आई एम प्रेगनेंट-कहानी
एक कहानी रोज़
*आई एम प्रेगनेंट-कहानी*
*'मानव हो या पशु! अन्य नर की संतान को स्वीकार क्यों नहीं पाता? जिस प्रकार एक सिंह, मादा सिंहनी पर आधिपत्य स्थापित करने के लिए सर्प्रथम उसके नवजात शिशुओं को मार गिराता है। उसी रणनीति पर वरूण के स्वर उभर रहे थे।' एक बार फिर अनंदिता विचारों के संकट में थी।*
*ब* हुत समय बाद अनंदिता घर आ रही थी। इस बात की खुशी पुरे घर में दिखाई दे रही थी। "पिछला सब कुछ भूलकर हमें अनंदिता को स्वीकार कर लेना चाहिये।" अपने पति आत्माराम को चाय का कप थमाकर सुमन बोली।
"लेकिन वह सब भूल पाना क्या संभव है?" आत्माराम बोले। जब से आनंदिता शहर गई थी तब से दोनों मा-बाप उसकी चिंता में घुले जा रहे थे। बढ़े शहर में पढ़ाई के लिए गई आनंदिता ने वहां शादी कर घर बसा लिया था। वो भी परिवार को बिना बताये। इसी बात का दुःख आत्माराम को खाये जा रहा था। लड़का कौन है? कैसा है? यह सब जाने बिना उसे अग्रवाल परिवार का दामाद कैसे मान ले? अनंदिता गर्भ से थी। यदि उसकी गोद भरायी की रस़्म मायके में कि जाये तब हो सकता है सब कुछ पहले जैसा हो जाये? अनंदिता की इच्छानुसार सुमन ने सहमती दे दी। इसी बहाने बेटी और दामाद से मिलना हो जायेगा। आत्माराम भी मान गये। फिर ऐन वक्त पर खब़र आई की अनंदिता के पति का रोड एक्सीडेंट हो गया है। मौके पर ही सिद्धांत की मृत्यु हो चूकी थी। अनंदिता पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। हाथों की मेहन्दी भी सुख भी नहीं थी कि सोलह श्रृंगार उससे रूठ गये। अग्रवाल दम्पति भागे-भागे शहर गये। जहां पता चला की शव बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया था। अतः 'जो है जैसा है' समझकर म्युनिसिपल वालों ने उसे दहन कर दिया। आखिरी पलों में अनंदिता के माता-पिता को सिध्दान्त का मुख देखना भी नसीब नहीं हुआ। आत्माराम अंनदिता को समझा-बुझाकर मायके ले आये। क्योंकि मां-बाप से भयंकर विरोध कर सिध्दान्त ने अनंदिता से विवाह किया था जिससे अब ससुराल में अंनदिता के लिए कोई स्थान शेष नहीं था। यह सब अनंदिता ने अपने माता-पिता को स्वयं कहा था। इसलिए उसके कहे प्रत्येक शब्द पर विश्वास कर अग्रवाल दम्पति अनंदिता को उसके ससुराल न ले जाकर अपने घर ले आये। शून्य में खोई अंनदिता स्वयं के द्वारा कहे गये सबसे बडे झूठ को लेकर विचारमग्न थी। अपने साथ हुये रेप को छुपाकर स्वयं को विवाहित प्रस्तुत करने का षडयंत्र अंनदिता ने ही रचा थी। सिध्दान्त उसका क्लास मेट था। वह अंनदिता को प्रेम करने लगा। अंनदिता ने सिध्दान्त का प्रेम कभी स्वीकार नहीं किया। क्रोधाग्नि में झुलस रहा सिध्दान्त एक दिन अनैतिक कार्य में संलग्न होकर अंनदिता पर पशु समान टूट पड़ा। अंनदिता की अस्मिता को तार-तार वह जेल पहूंच गया। दो माह के उपचार और काउंसिलिंग के उपरांत जब अंनदिता सामान्य हुई तब उसे ज्ञात हुआ कि वह गर्भ से है। अपने गर्भ में पल रहे बच्चे को गिराना उसे न्यायसंगत नहीं लगा। जिस अंनदिता ने अपने संपूर्ण जीवन में कभी एक चींटी भी न मारी थी वह मानव भ्रूण हत्या कैसे कर सकती थी? अनायास ही सही, किन्तु एक सजीव जीवन उसके पेट में पल रहा था। उसे सृष्टि का सुख भोगने का उतना ही अधिकार है जितना अन्य किसी मानव का होता है। यही सोचकर अंनदिता ने अपने गर्भ में पल रहे बच्चे को जन्म देने का निर्णय लिया।
