मिले न मिले हम-कहानी
मिले न मिले हम- कहानी
आयशा का प्यार रूपेश के सिर चढ़ बोल रहा था। दोनों पुर्व प्रेमी थे। किन्तु अब दोनों अपनी-अपनी गृहस्थी में रच-बस चूके थे। रूपेश जब-तब आयशा को अपनाने की जिद कर बैठता। इस बात से आयशा कभी-कभी चिढ़ जाती। उसने रूपेश को बहुत बार समझाया कि प्रेम का अर्थ केवल शारीरिक सुख ही नहीं है अपितु दूर रहकर अपने प्रिय की सलामती की प्रार्थना करना, उसके सुख-दुःख का खयाल रखना भी प्रेम ही है। किन्तु रूपेश कहां मानने वाला था। वह अक्सर आयशा को हृदय से लगाने का प्रयास करता। आयशा असहज होकर प्रतिरोध अवश्य करती किन्तु प्रेम में अधुरी प्रेमिका कब तक स्वयं को रोकती। लेकिन आयशा पछताने वालों में से नहीं थी। उसकी चुलबुली प्रवृत्ति आज भी वैसी ही थी जो शादी के पहले हुआ करती थी। आयशा के नटखट स्वभाव पर ही तो रूपेश फिदा हुआ था। आयशा को रूपेश का लेखन जबरदस्त लगता था। रुपेश एक राइटर था और प्रेम कहानियां लिखने में महारथ हासिल थी उसे। बहुत संघर्षरत होते हुये भी कोई खास पहचान नहीं बना सका था रुपेश। इसी बीच आयशा उसके जीवन में आई! दोनों का प्रेम प्रसंग कुछ माह ही चला था कि आयशा ने अन्यत्र शादी कर ली। क्रोध वश रुपेश ने भी देखे-परखे बिना ही अरेंज मैरीज स्वीकार कर ली। रूपेश चाहता था कि वह आयशा को भूल जाये! लेकिन कुछ ही समय में उसे अनुभव हो गया की वह आयशा को कभी नहीं भुल सकता। आयशा में उसके प्राण बसते थे और अपने प्राण को भुलना, अर्थात् जीवन को भूलना था। आयशा स्वयं रुपेश से बहुत प्यार करती थी, किन्तु अब वह दूसरे कुल की बहु बन चूकी थी जिसके कारण न चाहते हुए भी वह रूपेश को भुलने की कोशिशे करती। रूपेश की कहानियां अक्सर अखबारों में छपा करती। आयशा उन्हें पढ़ना कभी नहीं भूलती। आयशा ईश्वर से सदैव प्रार्थना किया करती कि उसका फेवरिट राइटर रुपेश इतना प्रसिद्ध हो जिससे कि वह आयशा को भूला दे।
"आप समझने को कोशिश क्यों नहीं करते? अब हमारे रास्तें अलग-अलग है!" आयशा ने रूपेश से कहा। वह रूपेश से मिलने शहर के एक रेस्तरां में आई थी।
"आयशा! मैं तुम्हें कभी नहीं भूल सकता। तुम मेरा पहला और आखिरी प्यार हो!" रूपेश ने आयशा का हाथ अपने हाथ मे लेते हुये कहा।
"रूपेश! मैं जानती हूं। मैं स्वयं तुम्हें नहीं भुल सकती। लेकिन मैं चाहती हूं हमारा रिश्ता ऐसा हो जिस पर बाद में हमें शर्मिन्दा न होना पड़े।" आयशा बोली।
"लेकिन मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता।" रूपेश बोला। उसने आयशा का हाथ चूम लिया।
"रूपेश! तुम एक राइटर हो! अपनी भावनाओं को नियंत्रित करना तुम्हें आता है। मैं चाहती हूं तुम इतना आगे बढ़ों, जहां मैं गर्व से कह सकूं की हां! रुपेश मुझसे और मैं रूपेश से प्रेम करती हूं।" आयशा ने रूपेश के हाथों पर अपना हाथ रखते हुये कह दिया।
