तेरी गलियां-कहानी
*तेरी गलियां-कहानी* भाग-1
*शहर* में महिमा 'पिज़्जा वाली दिदी' के नाम से मशहूर थी. अजय पहली बार महिमा के ठेले से पिज्जा खरीद रहा था. उसने सारा शहर छान मारा था लेकिन पिज्जा की सभी बड़ी-बड़ी दुकानें बंद थी. अजय की बहन ने फोन पर उसे पिज्जा वाली दिदी के विषय में बताया. अजय ने महिमा को ढूंढ निकाला. वह शहर में एक ओर स्थित शिव मंदिर के बगल में अपना पिज्जा ठेला कई सालों से चला रही थी. वह पिज्जा अपने हाथों से स्वयं बनाकर देती थी. उसके स्वादिष्ट पिज्जा के चर्चे सोशल मीडिया पर बहूत थे. अजय कुछ देर वहां खड़ा रहा. वह पिज्जा बनाते हुये महिमा को देख रहा था. न जाने क्या आकर्षण था महिमा में. एक पल को भी अजय महिमा से नज़र नहीं हटा पाया. महिमा ने अजय की घूरती नज़रों को भांप लिया. उसने टेड़ी नज़र से अजय को घूरा. अजय झेंप गया. महिमा ने अन्य ग्राहकों को छोड़ सर्वप्रथम अजय का ऑर्डर पूरा किया। पैसे चुका कर अजय वहां से घर लौट आया.
अजय का केवल शरीर अवश्य घर लौटा था. किन्तु आत्मा अब भी वही महिमा के ठेले के पास खड़ी उसे निहार रही थी. रह-रहकर अजय की आंखों के सामने महिमा का चेहरा आ जाता. वह रात भर चैन से सो नहीं सका. सुबह उठकर उसने निश्चय किया कि आज फिर वह महिमा के दर्शन करने वह अवश्य जायेगा. न हुआ तो पिज्जा लेने के बहाने ही वह महिमा को पल भर देख लेगा. अजय की बहन पूजा को उसने बताया की वह आज फिर सभी के लिए पिज्जा लेने जा रहा है. शहर में बंद का माहौल था. ऐसे में पूजा ने अजय को मना किया कि वह बाहर न जाये! अभी कल ही तो सबने पिज्जा खाया था. मगर अजय नहीं माना. उसने अपनी बाइक उठाई और पिज्जा लेने निकल पड़ा. वह शिव मंदिर के कुछ दूर खड़ा था. पिज्जा का ठेला भी वही था. मगर महिमा वहां नहीं थी. उसके साथ काम करने वाला वह छोटा लड़का भी कहीं दिखाई नहीं दे रहा था. देखने से लगता था की महिमा ने आज पिज्जा का ठेला नहीं लगाया. अजय का मन किया कि ठेले के ऊपर पिज्जा पोस्टर पर लिखे मोबाइल नम्बर पर फोन कर पूंछ ले कि महिमा ने आज पिज्जा का ठेला क्यों नहीं लगाया? फिर सोचा कि कहीं फोन लगाने हे बुरा न मान जाये! अजय ने मोबाइल नम्बर सेव कर लिये. फोन लगाने की उसकी हिम्मत नहीं हुई. अजय व्याकुल हो उठा. ऐसा महिमा ने क्यों किया? वह यहां-वहां खोजने लगा. शायद किसी से महिमा के विषय में कुछ पता चल जाये? ठेले के पास ही मंदिर प्रांगम में बैठे एक बुजुर्ग ने बताया कि कल शाम ही पुलिस वालों ने महिमा का पिज्जा ठेला बंद करवा दिया था और भीड़ जमा करने के फलस्वरूप उसे कढ़ी चेतावनी देकर छोड़ दिया. अब महिमा अपने घर से ही पिज्जा बनाकर बेचती है. यदि अजय को पिज्जा चाहिये तो वह महिमा के घर चले जाये.
"यहां से थोड़ी दूर संकरी गली होते हुये नजदीक ही महिमा का घर है." बुजुर्ग ने आगे बताया।
अजय के चेहरे पर प्रसन्नता के भाव उभर आये. वह जल्दी से जल्दी महिमा से मिलना चाहता था. उसने अपनी बाइक एक ओर खड़ी की और पैदल ही राहगीरों से पूंछताछ करते हुये महिमा के घर की ओर निकल पड़ा. कुछ ही पलो में वह महिमा के घर के पास खड़ा था. यहां एक छोटे से काॅऊंन्टर पर महिमा पिज्जा बनाकर बेचती हुई दिखी. अजय लपककर महिमा के पास जा पहूंचा. वह कुछ न बोला. बस टक-टकी लगाये महिमा को देखता रहा. महिमा के छोटे भाई से रहा नहीं गया.
