दिल न माने- कहानी
*दिल न माने-कहानी*
*ऐसी* बात नहीं है कि सारीका के हृदय में तुषार के लिए कुछ नहीं था. वह मन ही मन तुषार से प्रेम करती थी. किन्तु अभी तक उसने तुषार के प्रेम को स्वीकार नहीं किया था. तुषार इस आशा में था कि आज नहीं तो कल, सारीका उसके प्रेम को अवश्य स्वीकार करेगी.
"इसका अर्थ है कि तुझे तुषार पर विश्वास नहीं! तब ही तो अब तक तुने उसका प्रपोजल एक्सेप्ट नहीं किया?" सारीका की सहेली अविका ने पूछा.
"मुझे तुषार पर भरोसा है या नहीं ये बाद की बात है अविका! पहले मुझे यह देखना है कि तुषार मुझे कितना प्यार करता है? वह मेरे लिए क्या-क्या कर सकता है." सारीका बोली।
"और कितनी परिक्षा लोगी उसकी? तीन साल से तेरे आगे-पीछे भटक रहा है! तेरी हर ख्वाहिश पुरी करता है और तो और तुझसे पूछे बगैर कभी कोई काम नहीं करता." अविका ने कहा।
"तेरी बात सही है. मगर मुझे न जाने क्यों डर-सा लगता है कि कहीं मैंने तुषार के प्यार को स्वीकार कर लिया तो वह मुझसे दूर हो जायेगा." सारिका बोली।
"मैं कुछ समझी नहीं!" अविका बोली।
"पहले मुझे एक बात बता! तेरे और विनोद के साथ सबकुछ वैसा ही है जैसा शादी के पहले था?" सारीका ने पूछा।
"क्या मतलब?" अविका ने भी प्रश्न के बदले प्रश्न पूंछ लिया.
"मतलब यह की क्या विनोद तेरी हर बात मानता है? तुझे उतना ही प्यार करता है जितना शादी के पहले करता था?" सारीका ने आगे पूछा.
अविका चूप हो गयी. विनोद और अविका की लव मैरीज थी. दोनों ने अपने परिवार के विरूद्ध जाकर शादी की थी. विनोद तो अविका के पीछे पागल था. उसकी एक हां पर विनोद सबकुछ कर गुजरने को तैयार रहता था. यही हाल अविका का भी था. उसे विनोद के अतिरिक्त कुछ और नहीं चाहिये था. मायके वालों से लड़-झगड़कर वह विनोद के संग रहने चली आई थी. हां! अविका ने इतना अवश्य नोट किया था की विनोद अब पहले से अधिक जिम्मेदार हो गया था. उसे अपनी गृहस्थी की चिंता सताने लगी थी. वह अविका और स्वयं के लिए वे सभी भौतिक चीज़ें जुटाने के लिए मेहनत कर रहा था जो उन्हें सूख दे सकती थी. इस आपा-थापी में वह अविका के प्रति कुछ लापरवाह-सा हो गया था. अब वह अविका से पूछे बगैर रातभर घर से गायब रहता. पूछने पर काम का बहाना बना देता.
"निश्चित ही परिवार चलाने के लिए व्यक्ति को काम करना पड़ता है किन्तु अपनी पत्नी को भूला दें ऐसा काम का किस काम का?" सारीका ने कहा।
"लेकिन सारिका यही नियति है. जिस तरह समय एक सा नहीं रहता उसी तरह हर इंसान भी एक समान नहीं रह सकता. व्यवहार में परिवर्तन तो होता ही है!" अविका बोली।
"मगर यह सिर्फ पुरूषों के साथ ही क्यों होता है? महिलाओं का प्रेम तो कभी कम नहीं होता। बल्कि वह तो दिनों-दिन बढ़ता ही रहता है! फिर पुरूषों का प्यार समय का साथ कम क्यों हो जाता है?" सारीका ने पूछा।
अविका के पास सारीका के प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं था. सारीका के तर्क प्रभावी थे जिनके प्रतिउत्तर अविका के पास नहीं थे. पुरूष प्रेमी अपनी प्रेमिका के लिए विवाह के पहले जान तक देने को तैयार रहता है. प्रेमिका की छोटी से छोटी इच्छा पूरी करना प्रेमी के जीवन का सबसे बड़ा मक़सद होता है. अपने सारे काम छोड़कर लड़की के इर्द-गिर्द बने रहने में संसार का सुख देखने वाला प्रेमी युवक प्रेमिका की असत्य धारणा या मज़ाक को भी सत्य मान बैठता है. हर समय बेसब्र दिखने वाला युवा प्रेमीका के एक फोन के बदले कई फोन कर डालता है. मैसेज रिप्लाई में असंख्य मैसेज भेज देता है. प्रेमिका को अपने प्रियतम का यह उतावलापन बहुत भांता है. वह जानबूझकर इन पलों का खुलकर आनन्द लेती है. और फिर जीवन भर वह इन पलों को खोजती रहती है. मगर यह पल दौबारा लौटकर नहीं आते. शायद कभी नहीं! इन्हीं विचारों में खोई सारिका तैयार होने अंदर चली गयी. तुषार ने आज उसे मुवी दिखाने का प्राॅमिश किया है. मुवी के बाद दोनों माॅल में जाकर शाॅपिंग करने वाले थे. रात का खाना भी बाहर लेंगे. सारिका ने मन बना लिया था, वह आज तुषार के प्यार को स्वीकार कर शादी के लिए हां कह देगी. भविष्य की चिंता छोड़कर वर्तमान समय को आनन्द और उत्साह के साथ जीने में ही समझदारी थी. यह बात सारीका को देर से ही सही किन्तु समझ में आ गयी. तुषार प्रसन्न था. आखिरकार आज उसने सारिका को पा ही लिया था.
समाप्त
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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमति है।
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जितेन्द्र शिवहरे (लेखक/कवि)
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