब धुर्त आचरण को अपना बैठी उसे पता ही नहीं चला। अपने गुजर बसर और बदले को पुरा करने के लिए धन की आवश्यकता थी। बहुत सारा धन। किसी नौकरी के बल पर यह संभव नहीं था। अतः उसने अमीर और रहीस जादों को अपने हुस्न के जाल में फंसाना आरंभ कर दिया। काॅलेज अध्ययनरत युवा लड़के बड़ी सरलता से उसके जाल में फंस जाते। शौभा उन्हें पुरी तरह कंगाल कर छोड़ देती। धीरे-धीरे उसकी विनोद से बदला लेने की भावना में भारी गिरावट आयी क्योंकी अब वह स्वयं विनोद सरीखी बन चूकी थी जिसने कितने ही युवाओं को बर्बाद किया था। उनकी भावनाओं से खिलवाड़ किया था। एक दिन अचानक उसकी भेंट विनोद से हो गयी। वह इसी शहर में था। कोई खुबसूरत युवती उसकी बाहों में खेल रही थी। शौभा को समझते देर न लगी की यह युवती विनोद का नया शिकार थी।

विनोद भी शौभा को पहचान चुका था। पुरे आठ साल के बाद दोनों मिल रहे थे। अगली मुलाकात में विनोद ने शौभा को बताया की पिछले कुछ साल वह जेल में था। एक फ्राॅड केस के सिलसिले में। शौभा भी दो-चार बार जेल जा चुकी थी जिसके फलस्वरूप पुलिस और कोर्ट-कचहरी से उसका भय लगभग खत्म हो गया था।

विनोद ने शौभा से कहा की दोनों मिलकर काम करते है। वे दोनों मिलकर बड़े घर के धनवान युवक और युवतियों को फंसाकर रूपये ऐंठ सकते है। दोनों का हिस्सा फिफ्टी-फिफ्टी का होगा। शौभा को यह प्रस्ताव मंजुर था। मगर वह विनोद के स्वभाव से परिचित थी सो उसने पहले से और अधिक सतर्कता बरतनी शुरू कर दी।

जल्द ही शौभा और विनोद को अपना पहला शिकार मिल गया। चमचमाती और इम्पोर्टेड कार से काॅलेज आने-जाने वाली तानिया से विनोद ने दोस्ती बढ़ाने के प्रयास आरंभ कर दिये।

बारिश तेज हो चुकी थी। सड़कों पर पानी भरने लगा था। तानिया स्वयं कार ड्राइव कर रही थी। सड़क नदि बन चुकी थी। तानिया बेखौफ़ होकर बहते पानी में तेजी से अपनी कार दौड़ा रही थी। काॅलेज से होकर वह अपने घर जा रही थी। उसने अपनी कार को दाहिनी तरफ मोड़ दिया। मगर उसी तरफ से तेजी से दौड़ता हुआ एक बैल आ रहा था। बैल कार से टकरा जाता यदि तानिया कार का स्ट्रिंग बायी तरफ न मोड़ती। बायीं तरफ विघुत पोल था। बारिश जोरो पर थी। आस-पास की दुकानों पर लोग पानी से बचने के लिए खड़े थे। एक जोरदार टक्कर के साथ तानिया ने हाईस्पीड कार विद्युत पोल में घुसेड़ दी। पोल के उपर चिंगारियां फुटने लगी। यह दृश्य देख रहे लोगों की चीख निकल पड़ी।

