मगंल-कामना-कहानी
एक कहानी रोज़
*मंगल+कामना--कहानी*
*सीधा* और सरल स्वभाव का धनी मंगल। सज्जनता इतनी की दो घड़ी किसी से बात कर ले तो वह मोहित हुये बिना नहीं रहता। सादा पहनावा। कोई दिखावा नहीं। परिश्रमी इतना की पिता के ईंट भट्टों पर अन्य मजदूरों के साथ जमकर पसीना बहाता। घर पर भी उसे कभी आराम करते नहीं देखा। पढ़ाई में अधिक मन नहीं था। सो पिता के ईंट निमार्ण व्यवसाय में मन लगाया। कामना और मंगल की शादी का सपना जमनादास ने देखा था। इसके लिए उन्होंने अपने मुनिम धनीराम को राजी भी कर लिया था। धनीराम को अपनी बेटी कामना और मंगल की शादी को लेकर कोई आपत्ति नही थी। मगर उन्हें चिंता कामना की थी। कामना आधुनिक युग की तेज़ तर्राट और बहुत ही अधिक फैशनेबल थी। उसके सपने बड़े थे। यही कारण था कि मंगल का नाम सुनते ही कामना ने उसके साथ शादी के लिए मना कर दिया। धनीराम ने यह बात जमनादास को बता दी। उन्होंने यह भी बताया की वो कामना को समझायेंगे, आज नहीं तो कल कामना इस शादी के लिए अवश्य मान जायेगी।
जमनादास के ईंट भट्टें उनके गांव से दुर अलग-अलग गांवों में स्थापित थे। जिसमें काम करने वाले मजदूर अधिकतर गांव और आसपास के गांव के ही थे। जब से मंगल ने ईंट भट्टों की जिम्मेदारी संभाली थी तब से पिता जमनादास को बड़ा आराम मिला। इतना की एक दिन दोपहर में ऐसा सोये की फिर उठ न सके। जमनादास की मृत्यु ने परिवार को बंटवारे की कगार पर ला खड़ा किया। महेश और सुरेश जायदात में अपना हिस्सा लेकर छोटे भाई मंगल को मां शांति के भरोसे गांव में ही छोड़कर चले गये। दोनों भाई अपने परिवार सहित शहर में जा बसे। शांति को अपने कम बुद्धिमान मंगल की चिंता दिन रात खाये जाती। पिता जमनादास मंगल की शादी का सपना लेकर ही चल बसे थे।
"बेटा! अब अपनी शादी के विषय में जरा सोच!" शांति बोली।
"सोचना क्या है मां! धनीराम अंकल से आप कह दो कि वो पिताजी से किये अपने वादे को पूरा करे।" मंगल बोला।
"तु ही क्यों नहीं चला जाता उनके यहाँ। पास ही गाँव है उनका। सारी बातें अच्छे से करना। उनसे कहना कि इसी आखातीज़ पर तुम दोनों की शादी कर दे।" शांति बोली।
मंगल ने हां में सिर हिला दिया। वह बहुत ही उत्सुक था। सुबह ही वह धनीराम से मिलने जा पहूंचा। धनीराम को समझ नहीं आ रहा था कि वे मंगल को क्या जवाब दे। उन्होंने कामना और मंगल को अकेले में बात करने को कह दिया। वे कामना की इच्छा जानते थे और चाहते थे कि कामना स्वयं मंगल को इंकार कर दे। बंटवारे के बाद से मंगल के हिस्सें में कुछ खास नहीं आया था। ईंट भट्टें भी बंद पड़े थे। क्योंकि वहां की जमापुंजी का एक बड़ा भाग महेश और सुरेश ले भागे थे। मजदूरों की कई महिनों की पगार बाकी थी। बे-मौसम की बारीश ने ताज़ा-ताज़ा बनायी गयी कच्ची ईंटों को पुनः मिट्टी में तब्दील कर दिया था। बहुत नुकसान हुआ था। जिसकी पुर्ती आसान नहीं थी। स्वयं धनीराम ने मंगल के ईंट भट्टों की मुनिमगिरी छोड़कर अन्यत्र काम तलाश लिया था।
