उनसे मिली नज़र-कहानी
उनसे मिली नज़र- कहानी
*प्रतिभा* समझने को तैयार नहीं थी। रेड सिग्नल तोड़ने पर इंस्पेक्टर राजीव ने उसे रोक लिया था। प्रतिभा का तर्क था कि उसके साथ अन्य लोगों ने भी रेड सिग्नल तोड़ा था। फिर उसे ही क्यों पकड़ा? प्रतिभा को भी अन्य लोगों की तरह छोड़ देना चाहिये था। वह बहस करती रही।
"मैं मानता हूं कि पुलिस बल की कमी के कारण हम सभी को नहीं पकड़ सके। और जो लोग सिग्नल तोड़कर भागे है उनके समान आपको बिना जुर्माने के छोड़ देना क्या सही है? नियम सभी के लिए बराबर है और आपने नियम तोड़ा है, जुर्माना तो आपको भरना ही पड़ेगा।" राजीव ने स्पष्ट कह दिया।
जिद की पक्की प्रतिभा चालान भरने को तैयार नहीं थी। उसने अपने स्तर पर प्रसिद्ध हस्तियों को फोन लगाकर कहा कि राजीव से उसकी कार छुड़वा दें। सब-इन्सपेंक्टर राजीव का नाम सुनते ही किसी ने भी प्रतिभा की मदद नहीं की। अंततः प्रतिभा ने कार छोड़ना मुनासिब समझा। जुर्माना भरना उसे उचित नहीं लगा। अब कार कोर्ट के आदेश पर ही छुट सकती थी। प्रतिभा को शुरू से ही पुलिसवाले पसंद नहीं थे। राजीव से मिलकर उसके हृदय में पुलिस के प्रति और भी अधिक नफरत भर गयी।
"अंकल आप कुछ तो कीजिए! आप शहर के डीएसपी है और अगर आपकी भतिजी को कोर्ट से कार छुड़वानी पड़े तो आपकी इस स्थिति का क्या लाभ?" प्रतिभा घर जाने से पहले अपने डीएसपी अंकल सदाकांत मिश्रा से मिलने उनके ऑफिस पहूंची थी।
"बेटी! राजीव एक ईमानदार पुलिस ऑफिसर है। वह किसी किमत पर नहीं मानेगा।" सदाकांत मिश्रा बोले।
"तो आप उसे संस्पेंड कर दो। बड़ा पुलिस वाला बना फिरता है।" प्रतिभा बोली।
"अरे! ऐसे कैसे उसे संस्पेंड कर दूं? बिना कोई गल़ती के। मुझे तो राजीव जैसे ऑफिसर का ट्रांसफर करने का भी अधिकार नहीं हैं।" सदाकांत मिश्रा बोले।
"ठीक है। आप कुछ मत करो। मैं अकेली ही उसे मज़ा चखाने के लिए काफी हूं।" प्रतिभा गुस्से में थी। वह पैर पटकते हुये घर लौट गयी।
अगले दिन राजीव डीएसपी सदाकांत मिश्रा से मिलने उनके घर पहूंचें। सेवानिवृत्त होने पर उनके घर पार्टी का आयोजन था।
"थोड़ा समझा करो राजीव! बड़ा पंगा मत लिया करो। अभी तो हमने समझा बुझाकर प्रतिभा को रोके रखा है। बड़े घर की बेटी है! कुछ भी कर सकती है। समझे।" सदाकांत मिश्रा बोले। स्वागत द्वार पर उन्होंने राजीव को सीख दे डाली।
"मैं समझता हूं सर! लेकिन आप तो जानते है ड्यूटी मेरे लिए मस्ट है। कितनी ही बार बिना कोई उचित कारण के मेरा ट्रांसफर हुआ है। प्रमोशन भी रूका हुआ है क्योंकी मुझ पर बहुत सी जांचें चल रही है। इन सबके बावजूद मैंने अपना कर्तव्य बखूबी निभाया है।" राजीव बोले।
"अच्छा-अच्छा अंदर चलो। पार्टी शुरू हो चूकी है। और हां! उस नकचढ़ी प्रतिभा से जरा दूर ही रहना। क्या पता क्या कर बैठे?" सदाकांत मिश्रा बोले।
"जी सर!" कहता हुआ राजीव पार्टी में सरीक हो गया।
पार्टी में राजीव ने प्रतिभा से दूर रहने की पूरी कोशिश की। प्रतिभा स्वयं राजीव को अवाॅइट करने लगी। राजीव के हाथ में माइक देखकर सभी चौंक गये। सदाकांत मिश्रा ने ईमानदार प्रवृति पर दो शब्द बोलने के राजीव को मना लिया था।
"मुझे पुलिस की नौकरी में लाने के पीछे मेरे पिताजी का मुख्य योगदान है। वे शुरू से ही मुझे पुलिस इन्सपेंक्टर बना हुआ देखना चाहते है। उन्हीं के आदर्श और संस्कार को आत्म सात कर के मैं पुलिस डिपार्टमेंट में आया।" राजीव बोले।
प्रतिभा न चाहते हुये भी राजीव की बातें सुन रही थी।
"मुझे हर रोज़ धमकी भरे कितने ही काॅल आते है। कोई कहता है खड़े-खड़े वर्दी उतरवा दूंगा तो कोई कहता ऐसी जगह ट्रांसफ़र कराऊंगा, जहां से जिन्दा लौटकर नहीं आ सकोगे।" राजीव की भावनात्मक बातें सभी को पसंद आ रही थी।