"अरे! बिजली चालु है। मैडम मर जाओगी।" एक राहगीर बोला।

लोग खड़े-खड़े एक-दुसरे से बातें करने लगे। मगर कोई भी तानिया की मदद करने आगे नहीं आ सका। एक तो चलती बिजली और उस पर गिरता पानी। अब तानिया की जान बचना बहुत मुश्किल था। देखते ही देखते खंभे के तार के झुण्ड में आग सुलगने लगी। तानिया को जब होश आया तो वह कार से उतरना चाहती थी मगर उसी पानी में एक आवारा श्वान करंट लगने से तड़प रहा था। खुब हाय-तौबा मचायी गयी। लेकिन कोई कुछ नहीं कर सकता है सिवाये पुलिस को फोन करने। पुलिस के आने से पहले किसी फिल्मों हिरो की तरह विनोद वहां आ पहूंचा। पैरों में लम्बे रबड़ के जुते पहनकर वह पानी में उतर गया। हाथों में पहने ग्लब्स की सहायता से विनोद ने सर्वप्रथम करंट में तड़प रहे कुत्ते को उठाया और सुखे स्थान पर रख दिया। कुत्ता बेहोश हो चुका था। आस-पास के दुकानदार उसके पास आये। एक ने दुध बिस्कुट कुत्ते के आगे डाल दिये। जिसकी सुगंध सुंघते ही वह कुत्ता उठ बैठा। वह दूध पीने लगा। कुत्ते के प्राण बच चुके थे। उपस्थित लोगों ने तालियाँ बजाकर विनोद का धन्यवाद अदा किये। अब तानिया के प्राण बचाये जाना आवश्यक था जो कार में बैठी-बैठी बेतहाशा डरते हुये निरंतर रोये जा रही थी। विनोद ने पुनः सड़क में बहते हुते पानी में प्रवेश कर दिया। वह कार की तरफ बढ़ा। कार के द्वार को हाथों से अपनी ओर खींचा। मगर करंट इतना जोर दार था की उसने रबड़ के ग्लब्स पहने हुये विनोद को दूर जा फैंका। विनोद मगर हार मानने वाला नहीं था। तानिया सिकुड़कर बैठी थी। यदि उसकी त्वचा जरा भी कार की बाॅडी को छूं ले तो तानिया के प्राणांत हो जाये। विनोद ने इस बार अपने ग्लब्स को पास ही की होटल पर सुलग रही कोयला भट्टी पर सुखाये। ग्ल्बस गीले होने के कारण विनोद को कंरट लग रहा था। "तानिया बचाओ बचाओ"  "हेल्प मी, हेल्प मी" के नारे लगातार गा रही थी।

विनोद ने पुनः हिम्मत कर तानिया की कार की दौड़ लगा दी। उसने कार का द्वार खींचा और बहुत ही सावधानी रखते हुये तानिया को बाहर निकाला। विनोद ने तानिया को अपनी बाहों में उठा लिया। धीरे-धीरे पानी का स्तर बढ़ रहा था। विनोद जल्दी से जल्दी सड़क पार करना चाहता था क्योंकि यदि पानी उसके जूतों में घुस गया तो उन दोनों को करंट लग सकता था। और वहीं हुआ। सड़क किनारे पहूंचते ही विनोद को करंट के झटके लगना शुरू हो गये। उसने तुरंत एक्शन लिया। पास ही दुकान पर खड़ी भीड़ के उपर उसने तानिया को फेंक दिया। लोगो ने तानिया को कैच कर थाम लिया। कुछ लोग इससे नीचे गीर भी गये। विनोद भी पानी में गीर पड़ा। करेंट जोरदार था। अब विनोद पानी में गिरकर तड़पने लगा। तब ही मोके पर आ पहूंची फायर ब्रिगेड की टीम ने विनोद को उठाया। उन्होंने तुरंत ही पास ही के विद्युत पोल से पाॅवर सप्लाई बंद की।

तानिया की जान बचाने वाला विनोद उसके हृदय में  प्रवेश कर चुका था। वह विनोद को अपना सबकुछ मान चूकी थी। तानिया के पिता संपत जैन और मां आशा जैन को अपनी बेटी की पसंद मंजूर थी।

विनोद और शौभा, तानिया को अपने जाल में फंसा चुके थे। विनोद ने शौभा को अपनी बहन और कैलाश चन्द्र को पिता बनाकर तानिया और तानिया के मम्मी-पापा के सम्मुख प्रस्तुत किया। विनोद की छद्म फैमेली से मिलकर  जैन परिवार प्रभावित हो गया। समकक्ष स्टेटस के परिवार में तानिया की शादी होना जैन दम्पति के लिए खुशी की बात थी।

तानिया सोने के अण्डें देने वाली मुर्गी थी। जिसे धीरे-धीरे हलाल करने में ही आनन्द था। इसलिए विनोद ने उसे सबसे पहले अपनी पढाई पुरी करने के लिए मना लिया। बीच-बीच में वह तानिया से धन ऐंठना भी नहीं भूलता। वहीं अन्य शहर में शौभा ने एक नवयुवक को अपने हुस्न के जाल में फंसा लिया। मंयक, शौभा के लिए अपनी जान तक देने वाला युवक था। अब तक कितनी ही लड़कीयां उसे रिजेक्ट करती आयी थी। दुबले-पतले पर्सनैलिटी और आंखों पर मोटा चश्मा लगाने वाले मयंक के पास कोई गर्लफ्रेंड नहीं थी। बीच रास्ते में राह में शौभा और मंयक की टक्कर हो गयी। शौभा ने मंयक की आंखों में साफ देख लिया की यह एक प्यासी आत्मा है। बस फिर क्या था। शौभा ने उसके साथ काॅफी पी और मेल-जोल बढ़ाने लगी। कुछ ही दिनों में मंयक ने शौभा को प्रपोज कर दिया। जिसे शौभा ने स्वीकार कर लिया। उसने मंयक से शादी करने के लिए उसे खुब सारा धन बटोरने के लिए मना लिया। मंयक अपने ही घर से धन की चोरी करने के लिए अवसर ढुंढने लगा।

