बच्चा किसका है? - कहानी
एक कहानी रोज़
*बच्चा किसका है?--कहानी*
*ब* बली के पैर एक बार फिसले तो फिर फिसलते चले गये। उसके चरित्र पर उंगलियां उठने लगी थी। एक समय वह भी आया जब बबली के पिता को ग्राम पंचायत के सम्मुख बबली के होने वाले अनचाहे बच्चे के पिता की खोज के लिए पंचायत बुलानी पड़ी। बबली की मां ने ही यह साहस अपने पति रामभरोसे को दिया। उसने यह भी कहा- 'बबली के माता-पिता होकर गल़त हम नहीं है। इस भूल में बबली के साथ वह पुरूष भी जिम्मेदार है जिसने उसे गर्भवती किया है।' बबली की मां नारंगी ने अपनी बेटी के अधिकार के लिए लड़ाई लड़ने की ठानी। पंचायत ने सुनवाई आरंभ कर दी। पांच बेटियों के पिता रामभरोसे सब्जी बेचकर परिवार का पालन-पोषण करते थे। उनकी बड़ी बेटी बबली इस कार्य में पिता की सहायता करती। गांव के हाट मैदान के मुख्य मार्ग पर उनका सब्जी का ठेला निश्चित स्थान पर खड़ा मिल जाता। रामभरोसे और बबली समय-समय पर सब्जी के ठेले पर अपनी सेवायें देते। बबली के साथ उसकी छोटी बहन अलका भी वहां आती-जाती। संदेह की पहली सुई गांव के युवा रमेश पर गई। बबली के ठेले पर रमेश अक्सर आया करता। वह भी तब जब रामभरोसे ठेले पर नहीं होते। बबली भी बड़ी आत्मीयता से रमेश मिला करती। रमेश को पंचायत में बुलाया गया। उसने भरी पंचायत में बबली के गर्भ में पल रहे बच्चे को अपनाने से इंकार कर दिया। पंचगणों ने दबाव बढ़ा दिया। इस पर रमेश ने बबली के चरित्र पर ही पश्न खड़े कर दिये। बबली ने गांव के गोकुल पर भी उंगली उठाई। रमेश की ही तरह गोकुल ने भी बबली से संबंध होने से असहमति जता दी। अधेड़ उम्र के विधूर दयाराम से शारीरिक संबंध होने की बात बबली ने स्वयं स्वीकार की। पंचायत ने बबली के चरित्र और व्यवहार पर विस्तार से विचार-विमर्श किया। चूंकि बबली और उसके गर्भ में पल रहे बच्चें की भलाई आवश्यक थी इसलिए पंचायत ने अपना निर्णय सुनाया।
"बबली और उसके बच्चे के हितार्थ पंचायत उसे विवाह करने का सुझाव देती है। इन तीनों पुरूषों में से किसी एक को बबली से विवाह करना होगा। इसका चयन बबली करेगी। शेष दोनो बबली को दस-दस हजार रुपये की राशी भरण-पोषण हेतु देने को बाध्य होंगे। पंचायत का यह अंतिम निर्णय है।" सरपंच सुमेर सिंह ने कहा।
इस ऐतिहासिक घटना ने समूचे रामपुरा और आसपास के गांवों में बबली को प्रसिद्ध कर दिया। बबली का तीन पुरूषों में से किसी एक के साथ विवाह करने का पंचायती निर्णय हर किसी की जिव्हा पर था। इस घटनाक्रम की मीडिया को भनक लगी। अखबारों में बबली के यौन उत्पीड़न की खबरें मय फोटो के प्रकाशित होने लगी। पुलिस को विवशता में एक्शन लेना पड़ा। यह स्ववंर विवाह अनोखा था। मगर पुलिस के हस्तक्षेप पर इसे रोका गया। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर बहस छिड़ हुई थी।
"आखिर बबली के पेट में पल रहा बच्चा किसका है?" न्यूज एंकर टीवी पर दहाड़ रहा था।
"बबली वह भारतीय वीरांगना है जो एक साथ कई पुरूषों को संतृप्त करने का सामर्थ्य रखती है।" वरिष्ठ विषय विशेषज्ञ फौजी भागवत अपनी राय दे रहे थे।