"अनु! वरूण आज भी तुझसे विवाह करने को तैयार है।" सुमन के इन वाक्यों ने अनंदिता को विचारों के भव सागर में डुबने से बचाया।
वह वरूण को जैसे भूल ही गई थी। कुछ वर्ष पुर्व ही तो वरूण और अनंदिता की सगाई हुई थी। किन्तु जैसे ही अनंदिता के अन्यत्र विवाह की जानकारी वरूण को प्राप्त हुई। उन दोनों का संपर्क टुट गया था।
"मगर मां! आई एम प्रेगनेंट। क्या इस हालत में वरूण मुझे स्वीकार करेगा?" आनंदिता बोली। अनंदिता का प्रश्न जितना कठीन था, सुमन का उत्तर भी उतना ही कठीन था। "तुझे इस अजन्मे बच्चें को भुलना होगा?" सुमन कुछ कठोर होकर बोली। अनंदिता समझ चूकी थी की उसकी मां क्या कहना चाहती है? उसे लगा कि एक बार वरूण से मिल लेना चाहिए। इन सब में आखिर वरूण का क्या दोष था? अनंदिता ने वरूण से भेंट की। उसने दोनों के भावी रिश्तें के विषय में वरूण की राय जाननी चाही। वरूण ने अनंदिता से साफ-साफ कह दिया। वह अनंदिता से विवाह करने को तैयार था। मगर वह चाहता था की अनंदिता अपना गर्भ गिरा दे। अनंदिता पुनः दुविधा में डुब गई। एक तो उसे अब विवाह करने की लालसा नहीं थी। उस पर माता-पिता की बात रखने का विचार किया तो उसे अपने भ्रूण का बलिदान देने पर विवश किया जा रहा था। जिसके लिये वह कतई तैयार नहीं थी।
'मानव हो या पशु! अन्य नर की संतान को स्वीकार क्यों नहीं पाता? जिस प्रकार एक सिंह, मादा सिंहनी पर आधिपत्य स्थापित करने के लिए सर्प्रथम उसके नवजात शिशुओं को मार गिराता है। उसी रणनीति पर वरूण के स्वर उभर रहे थे।' एक बार फिर अंनदिता विचारों के संकट में थी।
'नहीं। मैं अपने अजन्में बच्चे को नहीं मार सकती। वरूण मुझे स्वीकार करे अथवा नहीं। मैं अपने बच्चे को जन्म दुंगी। मां-बाप दोनों का प्यार मैं उसे दूंगी। जो अन्याय मेरे साथ हुआ है उसके कलूषित परिणाम की छाया अपनी संतान पर कभी पड़ने नहीं दूंगी। स्वयं आत्मनिर्भर बनकर जीवन को उल्लास और प्रेम के साथ जीकर दिखाऊंगी। मुझे कोई दुविधा नहीं है। अब मैं नहीं रूकूंगी।' अंनदिता विचारों की जंग जीत चूकी थी। बुलंद होसले उसके चेहरे पर स्पष्ट देखे जा सकते थे। मेडीकल फाइल उठाकर वह जनरल चेकअप के लिये क्लीनिक की ओर निकल पड़ी। गर्भस्थ शिशु की देखभाल में वह कोई कसर छोड़ना नहीं चाहती थी।
क्लीनिक से लौटते समय अनंदिता की भेंट वरूण से हो गई। वह अरूण से आंखें बचाकर वहां से निकलना चाहती थी। मगर वरूण उससे कुछ कहना चाहता था।
"वरूण! अब हमारे बीच कुछ नहीं है। एक-दुसरे को भुलने में ही हमारी भलाई है।" अनंदिता ने वरूण से कहा।