शौभा और विनोद यहाँ भी नहीं रूके। उन्होंने कैलाश चन्द्र का लुक चैन्ज किया। उसे हैण्ड सम बनाया ताकी हाई प्रोफाईल विधवा या तलाकशुदा धनवान औरतें उन्हें पसंद कर सके। कैलाश चन्द्र शौभा और विनोद के हाथों की कठपुलतली बन चुके थे। दोनों जैसा नाच नचाते वे वैसे ही नाच-नाचते थे। कैलाश चन्द्र ने अपने छल-कपट से एक उम्रदराज विधवा धनी महिला नीना को प्रेम प्रस्ताव दे डाला। बुढ़ापे की आमद और अपनी स्व- संतान की बेरूखी देखकर नीना ने कैलाश चन्द्र से विवाह करने की हां मी भर दी। कैलाश चन्द्र और नीना की शादी की तैयारियाँ शरू हो चुकी थी। 

कैलाश चन्द्र को अपना दीवाना बना चुकी शौभा उसी के फ्लैट में रात बिताने आयी हुयी थी। कैलाश चन्द्र ने इस बार बहुत मौटी रक़म देकर शौभा का सर्वस्व प्राप्त करने के लिए उसको मना लिया था।

शौभा को तब आश्चर्य बहुत हुआ जब उसने कैलाश चन्द्र की पर्स में तनु की तस्वीर देखी। यह तनु वही लड़की थी जो उस दिन विनोद की बाहों में थी। जब लगभग आठ सालों के बाद शौभा ने विनोद को देखा था। शौभा ने कैलाश चन्द्र से पुछा की यह लड़की कौन है? तब कैलाश चन्द्र ने बताया कि तनु उसकी सबसे छोटी बेटी है। तनु छोटी है, नाबालिक है और न समझ भी। तनु की मासुमियत स्वयं शौभा ने अपनी आंखों से देखी थी। उसे तनु में वर्षों पहले की शौभा दिखाई देने लगी। वह जानती थी की विनोद, तनु के साथ भी वैसा ही करेगा जैसा उसने शौभा के साथ किया था। आगे चलकर कहीं तनु भी उस रास्तें पर चल पड़ी जिस रास्ते पर आज शौभा है तब? तब क्या हंसती-खेलती एक निर्दोष लड़की की जिन्दगी बर्बाद होते हुये शौभा अपनी आंखों से देख सकेगी।

"नहींeeeee!" शौभा चीखी। उसने अपने हाथों से स्वयं पर झटप रहे कैलाश चन्द्र को दूर किया। उन्हें झंझोड़ा।

"क्या बात है शौभा! ये तुम्हें अचानक क्या हो गया?" बिस्तर से नीचे गीर चूके कैलाश चन्द्र ने हैरान होकर शौभा से पुछा।

"कैलाश जी! आपकी बेटी विनोद के साथ रिलेशनशिप में है।" शौभा ने बताता।

"क्या बकवास कर रही हो?" कैलाश चन्द्र ने शौभा को कंधों से पकड़ते हुये कहा।

"मेरी बात सही है। यकीन न हो तो मेरे हाथ चलो। विनोद और तनु अभी साथ में ही होंगे।" शौभा ने कैलाश चन्द्र से कहा।

उसने कैलाश चन्द्र का हाथ पकड़कर घर से बाहर दौड़ लगा दी। कार तेजी से दौड़ने लगी। शौभा स्वयं ड्राइव कर रही थी। उसे डर था की कहीं आज तनु अपना सबकुछ न खौ दे। कैलाश चन्द्र भी पसीने से नहा गये थे। उनके पाप कर्मों का प्रतिसाद उसकी बेटी को इस तरह मिलेगा, उन्होंने कभी सोचा नहीं था।

विनोद के फ्लैट में पहूंचते ही कैलाश चन्द्र दहाड़े। अंदर विनोद और तनु अर्ध वस्त्रों में प्रेमालाप में मग्न थे।


क्रमशः ............


------------------------------------------------

प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमती है।


©®सर्वाधिकार सुरक्षित

लेखक--

जितेन्द्र शिवहरे 

177, इंदिरा एकता नगर पूर्व रिंग रोड मुसाखेड़ी इंदौर मध्यप्रदेश

मोबाइल नम्बर

7746842533

8770870151

Jshivhare2015@gmail.com Myshivhare2018@gmail.com


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

हरे कांच की चूड़ियां {कहानी} ✍️ जितेंद्र शिवहरे

लव मैरिज- कहानी

तुम, मैं और तुम (कहानी)