प्रीत की रीत
*प्रीत की रीत-कहानी*
*डाॅक्टर* चांदनी ने मास्क उतारा और सीधे बाथरूम में नहाने चली गयी. स्कूल का होम वर्क पूर्ण कर करिश्मा अपनी मां चांदनी के लिए चाय बनाने लगी.
"तुझे पता है करिश्मा! आज रतन अंकल ने क्या किया?" चांदनी ने चाय का पहला घूंट पीते हुये कहा.
"अब क्या किया रतन अंकल ने!" करिश्मा ने पूछा.
"आज उसने मुझे प्रपोज किया?" डाॅ चांदनी बोली.
"व्हाट! मुझे लगा ही था कि वो आपकी हमदर्दी को प्यार समझ बैंठेंगे." करिश्मा ने कहा.
"क्या कहूं? मना कर दूं?" डाॅ चांदनी ने पूछा.
"ऑफकोर्स माॅम! आप कहां और रतन अंकल कहा? आप एक एबीबीएस डाॅक्टर है और वो सड़क छाप मुजरीम! आपको तो उन्हें तब ही पुलिस के हवाले कर देना चाहिए था जब वो रेमडीसीविर इंजेक्शन की कालाबाजारी कर रहे थे!" करिश्मा ने कहा.
"दिल का बुरा नहीं है रतन!" चांदनी बोली.
"तब क्या आप उन्हें मेरे दूसरे पापा बनाने की सोच रही है?" करिश्मा ने पूछा.
"अगर हमे तेरे पहले पापा अविजीत से छुटकारा चाहिये तो मुझे रतन ने से दूसरी शादी करनी ही होगी." डाॅ. चांदनी के चेहरे पर चिंता के भाव उभर आये थे.
चौदह वर्षीय करिश्मा भी अविजीत की प्रताड़ना अपनी आंखों से देख चूकी थी. डाॅ. अविजीत, डाॅ. चादनी के साथ मारपीट के चलते जेल की हवा खा चूके थे. उस पर दहेज प्रताड़ना का केस भी चल रहा था. डाॅ. चादनी अपनी बेटी करिश्मा के भविष्य के लिए हर कीमत पर डाॅ. अविजीत से छुटकारा चाहती थी. उस रात पूलिस से भागते हुये जब रतन ने एक रात का आसरा डाॅ चादनी के घर में लिया तब चांदनी को रतन में अपने सुरक्षित भविष्य की कुछ संभावनाएं दिखी. रतन छोटा-मोटा चोर था. वह थोड़े से पैसों के लिए दवाईयों की कालाबजारी करता था. रतन गज़ब का दिलेर था. पुलिस को चकमा देने में माहिर। चांदनी ने उसे सिर्फ एक शर्त पर बचाया था कि अब से वह दवाईयों की कालाबाजारी नहीं करेगा. बल्की आवश्यकता पड़ने पर जरूरत मंदों की मदद भी करेगा. डाॅ. चांदनी की खुबसूरती और बड़े प्यार से बातचीत करने के अंदाज ने रतन को चांदनी का दीवाना बना दिया. वह सबकुछ भूलकर चांदनी के कहे अनुसार चलने लगा. चांदनी ने रतन को शहर के हाॅस्पीटल में सुपरवाजर के काम पर लगवा दिया.
अविजीत तब तक चांदनी का कुछ नहीं बिगाड़ सकता था जब तक रतन चांदनी की ढाल बनकर खड़ा था. करिश्मा भले ही रतन को पसंद नहीं करती किन्तु उसकी पनाह में सुरक्षित होने का एहसास करिश्मा ने भी अनुभव किया था. वह रतन द्वारा उसकी मां के इर्द-गिर्द बने रहने पर एक ओर जहां नाराज रहती तो वही अविजीत से सुरक्षा देता रतन का साथ भी उसे रूचिकर लगता. अविजीत के कदम बहके तो दवाईयों की कालाबाजारी में संलिप्त कुछ दवाई व्यापारियों से जा मिला. वह जमकर पैसा कमा रहा था. पैसों के बल पर अविजीत ने रतन को रेमडीसीविर इंजेक्शन की कालाबाजारी के झूठे आरोप में जेल भिजवा दिया. डाॅ. चांदनी और करिश्मा ने अविजीत का विरोध किया और रतन को जमानत पर रिहा करवाने में एड़ी चोट का जोर लगा दिया. रतन जेल से बाहर आया. उसे अब अविजीत से बदला लेना था. लेकिन डाॅ. चांदनी ने अपनी कस़म देकर उसे रोक लिया. इधर डाॅ. चांदनी को रतन को जेल से छुड़ाने का परिणाम अपनी नौकरी खोकर चूकाना पड़ा. एप्पल हाॅस्पीटल ने छंटनी के नाम पर डाॅ चांदनी को हाॅस्पीटल से निकाल दिया. धीरे-धीरे चांदनी के हाथ से अन्य हाॅस्पीटल की सेवायें भी छूट गयीं. लेकिन चांदनी ने हिम्मत नहीं हारी. उसने पर्सनल क्लीनिक खोलकर वहां प्रैक्टिस शुरू कर दी.
