तेरी गलियां-कहानी भाग-3
तेरी गलियां कहानी भाग-3
*कितना* सुन्दर सपना था। अजय और महिमा एक हो चुके थे। उन दोनों में बेहिसाब प्यार था। अजय तो महिमा पर जान छिड़कता था। महिमा भी अजय को अपनी जान से ज्यादा प्यार करती। दोनों की गृहस्थी हंसी-खुशी चल निकली थी।
तब ही महिमा ने दिवार पर टंगी घड़ी की ओर देखा। दोपहर के तीन बज रहे थे। 'क्या ये सपना सच होगा!' महिमा सोच रही थी। इतने में मंयक बाहर से दौड़ता हुआ आया।
"दीदी! फोन है, ये लो!" मयंक बोला.
"किसका है?" महिमा ने बिस्तर पर उठते हुये पूछा.
"मुन्ना का है!" मयंक बोला।
महिमा ने फोन कान पर लगाया। फोन पर मुन्ना की बातें सुनकर एक पल महिमा को यकिन नहीं हुआ। किन्तु अगली आवाज जाॅन की थी। उसने भी वही बात दोहराई जो मुन्ना ने कही थी। महिमा के पैरों तले जमीन खिसक गयी। अब वह क्या करे? कहां जाये? किससे मदद मांगे? छोटा मयंक जैसे-तैसे महिमा को ढांढस बंधा रहा था. महिमा ने तय किया कि वह हाॅस्पीटल जायेगी. किन्तु ऐसे माहौल में उसका हाॅस्पीटल जाना क्या ठीक रहेगा? वह अजय से मिलना चाहती थी. किसी भी किमत पर.
अजय हाॅस्पीटल के बेड पर लेटे-लेटे महिमा के ही विषय में सोच रहा था। महिमा की बातों ने अजय को अपने काॅलेज की सहपाठी कविता की याद दिला दी थी।
'ऐसी ही तो थी कविता भी! प्यार-महोब्बत को बकवास समझने वाली! प्यार में पागल लड़कों से नफरत करने वाली। मर्दों को सिर्फ प्यार करना आता है, निभाना नहीं! यही बात कविता भी कहा करती थी। वह एक अच्छी वक्ता थी। कितने लड़के उस पर मरते थे। मगर मजाल है कोई उसके आस-पास भी फटक सके!'
अजय काॅलेज की उन स्मृतियों में खो गया जब वह कविता से पहली बार मिला था। उस समय काॅलेज में यूथ फेस्टिवल चल रहा था। काॅलेज सभागार में वाद-विवाद प्रतियोगिता होने वाली थी। कविता विपक्ष में बोलने वाली थी। गिने-चुने विद्यार्थीयों ने ही डिबेट कॉम्पिटिशन में भाग लिया था।
मंच पर कविता की बारी आने की सभी प्रतिक्षा कर रहे थे। वह एक प्रसिद्ध डिबेटर थी. कविता के सामने बमुश्किल ही प्रतियोगी टीक पाते. विद्यार्थीयों से समूचा हाॅल भर चूका था। अतिथियों संग काॅलेज प्राचार्य सुमेरसिंह शौभायमान थे। 'दिग्भ्रमित युवा और उसके कर्तव्य' विषय पर जैसे ही कविता को मंच पर अपने विचार रखने आमन्त्रित किया गया, उपस्थित छात्रों द्वारा तालियों की गढ़गढ़ाहाट से हाॅल गुंजायमान हो उठा। कविता विषय के विपक्ष में बोलने वाली थी।
"दिग्भ्रमित युवा और उसके कर्तव्य' विषय के विपक्ष में बोलने में मुझे जरा भी कमजोर कढ़ी दिखाई नहीं देती." कविता ने बोलना शुरू किया।
"यह कोई धारणा नहीं है वरन सौ प्रतिशत सत्य है कि आज का युवा विशेषकर युवक अपने कर्तव्य पथ से भटका हुआ है। और यह भटकाव वह स्वयं में खुद लाया है। बॉलिवुड फिल्मी सितारें को अपना आदर्श मान बैठा युवा आजकल हेल्थ जिम में घंटों पसीना बहाकर सिर्फ बाॅडी बनाने में लगा है। वह अपना शरीर मात्र स्वयं को खुबसुरत दिखने के लिए बनाता है. लड़कीयों को प्रभावित करने में वह कोई कसर नहीं छोड़ता. आज का युवा संस्कार हीन होता जा रहा है या यूं कहूं कि अंदर ही अंदर वह खोखला हो गया है तो भी गल़त नहीं होगा. बहन-बेटियों के सामाने शेखी बघारने वाला वर्तमान युवा घर के छोटे-छोटे काम करना भी अपनी शान के खिलाफ समझता है. वह अपनी मां, अपनी बहन और अपने भगवान समान पिता से ऐसा बर्ताव करता है मानों जैसे वे लोग इस बेटे का जरखरीद गुलाम हो।" कविता ने अब दहाड़ा शुरू कर दिया था. पुरे हाॅल में पिन ड्राप साईलेंस स्वतः निर्मित हो गया.
