दौराहा-कहानी
*दौराहा*
*...प्रेम और कर्तव्य का-कहानी*
*स्वास्थ्य* विभाग में नर्स के पद पर कार्यरत हेमा यहां तक युं ही नहीं आई! कढ़ी मेहनत और संघर्ष के बाद वह नर्सिंग स्टाॅफ बन सकी थी. जल्द ही अनिकेत के साथ उसकी शादी होने वाली थी. दोनों की सगाई एक वर्ष पुर्व ही हो चूकी थी. यह हेमा की ही जिद थी कि वह नौकरी लगने के बाद ही शादी करेगी. वर्ना अनिकेत का शादी के लिए उतावलापन किसने नहीं देखा! शादी की तिथि नजदीक थी. दोनों परिवारों में हेमा और अनिकेत की शादी की तैयारीयां शुरू हो चूकी थी. लेकिन कहते है होनी बड़ी होनहार होती है. वह होकर ही रहती है. कोरोना महामारी ने एक बार फिर शहर में ताडंव मचाना शुरू कर दिया था. प्रतिदिन हजारों की संख्या में कोरोना मरीज सामने आ रहे थे. प्रशासन ने सभी कर्मचारियों की छुट्टीयां निरस्त कर दी थी. हेमा को भी पुनः काम पर लौटना पड़ा. अनिकेत बिफर पड़ा. उसने हेमा को नौकरी छोड़ने तक की सलाह दे डाली.
"अनिकेत! इस समय शहर को मेरी जरूरत है और ऐसे में तुम मुझे अपने कर्तव्य से विमुख होने का कह रहे हो." हेमा गुस्से में थी।
"हेमा! इस शादी के दिन का हमें कितनी बेसब्री से इंतजार था। और जब यह दिन आने वाला है तब तुम अपनी नौकरी का हवाला दे रही हो." अनिकेत बोला।
अनिकेत जब नहीं माना तब हेमा ने उसे खूब खरी-खोटी सुना दी. मगर अनिकेत नहीं माना. उसने सगाई तोड़ने तक की धमकी दे डाली. हेमा के लिए यह सचमुच धर्म संकट का समय था. एक तरफ उसका कर्तव्य था तो दूसरी ओर उसका सुखद भविष्य. बड़ी जद्दोजहद के बाद हेमा ने अपने कर्तव्य को चूना. उसने अनिकेत की बेरूखी की परवाह नहीं की. अनिकेत ने हेमा के साथ सगाई तोड़ने की घोषणा कर दी. हेमा को इस बात का बहुत दुःख था किन्तु मरीजों की सेवा के प्रतिफल मिल रही असीम शांति से उसका यह दुःख जाता रहा. वह पूर्ण मनोयोग से अपने कर्तव्य में लगी रही. कुछ दिनों बाद खबर आई की हेमा भी कोरोना संक्रमित हो चूकी है. कार्यरत हाॅस्पीटल में ही हेमा का उपचार चल रहा था. हेमा के साथी उसका पूरा ध्यान रखते. इन सब में सबसे आगे था मेल नर्स कृष्णा. कृष्णा अपने नियमित कार्यों के साथ प्रतिदिन हेमा की खैरीयत जानने अवश्य आता. एक दिन चित्रा के मुख से कृष्णा का हाल-ए-दिल सुनकर हेमा चौंक गयी.
"क्या? कृष्णा मुझसे प्यार करता है? लेकिन कृष्णा से तो तु प्यार करती है न!" स्वास्थ्य लाभ ले चूकी होम क्वारेन्टाइन हेमा बोली.
"हां! लेकिन वह तुझसे प्यार करता है. और मुझे इस बात का पता तब चला जब मैंने कृष्णा को अपने दिल की बात बताई." नर्स चित्रा बोली।
"क्या बताया उसने?" हेमा ने पूछा.