"मंगल तुम अपने आप को देखो। और फिर मेरी तरफ देखो। दोनों में जमींन-आसमान का अंतर है। हम दोनों का मेल किसी कीमत पर नहीं हो सकता।" कामना ने सीधे-सीधे अपने मन की बात मंगल को बता दी।
मंगल मौन था। कामना की खरी-खरी बातें उसे अंदर तक चूभ गयी थी।
"बुरा मत मानना बेटा। मगर अब हालात पहले जैसे नहीं है। अच्छा होगा की तुम अपने ही गांव की किसी लड़की से शादी कर लो। वह तुम्हारे साथ निभ भी जायेगी। कामना को भुल जाओ।" धनीराम ने स्पष्ट कह दिया।
मंगल निराश होकर घर लौट आया। शांति उसके चेहरे को पढ़ चूकी थी। उसने मंगल के सिर पर प्यार से हाथ फेरकर कहा- "बेटा! अपना मन छोटा करने की जरूरत नहीं है। अपनी कमियों को भूलकर अपनी अच्छाइयों को याद रखो। कमजोरीयों को ताकत बनाओ। देखना एक दिन तुम्हें सफलता अवश्य मिलेगी।"
शांति के वचन मंगल के लिए औषधी से कम न थे। इस दुःख से उबरकर मंगल ने अपने ईंट भट्टों की तरफ ध्यान लगाया। जो अभी सुसुप्त अवस्था में थे।
कुछ महिनों के बाद शांति को पता चला की कामना किसी दुसरे समुदाय के लड़के के साथ भाग गयी है। लड़के के परिवार वाले कामना को अस्वीकार कर चूके थे। जिससे परेशान होकर अमृत और कामना ने मंदिर में शादी कर ली थी। मगर अब अमृत चौधरी के परिवार वालें दोनों नवविवाहितों के खुन के प्यासे हो गये है। अंगद चौधरी ने अपने कुछ लोगों को दोनों की खोज में गांव-गांव दौड़ा दिया। अमृत और कामना किसी किमत पर जिंदा नहीं रहना चाहिए। अंगद चौधरी के यह निर्देश थे।
आधी रात में पालदा गांव के मुहाने पर अमृत और कामना चौधरी के आदमीयों के हत्थे चढ़ गये। अमृत और कामना पर लाठियों से हमला शुरू हो गया। अमृत नदि की तरफ भागा। कुछ लोग अमृत के पीछे भागे। कामना घायल हो चूकी थी। वह भी अमृत के पीछे-पीछे भागी। अमृत ईंट भट्टें के पास पुनः धरा गया। अमृत के सिर पर अगला प्रहार जानलेवा था। वह अचेत हो गया। कामना उन लोगों से बचते हुये कच्ची ईंट भट्टी में कूद गयी। वे लोग कामना को ढुंढ रहे थे। तब ही भट्टें का चौकीदार बाबुल अपने कुत्तें के साथ वहां पहूंचा। अप्रत्याशित आगंतुकों की चहलकदमी देखकर शेरू भौंकने लगा। ये देख चौधरी के लोग वहां से भाग खड़े हुये।
बाबुल ने अमृत को अचेत अवस्था में देखकर पुलिस को फोन लगा दिया। उसने मंगल को भी सुचना कर दी। मंगल रात में ही भट्टें की तरफ भागा। उसने भट्टें के पास ही अपनी बाइक रोक दी। पुलिस भी आ चूकी थी। अमृत के प्राण पखेरू उड़ चूके थे। उसे एम्बुलेन्स में पोस्टमॉर्टम हेतु ले जाया जा रहा था। पुलिस ने मंगल को आवश्यक कार्यवाही हेतु पुलिस स्टेशन चलने को कहा। मंगल पुलिस के साथ चला गया। कुछ घण्टों के बाद वह पुनः भट्टें पर लौटकर आया। उसे संदेह हो रहा था कि जब अमृत और कामना एक साथ घर से भागे थे तो पुलिस को कामना क्यों नहीं मिली। वह विचारमग्न था। इतने में सुबह हो गयी। भट्टें के पास ट्रेक्टर ट्राली आकर रूकी। उसमें घास-फूंस और कोयला चूर्ण था। एक नया कच्ची ईंटों से भरे भट्टें में उक्त ईंधन सामग्री डालकर ईंटों को पकाया जाना था।
"लो मंगल भैया! ये माचिस। भट्टी में आग सुलगा कर श्रीगणेश करो।" मजदूर सुनिल बोला।
"हूंअंsss!" मंगल ने चौंककर कहा।
"हां लाओ!" मंगल ने माचिस अपने हाथ मे ले ली। सुर्य की किरणें भट्टें पर पड़ रही थी। मंगल चारों तरफ से भट्टें में आग लगाने लगा। धीरे-धीरे आग सुलगने लगी। तब ही मंगल ने भट्टें के एक ओर खुन के कुछ धब्बे देखे। ये धब्बे भट्टें की कच्ची ईंटों पर भी थे। उसका संदेह पक्का होता चला गया। उसने पानी के पाइप की तरफ दौड़ लगा दी। उसने मजदूरों को आग बुझाने का आदेश दिया। किसी को कुछ समझ नहीं आया कि मंगल ऐसा क्यों कर रहा था? भट्टें में आग धीरे-धीरे सुलग रही थी। मंगल ने पानी की मोटर शुरू कर दी। और पाइप का मुंह पकड़कर भट्टें पर पानी छिड़काव आरंभ कर दिया।
"कामना, भट्टें के अंदर है। आग बुझाव जल्दी।" मंगल दहाड़ा। सभी मजदुर हैरत में पड़ गये। जिसे जैसा बन पड़ा, भट्टें की आग बुझाने में लग गया। कुछ ही देर में आग बुझ चूकी थी। मजदूरों ने ईंटे हटाना शुरू किया। कामना भट्टें के अंदर ही बेसुध पड़ी थी। मंगल उसे उठाकर बाहर लाया। कामना को खाट पर लेटाया गया। कामना की सांसे अभी भी चल ही थी। मंगल ने कामना को ट्रेकर में रखा और उसे हाॅस्पीटल ले कर भागा। रास्तें में उसने पुलिस को भी फोन लगा दिया। पुलिस हाॅस्पीटल में आ चूकी थी। कामना का उपचार आरंभ हुआ। कामना के माता-पिता भी वहां आ पहूंचे। कामना के शरीर से खून अधिक बह गया था। मंगल ने अपना खून देकर कामना की जान बचायी। अगले दिन कामना होश में आयी। पुलिस उसके बयान लेकर जा चूकी थी। मंगल अब भी वही था। कामना उससे नज़र भी नहीं मिला पा रही थी।
"धनीराम अंकल! कामना अब ठीक है। मुझे अब इज़ाजत दे।" यह कहते हुये मंगल हाॅस्पीटल से चला गया। धनीराम अपने पुर्व व्यवहार पर शर्मिंदा थे। अपनी पत्नी के कहने पर और कामना की इच्छा के कारण उन्हें मंगल को अस्वीकार कर दिया था। आज मंगल के ही कारण कामना जीवित बच सकी थी।
धनीराम ने अपनी पत्नी रीना को बताया कि मंगल ने उसे फिर काम पर रख लिया है। वह जान चूका था कि जवान बेटी के घर से भाग जाने के कारण धनीराम मारे शर्म के काम पर नहीं जा रहे थे। इस कारण घर में आर्थिक तंगी भी आ चूकी थी। छोटी बेटी तान्या पढ़ाई छोड़कर शहर के होस्टल से घर आ चूकी थी। मंगल ने ईंट भट्टें पर धनीराम को मुनीम का ही काम सौंपा। महिने की तनख़्वाह भी दस हजार से बढ़ाकर बीस हजार रूपये कर दी। मंगल धनीराम को अपने पिता समान ही मानता था। क्योंकि उसने अपने पिता जमनादास और धनीराम की प्रगाढ़ मित्रता अपनी आंखों से देखी थी। मंगल ने धनीराम से प्रार्थना की थी उसके सिर पर पिता का साया नहीं रहा और धनीराम का कोई बेटा नहीं है सो क्यों न धरम के पिता-पुत्र बनकर वे अपना शेष जीवन निकाले।
धनीराम के मुंह से मंगल के संबंध इन बातों को सुनकर रीना और कामना चकित थे। मंगल अब भी उन्हें अपना मानता था। मंगल नियमित रूप से कामना के यहां फल और दवाईयां आदि भिजवा देता। रीना के मन में मंगल और कामना के विवाह का विचार आया। उसने धनीराम से यह चर्चा की। मगर धनीराम की हिम्मत नहीं थी वो मंगल से ये बात कैसे करे?
