दिल मिल जाते है...! (कहानी)

 *होली विशेष*

*दिल मिल जाते है..! (कहानी)*

     *किसी* की हिम्मत नहीं थी कि प्राजक्ता को रंग लगा सके। होली के रंगों से पता नहीं प्राजक्ता को इतनी चिढ़ क्यों थी! रंग देखते ही वह भड़क जाती थी। बचपन से उसने होली कभी नहीं खेली। अब तक होली पर जबरन रंग लगाने वालें कितनों की तो वह पिटाई कर चूकी थी। मोहल्ले में सभी प्राजक्ता के स्वभाव से परिचित थे। नगर की मुख्य सड़क पर होली की हुड़दंग चल रही हो और यदि प्राजक्ता वहां से गुजरे तो यकायक सभी प्राजक्ता के लिए रास्ता छोड़ देने में ही अपनी भलाई समझते। होली के शोर में भी वह शेरनी अकेली निकल पड़ती। रंग की एक बूंद का छिड़काव भी उसे पसंद नहीं था। प्राजक्ता के इसी गुस्सेल स्वभाव के कारण उसकी शादी में विलंब हो रहा था। शादी योग्य घर आये लड़कों को मुंहतोड़ जवाब देने वाली प्राजक्ता को शादी की कोई जल्दी नहीं थी। लेकिन जैसे ही आदित्य, प्राजक्ता के जीवन में आया, उसने सबकुछ बदल के रख दिया। प्राजक्ता के रिश्ते में दूर की मौसी ने आदित्य का सुझाव प्राजक्ता की शादी के लिए दिया था। आदित्य भेल कम्पनी भोपाल में इंजीनियर था। आदित्य का होली पर प्राजक्ता को देखने आने का प्लान बना। इस बार भी होली पर नगर में प्राजक्ता को लेकर सभी सतर्क थे। होली सप्ताह चल था। बच्चें गली-गली में पिचकारी लेकर धमा-चौकड़ी मचा रहे थे। चाय रस्म के दौरान आदित्य ने प्राजक्ता को देखा और प्राजक्ता ने आदित्य को। आदित्य आश्वस्त था। उसे प्राजक्ता पहली मुलाकात में पसंद आ गयी। प्राजक्ता को भी आदित्य सबसे अलग दिखा। एकांत की मुलाकात में आदित्य ने प्राजक्ता को अपने विषय में बता दिया। प्राजक्ता ने भी अपने गुस्सेल स्वभाव के बारें में आदित्य को बताया। साथ ही कलर्स से उसे चिढ़ है यह भी बताया। आदित्य ने हंसते हुये कहा- "अब रंगों से प्यार करने का समय आ गया है। मैं कल तुम्हें रंगनें आऊगा।"

प्राजक्ता सोच में डूब गयी। यह आदित्य ने क्या कह दिया? बड़ी मुश्किल से तो कोई लड़का उसे पसंद आया था, वह भी होली के रंगों के कारण उससे दूर हो जायेगा। क्योंकी रंगो का छिड़काव प्राजक्ता कभी बर्दाश्त नहीं करेगी। गुस्से में वह आदित्य को कुछ न कुछ कह देगी या थप्पड़ मार देगी। निश्चित ही आदित्य उसे छोड़कर चला जायेगा। इन्हीं विचारों में खोयी प्राजक्ता का मन किया की मोबाइल पर आदित्य से कह दे की होली के दिन वह उसे रंग लगाने न आये। वर्ना उसके हाथों कुछ अनर्थ हो जायेगा। अंनत: उसने आदित्य को फोन लगा कर सावधान करने में ही दोनों के भावि रिश्तें की भलाई समझी। लेकिन आदित्य नहीं माना।