"मैं कभी किसी से नहीं डरा। तबादले पर तबादले हुये। झूठे प्रकरण में संस्पेंड भी हुआ। मगर अपनी ड्यूटी के साथ कभी गद्दारी नहीं की। महात्मा गांधी की बात बताते हुये पिताजी कहा करते थे कि ईमानदार होने का अर्थ है हजारों सितारों के बीच चंद्रमा बनकर चमकना।" राजीव की बातों ने पार्टी में सम्मोहन सा जगा दिया था।
"मुझे फक्र है कि मेरी ड्यूटी के कारण कभी किसी बेक़सूर को सज़ा नहीं हुई। मैं जीवन की अंतिम सांस तक न कभी रिश्वत लुंगा और न अपने सामने किसी को लेने दूंगा।" राजीव की बातों का तिलिस्म तालियों की गड़गढ़ाहट से टूटा।
राजीव से प्रतिभा प्रभावित हुये बिना न रह सकी। उस दिन राजीव ने प्रतिभा के साथ जो किया किया, वो सही था यह प्रतिभा मान चुकी थी।
"लेकिन बेटी चालिस हजार की तनख्वाह में तुम राजीव के साथ गुजारा कैसे कर पाओगी?" सदाकांत मिश्रा ने पूछा।
"कर लूंगी अंकल! मुझे विश्वास है कि आप राजीव से कहेंगे तब वे आपकी बात जरूर सुनेंगे।" प्रतिभा ने कहा।
"ठीक है बेटी। मैं तुम्हारी और राजीव की शादी की संभावनाएं बनाता हूं।" सदाकांत मिश्रा ने कहा।
प्रतिभा खुश थी । वो सदाकांत मिश्रा के गले लगकर घर लौट गयी। राजीव का जादू प्रतिभा के सिर चढ़कर बोल रहा था। उसने अपने माॅम-डैड को मना लिया था। बस अब राजीव की स्वीकृति मिलने की देर थी।
उस दिन जब स्वयं राजीव ने प्रतिभा को फोन कर मिलने बुलाया तब प्रितभा के पैर जमींन पर नहीं टीक रहे थे। प्रतिभा संज-धंजकर राजीव से मिलने उसके ऑफिस जा पहूंची।
"मुझे पता है राजीव। मैं आपके साथ हर स्थिती में खूश रह लूंगी।" प्रतिभा राजीव से बोली।
"लेकिन शादी के जब तुम अपनी सहेलियों को बंगलों में ऐशो आराम की जिन्दगी बसर करते हुये देखोगी, तब यह प्यार-प्यार सब रफूचक्कर हो जायेगा।" राजीव बोला।
"ठीक है तो अब से मैं भी काम करूंगी। हम दोनों की तनख्वाह से तो घर अच्छे से चल जायेगा।" प्रतिभा बोली।
"प्रतिभा। एक बात रखना। मेरी होने वाली पत्नि मेरी कमजोरी नहीं बल्की मेरी ताकत बनेगी।" राजीव बोलकर ऑफिस से बाहर निकल गया।
प्रतिभा उसके पीछे-पीछे पुलिस जीप तक आ पहूंची।
"प्रतिभा! हर किसी की कुछ न कुछ चाहत होती है। पता है मैं क्या चाहत हूं।" राजीव ने जीप मे बैठकर पूछा।
"क्या?" प्रतिभा ने पूछा। वह राजीव के पास खड़ी थी।
"मैं चाहता हूं कि मेरे खून का एक-एक कत्रा इस देश के काम आये। अगर दौबारा जन्म मिला तब फिर से देश का सिपाही बनकर वतन सेवा करूंगा।" राजीव बोलकर जीप में गश्त पर चला गया। प्रतिभा वही खड़े होकर राजीव की बातों का मनन करने लगी।
प्रतिभा ने बहुत सोच समझकर निर्णय लिया की अब वह भी पुलिस डिपार्टमेंट में नौकरी करेगी। प्रतिभा पढ़ी-लिखी तो थी किन्तु शरीर से बहूत कोमलांगी थी। प्रतिभा ने राजीव से हेल्थ मेन्टेन करने की ट्रेनिंग लेना शुरू कर दिया। रात आठ से दस बजे तक राजीव, प्रतिभा को व्यायाम करवाता। उसे स्टेडिय में दौड़ लगाने का अभ्यास करवाता। अल सुबह ही वह प्रतिभा को नींद से जगाकर रनिंग करवाता। शुर-शुरू में यह सब प्रतिभा के लिए आसान नहीं था। लेकिन चार महिनों के कढ़े अभ्यास के बाद प्रतिभा शारीरिक रूप से बलिष्ठ होती चली गयी। योगा और पंचकर्म क्रिया के सतत पालन से प्रतिभा निखर आयी थी। उसका यौवन देखते ही बनता था। प्रतिभा ने फिटनेस एक्जाम पहले प्रयास में ही क्लिकर कर ली। रिटन एक्जाम में भी उसने माज़ी मार ली। अब उसे एक वर्ष के लिए पुलिस ट्रेनिंग महाविद्यालय में प्रशिक्षण हेतु भेज दिया गया। प्रतिभा राजीव के संपर्क में थी। प्रतिभा के प्रेम के आगे राजीव हार चूका था। उसका समर्पण और देश भक्ति देखकर राजीव ने प्रतिभा से विवाह करने की स्वीकृति दे दी। दोनों का विवाह हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न हुआ।
समाप्त
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जितेन्द्र शिवहरे (लेखक/कवि)
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