सचदेव-कहानी
सचदेव-कहानी
एक कहानी रोज़- 320
अंजु कुछ कहना चाहती थी किन्तु सचदेव ने परिस्थितियां ही ऐसी खड़ी कर दी थी कि वह कुछ भी कह न सकी। अंजु के पूर्व पति महेश भी सिर झूकाये वहीं खड़े थे। अंजु से तलाक लेकर अलग रहने पर अब वे भी पछता रहे थे। सचदेव ने महेश को समझा-बुझाकर उसका अंजु से सामना करवा। महेश को पूर्व पत्नी के सम्मुख खड़ा करने की एक और वजह थी सचदेव के पास। और वह थी अंजु की युवा बेटी सिमरन। सिमरन जाने-अनजाने में अपनी मां अंजु के वर्तमान प्रेमी सचदेव को अपना दिल बैठी थी। यह बात उसने स्वयं सचदेव से कितनी ही बार कही थी। सचदेव संकट में घिर चूके थे। उन्होंने विश्वास में लेकर सर्वप्रथम सिमरन को समझा-बुझाकर शांत किया। सिमरन जैसा चाहती थी, उसी शर्त पर अपनी रजामंदी देकर किसी अनहोनी घटना को सचदेव ने टाल दिया।
सचदेव भलि-भांति जानते थे कि सिमरन को अगर कोई समझा सकता है तो वह है उसके जन्मदाता पिता महेश। सिमरन अपनी मां अंजु से अधिक अपने पिता महेश को मानती थी और महेश भी सिमरन पर जान छिड़कते थे। यद्यपि दोनो बाप-बेटी एक ही शहर में अलग-अलग रहे थे तथापि दोनों के मन एक ही थे। जब भी अवसर मिलता सिमरन अपने पिता से मिलने उनके घर और ऑफिस में बेधड़क पहूंच जाती।
सचदेव के कहने पर महेश ने अपनी बेटी सिमरन को समझाया। उसके सिर पर प्यार भरा हाथ रखकर यथायोग्य लड़के से सिमरन की शादी करवाने का प्रस्ताव दिया। और वह लड़का कोई और नहीं सचदेव का बेटा समीर ही था जो अभी बिजनेस की पढ़ाई करने अमेरीका गया हुआ है। समीर के दंवसे जन्मदिन पर उसकी मां और सचदेव की पत्नी स्मिता केंसर की चपेट में आकर चल बसी। तब से सचदेव ने ही मां-बाप का प्यार देकर समीर को पाल-पोसकर बड़ा किया। सचदेव कपड़ा व्यवसायी थे तथा शहर में बहुत प्रसिद्धी को प्राप्त थे। उनकी कपड़ा मिल के कपड़ो की देश और विदेशों में अच्छी मांग थी। अंजु की गार्मेंट शाॅप में सचदेव की ही मिल से कपड़ा सप्लाई होता था। दोनों के विचारों की समानता कब एक-दूसरे को शादी के एक-दम करीब ले पता ही नहीं चला। दोनों ने दूसरा विवाह करने का निर्णय कर लिया था। इतने मे सिमरन ने इशू खड़ा कर दिया।
महेश ने अपनी तमाम पूर्व गलतियों की अंजु से माफी मांगी। उसने सिमरन और समीर के विवाह की जोरदार वकालत भी की। अंजु को समझने में देर न लगी। 'सचदेव ने किस तरह उसके बिखरे परिवार को फिर से एक कर दिया। और बड़ी से बड़ी अनहोनी घटनाओं को होने से रोक दिया। सचदेव जैसे पुरूष कम ही मिलते है, जो अपने स्वार्थ से अधिक दूसरों की भलाई की न केवल सोचते है बल्की भलाई के कार्य करने में एड़ी-चोटी का जोर लगा देते है।' अंजु विचारों में खोयी थी।
सचदेव को अपने पूनीत कार्यों का प्रतिफल जल्दी ही मिल गया। ममता के रूप में। ममता सबकी पसंद थी। सिमरन और समीर दोनों ने सचदेव को ममता से शादी करने के मना लिया। एक ही मंडप पर तीन-तीन शादीयां चर्चा का विषय थी। क्योंकी ये भारतीय रिश्त-नाते और परंपराओं को पुनः बल प्रदान करने वाला तेजस्वी और अनोखा कदम था। अंजु और महेश पुनः विवाह बंधन में बंध रहे थे तो वहीं सिमरन और समीर अपने जीवन की नयी शुरुआत करने जा रहे थे। वही प्रौढ़ ममता जो बांझत्व के कारण अब तक शादी के बंधन में न बंध सकी, वह और सचदेव अपना शेष जीवन खुशहाल बनाने के लिए एक-दुसरे के हमसफ़र बन रहे थे।
समाप्त
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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमति है।
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जितेन्द्र शिवहरे (लेखक/कवि)
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