मजबूर मजदूर मजबूत-कहानी

 एक कहानी रोज़

मजबूर मजदूर मजबूत

        चौदहवीं मंजिल पर निर्माण संबंधी कार्य प्रगति पर था। लालसिंह शहर में पहली बार आकर मजदूरी कर रहा था। बालु रेत का ढेर लगाकर वह उसमें सिमेंट मिलाने लगा। उसे पास ही के निर्माणाधीन बाथरूम में स्त्री-पुरूष की समान मात्रा में विभिन्न प्रकार की आवाज़े आ रही थी। लालसिंह से रहा नहीं गया। वह बाथरूम के निकट गया और दुर से ही वहां झांकने लगा। भवन निर्माण ठेकेदार और एक मजदूर स्त्री वहां प्रेम प्रसंग में संलग्न थे। लालसिंह को झांकता हुआ देखकर दोनों असहज हो गये। यह वहीं भवन निर्माण ठेकेदार अर्जुन था जो सुबह-सुबह लालसिंह को मजदूर चौक से यहां मजदुरी कराये जाने के उद्देश्य से लेकर आया था। पुरे तीन दिन बाद लालसिंह को आज काम मिला था। वह भी तब जब मजदूर चौक पर काम की तलाश में खड़े एक अन्य मजदूर जीवन ने लालसिंह को समझाया कि इस शहर में अगर मजदूर चौक से प्रतिदिन काम चाहिए तो उसे पहले साईं सेवा मजदुर समिति के कार्यालय  जाकर वहां अपना पंजीयन करवाना होगा। पंजीयन करवाने के उपरांत मजदूर समिति का शुल्क जमा करने के बाद ही उसे काम पर भेजा जायेगा। इतना ही नहीं चौक से काम मिलने पर उसे मजदूरी में मिलने वाली दैनिक वेतन धनराशी का पच्चीस प्रतिशत मजदूर समिति के यहां नियम से जमा करना होगा। सुरक्षा की दृष्टि से मजदूर चाहने वाले ठेकेदार और अन्य लोग समिति के यहां पंजीकृत मजदूर को ही अपने साथ ले जाते है। क्योंकि कुछ अनहोनी घटना घटित होने पर समिति इसकी जवाबदेही सुनिश्चित करती है। अन्य मजदूर भी ऐसा ही करते है यह सोचकर लालसिंह ने साईं सेवा मजदूर समिति में अपना नाम, पता आदि लिखवा दिया। उसने वहां पांच सौ रूपये शुल्क भी जमा करवा दिये। वह गांव से जितने रूपये लाया था, सभी खत्म हो चूके थे। अब उसे काम की नितांत आवश्यकता थी वर्ना भूखो मरने की नौबत आने वाली थी। भवन निर्माण ठेकेदार अर्जुन और महिला मजदूर कजरी के संबंध के विषय में वह सोच ही रहा था की भोजनावकाश की घण्टी बज गई। सभी मजदूर इकठ्ठा होकर भोजन करने बैठ गए। कजरी भी अन्य महिला मजदूरों के साथ भोजन कर रही थी। वह लालसिंह से नज़र नहीं मिला पा रही थी। कजरी को डर था कि अभी नया-नया काम पर आया मजदूर लालसिंह कहीं अन्य मजदूरों के सम्मुख उसकी पोल न खोल दे! भोजनावकाश समाप्त हो कर निर्माण कार्य पुनः आरंभ हो गया। मशीनों के शोर में मजदूरों की बातें साइलेन्ट मंचीय अभिनय जैसी प्रतित हो रही थी। कजरी ने लालसिंह का हाथ पकड़ा और उसे एकांत में ले जाकर कहा--

"देख! तुने जो भी देखा है न! यदि किसी को बताया तो समझ ले तेरा यहां से पत्ता साफ। समझा।" आकस्मिक आक्रमण से लालसिंह कुछ घबरा गया। 

"बोल किसी से कहेगा तो नहीं?" कजरी ने पुनः दोहराया।

"नहीं मैं किसी से नहीं कहूंगा।" लालसिंह सम्भलकर बोला।

"शाबास! तुने जो देखा, उसे तुरंत भूल जा।" कजरी बोली।

"ठीक है।" गोपाल ने विनम्रता से कहा।

"अच्छा चल जा! अपना काम पुरा कर!"

