मायका- कहानी

         मायका-कहानी

      शादी के सात साल के बाद भी पुनम अपनी गृहस्थी में सुखी नहीं थी। इस बार भी वह अपने पति तनिष्क से नाराज होकर मायके जाने की तैयारी में थी। उसकी सबसे अच्छी सहेली सुषमा ये जान चूकी थी। उसने पूनम को शाॅपिंग के बहाने बाहर मिलने बुलाया। 

"पुनम! तुझे ऐसा क्यों लगता है कि अविनाश का प्यार तेरे प्रति अब कम हो गया है।" माॅल कैफे में चाय की चुस्की लेते हुये सुषमा ने पूछा।

"आज कल अविनाश मुझे बिलकुल भूल गये है। घर में सबके बाद मेरा नम्बर आता है।" सुषमा गुस्से में थी।

"क्या तेरे मायके जाने से अविनाश तेरे करीब आ जायेगा?" पुनम ने आगे पूछा।

"नहीं! लेकिन उन्हें मेरी वैल्यू समझ में जरूर आ जायेगी।" पुनम बोली।

"जब तुझे पता है कि अविनाश तेरे बिना कुछ नहीं है फिर मायके जाकर उसे यह एहसास दिलाने की क्या जरूरत है?" सुषमा ने पूछा।

"ताकि वे मुझे उतना ही समय दें जितना शादी के पहले दिया करते थे।" पुनम बोली।

"मैं जानती हूं पुनम! तुम दोनों की लव मैरीज थी। अविनाश तुम्हें काॅलेज के टाइम से प्यार करता था। वह तुम्हारी खुशी के लिए कुछ भी कर सकता था।" सुषमा बोली।

"वहीं तो! लेकिन आज उनके पास मेरे लिए समय ही नहीं है। जब भी कहती हूं बाहर घूमने चलते है, ऑफिस का कोई न कोई बहाना बनाकर टाल देते है।" पुनम बोली।

"अगर ऐसा है तो मैं उससे बात करूंगी। तुम तो जानती हो, अविनाश मेरी बात सुनता है। मैं कहूंगी तो उसे अपनी भूल पर पछतावा होगा और वह तुम्हें पर्याप्त टाइम देगा।" सुषमा बोली।

"लेकिन कहीं वो यह न समझे कि मैंने उनकी मूंह बोली बहन सुषमा से उनकी शिकायत कर दी!" पुनम बोली।

"नहीं! मुझे विश्वास है अविनाश समझेगा और तुम्हें पूरा वक्त और उतना प्यार देगा जितने की तुम अधिकारी हो।" सुषमा बोली।

"थैंक्स सुषमा। मुझे यकिन था तुम जरूर अपने भैया से बात करोगी।" पुनम बोली।

"लेकिन एक बात कहूं! बुरा तो नहीं मानोगी?" सुषमा ने पूछा।

"कहो!" पूनम ने कहा।

"क्या तुम अब भी वैसी ही हो जैसी शादी के पहले हुआ करती थी?" सुषमा ने पूछा।

"क्या मतलब?" पूनम ने पूछा।

"मतलब ये कि जिस तरह अविनाश बदल गया, क्या तुम दावे के साथ कह सकती हो कि तुम बिल्कुल नहीं बदली?" सुषमा ने आगे पूंछा।

पूनम मौन हो गयी। यह प्रश्न उसे सोच की गहराई में ले गया। उसने अपने व्यवहार पर मनन आरंभ कर दिया। शादी के पुर्व और पश्चात के व्यवहारीक जीवन में आये बदलाव को उसने अनुभव किया। उसे समझते देर न लगी की सुषमा ने यह प्रश्न क्यों पूंछा।