एक दिन मंगल, कामना से मिलने उसके घर आया। धनीराम का घर गांव की मुख्य सड़क से लगा था। घर के आसपास खुली जगह थी। जहां गांव के बच्चें खेल खेला करते थे। एक बोलेरो कार धनीराम के घर के सामने आकर रूकी। उसमें से अंगद चौधरी अपने कुछ आदमियों के साथ बाहर निकले।
गाड़ी की आवाज़ सुनकर धनीराम बाहर आये। मंगल भी बाहर आ गया।
"देखो। अपनी बेटी से कह देना की हमारे खिलाफ कोर्ट में गवाही न दे। वरना अच्छा नहीं होगा।" अंगद चौधरी धनीराम से बोला।
"जो होगा वो अच्छा ही होगा चौधरी साहब!" मंगल ने बीच में ही कहा। मंगल के साथी मज़दूर भी वहां आ पहूंचे थे। उन्हें किसी अनिष्ट की आशंका थी। वे सभी चौधरी और उनके आदमीयों के पीछे खड़े हो गये। अपने आदमियों से अधिक ग्रामीणों की संख्या देखकर अगंद चौधरी जी सहम गये।
"अपनी गली में तो कुत्ता भी श़ेर होता है।" अंगद चौधरी बोले।
"नहीं चौधरी साहब! कुत्ता हर जगह कुत्ता ही होता है। और शेर, शेर। आपके लिए अच्छा यही होगा की अदालत में अपना जुर्म कबूल करे। कामना आपके ख़िलाफ गवाही दे अथवा नहीं, इस बात की परवाह न करे।" मंगल बोला।
"जाने दो मंगल!" धनीराम बीच में बोल पड़े।
"नहीं अंकल! इस आदमी के सिर फांसी का फंदा झुल रहा है और ये हमें धमकी देने आ गया है। अरे! शर्म आनी चाहिए चौधरी साहब आपको। अमृत आपका इकलौता बेटा था। वो बेटा जिसके लिए आपने न जाने कितनी मन्नतें की होगी। कितने देवी-देवता मनाये होंगे। अरे! उसे इसलिए ही जिंदा छोड़ देते की मरने के बाद वो आपकी चिता में आग फूंकेगा।
"अपनी झुठी शान और समाज में अपना प्रभाव दिखाने के आपने अपने बेटे की हत्या करवा दी। धिक्कार है।"
"आपको क्या लगता है, आपके इस कदम से लोग क्या प्यार करना छोड़ देंगे? नहीं! आपके जैसे कितने ही आये और चले गये, मगर प्यार करने वालों ने मौत को गले लगा लिया मगर प्यार करना नहीं छोड़ा।" मंगल की बातों में ओज स्वर था।
"चौधरी साहब! जाईये! अगर थोड़ी सी भी ग़ैरत बची हो तो उस मां की छाती से पुछिये की उस पर क्या बीती है। जिसने नौ महिने अमृत को अपने पेट में रखा और अपना दुध पीलाकर बड़ा किया। ये सारी दुनिया आपको माफ भी कर दे मगर वो निपूती मां आपको कभी माफ नहीं करेगी।"
मंगल की आंखें नम थी। आसपास ग्रामीणों की भीड़ जमा हो चूकी थी। अंगद चौधरी चूप थे। वे लौटना चाहते थे। तब ही पुलिस की वेन वहां आकर रूकी।
"क्या बात है भई! यहां इतनी भीड़ क्यों लगा रखी है?" पुलिस ऑफिसर वैन से उतर कर बोले।
"कौन लोग है ये लोग! इन्हें पहले तो नहीं देखा।" एक दुसरे वाले ने अंगद चौधरी को देखकर बोला।
"इन्स्पेक्टर साहब! ये पड़ोस गांव के है। कामना के लिए रिश्ता लेकर आये है।" मंगल ने कहा।