आयशा ने रूपेश को समझाया कि दोनों के रास्ते अब अलग-अलग हो चूके है। उन दोनों को अपने-अपने जीवनसाथी को धोखा देने का कोई अधिकार नहीं है। परस्पर प्रेम की पवित्रता को बनायें रखना उन दोनों की साझां जिम्मेदारी है ताकि इसे पाप न कहा जाएं। इस बात को समझने में रूपेश को वक्त लगा। वह अच्छे से जानता था कि न तो वह नया-नवेला प्यार में पड़ा कोई आशिक है और न हीं आयशा सोलह साल की कोई कुवांरी लड़की, जो दोनों सबकुछ भुलकर इश्क को स्वीकार करें और ज़माने के खिलाफ़ इंकलाब कर दें। रूपेश और आयशा में इतनी काॅमन च़ीजें होती की दोनों स्वयं को एक-दूसरे के प्रति समर्पित करने से रोक नहीं सकते थे। मसलन मोबाईल चैटिंग करते-करते दोनों की मोबाइल बैटरी एक साथ खत्म होती। दोनों की शादी एक ही दिन हुई और यहाँ तक की दोनों के यहाँ दो बेटियां हुई।
आयशा की शुष्क बातों से रूष्ठ होकर रूपेश कुछ दिनों से आयशा का फोन नहीं उठा रहा था। आयशा मायूस हो गयी। दिन गुजरते रहे। रूपेश का कहीं कुछ अता-पता नहीं था। कुछ दिनों से उसने सोशल मीडिया पर कहानी पोस्ट करना बंद कर दी थी। आयशा व्याकुल हो उठी। उसने अपने स्तर पर जांच पड़ताल की किन्तु रूपेश का कहीं कुछ पता नहीं चला। एक दिन उसने खबरों में देखा। रूपेश की कोई फिल्म आने वाली थी जो रूपेश ने लिखी थी। यह एक बोल्ड वेबसीरीज थी जिसमें अन्य लेखकों के साथ रुपेश भी सम्मिलित था। संयोग से फिल्म चल निकली। रुपेश वयस्क विषयों पर कमाल का लेखन करने के लिए जाना जाता था। यही कारण था कि धीरे-धीरे बोल्ड विषयों के बहुत से ऑफर उसके पास आने लगे। वर्तमान स्थितियों में वह कामुकता को खोजने और सही ढंग से प्रस्तुत करने में उसे महारथ हासिल थी। हांलाकि रुपेश की बहुत आलोचना भी होती। संस्कृति परिषद वाले रूपेश और उसकी लेखन के सख्त खिलाफ थे। इन सबके बाबजूद रुपेश अपने काम में लगा रहा। एक टीवी चैनल में साक्षात्कार के समय उसने अपनी सफलता के विषय में बताया- "हर सफल आदमी के पीछे किसी न किसी औरत का हाथ होता है। मेरी सफलता के पीछे मेरी मां और पत्नी के बाद अगर सबसे ज्यादा योगदान रहा तो वह है मेरी सबसे बड़ी प्रशंसक आयशा का। आज मैं जहां भी हूं आयशा की बदौलत हूं। आयशा ने मेरे लेखन को न केवल प्रोत्साहित किया वरन उसे निखारा भी है।" रूपेश बोला।
"क्या आप आयशा जी से प्रेम करते थे?" साक्षात्कार लेने वाली महिला ने पूछा।
आयशा यह साक्षात्कार अपने मोबाइल पर देख रही थी और रुपेश की पत्नी सीमा भी। दोनों की सांसे रुक गयी। रुपेश अब क्या कहेगा! यह सुनने के लिए हर कोई उत्सुक था। टीवी चैनल बदलते हुये आयशा के पति शेखर ने रूपेश को पहचान लिया। वह रूपेश का साक्षात्कार देखने लगे। आयशा अपने कमरे में थी।
"जी हां। मैं आयशा से प्रेम करता हूं।" रूपेश बोला।