"आज का युवक फैशन की चकाचौंध में अंधा हो चुका है. उसे जरा भी अपने कर्त्तव्यों का बोध नहीं है। वह तो हर सयम एक माॅडल कि तरह दिखना चाहता है। हवा में सिगरेट के धुंए के छल्ले उड़ाता हुआ युवा नशे का आदि हो चूका है। बीयर और शाराब पीने को अपनी शान समझने वाला युवक कमजोर और बेसहारों की मदद करने में अपना किमती समय नष्ट नहीं करता। इस देश में छत्रपति शिवाजी, चन्द्रशेखर आजाद, भगतसिंह जैसे देशभक्त अब सिर्फ किस्से-कहानीयों में ही जीवित बचे है। वीर पुरूष तो अब पैदा होने ही बंद हो गये।" कविता बोल रही थी। यह कविता ने क्या कह दिया था। सभी भौच्चकें होकर कविता को देख रहे थे। उसकी सहेलियां अवश्य कविता का मनोबल बढ़ा रही थी।
अब अजय की बारी थी। 'पता नहीं अजय कविता के सामने टीक भी पायेगा या नहीं?' उपस्थित सभी के दिल में यह प्रश्न कौंध रहा था। क्योंकि अजय की प्रवृत्ति शुरू से ही धीर-गंभीर और शांति प्रिय स्टेडेंट की रही थी। अजय का नाम पुकराते ही वह स्टेज पर जा पहूंचा। तालियों का स्वर अवश्य धीमा था। मगर अजय के सहपाठी दोस्त अपने उसका उत्साहवर्धन जोशो-खरोश के साथ कर रहे थे.
"अभी-अभी कविता जी ने डिबेट के विषय के विपक्ष में बातें की। मैं कविता जी के तर्को से सहमत नहीं हूं।" अजय ने बोलना शुरू किया।
"जिस तरह हाथों की ऊंगलियां एक समान नहीं होती, ठीक उसी तरह युवाओं के संबंध में यह राय बना लेना कि आज का युवा दिग्भ्रमित और कर्तव्य से विमुख हो गया है, यह कैसे मान लिया जाये? जब-जब देश को युवाओं की आवश्यकता पड़ी है तब-तब जबसे पहले युवाओं ने आगे बढ़कर देश की सेवा करने में अपना सर्वस्व बलिदान किया है। और उसकी जीती जागती मिशाल है हमारे देश की सीमाओं पर तैनात सैनिक! जो सर्दी-गर्मी और बरसात को सहते हुये अपना कर्तव्य निभाते-निभाते शहीद हो जाते है।" अजय बोल रहा था।
मंचासिन गणमान्य अतिथियों सहित सामने बैठे श्रौता अजय को ध्यान से सुन रहे थे।
"कविता जी ने कहा कि युवक अपने कॅरियर के प्रति लापरवाही होकर जिम में पसीना बहाना ज्यादा पसंद करता है। मैं तो ये कहूंगा कि उत्तम स्वास्थ्य सबसे बड़ा धन होता है और हम सभी का यह दायित्व बनता है कि इस धन को सदैव सहेजकर सुरक्षित रखें। वो कहावत तो हम सभी ने सुनी होगी कि शरीर एक मंदिर है और मंदिर को साफ-स्वस्थ और स्वच्छ रखने से हमारे आसपास के अन्य लोग प्रेरित होकर फिटनेस पर ध्यान देते है। स्वस्थ शरीर में स्वस्थ विचार पनपते है तथा देश और समाज के प्रति उत्तरदात्व का बोध इन्हीं विचारों में समाहित होता है। शारीरिक रूप से फिट युवा हर क्षेत्र में अपनी काबलियत के झंडे गाड़ देता है। वह अपना प्रत्येक कार्य समझदारी और बहादुरी से पूर्ण करता है। एक डाॅक्टर, वकील, शिक्षक, पुलिस-प्रशासन सभी क्षेत्र में युवाओं का बोलबाला है। और ये युवा दिग्भ्रमित और कर्तव्य से विमुख नहीं है क्योंकि यदि ऐसा होता तो हम यहाँ अभी जो चैन की सांसे ले रहे वह कदापि नहीं ले रहा होते।" अजय ने आगे कहा।
"हम युवाओं के आदर्श आज भी स्वामी विवेकानंद जी है, एपीजे अब्दुल कलाम है, डाॅ. अम्बेडकर है! जिनके पदचिन्हों पर चलते हुये आज का युवा देश सेवा के नित्य नये कीर्तिमान खड़े कर रहा है। हमारा तो एक ही सपना है कि अपनी अंतिम सास तक देश और देश वासियों की सेवा करते रहे। चाहे वह किसी भी रूप में हो। हम युवा हर परिस्थिति में अपने देश और समाज का नाम रोशन करने के निरंतर प्रयास करते रहेंगे। जीयेंगे तो देश के लिए और मरेंगे तो देश के लिए। जय हिन्द। बोलिये मेरे साथ भारत माता कीssss जय! वंदेssss मातरम्! जय हिन्द जय भारत!" अजय बोल चूका था। इन तालियों की गड़गड़ाहट में कविता की भी तालियां सम्मिलित थी। अजय और कविता दोनों ही पक्ष और विपक्ष में प्रथम-प्रथम पुरुस्कार के हकदार घोषित हुये।