"ठीक है मंगल। कामना को लेकर कल शहर चले जाना। कोर्ट में। कल उसकी गवाही होना है।" पुलिस ऑफिसर ने बोला।
"सर! कामना की तबीयत अभी ठीक नहीं है। वह अगली बार गवाही दे दे तो चलेगा न!" धनीराम बोले।
"हां हां क्यो नहीं। अपने वकील से बोलकर तारीख आगे बढ़वा देना। ठीक है। हम चलते है।" दुसरे पुलिस वाले ने कहा। वेन सरपट आगे की ओर दौड़ पड़ी।
अंगद चौधरी सभी से नज़र चुराते हुये अपनी गाड़ी में बैठ गया। चौधरी के लोग भी गाड़ी में बैठकर लौट गये। घर के बाहर चल रहे इस पुरे घटनाक्रम को कामना ने भी चूपके से देखा। वह उपर खिड़की से झांककर देख रही थी।
'क्या ये वही मंगल है जिसे सभी बुदूधू कहा करते थे।' कामना सोच रही थी। 'इतनी वाकचातुर्ता, इतनी बहादुरी मंगल में कहा से आयी? क्या ये कोई स्वांग तो नहीं कर रहा! या तब कर रहा था जब सभी इसे किसी लायक नहीं समझते थे!' कामना फिर से बिस्तर पर आकर लेट गयी। बहुत दिनों के बाद वह अमृत के अलावा किसी अन्य पुरूष के विषय में सोच रही थी। मंगल की वीरता देखकर कामना उत्साहित थी। उसने अंगद चौधरी के विरुद्ध अदालत में गवाही देने का मन बना लिया था। मगर धनीराम और रीना नहीं चाहते थे कि कामना कोर्ट में गवाही देकर एक बार फिर अपनी जान खतरे में डाले।
जब कामना नहीं मानी तब धनीराम ने मंगल की मदद ली। मंगल के भी यही विचार थे। उसने कामना से घर आकर बात की। मंगल ने कामना से कहा की मृत्यु निश्चित है। अमृत की मौत का कारण उसके पिता बने ये उनका दुर्भाग्य था। जबकी कामना अब भी जिन्दा थी। इसका प्रमाण था कि उसकी अभी मृत्यु होना नहीं थी। अंगद चौधरी इस जुर्म की सज़ा उम्रभर भुगतेंगे। सज़ा के डर से अपराध कम नहीं होते। अपितु अपराध के परिणाम का सर्वत्र दुष्प्रभाव की चिंता करने से अपराध कम होते है। और वैसे भी इस समय हम सभी को कामना के उत्तम स्वास्थ्य की चिंता है। अपराधी को अपराध की सज़ा तब मिलेगी जब सज़ा देने वाला या सज़ा देने में सहयोग करने वाला पुर्णतः स्वस्थ होगा। मंगल के विचार जानकर कामना मान गयी। अपने प्रति मंगल की इतनी चिंता जानकर वह खुश थी।
"मगर कामना की मां! मैं किस मुंह से मंगल से कहूं कि वह कामना से शादी कर ले? जानती हो कितना कुछ सुनाया था हमने उसे इसे विषय में?" धनीराम ने अपनी पत्नी रीना के प्रस्ताव का विरोध करते हुये था।
"हां सब जानती हूं। तुमने देखा मंगल अब कितना समझदार हो गया। वह पिछला सब भुल चुका है। मुझे लगता है कि उसके दिल में कामना अब भी है। वर्ना आज कौन करता है इतना सबकुछ।" रीना बोली।