"नहीं, यह बबली के साथ संपूर्ण नारी जाति का अपमान है। भोली-भाली बबली को बदनाम किया जा रहा है। मैं संपूर्ण नारी शक्ति मंच की तरफ से भागवत जी का विरोध करती हूं।" महिला सशक्तिकरण की जानकार रीदिमा बोली।
"रीदिमा जी! आपके हाथ टीवी के बाहर जा रहे है। हमारे लाखों दर्शक जो अपने-अपने घरों में बैठकर यह न्यूज देख रहे है वे आपके हाथों से डर सकते है। आप मुद्दे से हमें भटकाने की कोशिश कर रही हैं क्योंकि सवाल अभी भी वही है! की आखिर ये बच्चा किसका है?" न्यूज एंकर टीवी पर पुनः चीखा।
रामभरोसे परिवार सहित शौक में डुब थे। बबली का घर से निकलना सरल नहीं था। बबली की असावधानी आज उसे बहुत भारी पड़ रही थी। वह अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ने को तैयार थी।
अलका ने रामभरोसे को बताया कि बबली जब मौसी के यहां गई थी। तब वहां बबली मनोहर नाम के युवक के संपर्क में आई थी। मनोहर ने बबली को झुठे प्रेम जाल में फंसा लिया। रूपयों के लोभ में बबली शहर के टेस्ट ट्यूब बेबी सेन्टर गयी थी। मनोहर ने उसे ऐसा करने के लिए मानसिक रूप से तैयार कर लिया था।
रामभरोसे को समझने देर न लगी। वे शहर गये। टेस्ट ट्यूब बेबी सेन्टर पर जाकर रामभरोसे ने बबली के संबंध में जानकरी प्राप्त करना चाही। बबली के पिता होने के नाते सेन्टर ने उन्हें सबकुछ बता दिया। दो लाख रुपये के बदले बबली सरोगेसी मदर बनने के लिए राजी हो गई थी। सेन्टर ने उपलब्ध पुरूष वीर्यं बबली के गर्भाशय में प्रविष्ट करवाया था। सावधानी रखने की सलाह के साथ बबली को सेन्टर पर ही प्रसव होने तक रूकना था। मगर एक माह में ही बबली की तबीयत बिगड़ने लगी। मनोहर वहां से फरार हो गया। सेन्टर ने घबराकर बबली को शहर से गांव लौट जाने को कहा। बबली वहां से गांव लौट आई। देशी उपचार उपरांत वह ठीक होकर अपने व्यवसाय में व्यस्त हो गयी।
राजनितिक गलियारे में बबली का नाम चर्चित हो गया। प्रत्येक राजनितिक पार्टी इस मुद्दे को उछालकर राजनीतिक लाभ उठाने से पीछे नहीं थी।
लोकसभा में यह प्रश्न उठाया गया। विपक्ष ने सत्तारूढ़ पार्टी के गृहमंत्री को आड़े हाथों लिया।
"समाज में आज नारी सुरक्षित नहीं है। आज गृहमंत्री को बताना ही होगा कि बबली के पेट में पल रहा बच्चा आखिर किसका है?" सांसद महोदय के तेवर देखते ही बनते थे।
गृहमंत्री अपने स्थान पर उक्त प्रश्न का उत्तर देने खड़े हुये- "मैं विपक्षी दल को भरोसा दिलाता हुं कि वह बच्चा मेरा नहीं है। और यह भी पुरे दावे के साथ कहता हूं कि मेरी पार्टी का कोई भी पुरूष उस बच्चें का पिता नहीं है।" केन्द्रीय गृहमंत्री ने ताल ठोंककर जवाब दिया।
बबली की प्रसिद्धी दिनों-दिन बढ़ती जा रह थी क्योंकि मीडीया ने उसे रातों-रात स्टार बना दिया था। रामभरोसे शहर जाकर प्रिय कुमार से मिले। प्रिय कुमार वही व्यक्ति थे जिन्होंने अपने वीर्यं से उत्पन्न संतान का कॉन्ट्रैक्ट उस टेस्ट ट्यूब बेबी सेन्टर को दिया था जहां बबली सरोगेसी मदर बनने के लिए सहमत थी।