कजरी ने रौबदार आवाज में लालसिंह को निर्देश दिया। अर्जुन ठेकेदार की कजरी पर विशेष कृपा थी, लालसिंह यह जान चूका था। सो पानी में रहकर मगरमच्छ से कौन बैर करे? यह विचारकर वह भी अन्य मजदूरों के समान सबकुछ जानकर भी अनजान बनने का ढोंग करने लगा।

पहले दिन की मजदुरी के बदले उसे तीन सौ रूपये मिले। पिच्चतहर रूपये उसे मजदूर समिति में कमीशन के रूप में जमा करने पड़े। अगले दिन काम पर जाने के लिए यह कमीशन जमा करना बहुत ही आवश्यक था। लालसिंह ने भाड़े पर एक कमरा लिया। स्वयं खाना पकाया और खाने लगा। लालसिंह की यह अब नियमित दिनचर्या हो गई।

एक शाम काम से मजदूरों की छुट्टी होने में कुछ विलंब हो चुका था। अर्जुन ठेकेदार ने सुबह ही सभी मजदूरों को कह दिया था की आज चौदहवीं मंजिल की छत भराई जाना है, सो सभी मजदूर विलंब से घर जायेगें। विलंब का सभी मजदूरों को सौ-सौ रूपये अतिरिक्त मेहनताना दिया जायेगा। रात के आठ बज चुके थे। छत भराई जाने का काम अन्तिम चरण में था। लालसिंह वहीं मजदूरों के निवास के लिए बनाई गई अस्थायी झोपड़ी में पानी पीने के उद्देश्य से गया। पास ही की एक अन्य झोपड़ी में कजरी और अर्जुन ठेकेदार के बीच किसी विषय को लेकर बहस चल रही थी। लालसिंह ने पानी पीया और पास ही की अन्य झोपड़ी में झाँककर देखने का प्रयास किया, जहां कजरी और अर्जुन ठेकेदार बहस कर रहे थे। अर्जुन ठेकेदार क्रोधित था। अर्जुन ने कजरी को गाल पर जोरदार तमाचा जड़ दिया और गुस्से में वहां से बाहर निकल गया। लालसिंह का दुर्भाग्य था कि कजरी ने उसे पुनः देख लिया। लालसिंह को यकीन हो गया की अब उसका दाना-पानी यहां से निश्चित ही बंद हो जायेगा। क्योंकि यदि कजरी उसकी शिकायत अर्जुन ठेकेदार से कर देगी तब अवश्य ही वह लालसिंह को काम से बाहर निकाल देगा। कजरी ने लालसिंह की शिकायत नहीं की। अपितु उसके लिए वहीं निर्माण स्थल पर ठहरने की व्यवस्था उपहार स्वरुप कर दी। ताकी उसका मासिक मकान भाड़ा भी बचे और उसे मजदुरी का कमीशन भी नहीं देना पड़े। कजरी की कृपा पर लालसिंह कृतार्थ तो था मगर अब भी वह अर्जुन ठेकेदार और कजरी के संबंध को समझ नहीं पा रहा था। उसे यह तो अवश्य पता था विवाहित पुरूष ही अपनी पत्नी पर संपूर्ण अधिकार रखता है। स्वयं पत्नी भी अपने पति के अलावा किसी अन्य व्यक्ति की मार-पीट या स्नेह को सहन नहीं कर सकती। तब क्या अर्जुन ठेकेदार, कजरी का पति है? कजरी नव युवती होकर सिंदूर से मांग भरती है और गले में मंगलसूत्र भी धारण किये हुए है। मगर लालसिंह को कजरी का पति अब तक दिखाई नहीं दिया। उसे यह अफवाह भी सुनने को मिली थी कि कजरी के पति ने कजरी का परित्याग कर दिया है। वह खण्डवा जिले में रहता है। कजरी अपनी चारों बहनों में सबसे बड़ी है। अन्य तीनों बहन नाबालिग किशोरी है। उसका आठ वर्ष का एक भाई भी है। पिता शराबी और मां परिवार के भोजनादि की व्यवस्था और बच्चों की परवरिश में तल्लीन रहकर अक्सर बीमार रहती है। कजरी ने अपनी मां की मजदुरी दबाव लेकर छुड़वा दी। ताकी वह पुरी तरह स्वस्थ हो सके। कजरी ही उसे दवाखाने लेकर जाती थी। पिता सुरेश को शराब के आगे कुछ याद नहीं रहता। कजरी न होती तो उसकी मां राधा कब की स्वर्ग सिधार जाती और भाई-बहन फुटपाथ पर भीख मांगते हुये नज़र आते। मगर इसे कजरी की दृढ़ इच्छाशक्ति ही कहेंगे कि वह संपूर्ण परिवार को एकता के धागे में पिरोकर उनके भरण-पोषण का दायित्व बहुत अच्छे से निभा रही थी।