"अंकल! कुछ चाहिये या बस युं ही खड़े-खड़े देखते रहोगे?" मंयक बोला।
महिमा खिलखिलार हंस पड़ी. उसके मोतियों से चमचमाते हुये दांत बरबस ही अजय का हृदय भेद गये. महिमा के चेहरे पर आती बालों की लटे, जो स्वंत्रता से इठलाती हुई कभी उसके गालों पर तो कभी होठों तक जा पहुंचती. महिमा एक हाथ से उन्हें कान के पीछे धकेल देती और पुनः पिज्जा बनाने में व्यस्त हो जाती. अजय बड़ी बारीकी से महिमा के सौन्दर्य का अनुभव कर रहा था.
"ओ साब! कहां खो गये!" मंयक पुनः बोला.
"हां! क्या कहा तुमने?" अजय ने पूछा.
"कुछ चाहिये आपको?" मंयक ने प्रश्न के बदले प्रश्न पूंछा.
"हां! हां! ऐसा करो, पांच पिज्जा बनाकर पैक कर दो." अजय हड़बड़ाहट में बोला.
महिमा से मिलने की बैचेनी अजय के चेहरे पर साफ देखी जा सकती थी. अब तो उसका नियमित महिमा के यहां आना-जाना हो गया. मंयक ने नोट किया कि अजय उसकी बहन महिमा को टक-टकी लगाये बड़ी देर तक घूरा करता. उसने बहुत बार महिमा से अजय की शिकायत की. महिमा ने पहले-पहल इसे मंयक का भ्रम समझा. लेकिन कुछ समय बाद उसे यकिन हो चला था कि अजय उस पर जरूरत से ज्यादा ही ध्यान दे रहा है. अजय को लगा कि महिमा और मंयक दोनों ही उसे शक़ की नज़र से देखने लगे है. अजय अब सप्ताह में एक ही दिन पिज्जा लेने महिमा के घर जाता. मयंक को अजय फूटी आंख नहीं सुहाता. तेश में आकर उसने अपने कुछ पड़ोसीयों को अजय की शिकायत कर दी. मुन्ना और जाॅन गुस्से में आ गये. उन दोनों के पास महिमा को प्रभावित करने का इससे अच्छा कोई तरीका नहीं था. महिमा ने भूतकाल में कभी दोनों के प्यार को ठुकरा दिया था. हो सकता था कि अजय को सबक सिखाने के बहाने महिमा जाॅन या मुन्ना में से किसी एक को अपना लें. अजय को पिज्जा लेने महिमा के घर जाना था. इससे पहले ही जाॅन और मुन्ना ने गली के मोड़ पर अजय को रोक लिया. अजय कुछ समझ पाता इससे पहले ही दोनों ने अजय के साथ मारपीट शुरू कर दी. जब मामला ज्यादा बढ़ गया तब मंयक वहां से रफूचक्कर हो गया. अजय को सिर में चोट आई थी. पुलिस ने जाॅन और मुन्ना, दोनों को गिरफ्तार कर लिया. महिमा को भी पुलिस स्टेशन बुलाया गया. महिमा को देखते है अजय के चेहरे पर प्रसन्नता झलक उठी. उसने जाॅन और मुन्ना को माफ कर दिया था. मंयक महान हैरत में था क्योंकी अजय ने उन दोनों के खिलाफ कोई गवाही नहीं दी थी. मंयक को डर था अजय कहीं उसकी भी शिकायत न कर दे? अजय ने मंयक को जाॅन और मुन्ना के साथ देखा था. लेकिन अजय ने मयंक को भी कुछ नहीं किया. सिर पर पट्टी बांधे अजय पुलिस स्टेशन से बाहर आ गया.
"अजय भैया! मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गयी। मुझे माफ कर दीजिये." मयंक ने अजय से माफी मांगी.
महिमा को समझते देर न लगी. मुन्ना और जाॅन के साथ मयंक भी था. उसे यह ज्ञात हो चुका था.