"मैं जानता हूं कि तुम मुझसे नाराज़ हो। मगर एक बार मेरी जगह तुम आकर सोचो। शादी के बाद जब हमारे अपने बच्चें हुये और यदि मैं इस बच्चे का जो अभी तुम्हारे पेट में है, अपने अन्य बच्चों की तरह ध्यान न रख सका तब क्या तुम मुझे माफ कर सकोगी।" वरूण ने अपने दिल की बात बतायी।
दोनों शहर के एक प्रसिद्ध शाॅपिंग माॅल में खड़े होकर बातचीत करने में व्यस्त थे।
"तुमने तो लड़ाई से पहले ही हथियार डाल दिये वरूण! तुम्हारी हार तो पक्की है।" अनंदिता बोली। उसकी बातों में वरूण के प्रति हूटिंग के भाव थे।
"अनंदिता! चलो एक बार के लिए मैं तुम्हारी संतान को अपना भी लूं! तब क्या तुम मुझे मेरी निजी संतान उत्पन्न करने की स्वतंत्रता दे सकोगी? तुम्हारे गर्भ में पल रहे बच्चें को मैं अपना संरक्षण दुंगा। दुनिया के सामने उसका पिता मैं ही कहलाऊंगा। तब अगर मेरी अंशदायी संतान को संसार ने मेरी निजी संरचना स्वीकार करने से इंकार कर दिया तब क्या तुम यह कुठाराघात सह सकोगी?" वरूण की बातें में सार्रथ तर्क थे।
वरूण की बातें ने वातावरण में कुछ पलों की शांति फैला दी थी।
"अनंदिता! तुम्हें हर कदम पर अग्नि परिक्षा से गुजरना होगा। मेरा अंश और तुम्हारे इस अजन्मी संतान दोनों के विषय में कदम पर कदम पर सुरसा के समान अनगिनत प्रश्न मुंह बायें खड़े मिलेंगे। तब तुम क्या इन सवालों का सामना कर सकोगी?" वरूण बोला।
"वरूण! जो दुनिया से इतना डरता हो वो मुझे और मेरी संतान को क्या संरक्षण देगा?" अनंदिता की बातें व्यंगात्मक थी।
"यही जीवन की सच्चाई है अनंदिता। किसी भी तथ्य को उसके उचित-अनुचित भावि परिणाम की संभावना का अनुमान लगाये बिना स्वीकारना तर्कसंगत कभी नहीं कहा जा सकता।" वरूण बोला।
"तो आप लगाते रहिये भविष्य के अनुमान और पड़े रहीये सही-गल़त के फैर में। मुझे अपने और अपने होने वाले बच्चें के लिए किसी की सहायता नहीं चाहिए।" कहते हुये अनंदिता जाने लगी।
"जरा रूको अनंदिता।" कहते हुये वरूण ने अनंदिता का हाथ पकड़ लिया।
"वरूण! छोड़िये मेरा हाथ।" अनंदिता के स्वर में नाराज़गी थी।
"तुम मुझे डरपोक समझती हो न अनंदिता। तुम्हें यह भी लगता है कि मैं तुम्हें इस हालत में अपनाने से कतरा रहा हूं।" वरूण बोला।
"देखीये••• इन बातों में अब कुछ नहीं रखा है।" अनंदिता बोली।
"लेडिज एण्ड जेंटलमैन! प्लीज़ आप लोग मेरी बात सुनीये।" रोहित ने माॅल में उपस्थित लोगों को हाथों से तालियां बजाते हुये आकर्षित किया।
"ये क्या कर रहे हो वरूण!" अनंदिता चौंकी।
"कुछ देर जरा तुम चुप रहो।" वरूण ने कहा।
"लेडिज एण्ड जेंटलमैन! मैं आप सभी लोगों के बीच कुछ शेयर करना चाहता हूं। ये मेरे साथ जो लड़की खड़ी है उसका नाम अनंदिता है और मेरा नाम वरूण है।" वरूण बोला।
"वरूण चलो यहां से! यहां तमाशा खड़ा करने की जरूरत नहीं है।" अनंदिता ने वरूण को हाथों से अपनी ओर खिंचते हुये कहा।
" रूको अनंदिता।" वरूण ने पुनः अनंदिता को शांत रहने को कहा।
"दोस्तों! ये लड़की मां बनने वाली है। जी हां! आपने सही सुना। अनंदिता के गर्भ में एक नयी जिन्दगी पल रही है। मैं आपको बताना चाहता हूं कि अनंदिता की अब तक शादी नहीं हुई है।" वरूण बोला।
