न बोले तुम न मैंने कुछ कहा
*न बोले तुम न मैंने कुछ कहा-कहानी*
*मैहर* अपने दिल की बात विवेक से कहना चाहती थी। मगर उसे डर था कि कहीं विवेक इंकार न कर दे! यह कड़वा सच था कि मैहर विधवा थी। उसकी अभी उम्र ही क्या थी? बाइसवें साल में शादी हुई। और शादी के छ: महिने बाद ही एक नांव दुर्घटना में उसके पति अगंद का असामायिक निधन हो गया। ससुराल वालों की बेरूखी मैहर सह न सकी। वह सब कुछ छोड़कर अपने मायके आ बसी। यहां भी वह किसी पर बोझ नहीं बनना चाहती थी। उसने जाॅब करना शुरू कर दिया। शहर के प्रतिष्ठित क्लीनिक में वह रिशेप्शनिस्ट थी। यहां विवेक अक्सर आया करता था। वह एक मेडिकल रिप्रेजेन्टीटिव था। दोनों में अच्छी दोस्ती हो गयी। मोबाइल पर भी दोनों अक्सर बातें किया करते। मैहर जाने कब अपना दिल विवेक को दे बैठी थी उसे पता ही नहीं चला! मैहर की सहेली तान्या ने उसे कहा कि वह अपने हृदय की बात विवेक को बता दे। किन्तु मैहर मानसिक रूप से तैयार नहीं थी। उसे तो भरोसा हो चला था कि विवेक भी उसे पसंद करता है और आज नहीं तो कल वह स्वयं मैहर को प्रपोज करेगा। मैहर का भाई राकेश चाहता था कि जल्दी से जल्दी मैहर की दूसरी शादी कर दी जायें। मैहर और राकेश के माता-पिता अब इस दुनियां में नहीं थे। अतः राकेश को ही सबकुछ करना था। मैहर की भाभी सुनिता ने मैहर के लिए कई लड़के दिखाये! किन्तु मैहर को उनमें से कोई पसंद नहीं आया। इस कारण सुनिता जब-तब मैहर पर बरस पड़ती। मैहर भी ईंट का जवाब पत्थर से देती। वह आत्मनिर्भर थी तथा अपने जीवन का यह महत्वपूर्ण फैसला वह स्वयं करना चाहती थी। उसने अपने भाई राकेश को साफ-साफ कह दिया था की वह सही समय आने पर दूसरी शादी अवश्य करेगी। राकेश और सुनिता निश्चिंत होकर अपने-अपने काम में लग गये। इधर जब एक दिन विवेक की सगाई की न्यूज मैहर के कानों में पड़ी तो वह बिफर पड़ी। उसके आसूं थे कि रूकने का नाम नहीं ले रहे थे। तान्या ने उसे बहुत समझाया! दिलासा देकर शांत करना चाहा किन्तु मैहर का दिल टूट चूका था। उसने विवेक से बे-पनाह मोहब्बत कि थी। उसे यकिन हो चला था कि विवेक भी उसे प्यार करता है। किन्तु यूं विवेक द्वारा अचानक किसी दूसरी लड़की से सगाई करने की बात मैहर पचा नहीं पा रही थी। फिर मैहर ने वो किया जो सबको आश्चर्य चकित कर गया। वह विवेक से सगाई पुर्व मिलने जा पहूंची।
"लेकिन मैहर! मैंने कभी तुम्हें इस नज़र से देखा नहीं। हम सिर्फ अच्छे दोस्त है बस!" विवेक ने मैहर से कहा। मैहर जानती थी कि यह एक सफेद झूठ था।
दोनों विवेक के घर की छत पर खड़े होकर बातें कर रहे थे। कुछ ही देर में विवेक की सगाई की रस्म होने वाली थी। नीचे बैठक हाॅल में मेहमानों का आने का सिलसिला जारी था।
"तुम्हे मेरी आंखों में देखकर कभी नहीं लगा कि मैं तुमसे कितना प्रेम करती हूं।" मैहर बोली।
"नहीं! मुझे कभी नहीं लगा।" विवेक पल्ला झाड़ते हुये बोला।
"एक बार अपने दिल पर हाथ रखकर कहो कि तुम मुझसे प्यार नहीं करते?" मैहर रूआंसी होकर बोली।