कामना भी यह सब सुन रही थी। 'क्या मंगल यह सब मेरे लिए कर रहा है। क्या मुझे पाने के लोभ में उसने मुझे बचाया? इसका मतलब कि वह अब भी मुझे पसंद करता है।' कामना सोचने लगी।
धनीराम को मंगल से एक बार बात करने में कोई बुराई नहीं दिखी। अधिक से अधिक वह मना ही करेगा। और कुछ नहीं। यह विचार कर आज दोपहर भोजनावकाश के समय धनीराम ने मंगल से कामना की शादी की बात कर दी।
"अंकल! मुझे खुशी है आपने कामना के लिए मुझे चुना। मगर अभी-अभी कामना ने अपने पति अमृत को खोया है। उसे इस दुःख से उबर आने दीजीए। उसके बाद हम यह बात करेंगे तो अच्छा होगा।" मंगल बोला।
"ठीक है बेटा। हम कुछ समय बाद कामना से पुछेंगे।" धनीराम ने कहा।
छः माह के उपचार उपरांत कामना पहले से बेहतर हो चली थी। उसके शारीरिक घाव धीरे-धीरे भरने लगे थे। कामना अब पिता धनीराम को भट्टें पर टीफीन दे आती। जब उसने अपनी मां से मंगल के लिए भी टिफीन में कुछ भेजने की प्रार्थना की तब रीना को भरोसा हो गया की कामना के दिल में भी मंगल प्रवेश कर गया है।
"मंगल! तुम्हारे अंदर इतना परिवर्तन कैसे आया?" भट्टें पर अपना पिता को टीफीन देने आयी कामना ने एक दिन मंगल से पुछ ही लिया।
"परिवर्तन तो जरूरी है कामना! वैसे जिम्मेदारी आदमी को थोड़ा-बहुत काम के लायक बना ही देती है।" मंगल ने बताया।
"कामना! तुम्हारे माता-पिता चाहते है कि तुम्हारी मुझसे शादी हो जाये। मगर इससे पहले मैं तुम्हारी राय जानना चाहता हूं।" मंगल ने अपने हृदय की बात कह दी।
"अब मेरी इच्छा का कोई मुल्य नहीं मंगल! मम्मी-पापा जहां कहेंगे मुझे शादी करनी होगी।" कामना बोली।
"मतलब तुम इस रिश्तें से खुश नहीं हो?" मंगल ने पुछा।
"तुम जो चाहते थे वह तुम्हें मिल रहा है, सो अब इस औपचारिकता की क्या आवश्यकता?" मंगला बोली।
"मुझे इस बात का पता था कि तुम मेरे विवाह प्रस्ताव को मेरी मेहरबानीयों का बदला समझोगी। मैं इसी बात से डर रहा था।" मंगल बोल रहा था।
कामना चुप थी।
"हां मैं तुम्हें पसंद करता था। अब भी करता हूं। मगर जब तक इस रिश्तें में हम दोनों की रज़ामन्दी सम्मिलित नहीं होती तब मैं स्वयं इस संबंध से इंकार करता हूं। साथ ही तुम्हें वचन देता हूं कि भविष्य में मेरी ओर से तुम्हें कभी भी इस बात के लिए परेशान नहीं किया जायेगा। तुम अपना जीवन जीने के स्वतंत्र हो। तुम्हारे निर्णय को मैं स्वीकार करूंगा।" मंगल यह कहकर अपने काम में व्यस्त हो गया। वह टैक्टर ट्राली पर चढ़ गया। ईंट के भट्टें से ईंटे उठाकर ट्राली में जमाने लगा। आज कुछ मजदुर काम पर नहीं आये थे। काम ज्यादा था। अतः मंगल स्वयं अन्य मजदूर के साथ ईंटों की सप्लाई करने में सहयोग करने लगा। भीषण गर्मी में पांच-पांच ईंट भट्टों का मालिक स्वयं ईंटें ढो रहा था। कामना निशब्द सी यह सब देखती रही थी। पिता धनीराम ने उसे खाली टीफीन ला कर दिया।