उपस्थित लोग बड़ी हैरानी से यह सब सुन रहे थे। वरूण की बातों ने अच्छा खासा मजमा लगा दिया था।
"मैं जानता हूं! आप लोग सोच रहे होंगे कि अब अनंदिता की शादी नहीं हुई तब यह बच्चा किसका है। आप लोगों का सोचना सही है। दरअसल अनंदिता कुंवारी मां बनने जा रही है।" वरूण ने लोगों की दिलचस्पी ओर बढ़ा दी।
"वरूण! प्लीज मैं तुम्हारे हाथ जोड़ती हूं। सबके सामने मेरा तमाशा मत बनाओ।" अनंदिता ने वरूण से प्रार्थना की।
मगर वरूण पर इसका कोई असर नहीं हुआ।
"दोस्तों। ये सच है कि अनंदिता एक कुंवेरी मां बनने जा रही है। उसने अपने बच्चें को जन्म देने का निर्णय लिया है। इस बात से अनुमान लगाया जा सकता है कि अनंदिता ने किन हालातों में ये फैसला लिया होगा! अनंदिता गल़त नहीं है गल़त तो इसके साथ हुआ है।" अनंदिता आश्चर्य में थी। वरूण अब उसकी प्रशंसा करने लगा था।
"ये बच्चा किसका है? कौन इसका बाप है? इस बात की परवाह किये बगैर मैं आप सभी के सामने अनंदिता को स्वीकार करना चाहता हूं। मैं अनंदिता पर कोई दया नहीं दिखा रहा। मैंने अपने जीवन में अगर किसी से प्यार किया है तो वह अनंदिता ही है।" वरूण बोला।
माॅल की बालकनी में खड़े लोग दोनों की बातें गौर से सुन रहे थे। वहां की सीढ़ीयों पर भी लोग जमा थे। सम्मुख खड़े कुछ लोग इस घटना की वीडियो बना रहे थे।
"हां अनंदिता! मैं अब भी तुमसे बहुत प्यार करता हूं। और हर परिस्थिति में तुम्हें ही प्यार करता रहूंगा।" वरूण ने अनंदिता के गालों को अपने हाथों से पकड़ते हुये कहा। उपस्थित जन समूह इस प्रेमी जोड़े का तालियों से स्वागत कर रहा था। अनंदिता भावविभोर थी। उसकी आंखें भीग चूकी थी। वरूण ने अपने प्रेम को संसार को सामने स्वीकारने का जो साहस दिखाया था, ऐसा कम लोग ही कर पाते है।
"मैंने तुम्हें अपना गर्भ गिराने के लिए इसलिए कहा था क्योंकि मैं देखना चाहता था की मेरा प्यार तुम्हें कमज़ोर तो नहीं कर देगा। मगर तुम कमजोर नहीं हो। मेरी परिक्षा में तुम पास हुई। आओ। अपने दिल में जो भी है उसे दुनिया के सामने बता तो। ये सभी लोग हमारे प्यार के गवाह है।" वरूण बोला। अब अनंदिता की बारी थी। उसने कहा-
"आप सभी लोगों ने वरूण की बातें सुनी। मैं भी अपने दिल की बात बताना चाहती हूं। वरूण मुझे सबके सामने अपनाना चाहता है। इसके लिए मैं उसकी शुक्रगुज़ार नहीं हुई हूं बल्कि मेरी नज़रो में वरूण का स्थान अब और भी ऊंचा हो गया है। महज शुक्रिया कहकर मैं वरूण के इस बहुत बड़े काम को छोटा नहीं करना चाहती।"
लोग पुनः उत्सुक थे।
"मैं समझ रही हूं की आप सभी जानना चाहते है कि मेरे पेट में पल रहे बच्चें का बाप कौन है?" अनंदिता ने कहा।
"मैं आज सबकुछ बताऊंगी। ये बच्चा मेरे साथ हुई एक अनहोनी घटना का परिणाम है। जी हां! आप सही सोच रहे है। मेरे साथ बलात्कार हुआ था। उस दरिन्दें ने न केवल शरीर को दूषित किया बल्कि मेरी आत्मा को भी कलुषित किया। मेरा रोम-रोम अब भी उस हैवान की आहट महसुस करता है। रात-बेरात डर के मारे निंद खुल जाती है। स्वयं के शरीर से घृणा आती है। अपनी त्वचा को नोंचने-खसोटने का मन करता है।" अनंदिता बोलते-बोलते रूक गयी।