"आपने अच्छी स्पीच दी।" कविता ने अजय से कहा। कार्यक्रम समाप्त हो चुका था। सभी लौट रहे थे। हाॅल के बाहर कविता ने अजय को रोक लिया।
"थैंक्स! आपकी प्रस्तुति भी जोरदार थी। बधाई।" अजय ने कविता से कहा।
"थैंक्स!" कविता बोली।
अजय अपने दोस्तों को ढूंढ रहा था। उसका चेहरे पर परेशानी के भाव थे।
"क्या हुआ? आपकी नज़रे किसे ढूंढ रही हैं?" कविता ने अजय से पूछा।
"कुछ नहीं। बस युं ही!" अजय बात को टालते हुये बोला।
"फ्रेंड्स?" कविता ने हाथ आगे बढ़ाते हुये कहा।
अजय को कविता से दोस्ती करने में कोई दिक्कत नहीं थी। उसने कविता से हाथ मिलाया। दोनों दोस्त बन चूके थे।
"लगता है आपने डिबेट की तैयारी बहुत अच्छे से की थी।" कविता ने कहा।
"अरे कहां! मुझे तो खुद एक घंटे पहले पता चला कि मैं भी डिबेट में हिस्सा ले रहा हूं।" अजय बोला।
"क्या कहा? मैं कुछ समझी नहीं?" कविता बोली।
"मुझे भी कुछ समझ नहीं आया। दरअसल हुआ युं कि मेरे कमीने दोस्तों ने मुझे बताये बिना मेरा नाम डिबेट कॉम्पिटिशन में लिखवा दिया। और जब हाॅल में जैसे ही मेरा नाम पुकारा गया मैं शाॅक्ड था।! मगर मरता क्या न करता? मुझे मजबूरी में स्टेज पर आना पड़ा। जो मुंह में आया बकता गया।" अजय बोला।
"ये क्या कह रहे आप? बिना कोई तैयारी के इतनी अच्छी स्पीच। ओह माय गाॅड! आप तो जीनियस है!" कविता बोली।
इतने में अजय को उसके दोस्त जय और भानु दिखाई दिये। उसने दौड़कर उन्हें पकड़ लिया। यह देखकर कविता हंस पढ़ी। अजय और उसके दोनों दोस्त झुमा झटकी कर रहे थे। पुनः कविता को देखकर अजय ने खुद को संभाला। जय और भानु ने कान पकड़ कर अजय से अपने किये की माफी मांगी। अजय ने गले लगाकर दोनों को माफ कर दिया।
कविता अजय से बाय बोलकर घर लौट गयी। कविता के कानों में अजय का वक्तव्य गुंज रहा था। वह न चाहते हुये भी अजय के करीब होती जा रही थी। उसने अजय के विषय में छोटी-मोटी जानकारी जुटाना शुरू कर दिया। अजय की पसंद-नापसंद सभी पर बहुत रिसर्च किया। फिर वह दिन भी आया जब उसे स्वयं स्वीकार करना पड़ा की वह अजय से प्यार करने लगी है। मगर अजय को यह सब बताने की सोच कर ही वह पानी-पानी हो जाती। अजय जब भी उसके सामने आता, वह मोहपाश में बंध जाती। उसकी जुबान लड़खड़ाने लगती। वह चाहती थी कि अजय भी उससे उतना ही प्रेम करे जितना कविता उससे करती है। यह स्थिति अजय भांप चुका था। कविता की मनःस्थिति को जानते हुये भी अजय नासमझी का ढोंग करता। वह कविता से दुरी बनाये रखने और अपनी पढ़ाई पर फोकस करने की कोशिश करता। मगर कविता के चेहरे की व्याकुलता उसे भी तड़पा जाती। वह चाहता था कि कविता प्यार-व्यार भूलकर अपनी पढ़ाई पर ध्यान केन्द्रित करे। मगर जैसे वह खुद इस कार्य में असफल हो रहा था वैसे कविता भी पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे पा रही थी। फलतः दोनों थर्ड सेमेस्टर की परिक्षा में फैल हो गये। समूचे काॅलेज के लिए तह एक महान आश्चर्य का विषय था। काॅलेज प्रोसेसर तक आश्चर्य में थे कि महाविद्यालय के दो होनहार छात्र परिक्षा में इस बूरी तरह कैसे फैल हो सकते है?
क्रमशः .......
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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमति है।
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जितेन्द्र शिवहरे (लेखक/कवि)
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*नोट- कहानी का अगला भाग जल्दी ही आपके समझ होगा। फिडबैक अवश्य देवें। और हां लाइक, शेयर और कमेंट्स करना ना भूलें।*
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