"बेटा! हम एक बार मंगल को परखने में मात खा चूके है। अब अगर हम दौबार यही भूल करते तो निश्चित ही हमसे बड़ा बेवकुफ कोई दुसरा नहीं होगा।" धनीराम ने कामना से कहा।
कामना घर लौट गयी। पुरे रास्ते उसे मंगल और अपने पिता की बातें परेशान करती रही। अपने दिल से अमृत को कैसे निकाले। वह अमृत जिससे उसने इतना प्यार किया। अमृत ने उसी के कारण अपना जीवन त्याग दिया। फिर कामना अपना घर बसा कर खुश कैसे रह सकती है? इन्हीं विचारों में डुबी कामना ने अपने आंगन में आकर स्कूटी रोक दी।
मंगल ने धनीराम से कहा की वे कामना पर शादी का दबाव न बनाये। रीना को भी यह समझा देवे। कामना की खुशी में ही हम सबकी खुशी होनी चाहिए।
अंगद चौधरी की पत्नी पवित्रा चौधरी धनीराम के घर आये। धनीराम समझ नहीं पा रहे थे कि चौधराईन उनके घर क्यों आई है। अंगद चौधरी जेल में थे। वे चाहते थे कि कामना उनकी बहु बनकर उनके के घर में रहे। अमृत अब नहीं मगर उसकी ब्याहता पत्नी कामना तो जीवित है। बेटे की कमी बेटी से पुरी हो सकती थी। कामना को वे लोग चौधरी परिवार की बहु स्वीकार चूके थे। इस बात ने कामना को बहुत अधिक सांत्वना दी। धनीराम ने हिम्मत कर पवित्रा चौधरी को बताया कि कामना का विवाह वे लोग मंगल से करवाना चाहते है मगर कामना पुरी तरह से तैयार नहीं है। चौधराईन इस बात पर विचार मग्न हो गयी। वे कामना को अपने घर ले जाना चाहती थीं। मगर कामना के भावी जीवन का भी उन्हें ख़याल था। उन्होंने कामना को आशीर्वाद दिया और कहा की वो खुशी-खुशी मंगल से शादी कर ले। मंगल कामना के लिए सुयोग्य वर था। चौधराईन के प्रोत्साहन से कामना की सभी तरह की दुविधा खत्म हो गयी। मंगल से शादी करने में उसके सम्मुख अब कोई बाधा नहीं थी। उसने स्वयं मंगल से मिलकर उसके विवाह प्रस्ताव को स्वीकार करने की ठानी। उसके चेहरे पर प्रसन्नता के भाव थे। कामना ने अपनी स्कूटी स्टार्ट की। वह जल्दी से जल्दी मंगल के पास पहूंचना चाहती थी। स्कूटी की तेज़ आवाज़ वातावरण में गुंज उठी। कामना ईंट भट्टें की ओर तेज़ी से बढ़ रही थी जहां मंगल अब भी उसका इंतज़ार कर रहा था।
समाप्त
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प्रमाणीकरण-- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमती है।
©®सर्वाधिकार सुरक्षित
लेखक--
जितेन्द्र शिवहरे
177, इंदिरा एकता नगर पूर्व रिंग रोड मुसाखेड़ी इंदौर मध्यप्रदेश
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