"लेकिन आप शादीशुदा है उसके बाद भी।" साक्षात्कार लेने वाली महिला ने पुछा।
"जी! मैं यहां तक आयशा के प्रेम की बदौलत ही पहुंच सका हूं। और हमारा प्यार पाप नहीं जिसे छिपाया जा सके। आयशा भी मुझे प्यार करती है। वह भी शादीशुदा है। हम दोनों का प्रेम पवित्र है जिसे मैं गर्व से स्वीकार करता हूं। देखीये! मेरी आंखें शर्म से झुकी नहीं है जिससे स्पष्ट है हमारा प्यार कितना पवित्र और पुनित है।" रूपेश बोला।
आयशा की आंखें भीग चूकी थी। बेडरूम में अचानक आ पहूंचे शेखर को देखकर वह अपने आसूं पोंछने लगी।
"झिझकने की कोई जरूरत नहीं आयशा! मैं जानता हूं तुम भी रूपेश से प्यार करती हो और तुम्हारा प्रेम निश्कलंक है।" शेखर बोला।
आयशा उठी और शेखर के हृदय से जा लगी।
"तुम अक्सर पूंछती थी न! कि मुझे आधा लिवर डोनेट करने वाला कौन है?" शेखर ने पूँछा।
"हां! बताईये वह महापुरुष कौन है?" आयशा ने पूछा।
"वह रूपेश ही है। उसने तुम्हें बताने को मना किया था लेकिन मुझे यह बताने में अब कोई झिझक नहीं है। रूपेश ने केवल अपना आधा लीवर मुझे देगा बल्की ऑपरेशन के चालिस लाख भी वहन करेगा।" शेखर बोला।
आयशा मौन खड़ी थी।
"मैंने उसे कितना समझाया कि ऐसा न करें! मगर मेरी एक न सुनी। कहता है मेरे पास जो कुछ है वह आयशा के कारण ही है। और यह आयशा के काम न आ सके तो इस नाम और धन-दौलत का क्या औचित्य।" शेखर बोला।
अगले दिन आयशा और रुपेश दिल्ली एम्स के लिए रवाना हो गये। जहां रूपेश और सीमा उन दोनों की प्रतिक्षा कर रहे थे। दिल्ली के एम्स में शेखर के लीवर ट्रांसप्लांट की सभी तैयारियाँ पुर्ण हो चूकी थी। कुछ पलों के लिए आयशा और रुपेश एकांत में थे। आयशा की आंखें भीगी थी। रूपेश भी न चाहते हुये रो रहा था। बहुत समय के बाद दोनों मिले। जैसे मिलकर भी न मिलें और न मिलते हुये भी मिल गये।
आयशा, रुपेश के पैर छूने के लिए आगे बढ़ी।
"नहीं आयशा! तुम साधारण महिला नहीं हो। देवी हो। और मैं तुम्हारा भक्त। और भक्त देवी के चरण छूता है। यही होता आया है।" रूपेश बोला।
"हमारा प्रेम संसार के लिए एक उदाहरण बनेगा। ऐसा प्यार जहां बिना कोई स्वार्थ के प्रेमी परस्पर अपना सर्वस्व न्योछावर कर देते है।" आयशा बोली।
"नि:संदेह! आओ। कल होने वाले शेखर के ऑपरेशन के लिए ईश्वय से प्रार्थना करें।" दोनों हाॅस्पीटल परिसर स्थित मंदिर में ईश्वर के समझ हाथ जोड़कर खड़े हो गये। पीछे से शेखर और सीमा भी आ पहुंचे। वे भी ईशवर के समझ नतमस्तक हो गये।
समाप्त
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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमति है।
सर्वाधिकार सुरक्षित
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जितेन्द्र शिवहरे (लेखक/कवि)
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