"अपना जीवन खत्म करने का विचार बहुत बार आया। मगर अपने साथ मैं इस अजन्मे बच्चें का जीवन खत्म करने का साहस कभी जुटा नहीं पायी।" अनंदिता की आंखे भर आयी थी।
उपस्थित जन सभूह अनंदिता को अपनी आंखों से ढांढस बंधा रहा था।
"यस! आई एम प्रेगनेंट! और कुंवारी मां बनने पर मुझे कोई शरम नहीं है। क्योंकि मैंने कुछ गल़त नहीं किया। गल़त मेरे साथ हुआ है। इसलिए मैंने इस बच्चे को जन्म देने का निर्णय लिया है। ताकि मैं इसकी गुनाहगार न बनूं।" कहते हुये अनंदिता कुछ पलों के लिए मौन हो गयी।
"सबकुछ जानते हुये इस काम में वरूण मेरा साथ दे रहा है, मुझे इस बात की बहुत खुशी है। मैं आप सभी के सामने वरूण का प्रेम स्वीकार करती हूं। वरूण जैसा जीवनसाथी मिलना सच में मेरे लिए सौभाग्य की बात है। वरूण मुझे दौबारा मिला है और मैं इसे किसी कीमत पर छोड़ना नहीं चाहती। वरूण आई लव यू।" अनंदिता ने कहा।
"आई लव यू टू अनंदिता!" कहते हुये वरूण ने अनंदिता को गले से लगा लिया।
तालियों की गड़गडाहट के बीच कुछ लोग पास आकर वरूण और अनंदिता को शुभकामनाएं दे लगे।
"अनंदिता। ये मेरे हाॅस्पीटल का कार्ड है। तुम्हारा फस्ट बेबी हमारे हाॅस्पीटल में होगा। इसके लिए हम लोग तुम दोनों से कोई फीस नहीं लेंगे।" एक महिला डाॅक्टर अनंदिता के पास आकर बोली। महिला डाॅक्टर के साथ उनके डाॅक्टर पति भी थे जो माॅल में शाॅपिंग करने आये थे। वे दोनों भी वरूण और अनंदिता की बातें सुन रहे थे। महिला डाॅक्टर की बातें सुनकर वरूण और अनंदिता प्रसन्नता से खिल उठे।
वरूण और अनंदिता ने उन सभी लोगों को धन्यवाद दिया। तत्पश्चात उन्होंने सभी से विदा ली।
"अनंदिता! मैं तुम्हारे लिए ऑटो बुलाकर लाता हूं।" वरूण बोला। वे दोनों माॅल के बाहर आ गये थे।
"नहीं वरूण। मैं तुम्हारे साथ बाइक पर चलूंगी।" अनंदिता बोली।
"मगर इस हालत में•••••।" वरूण बोला।
"अभी तीसरा महिना ही है वरूण। वैसे भी मैं बहुत दिनों से बाइक पर नहीं बैठी हूं। आज मुझे तुम्हारे साथ ही चलना है बस!" अनंदिता ने कहा।
"ओके! तुम्हारे लिए मैं कुछ भी कर सकता हूं अनंदिता! ये तो बहुत छोटी सी बात है। आओ बैठो। कहते हुये वरूण ने बाइक स्टार्ट कर दी।
अनंदिता बाइक पर बैठ गयी। उसका हाथ वरूण के कंधे पर था। वह बाइक पर वैसे ही बैठी थी जैसे एक पत्नी अपने पति के साथ बाइक पर बैठती है। बिल्कुल निश्चिंत, निर्भिक। दोनों की बातें जारी थी। कुछ ही पलों में हवा से बातें करती हुई उनकी बाइक सड़क पर दौड़ रहे वाहनों की भीड़ में कहीं गुम हो गयी।
समाप्त
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प्रमाणीकरण-- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमती है।
©®सर्वाधिकार सुरक्षित
लेखक--
जितेन्द्र शिवहरे
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