अमावस्या की छुट्टी पर लालसिंह और कजरी राशन आदि खरिदने बाजार की ओर निकल पड़े। पैदल-पैदल कुछ दुरी तक चले होगें की लालसिंह ने अपने ह्रदय में उठते अनगिनत सवाल कजरी से एक-एक कर पुछ ही लिये। लालसिंह को कजरी ज्यादा समय तक अंधेरे में नहीं रखना चाहती थी। कजरी ने स्वयं से संबंधित  रहस्योद्घाटन लालसिंह के सम्मुख किये-

"लालसिंह! मैं विवाहित नहीं हुं।"

"फिर ये मांग में सिन्दूर और ये मंगलसूत्र क्यों पहन रखा है?" लालसिंह ने आश्चर्य से पुछा।

"ये सब मेरे रक्षा कवच है लालसिंह! ये इन्हीं की शक्ति है जिसके कारण मैं इतने सालों से इंदौर में सुरक्षित हूं।" कजरी ने बताया।

"लेकिन•••" लालसिंह बोलते-बोलते रूक गया।

"जानती हूं कि तुम अर्जुन ठेकेदार के विषय में जानना चाहते हो? अर्जुन और मेरा रिश्ता वैध नहीं है। वह एक शादी-शुदा और बाल बच्चेदार आदमी है।" कजरी ने सड़क किनारे फुटपाथ पर रखी सिमेन्ट-क्राॅक्रींट निर्मित टेबल पर बैठते हुये कहा।

"फिर तुम उसके साथ ये सब क्यों करती हो?" लालसिंह ने पुछा। वह भी कजरी के पास ही बैठ गया।

"नगर वधु बनने से बचने के लिए मैंने यह स्वीकार किया है।" कजरी बोली।

"क्या मतलब?" लालसिंह ने पूछा।

"अर्जुन मेरी सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा का बन्दोबस्त पिछले दो साल से कर रहा है। उस पर यहां सभी लोगों को पता है कि कजरी, अर्जुन ठेकेदार की स्वामित्व वाली संपत्ति है जिसके कारण चाहते हुये भी कोई मेरी ओर आंख उठाकर देखता भी नहीं है।" कजरी ने स्पष्ट किया।

"मगर ऐसा क्यों? अर्जुन ठेकेदार से सभी मजदूर और कारीगर, मिस्त्री इतना डरते क्यों है?"

लालसिंह ने पुछा।

"अर्जुन शहर का पुराना ठेकेदार होकर भवन निर्माण क्षेत्र में जाना-पहचाना नाम है। उसके पास पुरे वर्ष भर काम की कोई कमी नहीं आती। मिस्री और कारीगरों ने उससे लाखों रूपये अपनी निजी आवश्यकता पुरी करने के लिए एडवांस में ले रखे है। अर्जुन ने लाखों रूपये मजदूरों भी को एडवांस में दिये है ताकी मजदुर और मिस्री उसके पास नियमित रूप से काम करते रहे। एडवांस में दिये गये रूपये के वापस मांगने के डर से भी लोग उससे डरते है।" कजरी ने कहा।