"तुमने ऐसा क्यों किया रतन? अविजीत तो तुम्हारे खून का प्यासा था." डाॅ चांदनी ने पूछा.
रतन कोविड हास्पीटल में एडमीड था. डाॅ. अविजीत जब कोरोना संक्रमित हुये तब उनके आसपास कोई न था. रतन ने स्वयं की जान पर खेलकर अविजीत को हाॅस्पीटल में एडमिट करवाया.
"पता नहीं चादनी! बस मुझे लगा की करिश्मा के पिता मदद करनी चाहिये. और मैं आ गया उन्हें हाॅस्पीटल लेकर." रतन ने डाॅ चांदनी से कहा।
करिश्मा के हृदय में रतन के लिए इज्जत और भी बड़ गयी. चांदनी न चाहते हुते भी रतन के विषय में सोचए पर मजबूर थी.
अविजीत की सेवा करते हुये रतन कोरोना संक्रमित हो गया था. चांदनी हाॅस्पीटल में रतन से मिलने जा पहूंची आई. डाक्टर होने के नाते उसने रतन की बहुत देखभाल की.
"रतन! तुम जितना प्रेम मुझे करते हो, उससे थोड़ा भी करिश्मा से कर सको तो तुम्हारा मुझ पर उपकार होगा." डाॅ. चांदनी बोली.
"करिश्मा को मैं अपनी बेटी मान चूका हूं और तुम्हें डर है कि कहीं हमारी अपनी संतान होने पर मैं करिश्मा को भुला दूंगा तो मैं वादा करता हूं, हम अपनी संतान पैदा ही नहीं करेंगे." रतन बोला.
डाॅ.चांदनी की आखें भर आयी. वह रतन के हृदय से जा लगी.
रतन जब चांदनी के घर आया तब वहां अविजीत भी था. अविजीत भी अब बिल्कुल बदल चूका था. डाॅ. चांदनी किसे स्वीकार करें और किसे अस्वीकार? यह यक्ष प्रश्न था. अविजीत और रतन दोनों ही डाॅ. चांदनी को आशा भरी नज़रों से देख रहे थे. डाॅ. चांदनी ने अपने जीवन के इस महत्वपूर्ण निर्णय को लेने का अधिकार करिश्मा को दे दिया था. करिश्मा जिसे अपना पिता स्वीकार करेगी चांदनी उसी से दूसरी शादी करेगी.
करिश्मा दबे पैर से आगे बढ़ी. अविजीत और रतन दोनों ही चाहते थे कि करिश्मा उन्हें चुनें ताकि वे डाॅ. चांदनी से से शादी कर सके.
"मुझे आप दोनों ही पसंद नहीं है. मैंने माॅम के लिए कहीं ओर बात की है. ममा के लिए डा. शशिकांत ही ठीक है. अब आप दोनों ममा को भूलकर नया जीवन शुरू करें." करिश्मा ने यह क्या बोल दिया था. अब ये डाॅ. शशिकान्त कौन है? किसी को कुछ पता नहीं था, सिवाएं करिश्मा के. अविजीत और रतन जा चुके थे.
"कौन है ये डाॅ. शशिकान्त?" डाॅ चांदनी ने पूछा.
"कोई नहीं है ममा. दोनों को एक साथ इंकार करने का मैंने बहाना था." करिश्मा ने बताया.
डाॅ. चांदनी थोड़ा अपसेट थी. उन्हें विश्वास था कि करिश्मा रतन का चयन अवश्य करेगी. लेकिन रतन को भी अस्वीकार कर करिश्मा ने उसे चौंका दिया था. अगले दिन सुबह डाॅ चांदनी के द्वार पर किसी ने दस्तक दी.
"रतन तुम!" डाॅ चांदनी बोली.
"हां मैं! मुझे भले ही करिश्मा ने अस्वीकार कर दिया हो. लेकिन हम अच्छे दोस्त तो बने रह सकते है न!" रतन बोला.
करिश्मा को इससे कोई ऐतराज नहीं था. रतन के निःस्वार्थ समर्पण के आगे करिश्मा भी पिगल गयी. उसे लगने लगा की उसकी माॅम के रतन ही सर्वश्रेष्ट है. फिर क्या था! उसने रतन को अपना पिता स्वीकार कर ही लिया. डाॅ चांदनी एक बार फिर दुल्हन बनी. उसकी सुन्दरता पर हर कोई मोहित था. अविजीत भी शुभकामनाएं देने आया. उसने अपना जीवन नये सिरे से और ईमानदारी के साथ शुरू किया. रतन ने डाॅ चांदनी की मांग भरकर उसके सभी दुःखों का अंत कर दिया. करिश्मा अपनी मां की शादी में इतनी खुश थी जितनी पहले कभी नहीं थी.
समाप्त
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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमति है।
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जितेन्द्र शिवहरे (लेखक/कवि)
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