उपयोग-लघुकथा

     *उपयोग-लघुकथा*

*एक कहानी रोज़-253 (28/12/2020)*

        *रंजना* का छोटा बेटा अनुपम बहुत सी शरारती था। कल ही उसने बेड के सबसे नीचे संभाल कर रखे गये थैले निकालकर बाहर फेंक दिये। रजंना को अपनी ननद भारती के सामने शर्मिंदा होना पड़ा। दरअसल भारती ने कल ही अपनी भाभी रंजना से थैला मांगा था और रंजना ने कह दिया था कि उसके पास कोई अतिरिक्त थैला नहीं है। जो भी है वे उपयोग में आते है। यदि उनमें से कोई एक भारती को दे दिया तो घर में परेशानी खड़ी हो जायेगी। बाबुजी को साग-भाजी लाने और अनुपम के पिता को घर का किराना आदि लाने में दिक्कत आयेगी। रंजना का झूठ पकड़ में आते ही भारती मुंह फुलाकर बैठ गयी। रंजना ने मिन्नते की, एक की जगह दो अच्छे वाले थैले दिये तब जाकर भारती मानी।

कुछ दिन बाद रंजना भारती के यहां गयी। संयोग से शाॅपिंग में खरिदे गये कपड़े रखने के लिए रंजना को थैले की आवश्यकता हुई। भारती ने यह कहते हुये बहाना बनाया की उसके यहां से कोई रिश्तेदार थैला ले गये हैं जो अब तक लौटाया नहीं है। अतः वह रंजना को थैला नहीं दे सकती। रंजना जैसे-तैसे कपड़ों को अपने निजी एक ही थैले में एडजस्ट कर रही थी। भारती के ससुर से यह देखा न गया। वे अंदर गये और अलमारी में सबसे नीचे दुबकाकर छिपाये गये थैले को निकाल लाये।

"लो बेटी! इसमें अपने कपड़े आदि अच्छे से रख लो।" भारती के ससुर बोले।

शर्मिन्दा होने की बारी अब भारती की थी। उसके चेहरे के भाव रंजना पढ़ चुकी थी। रंजना ने भारती को दिलासा दिया और कहा - "भारती! तुम्हें शर्मिंदा होने की कोई आवश्यकता नहीं है। दरअसल हम महिलाओं की आवश्यकता से अधिक चीज़े सहेजने की आदत होती है। दुसरा भले ही परेशान होता रहे किन्तु हमे भविष्य में ऐसा परेशान न पड़े इसलिए फिलहाल सामने वाले को परेशान होता हुआ देखना हमारी मजबूरी होती है। लेकिन मुझे अब यह समझ में आ गया है कि इन थैलों का सही उपयोग, उपयोग करने में है न की पलंग पेटी या अलमारी में दबाकर या छिपाकर रखने से। फिर चाहे हम इसका उपयोग करे या कोई ओर, फर्क नहीं पड़ता। थैले का उपयोग हो रहा है, यह मायने रखता है क्योंकि बिना धैले के होने वाली परेशानियों से हम सब गुजर चुके होते है और हम आगे भी ऐसी ही परेशानियो का सामना करते रहेंगे। एक-दुसरे की परेशानी एक महिला होकर हम नहीं समझेंगे तो कौन समझेगा?"

"सही कहा भाभी! अब जितनी जरूरत हो उतनी ही चीज़े सहेजेंगे। और सबसे बड़ी बात यह है की किसी भी वस्तु का महत्व उसका उचित उपयोग करना है न कि उसका अनावश्यक संचय करना।"


समाप्त 

-------------------------

प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमती है।


©®सर्वाधिकार सुरक्षित

लेखक--

जितेन्द्र शिवहरे 

177, इंदिरा एकता नगर पूर्व रिंग रोड मुसाखेड़ी इंदौर मध्यप्रदेश

मोबाइल नम्बर

7746842533

8770870151

Jshivhare2015@gmail.com Myshivhare2018@gmail.com


टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

हरे कांच की चूड़ियां {कहानी} ✍️ जितेंद्र शिवहरे

लव मैरिज- कहानी

तुम, मैं और तुम (कहानी)