उसने यह भी बताया की अर्जुन ठेकेदार को कजरी का अन्य मजदूर या आगंतुकों से हंसते- मुस्कुराते हुए बात करने पर आपत्ति थी। उस दिन इसी बात को लेकर अर्जुन ने कजरी पर हाथ उठाया था।

कजरी ने स्वयं विवाह नहीं करने का कारण भी लालसिंह को बताया। उसने बताया कि यदि वह विवाह कर लेती है तब उसके भाई-बहन और बीमार मां की देखभाल कौन करता? शराबी पिता पर उसे तनिक भी भरोसा नहीं था। विवाह कर लेने के बाद भी कजरी को मजदुरी ही करनी पड़ती। दिनभर मेहनत-मजदुरी की कमाई अपने पति के हाथ में देनी होगी। फिर बच्चें पैदा करना और उनके लालन-पालन का उत्तरदायित्व आरंभ हो जायेगा। दिन भर मज़दूरी करो, शाम को थके हाल घर लौटकर चूल्हा-चौका फुंको। बच्चों को सम्भालों और शराबी पति की दुत्कार, मार खाओ सो अलग। कजरी को यह जीवन स्वीकार नहीं था। अपने परिवार के साथ रहकर वह स्वतंत्र थी। कजरी बे-रोकटोक परिवार को पाल-पोस रही थी। भाई-बहन को पढ़ना-लिखना सीखा रही थी। विवाहित होने के उपरांत कजरी का पति उसे यह सब करने देगा, इस बात पर उसे संदेह था।

लालसिंह को कजरी की कर्तव्यनिष्ठा ने प्रभावित किया। वह धीरे-धीरे कजरी के प्रति सकारात्मक राय बनाने में सफल रहा। अवसर पाकर लालसिंह ने कजरी को विवाह हेतु प्रस्ताव दे दिया।

"लालसिंह! होश में आओ! न तुम्हारे पास रहने को छत है और न हीं तुम्हारे अन्दर इतना सामर्थ है कि तुम मेरा और मेरे परिवार का भरण-पोषण कर सको!" कजरी गुस्से में आकर बोली।

"जो काम तुम अकेली कर रही हो, वही काम अगर हम दोनों मिलकर करे तो निश्चित ही भविष्य में कोई परेशानी नहीं होगी।" लालसिंह ने दृढ़ता से उत्तर दिया।

कजरी जान चुकी थी की लालसिंह उससे प्रेम करने लगा है। लालसिंह उसके लिए उपयुक्त वर है इसमें कोई संदेह नहीं था किन्तु उन दोनों के परिणय बंधन में सबसे बड़ी बाधा अर्जुन ठेकेदार था। जिसके उपकार तले कजरी श्वांस भी नहीं ले पा रही थी। लालसिंह का दृढ़ संकल्प देखकर कजरी ने उसके साथ मिलकर अर्जुन ठेकेदार का विरोध प्रारंभ कर दिया। लालसिंह अब कारीगर बन चुका था। उसे मिलने वाले पारिश्रमिक में भी पर्याप्त वृद्धि हुई थी। कजरी ने अर्जुन ठेकेदार से एक लाख रूपये अपनी मां के उपचार हेतु उधार लिये थे, उन रूपयों को लालसिंह ने अर्जुन ठेकेदार को चुकता करने में सहयोग किया। कजरी ने भी दुगनी मेहनत कर प्राप्त मजदुरी की राशी को जमा कर अर्जुन ठेकेदार के शोषण से स्वयं को मुक्त करने में सफलता प्राप्त कर ही ली।

लालसिंह जैसा समझदार जीवनसाथी पाने की प्रसन्नता कजरी के साथ-साथ उसके पारिवारिक सदस्यों को भी थी। कुछ ही समय में कजरी और लालसिंह ने स्वयं की जीवन शैली में आश्चर्यजनक बदलाव किया। प्रतिदिन मिलने वाली मजदूरी की राशी को न्यूनतम व्यय कर अधिकतम बचत करना शुरू कर दिया। स्कूल की पढ़ाई के बाद कजरी के भाई-बहन मजदुरी में कजरी की सहायता करना नहीं भुलते। कजरी की मां भी थोड़ा बहुत काम कर कुछ न कुछ मजदुरी से कमा ही लेती।

