दहेज की बाइक-व्यंग्य
दहेज की बाइक-व्यंग्य
बड़े दिनों बाद कवि मित्र घर पर पधारें. द्वार तक लेने गया. वे बाइक से उतर ही रहे थे. मैंने देखा उन्होंने बाइक स्टेण्ड पर खड़ी करने से पुर्व अपनी पतलून की जेब से चाबी निकालकर उसे बंद किया फिर बाइक खड़ी की. दूसरा लाॅक उन्होंने पेट्रोल टंकी का स्वीच ऑफ कर किया. मैं चाहता था की वे जल्दी से जल्दी मुझ तक आये ताकी मैं उनका हृदय लगाकर स्वागत कर सकूं. किन्तु दो-पांच मिनीट वे अपनी मोटरसाइकिल को इधर-उधर से घूरते रहे तथा मुआयना करने लगे कि बाइक ठीक से पार्क है या नहीं. आने-जाने वालों की सुविधा का ध्यान रखना उनकी परहित की भावना प्रदर्शित कर रहा था. जिस पर मुझे गर्व हुआ. किन्तु कवि मित्र मुझे देखकर भी अनदेखा किये जा रहे थे और घूम-घूम कर अपनी बाइक की सुरक्षा की पुख़्ता जांच करने में व्यस्त थे. मैं बोल पड़ा- "आईये श्रीमान! आपकी बाइक यहां सुरक्षित रहेगी." मेरा इतना सुनकर वे मेरे करीब आये. हमारा भरत मिलाप देखकर श्रीमती ने चाय-नाश्ते का भान कराया. हम दोनों मित्र चाय नाश्ते पर टूप पड़े. पुराने दिनों की याद में जी रहे थे. चाय-नाश्ते के बल पर ही कितने ही कवि सम्मेलन निपटा दिये थे. आयोजक पहले ही खुटा लिये करते थे. अगर कवि ने भोजन किया तो मानदेय कम कर दिया जायेगा, न किया तो मानदेय पूरा मिलेगा. मानदेय के लोभ में पेट में केवल नाश्ते का वज़न होता फिर भी माइक पर श्रौताओं के सामने काव्यपाठ करने में एनर्जी कभी कम नहीं हुई. हां! ये और अलग बात थी कि काव्यपाठ समाप्ती पर मंच पर ही कई बार गश्त खाकर गिर पड़ते थे. अन्य कविगण मुर्छित गिरे-पड़े कवि को पोटली के समान एक कोने में लिटा दिता करते. सुबह होते-होते सबकुछ ठीक हो जाता.
बातों ही बातों में मैने कवि मित्र से बाइक की इतनी सुरक्षा क्यों, विषय पर अनगिनत प्रश्न दाग दिये. उन्होंने कहा कि ये सुरक्षा तो कुछ नहीं. स्वयं के घर में बाइक रखने के वे इससे भी अधिक उम्दा इंतज़ाम करते है. सर्वप्रथम सायंकाल सोने से पुर्व बाइक के दोनों टायर निकालकर घर में रख देते है. बाइक की टंकी से संपूर्ण पेट्रोल निकलकर प्लास्टिक केन में भरकर अंदर रख लेते है. बचे हुये बाइक ढांचे को विद्युत पोल के साथ मजबूत लोहे की जंजीरों से बांधकर मोटा ताला जड़ देते है. एक पोस्टर भी बनाया है उन्होंने. जिस पर लिख रख रहा है हेवी करंट. हर सायंकाल यह बोर्ड बाइक ढांचे पर लगा हुआ होता ताकी बाइक चोर सावधान रहे और बाइक से दूर रहे. इतना ही नहीं, नगर के एक चौकीदार को बाइक की सुरक्षा करने के एवज में वे प्रतिमाह वेतन भी देते है. इतना सुनने के बाद भी मेरा प्रश्न वहीं था की बाइक की इतनी कढ़ी सुरुक्षा आखिर क्यों?
उन्होंने मेरी व्याकुलता भांप कर बताना आरंभ किया. वे बोले- "सर्वप्रथम तो यह की मोटरसाइकिल मुझे दहेज में मिली है अत: ससुराल की वस्तु का खयाल रखना तो वैसे भी बनता है. दूसरा कारण यह की हम दोनों पति-पत्नी का प्रेम विवाह था. साले साहब को छोड़ सब राजी हो गये थे. वे मुझे नीचा दिखाने के लिए वचन बद्ध हैं. साले साहब ने मुझे खुली चुनौती दी है आज नहीं तो कल वह मेरी इसी बाइक को चोरी कर ले जायेंगे और यदि वह इसमें कामयाब हुये तो बाइक उनकी. तेश में आकर मैंने भी सहमति दे डाली और कहा कि किसी भी किमत पर वह मेरी मोटरसाइकिल चुरा नहीं सकते. बस तब ही से मैं अपनी बाइक की जेड प्लस सुरक्षा कर रहा हूं."
कवि मित्र के व्याख्यान पर हंसी तो खूब आई किन्तु मुंह दबा के रह गया. मेरा अगला प्रश्न वे समझ चूके थे. स्वयं आगे बोले-"यह बाइक साले साहब को स्वयं दहेज में मिली थी और मेरे सास-ससुर ने घर की माली हालत का हवाला देकर वह बाइक मुझे दहेज में देने के लिए साले साबह को किसी तरह बना लिया था. किन्तु साले साहब की धर्मपत्नी को यह अच्छा नहीं लगा और वो रह-रहकर इस बाइक को पुनः मुझसे छीनकर घर लाने के लिए साले साहब को प्रताड़ित करती रहती थी. साले साहब वर्षों से इस जुगत में है किसी एक दिन मैं लापरवाह हो जाऊं और वह बाइक चुराकर अपने घर ले जाये."
सारा माजरा मुझे समझ आ चूका था. कवि मित्र और उनके साले साहब दोनों, मोटरसाइकिल को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना चुके थे. एक अजीबो-ग़रीब शर्त जीजा-साले के बीच लगी थी जिसे दोनों पूर्ण निष्ठा के साथ पूरी करने में तन-मन और धन से लगे थे.
समाप्त
---------------------------
प्रमाणीकरण- रचना पूर्णता: मौलिक होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। रचना प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमति है।
सर्वाधिकार सुरक्षित
जितेन्द्र शिवहरे (कवि/लेखक)
177 इंदिरा एकता नगर पूर्व रिंग-रोड
मुसाखेड़ी इंदौर मध्यप्रदेश
Mo. bo.
8770870151
7746842533
Jshivhare2015@gmail.com
Myshivhare2018@gmail.com
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें