तुम मेरे हो (भाग 10)

 तुम मेरे हो (भाज-10)

एक कहानी रोज़-241 (14/12/2020)     

   "मैं जितना विशाल को खुद के पास लाने की कोशिश करती हूं वह उतना ही तुम्हारे पास खींचा चला जाता है। आखिर तुम्हारे अंदर ऐसा क्या है जो मुझसे नहीं है? मैं तुमसे ज्यादा सुन्दर हूं, इंटेलिजेंट हूं और सबसे बड़ी बात की तुमसे कहीं ज्यादा कामयाब हूं। इसके बावजूद विशाल, भूमि...भूमि... की माला जपता है। मेरे पास तो सिर्फ उसका शरीर रहता है मगर उसकी आत्मा, उसकी आत्मा तुम्हारे पास रहती है। पता नहीं तुमने कौन-सा जादू कर दिया है विशाल पर।" पद्मिनी भूमि पर चिल्ला रही थी। वह भूमि से हाॅस्पीटल में मिलने आई थी। कल सुबह ही भूमि ने एक सुन्दर से बेटे को जन्म दिया है।

"पद्मिनी! मैंने विशाल से सिर्फ प्यार किया है, सिर्फ प्यार। और कभी बदले में प्यार नहीं मांगा। मेरे लिए तो इतना ही बहुत था कि उसने मुझे खुद से प्यार करने से कभी रोका नहीं।" भूमि बोली।

पद्मिनी कभी भूमि को देखती, कभी भूमि के पास ही पालने में झुल रहे जुनियर विशाल को।

"तुम्हारा प्यार अवैध है भूमि। दुनिया इसे कभी स्वीकार नहीं करेगी।" पद्मिनी ने कहा।

"बस यही फर्क है तुम्हारे और मेरे प्यार में। तुमने विशाल से प्यार किया ताकी तुम्हें उसकी कानूनी बीवी बनना है, दुनियां को दिखाना है कि तुम दोनों एक वैध रिश्तें में बंधे हो। और मैंने ऐसा कुछ नहीं सोचा। मैनें तो विशाल से निस्वार्थ प्यार है और हमेशा करती रहूंगी।" भूमि बोली।

"तुम्हें विशाल को भूलना होगा। अब वह मेरा मंगेतर है।" पद्मिनी बोली।

"मैं विशाल को भूल भी जाऊं तो विशाल मुझे नहीं भूलेगा।" भूमि ने कहा।

"क्या मतलब?" पद्मिनी ने पूछा।

"मतलब यह की तुमने उसे तब छोड़ा था जब उसके पास कोई नहीं था। वह अपना मानसिक संतुलन खोकर यहां-वहां पागलों की तरह भटक रहा था। मैंने तब उसका हाथ थामा और उसे इतना प्यार दिया कि अब वो चाहकर भी मुझे भूल नहीं सकेगा।" भूमि बोली।

"तुमने विशाल के लिए जो भी किया उसके लिए मैंने पहले भी थैंक्यूं कहा था और अब भी कहती हूं थैंक्यूं! हां! अगर बदले में तुम्हें कुछ चाहिए तो बोलो।" पद्मिनी बोली।

"विशाल दे सकती हो क्या!" भूमि ने कहा।

"भूमि! अपनी औकात में रहकर बात करो। विशाल आसमान में चमकता हुआ वह सितारा जिसे तुम छूं भी नहीं सकती।" पद्मिनी गुस्से में बोली।

भूमि हंसने लगी।

"देखा! जिस विशाल खो देने के डर से तुम मरने-मारने पर उतर आई, उस विशाल को मैंने ही तुम्हारी झोली में डाला है। और इतना बड़ा दान लेकर तुम मुझे धन-दौलत   देना चाहती हो।" भूमि बोली।

"तो क्या तुम आजीवन विशाल की रखेल बनकर रहना चाहती हो?" पद्मिनी अब भी आग उगल रही थी।

"विशाल के लिए तो मैं कुछ भी बन सकती हूं लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकती। क्योंकि ये सब विशाल को पसंद नहीं।" भूमि ने आगे कहा।

"उसकी पसंद न पसंद का बड़ा खयाल है तुम्हें?" पद्मिनी ने पूछा।

"हां! क्यों नहीं। तुम विशाल को बचपन से जानती हो और अब तक तुम्हें यह पता नहीं चला कि उसे क्या चाहिये और क्या नहीं! और शायद इसीलिए वह तुम्हें बिना बताये कल मुझसे मिलने इस हाॅस्पीटल में आया था।" भूमि ने कहा।

"क्या कहा? लेकिन कल तो उसे ट्रेनिंग के लिए मसूरी जाना था।" पद्मिनी ने पूछा।

"मसूरी जाने से पहले वह मुसझे मिलने आया और अपने बेटे का मुख देखकर यहां से चला गया।" भूमि ने बताया।

"स्टूपीट! फूल! मुझसे झूठ बोला! आने दो उसे! फिर बताती हूं कि पद्मिनी क्या चीज़ है?" पद्मिनी बड़-बड़ा रही थी।

"पद्मिनी! तुम्हें अगर विशाल को अपना बनाना है तो पहले विशाल की बन जाओ। देखना वह खुद-ब-खुद तुम्हारा बन जायेगा।" भूमि ने कहा। 

पद्मिनी स्तब्ध खड़ी थी। वह लौटने के लिए मुड़ी ही थी की भूमि के बेटे की रोने की आवाज़ उसके कानों में पड़ी। भूमि ने उसे अपनी बाहों में उठा लिया था। वह जूनियर विशाल को स्तनपान कराने लगी।

"पता है पद्मिनी! जब मैं लेबर रूम के अंदर जा रही थी, तब मैंने विशाल से पूछा की वह यहां क्यूं आया? क्या उसे अपने होने वाले बेटे की तड़प खींच लाई है? तब उसने कहा बेटे तो ओर भी पैदा हो जायेंगे लेकिन इतना प्यार करने वाली वाली प्रेमिका, ऐसी बीवी दौबारा नहीं मिलेगी।" भूमि बोली।

पद्मिनी आश्चर्य से भूमि की बाते सुन रही थी।

"ये देखो। ऑपरेशन में जाने से पहले उसने मेरे गले में यह मंगलसुत्र पहनाया और कहा कि मेरी पत्नी पर कोई उंगली उठाये ये मैं कभी बर्दाश्त नहीं करूंगा।" भूमि ने पद्मिनी को मंगलसुत्र दिखाया।


क्रमशः ...........

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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमती है।


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लेखक--

जितेन्द्र शिवहरे 

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