कजरी के पिता सुरेश ने आत्मग्लानि का आभास होने पर शराब छोड़ दी। अब वो भी अपनी मजदुरी से प्राप्त संपूर्ण राशी किरण के हाथों में देने लगा। लालसिंह ने भवन निर्माण में सहायक उपकरण- संसाधन आदी जुटाने आरंभ कर दिये। शनै: शनैः वह भवन निर्माण के छोटे-मोटे ठेके स्वयं लेने लगा। कजरी और उसके पारिवारिक सहयोग के कारण लालसिंह को पहले से अधिक लाभ होने लगा। लालसिंह ने अपने गाँव से भैया-भाभी को भी बुलवा लिया। देखते ही देखते गोपाल भवन निर्माण ठेकेदार बन गया। कल का मजदुर चौक पर खड़े होकर काम की तलाश में खड़े रहने वाला लालसिंह आज स्वयं चौक से मजदूरों को काम देने लगा था। पारिवारिक परस्पर सहयोग, दृढ़ संकल्प और जीवन में सफल होने की प्रबल भावना के फलस्वरूप कजरी और लालसिंह, गांव छोड़कर शहर आ रहे हर मजदुर के लिए किसी प्रेरणास्रोत से कम नहीं थे। उन दोनों ने अन्य  मजदूरों को सिखाया कि दिन-भर मेहनत-मजदुरी की राशी केवल खाने-पीने में व्यर्थ नष्ट न करे अपितु उसकी संयुक्त बचत करना भी सीखे। सुखद भविष्य के केवल स्वप्न ही न देखे बल्कि उन स्वप्न को पुर्ण करने का पुरूषार्थ भी दिखाये। पारिवारिक सदस्यों द्वारा मिल-जुलकर कार्य संपादन करने से कार्य आनंद के साथ संपूर्णता को प्राप्त करते हुये आशानुरूप सफलता दिलाता है। आवश्यकता अपने उत्तरदायित्व का स्मरण रख निरंतर सद्कदमों पर चलकर भरपूर परिश्रम करने की है। कजरी ने न केवल स्वयं के शोषण का विरोध किया अपितु पति के रूप में लालसिंह को पाकर योजनाबद्ध तरीके से सफलता के लिए सांझा प्रयास किए, जिसमें दोनों सफल हुये।


समाप्त

------------------

प्रमाणीकरण--


कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है।


प्रेरणा-- शहर के विभिन्न चौराहों पर खड़े मजदूरों को ध्यान मे रखकर रचित यह कथा मजदूरों की निम्न आर्थिक दशा का उत्तरदायी उनकी अशिक्षा को स्वीकारती है। अशिक्षित होकर मद्यपान/मदिरापान जैसे व्यसनों में घिरे मजदूर अपनी दिनभर की मेहनत-मजदुरी को व्याभिचार में व्यय कर नष्ट कर देते है। जबकी यही मजदुरी की राशी का संचय यदि पारिवारिक सदस्य मिल-जुलकर करे तब निश्चित रूप से बड़ी धनराशि की प्रतिदिन आवक होकर जीवन शैली में सकारात्मक परिवर्तन अवश्य लाये जा सकते है। जिससे अधूरी शिक्षा को पुर्ण कर भविष्य के सभी ऐश्वर्य सरलता से प्राप्त किये जा सकते है।


लेखक

जितेंद्र शिवहरे

सहायक अध्यापक शा प्रा वि सुरतिपुरा चोरल महू इन्दौर मध्यप्रदेश मोबाइल फोन नंबर

8770870151

7746842533

Myshivhare2018@gmail.com

Jshivhare2015@gmail.com




टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

हरे कांच की चूड़ियां {कहानी} ✍️ जितेंद्र शिवहरे

लव मैरिज- कहानी

तुम, मैं और तुम (कहानी)