"पूनम! तनिष्क का प्यार तेरे लिये कम नहीं हुआ है बल्कि वह बंट गया है। तुझमे और तेरे दोनों बच्चों में। और फिर तनिष्क अब कोई नया नवेला प्रेमी थोड़े ही है जो तेरे आगे पीछे घुमता रहें। एक पति होने के साथ-साथ वह तेरे बच्चों का पिता भी है। एक भाई है और एक बेटा भी। तनिष्क एक कुशल बिजनेसमेन है और अपने व्यवसाय को बढ़ाने और व्यवस्थित तरीके से चलाने में सौ तरह की दिक्कतें होती है, जिससे तनिष्क हर रोज जूझता है। पचास तरह लोगों से हर रोज न चाहते हुये भी मिलना-जुलना पढ़ता है। वह एक सामाजिक प्राणी भी है जहां सामाजिक उत्सवों में सम्मिलित होना, हर तरह के नियमों और मर्यादाओं का पालन करना अतिआवश्यक होता है। सबसे सुन्दर बात पता क्या है! वह यह कि तनिष्क एक अच्छा इंसान है, और वह अच्छा इंसान इसलिए है क्योंकि सभी की कसौटी पर वह खरा उतरने का प्रयास करता है। वह घर और बाहर की जिम्मेदारियां बेहतर ढंग से निभा रहा है। उसे तुम्हारा भी पुरा खयाल है। जब भी समय मिलता है वो तुम्हें और बच्चों सहित पुरी फैमिली को घुमाने ले जाता है। हां! मुझे पता है कि एक औरत को अपने पति का एकांत वाला समय चाहिए होता है जहां दोनों कुछ पल एक साथ गुजारे। और इसके लिए मैं उससे बात करुंगी।" सुषमा ने बात पुरी की।

पूनम चूप थी। वह विचारों में खोयी-खोयी पिछले दिनों उसकी और तनिष्क के बीच हुई बहस के पलों को याद करने लगी। क्या कुछ नहीं कहा उसने तनिष्क को! हालांकि तनिष्क ने भी गुस्सें में पूनम को भला-बूरा कहा किन्तु उसने पूनम को छोड़कर अन्यत्र जाने का कभी सोचा नहीं। पुनम यह रास्ता तनिष्क को अपनी भूल का एहसास कराने के लिए अक्सर अपनाया करती थी। तनिष्क महिने भर में ही सुषमा को उसके मायके से ससुराल लिवाने जा पहुंचता। पूनम ने इसे सदैव तनिष्क की कमजोरी समझा। किन्तु सुषमा के साथ लम्बी बातचीत में उसे अपनी भूल पछतावा हुआ। तनिष्क भी माॅल कैफे में आ पहूंचा। उसे सम्मूख देखकर पूनम हैरत में थी। सुषमा ने बताया कि आज सुबह सबसे पहले तनिष्क ने सुषमा को फोन पर पूनम के मायके जाने वाली बात बता दी थी। वह चाहता था की पूनम मायके जाये किन्तु नाराज होकर नहीं बल्कि प्रसन्न होकर।

"साॅरी पूनम! अगयर मेरी किसी बात का तुम्हें बुरा लगा हो तो!" तनिष्क ने आते ही पूनम से माफी मांग ली।

"अरे नहीं! आप माफी क्यों मांग रह है! गलती मेरी थी। मुझे आपसे माफी मांगनी चाहिये। आई एम साॅरी!" पूनम बोली।

"गलती तुम दोनों की थी। चलो! अब दोनो एक-दुसरे को माफ कर दो।" सुषमा बोली।

दोनों ने एक-दूसरे को माफ कर दिया। सुषमा वहां से चली गयी। तनिष्क ने आज की पुरी शाम पूनम के साथ बिताने का निश्चय किया। पूनम ने भी अब से छोटी-छोटी बात पर मायके चले जाने की प्रवृत्ति त्यागने का संकल्प ले लिया।


समाप्त

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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमति है।


सर्वाधिकार सुरक्षित

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जितेन्द्र शिवहरे (लेखक/कवि)

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