'तड़ाक्!!!' नगर में यह थप्पड़ की आवाज़ जानी पहचानी थी। प्राजक्ता ने घर से निकलकर चौक पर आदित्य को घर आने से रोक दिया। आदित्य कहां मानने वाला था। कार से उतरकर उसने प्राजक्ता के दोनों गालों पर रंग लगा दिया। प्राजक्ता का गुस्सा सातवें आसमान पर था। यह उसी थप्पड़ की गूंज थी जो प्राजक्ता ने आदित्य के गाल पर दे मारा था। थप्पड़ इतना जोरदार था की आदित्य का मुंह थप्पड़ की चोट से घूम चूका था। आदित्य मुस्कुरा रहा था। होली खेल रहे कुछ रहवासी यह दृश्य देख रहे थे। आदित्य का अगला कदम भी साहस भरा था। हाथों में गुलाल भर उसने प्राजक्ता के सिर पर उड़ेल दिया। प्राजक्ता पुर्णतः गुलाबी हो चूकी थी। क्रोधित लड़की प्राजक्ता ने पुनः आदित्य को थप्पड़ जड़ दिया। आदित्य बिना गुलाल के ही गुलाबी हो चुका था।

"तुम जितने चाहे थप्पड़ मार लो! लेकिन इस बार की होली तुम कभी नहीं भूल सकोगी।" आदित्य ने कहा।

"आप चले जाईये यहां से...!" प्राजक्ता बोली।

आदित्य मुड़ा और पास ही होली खेल रहे बच्चों के पास से रंगीन पानी से भरी बाल्टी उठा लाया।

"नहीं! आदित्य! पानी.. नहीं... प्लीज!" प्राजक्ता यहां- वहां भागने लगी।

गाते-बजाते आ रही महिलाओं की टोली से प्राजक्ता जा टकराई। उन्होंने प्राजक्ता को पकड़ लिया।

"अब कहा बचकर जाओगी?" आदित्य ने शेखी बघारते हुये कहा।

प्राजक्ता कि रिक्वेस्ट पर आदित्य ने कोई ध्यान नहीं दिया। उसने पूरी बाल्टी का रंगीन पानी प्राजक्ता पर उड़ेल दिया। प्राजक्ता पूरी तरह भीग गयी। उसके कपड़े रंग-बिरंगें हो गये।

"ले छोरी! अब तु भी रंग दे छोरे को।" महिला टोली में से एक महिला ने प्राजक्ता से कहा।

प्राजक्ता का गुस्सा धीरे-धीरे कम हो रहा था। आदित्य उसे देखकर अब भी मंद ही मंद मुस्कुरा रहा था। प्राजक्ता ने आदित्य से बाल्टी छीन ली। पास रखें पानी के ड्रम से पानी भरकर वह आदित्य के पीछे भागी। आदित्य आसानी से प्राजक्ता के हाथों में आने वाला नहीं था। इतने में सामने से आती पुरुषों की टोली ने आदित्य को पकड़ लिया। प्राजक्ता ने बाल्टी का पानी आदित्य पर उड़ेल दिया और ऊपर से सूखा गुलाल छिड़क दिया। आदित्य भूत हन चूका था। प्राजक्ता की हंसी निकल पड़ी। वह इतना हंसी... इतना हंसी... की उसकी आखें भर आयी। आदित्य ने सच ही कहा था। प्राजक्ता इस बार की होली कभी नहीं भूलेगी। आज के रंग प्राजक्ता को प्रिय लग रहे थे। उसने अपने हाथों पर रंग मला और आदित्य के गालों पर मल दिया। आदित्य ने प्राजक्ता को हृदय से लगा लिया। महिला और पुरूषों की टोली ने उन दोनों पर रंगों की बोछार कर दी। रहवासी अपने-अपने घरों से इन दोनों प्रेमियों पर गुलाबी पानी उड़ेल रहे थे। ढोल की थाप पर लोग थिरकने लगे। साऊंड सिस्टम पर बज रहे होली के गीतों पर सभी झूम रहे थे। आदित्य के हृदय से लगी प्राजक्ता अपने प्रियतम के रंग में रंग चूकी थी। उसने आदित्य को तथा आदित्य ने प्राजक्ता को स्वीकार कर लिया था।


समाप्त

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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमति है।


सर्वाधिकार सुरक्षित

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जितेन्द्र शिवहरे (लेखक/कवि)

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