प्रिय कुमार अविवाहित होकर बच्चें के पिता बनना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने अपनी विधवा मां को भी मना कर लिया था। बबली के गर्भाशय में उत्पन्न हुयी समस्या से स्वयं प्रिय कुमार भी डर गये थे। बबली की अस्वस्थ्ता के विषय में जानकर उन्होंने अपना विचार स्थगित कर दिया था। रामभरोसे के मुख से बबली की मां बनने की ख़बर सुनकर उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ। प्रिय कुमार को कहीं न कहीं यह अवश्य लगता कि वह बच्चा उन्हीं का है! बबली के गर्भ का नौवा माह चल रहा था। प्रसुति किसी भी क्षण हो सकती थी।
पिछले पच्चीस वर्षों से एमपी और एमएलए का चुनाव बहुत नजदीकी मतों से हार रहे वरिष्ठ राजनितिज्ञ सुबोध संघवी को उनके पारिवारिक ज्योतिष ने एक सुझाव दिया। उन्हें विशेष नक्षत्र में उत्पन्न हुये शिशु की भेंट अघोरी बाबा को करनी होगी। अघोरी बाबा उस शिशु की बलि विलक्षण नक्षत्र में इष्ट को समर्पित करेंगे। इस प्रकार का शिशु एक हजार बच्चों में एक बार ही जन्म लेता है। सुबोध संगवी ने उस बच्चें की इनामी राशी पचास लाख रूपये रखी। यह राशी बच्चें के माता-पिता को समान रूप से मिलेगी। संघवी के कार्यकर्ताओं ने पता लगाया। बबली का पुत्र उसी विलक्षण नक्षत्र में उत्पन्न हुआ है जिसकी तलाश सुबोध संघवी कर रहे थे। पार्टी कार्यकर्ता प्रतिक रामपुरा गांव आकर रामभरोसे से मिला। पचास लाख रुपये की ईनामी राशी का समाचार रामभरोसे को प्रतिक के माध्यम से मिला। नारंगी न चाहते हुये भी इस कार्य के लिए सहमत थी। इनामी राशी से परिवार के दिन बदल सकते थे। वर्षों की निर्धनता से पल भर में छुटकारा मिल सकता था। बबली पर दवाब बढ़ता जा रहा था। अवसर पाकर वह अपने नवजात शिशु के साथ घर से भाग निकली। मीडीया कर्मी गांव में ही डेरा जमाये हुये थे। मगर पुलिस प्रशासन उन्हें बबली से मिलने नहीं दे रहा था। प्रसिद्ध उद्योगपति प्रिय कुमार का संभावित अंश बबली का ही पुत्र है, यह खबर मीडिया के पास पहूंच गई थी। पांचाली के नाम से विख्यात बबली अब पंचायती बन चूकी थी। रामपुरा गांव का हर दुसरा-तिसरा पुरूष बबली के बच्चे का पिता होने का दंभ भरने लगा। और यह सब उन पचास लाख रूपये के लोभ का परिणाम था। मीडिया कर्मी अपने-अपने चैनल की उन्नत टीआरपी के लिए न-न प्रकार के जतन करते। गांव का जो भी पुरूष टीवी पर बबली से संबंध होने के सच्चे-झूठे प्रमाण सौंपता, पत्रकार उसे बबली के बच्चे का पिता बनाकर संसार के समक्ष प्रस्तुत करते।
"ये देखीये! जिस शख़्स को अभी आप देख रहे है! ये वही आदमी है जो बबली के ठेले पर हर रोज़ सब्जी लेने जाया करता था। और यह बात आपके होश उड़ा देगी की इस आदमी को भिण्डी की सब्जी पसंद ही नहीं थी। फिर भी ये बबली के ठेले पर रोज़ भिण्डी लेने जाता था। अब आप ही बताईये, जिसे भिण्डी की सब्जी पसंद नहीं थी वह आखिर बबली के ठेले पर क्या लेने जाता था। आईये! इसी से पुछ लेते है।" न्यूज रिपोर्टर ने एक ग्रामीण के मुंह में माइक घूसेड़ते हुये आगे पुछा-
"आपका नाम क्या है? और आप बबली को कैसे जानते है?"
