13 वीं और माटसाब-व्यंग्य
*13 वीं और माटसाब-व्यंग्य*
*एक* कवि मित्र ने अपने दूसरे कवि मित्र माटसाब को व्हाहटसप पर मैसज किया-...तेरवीं...का कार्यक्रम...फलाना दिनांक...वार और समय। मैसेज कुछ कन्फ्यूज़न से भरा अवश्य था। क्योंकी वह कपा-पिटा और अधूरा-सा लग लग रहा था। लेकिन माटसाब को इतना तो अवश्य समझ में आ गया कि कवि मित्र के यहां किसी दिवंगत आत्मा की शांति के लिए तेरवीं का कार्यक्रम है। वे सफेद कुर्ता-पायजामा पहनकर तुरंत बाज़ार पहूंचे। गोल आकर की सफेद पुष्पों की माला खरीदी और कवि मित्र के घर पहूंच गये। वहां का नज़ारा देखकर उनकी आंखें फटी की फटी रह गयी। कवि मित्र का पूरा घर दूधियां रोशनी में रहा था। बाहर सड़क पर बेण्ड-बाजे वाले संगीतमय धून बजा रहे थे। बड़े और सुन्दर वंदन द्वार संजाये गये थे। सड़कों पर पटाखें चलाये जा रहे थे। जिसकी ध्वनि से बरबस ही कानों पर हाथ चले जाते थे। माटसाब परिसर में दाखिल हुये तो हैरत में पड़ गये। वहां बफेट पार्टी चल रही थी। छप्पन भोग के पकवान परोसें जा रहे थे। मेहमान हंसी-खुशी व्यंजनों के चटखारे ले रहे थे। इतना हर्ष मय वातावरण देखकर माटसाब को अपने मित्र पर गर्व हुआ। सोचा चलो कोई तो है जिसे अपनों पूर्वजों के सम्मान की इतनी परवाह है। मगर उनकी खुशी ज़्यादा देर तक नहीं चली। परिसर के बीच सेंटर पर भव्य मंच खड़ा किया गया था। जिस पर कवि मित्र और उनकी पत्नी खड़े होकर मेहमानों का स्वागत कर रहे थे। यह देखकर जितना आश्चर्य माटसाब को हो रहा था उतना ही आश्चर्य उपस्थित मेहमानों को माटसाब को देखकर हो रहा था। यहाँ तक की माटसाब को सुनने को मिला- 'कैसा मनहूस आदमी है, शुभ अवसर पर मातम के सफेद कपड़े और गोलाकार पुष्पों की माला लेकर आया है।' माटसाब की स्थिति तब और खराब हो गयी जब कवि मित्र ने उन्हें उक्त दशा में रंगे-हाथ पकड़ लिया। मेजबान के चेहरे पर घृणा के भाव साफ दिखाई दे रहे थे। मगर वे स्वयं कवि थे, इसलिए कवि मित्र माटसाब के मनोभाव समझ गये। वे स्टेज से उतरकर नीचे आये और माटसाब को अंदर के कमरे में ले गये। माटसाब ने व्हाहटसप वाला मैसेज उन्हें बताया...कवि मित्र जोरो से हंस पड़े। बाद में उन्होंने माटसाब को अपने कपड़े पहनने को दिये। माटसाब पुनः पार्टी में शरीक हुये। कवि मित्र ने उनकी धरम पत्नी को कानों में फुसफुसा कर माटसाब का हाल कह सुनाया। वे भी जमकर हंसी। यही बात व्हाया कवि मित्र की पत्नी के कानों से होते हुये धीरे-धीरे पुरी पार्टी में जंगल में आग तरह फैल गयी। सभी मेहमान माटसास से हंस-हंस कर मिल रहे थे। कुल मिलाकर जाने-अनजाने में माटसाब ने सभी को प्रसन्न कर दिया था।
समाप्त
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प्रमाणीकरण- व्यंग्य मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। रचना प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमती है।
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लेखक--
जितेन्द्र शिवहरे
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