"मयंक! मुझे तुमसे कोई नाराज़गी नहीं है, तुमने जो भी किया वह एक भाई का फर्ज था." अजय बोला.
महिमा की आंखों में शर्मिन्दी के भाव थे. वह अपने भाई की शरारत पर अजय से माफी मांगना चाहती थी.
"अजय जी...!" महिमा बोली. इससे पुर्व ही अजय बोल पड़ा-"तुम्हें मुझसे माफी मांखने की कोई जरूरत नहीं है महिमा. मैंने सभी को माफ कर दिया है." अजय बोला.
जाॅन और मुन्ना थाने से बाहर निकले. उन दोनों की आंखें निची थी. महिमा दोनों को बड़े गुस्से से देख रही थी. जाॅन और मुन्ना हाथ जोड़कर वहां से घिसक लिये.
"मंयक! मैं तुमसे एक बात कहना चाहता हूं!" अजय चलते-चलते रूक गया।
"बोलिये भैया!" मंयक ने कहा.
महिमा आश्चर्यचकित होकर दोनों की बातें सुन रही थी.
"मैं तुम्हारी दीदी से प्रेम करता हूं और तुम्हें कोई आपत्ति न हो तो मैं महिमा से शादी करना चाहता हूं." अजय बोला.
महिमा और मंयक दोनों एक दूसरे का मुंह ताक रहे थे. वे दोनों इस प्रश्न का क्या उत्तर दे उन्हें समझ नहीं आ रहा था?
"देखो! मैं पढ़ा-लिखा अच्छे परिवार को एक सभ्य लड़का हूं. एक मल्टी नेशनल कम्पनी में जाॅब करता हूं. पचास हजार पर मंथ की सैलेरी है, खुद का मकान है और घर में हम सिर्फ चार मेम्बर है. मैं, मेरी बहन पूजा और माॅम-डैड!" अजय एक सांस में बोल गया.
महिमा हंस पड़ी। मयंक भी मुस्कुरा रहा था.
"शादी के बाद भी महिमा अपने पिज्जा का ठेला लगा सकती है इसमें मुझे कोई आपत्ति नहीं है." अजय ने आगे कहा.
यकायक महिमा के चेहरे पर उदासी के भाव उभर आये. वह अजय से बिना कुछ कहे वहाँ से घर लौट गयी. अजय को बहुत निराशा हुई. शायद अजय का प्रस्ताव महिमा को पसंद नहीं आया या फिर वह किसी ओर से प्यार करती हो? इन्हीं तमाम सारे विचारों में खोया अजय घर लौट गया.
महिमा के जीवन में अजय ने आकर उथल-पुथल मचा दी थी. कितनी खुश थी वह अपने जीवन में! ये प्यार-महोब्बत और शादी जैसे रिश्तों को वह भूला चूकी थी। उसके जीवन का एक ही लक्ष्य था, मयंक को पढ़ा-लिखाकर काबिल इंसान बनाना. माता-पिता का साया उसके सिर से बहुत पहले ही उठ चूका था. विधवा मौसी उसे संभाले हुये थी या यूं कहे कि असहाय राधा मौसी को महिमा ने संभाल रखा था तो भी गल़त नहीं होगा. महिमा न चाहते हुये भी अजय के विषय में सोचने पर विवश थी. रह-रहकर अजय का चेहरा उसकी आंखों के सामने आ जाता. अब तक कितने ही युवकों ने महिमा को प्रेम प्रस्ताव दिया किन्तु तेज-तर्रार महिमा ने किसी के प्रेम को कभी स्वीकार नहीं किया. महिमा माने या न माने किन्तु उसके दिल के किसी कोने में अजय जगह बना चूका था. उसका तो दिल कर रहा था कि वह दौड़कर जाये और अजय के प्यार को स्वीकार कर ले. मगर महिमा को डर था कि अजय को जब महिमा की सच्चाई पता चलेगी तब क्या होगा? अजय अभी प्यार में पड़ा एक नेत्रहीन आशिक है. लेकिन जैसे ही यह नशा उतरेगा वह महिमा से नफरत करने लगेगा. क्या अजय की नफरत महिमा सह पायेगी? 'नहीं! अजय मुझसे नफरत करें, मैं ऐसा नहीं होने दूंगी! मैं अपनी हकीकत अजय पर कभी जाहिर नहीं होने दूंगी!' महिमा सोच रही थी.
क्रमश.....
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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमति है।
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जितेन्द्र शिवहरे (लेखक/कवि)
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