"हमारा नाम जगदीश है। और बबली हमारे ही गांव की रहने वाली है।" ग्रामीण जगदीश ने जवाब दिया।
"जगदीश जी! हमें आपकी पत्नी ने बताया की आपको भिण्डी की सब्जी पसंद नहीं थी। फिर भी आप हर रोज़ भिण्डी की सब्जी बाजार से लेने जाते थे। वो भी बबली के ठेले से! आप हमारे दर्शकों बतायेंगे की आप बबली के ठेले पर हर रोज़ क्या करने जाते थे? आखिर आपका और बबली का आपस में संबंध क्या था?" रिपोर्टर ने आगे पुछा।
"जी! असल में हम बबली को मन ही मन बहुत प्रेम करते थे। वो भी हमको प्रेम करती थी। उसका बच्चा हमारी ही देन है।" जगदीश बोला।
"अरे! ई जगदीश झूठ बोल रहा है। बबली के बच्चें के बाप हम है!" एक अन्य ग्रामीण सुनिल ने बीच में आते हुये कहा।
"का बकवास करता है। हम है ऊ बच्चें के बाप?" जगदीश ने सुनिल की काॅलर पकड़ ली। दोनों में हाथापाई शुरू हो गयी। देखते ही देखते दो-चार अन्य ग्रामीण भी वहां आ गये। वे भी बबली के बच्चें के पिता होने का दावा कर रहे थे। न्यूज रिपोर्टर ने वहां से भागने में ही भलाई समझी।
पुलिस छावनी बने रामपुरा गांव में बबली के घर से भाग जाने की खबर ने और अधिक खलबली मचा दी। पचास लाख रुपये के लोभ में तथाकथित लोगों से बबली और उसके बच्चे की जान को खतरा था। यह संज्ञान में लेकर पुलिस ने जच्चा-बच्चा को सुरक्षा देने हेतु बबली की तलाश आरंभ कर दी।
प्रिय कुमार बबली से मिलने रामपुरा आ रहे थे।
बबली बीच सड़क पर बदहवास दौड़े जा रही थी। उसके हाथों में उसका बच्चा भी था। बचते-बचाते सभी से भाग रही बबली को शरीर पर चोटें आई थी। थकान से चूर वह कार के आगे गिर पड़ी। प्रिय कुमार ने कार रोकी। प्रिय कुमार ने बबली को कार में बिठाया। उन्होंने कार हाॅस्पीटल की ओर दौड़ा दी। असंख्य जनक के इस अनोखे बच्चें को देखने हाॅस्पीटल में भारी भीड़ जमा होने लगी थी।
सुबोध संघवी कार्यकर्ताओं के साथ बबली के बच्चे को हथियाने हाॅस्पीटल पहूंचे। मगर पुलिस की चाक-चौबंद व्यवस्था देखकर वे लोग उल्टे-पैर भाग खड़े हुये। प्रिय कुमार ने बबली का हाथ थाम रखा था। बच्चा बबली की गोद में खेल रहा था। बबली ने भूतकाल के आचरण का परित्याग कर मर्यादित जीवन जीने का वचन प्रिय कुमार को दिया। प्रिय कुमार ने बबली और उसके बच्चे को स्वीकार कर लिया। डीएनए परीक्षण में यह सिध्द हो गया कि बबली का बबलु प्रिय कुमार की ही संतान थी।
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समाप्त
प्रमाणीकरण--कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमती है।
©®सर्वाधिकार सुरक्षित
लेखक--
जितेंद्र शिवहरे
सहायक अध्यापक शा प्रा वि सुरतिपुरा चोरल महू इन्दौर मध्यप्रदेश मोबाइल फोन नंबर
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