यह मैहर ने क्या कह दिया था? यह सुनकर विवेक के हृदय में जैसे कोई टीस उठ गयी। वह सोच में पड़ गया। उसे मैहर पसंद थी। मैहर के लिए विवेक अक्सर गिफ्ट लाया करता था। मैहर की पसंद और नापसंद उसे अच्छी तरह मालूम हो चूकी थी। मैहर का साथ विवेक को बहुत खूशी देता था। सनडे कि कितनी ही शाम उन दोनों ने एक साथ बिताई थी। कभी काॅफी शाॅप, पिज्जा हाॅट और पार्क। कहां-कहां नहीं गये दोनों एक साथ? उन्होंने शहर के लगभग सभी रेस्तरां छान मारे। सराफा चौपाटी और छप्पन दुकान की एक-एक दुकान घूम चूके थे। विवेक ने मूवी कभी नहीं देखी। सिनेमा हाॅल में वह मैहर की आंखों में ही डूबा रहता। यही हाल मैहर का भी था। यह सच था कि विवेक ने कभी अपने दिल की बात मैहर को नहीं बताई। मैहर ने भी कभी नहीं कहा की वह विवेक से प्रेम करती है। किन्तु हां! उसने अपने विधवा होने की बात एक दिन विवेक को अवश्य बता दी। मैहर एक विधवा है यह सुनकर विवेक सन्न रह गया। उसके व्यवहार में महान परिवर्तन देखा गया। विवेक ने मैहर से दुरी बनाने के प्रयास आरंभ कर दिये। मैहर यह नोट कर चूकी थी कि विवेक अब पहले की तरह उससे नहीं मिला करता। वह आवश्यक काम-काज से ही मैहर बात करता। लव और रोमान्स तो जैसे विवेक के व्यवहार से छू-मंतर हो चूका था।
"यदि तुम मुझे सिर्फ इसलिए अपनाना नहीं चाहते है कि मैं पुर्व से शादी शुदा हुं और अब एक विधवा स्त्री हूं तो नि:संकोच कह दो। मैं चुपचाप यहां से चली जाऊंगी और फिर लौट कर कभी तुम्हारे पास नहीं आऊंगी।" मैहर ने विवेक से दो टूक कह दिया।
गर्म लू के थपेड़े अब भी चल रहे थे। सायंकाल धीरे-धीरे रात में परिवर्तित हो चुकी थी। विवेक मौन था। वह आत्म मंथन में डूबा था। हां! यह सत्य था कि मात्र विधवा स्त्री होने के कारण विवेक, मैहर को स्वीकार नहीं कर पा रहा था। लेकिन क्या यही था उसका प्रेम! जो उसने कभी मैहर से किया था। यह ओर बात थी कि उसने अपने दिल की बात मैहर को कभी नहीं बताई। मैहर की पुर्व स्थिति को विवेक अपने वर्तमान में स्वीकार क्यों नहीं कर पा रहा? जबकी उसने कितने ही दिवा स्वप्न देखे थे जिनमें मैहर और वह एक साथ हंसी-खुशी से जीवन यापन कर है। क्या उन सपनों का आधार इतना कमजोर था कि जो मैहर के विधवा होने मात्र से टूट गया। यदि मैहर विधवा न होती तो क्या विवेक उसे यूं अकेला छोड़ देता? जो मैहर के साथ हुआ वह विवेक के साथ भी तो हो सकता था। मैहर उसे कभी नहीं छोड़ती। फिर विवेक ये अन्याय मैहर के साथ कैसे कर सकता है?
विवेक, मैहर की ओर पीठ किये खड़ा था। एक दम शांत। मैहर उसके प्रतिउत्तर की प्रतिक्षा में थी। उसकी आंखें खुद-ब-खुद नम हो गयी।
"मुझे माफ कर दो मैहर! मुझे खुद पर ही विश्वास नहीं था कि मैं ठीक से तुम्हारा ख्याल नहीं रख पाया तो? इसलिये तुमसे अपने दिल की बात अब तक नहीं की। लेकिन अब मैं पूरी तरह श्योर हूं। मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता। आई लव यू।" विवेक ने बाहें फैला दी।
नैनों के बांध टूट गये। मैहर अश्रु बहातें हुये मुस्कुरा रही थी। वह दौड़ते हुये विवेक के गले जा लगी। विवेक भी स्वयं को रोक न सका। उसकी आंखों से बहता पानी मैहर के प्रति विवेक का समर्पित प्रेम को दर्शा रहा था। विवेक ने मैहर को बाहों में जकड़ लिया। मैहर ने अपने दोनों हाथ विवेक के इर्द-गिर्द फैला दिये। दोनों के हृदय स्वच्छ हो चुके थे। विवेक ने मैहर के मस्तक को चूम लिया। एक बार फिर मैहर विवेक के सीने में जा छुपी। विवेक ने पूरी दुनियां के सामने विधवा मैहर को अपनाने का ऐलान कर दिया।
समाप्त
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