"यही की वह तुझसे बहुत प्यार करता है. और हमेशा करता रहेगा." चित्रा बोली।
"अरे! ऐसा थोड़े ही होता है. आप जब आप अपने दिल की बात सामने वाले को बताओगे नहीं तब तक उसे कैसा पता चलेगा कोई उसे प्यार करता है." हेमा ने कहा।
"कृष्णा कहता है कि ये दिल का मामला है. अगर मुंह से प्यार जताना पड़े तब इसका अर्थ है कि प्यार सिर्फ एक तरफा है." चित्रा बोली।
"बंदे की बात में दम तो है. सीरीयसली! मैंने कभी नहीं सोचा था कि कृष्णा जैसा होनहार और शर्मिला युवक मुझसे प्यार कर सकता है. मुझे तो हमेशा से यही लगता था कि आज नहीं तो कल वह तेरे प्यार को स्वीकार जरूर कर लेगा." हेमा ने कहा।
चित्रा ने हेमा को यह भी बताया कि कृष्णा को अनिकेत और हेमा के रिश्तें के विषय में पता था. इसलिए उसने अब तक कुछ नहीं कहा. उसे हेमा की सगाई टूटने की खुशी नहीं थी वरन वह तो हर किमत पर हेमा को खूश देखना चाहता था. उसे हेमा मिले या न मिले कोई फर्क नहीं पड़ता. हेमा की खुशी में ही कृष्णा की खुशी थी. यह कैसा समय आ गया था हेमा के जीवन में? उसने तो सोचा था कि वह अनिकेत को समझा बुझाकर शादी के लिए पुनः मना लेगी. किन्तु कृष्णा का निस्वार्थ प्रेम उसे सोचने पर मजबूर कर रहा था. उसे अपनी सहेली चित्रा पर गर्व था जिसने बड़ा दिल रखकर अपने और कृष्णा के मन की बात उसे बताई.
हेमा कश्मकश में थी. तब ही कृष्णा उससे मिलने घर आया.
"मेरे विषय में सोचकर दुविधा में मत रहना हेमा. मेरी तरफ से तुम निश्चिन्त रहो. मैं तुम्हारी हर परिस्थिति में तुम्हारे साथ हूं." कृष्णा ने कहा.
"यदि तुम मुझे पहले ही अपने दिल की बात बता देते तो कितना अच्छा होता." हेमा ने कहा.
"हां! ये सही होता. किन्तु उस समय तुम और मैं, हम दोनों अपने-अपने कर्तव्य को निभा रहे थे. हमारे अपने लोगों को हमारी जरूरत थी. ऐसे में अपने निजी प्रेम को जाहिर कर मैं उसका सम्मान कम नहीं करना चाहता था।" कृष्णा ने बताया।
"सच कहा तुमने कृष्णा! इस समय समूचा विश्व कोरोना महामारी से जूझ रहा है इसलिए हमें अपने निजी स्वार्थ को खुद पर हावी नहीं होने देना है." हेमा ने कहा.
द्वार पर खड़ा अनिकेत सबकुछ सुन रहा था. जब उसका हृदय परिवर्तन हुआ तो वह हेमा को मनाने जा पहूंचा. कृष्णा और हेमा की कर्तव्यपरायणता संबंधी बातें सुनकर वह स्वयं को दोनों के सामने बौना समझ रहा था. चित्रा भी वहां आ पहुंची. उसने हेमा को बताया की अनिकेत उसे फिर से अपनाना चाहता है. हेमा के लिए अब कोई दुविधा नहीं थी. उसने अनिकेत से कहा कि वह स्वयं बताये इस समय हेमा का क्या कर्तव्य है? क्या उसे शादी कर गृहस्थी बसा लेना चाहिये अथवा संकट के समय अपने शहर वासियों की सेवा करनी चाहिये? कृष्णा के चेहरे पर संतुष्टी के भाव थे. जैसे वह निश्चिंत था. जो होगा उसमें सभी की भलाई छिपी होगी. बहुत सोच- समझकर अनिकेत ने वह किया जो सभी को आश्चर्य में डूबोने के लिए पर्याप्त था. उसने अपनी भूल पर हेमा से माफी मांगी तथा उसका हाथ कृष्णा के हाथ में सौंपते हुये बोला- 'तुम दोनों एक-दूसरे के लिए ही बने हो. न केवल तुम्हारे विचार एक समान है बल्कि तुम दोनो अपने कर्तव्य को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हो. मैं तुम्हारे सुखद भविष्य की हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं.' अनिकेत के बड्डप्पन ने सबसे अधिक चित्रा को प्रभावित किया था. यह सत्य था की वह कृष्णा से प्रेम करती थी किन्तु कृष्णा अब हेमा का हो चूका और हेमा कृष्णा की. अतएव चित्रा अपने हृदय में अनिकेत को स्थान देने से खुद को रोक न सकी. और जब यह बात हेमा ने स्वयं अनिकेत को बताई तब अनिकेत का रूझान चित्रा के विषय में बढ़ने लगा. धीरे-धीरे अनिकेत और चित्रा ने एक-दूसरे को अपनी जिन्दगी का हमसफ़र बनाने का निर्णय अंततः ले ही लिया.
समाप्त
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जितेन्द्र शिवहरे (लेखक/कवि)
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