आम का प्यार

   *आम का प्यार-व्यंग्य*

         *एक* नये-नये प्रेमी बने युवक से प्रियतमा पार्क में बोली- "मेरे लिए पेड़ से आम तोड़ लाओ!" युवक के माथे पर पसीने की लकीरें साफ बता रही थी कि प्यार में आसमान से चांद-तारें तोड़ना आसान था किन्तु पेड़ पर चढ़कर आम तोड़ना शहर में पले-बढ़े छोरे के बस की बात नहीं थी। किन्तु नवीन प्रेम में आम के कारण खटास न आ जाये, यही सोचकर भारी रिस्क उठाकर बंदा आम के पेड़ पर चढ़ने की कोशिश करने लगा। दो-चार बार फिसला किन्तु जैसे-तैसे पेड़ पर चढ़ने में सफलता प्राप्त कर ही ली। इसके बाद भी आम तक पहूंचना सरल नहीं थी। पचली और कमजोर टहनीयां अंध प्रेमी का मुंह चिढ़ा रही थी। वह ऊपर-नीचे दृष्टिपात करते हुये आम की ओर बढ़ा। प्रेमिका नीचे खड़ी होकर करतल ध्वनि के साथ अपने प्रियतम का उत्साहवर्धन कर रही थी। प्रेमी का दायाँ हाथ आम के एकदम करीब था। उंगलियों ने आम का स्पर्श कर भी लिया था। आकाश में उड़ान भरने की पोजीशन में प्रियतम को आम तोड़ता देख प्रेमीका जोश में 'हुर्रे' चिल्ला बैठी। बस! इतना सुनकर प्रेमी को मानो जोरदार झटका लगा। वह फूल की पंखुड़ी के समान बिखर गया। आनंद के पल भयंकर दर्द की कराहना में परिवर्तित हो गये। प्रियतम मूंह के बल पृथ्वी मां का आलिंगन करते दिखा। प्रियतमा ने प्रेमी को उठाने से पुर्व पेड़ से टूटकर नीचे गिरे आम को उठाया। आम का खट्टा स्वाद उसके रोंगटे खड़ा कर गया। इधर वह प्रियतम किसी को मुंह दिखाने योग्य न रहा। ऊपर के दो और नीचे के दो मिलाकर कुल चार दांत टूटे। दायें हाथ की कौहनी बुरी तरह छील गयी और डाॅक्टर ने बायें पैर में फैक्चर बताया। पुरे एक माह का बेड रेस्ट करने की सलाह दी गयी। पेड़ के नाम से उसे इस कदर फोबिया हुआ कि पेड़ का चित्र देखने भर से सिहर उठता। डाॅक्टर ने दो माह तक पेड़ से और घरवालों ने एक वर्ष तक प्रेमीका से दूर रहने का आदेश जारी कर दिया।


समाप्त

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व्यंग्यकार 

जितेन्द्र शिवहरे

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