भोले बलम जी- कहानी

 *भोले बलम जी-कहानी*

          *निधि* आंगन में बेफ्रिकी में बैठी थी। मोहल्ले की अन्य स्त्रीयां भी वहीं विराजमान थी। मुख्य सड़क से अश्विन बुलेट बाइक पर से वहां आता दिखाई दिया। अश्विन को देखता ही निधि उठी और घर के अंदर चली गयी। उसकी इस हरकत पर महिलाएं मुस्कुरा दी। अश्विन जब भी वहां आता, निधि शरमा कर घर के अंदर भाग खड़ी होती। मोहल्ले के लगभग हर रहवासी ने निधि को शर्माते हुये घर के अंदर बाहर भागते हुये देखा था। यह पारंपरिक संस्कार मोहल्ले में हर किसी को बहुत भाता। निधि और अश्विन की सगाई हो चूकी थी। इस वर्ष आखा तीज पर दोनों के विवाह की तैयारी थी।

अश्विन अधिकतर चूप रहने रहने वालों में से था। जितनी जरूरत हो उतना हो बोलता। उसकी यह अदा कभी-कभी निधि को बहुत खटका करती। वह भी चाहती थी की अश्विन उससे फोन पर घंटों प्यार भरी बातें करें। अन्य लड़कियों को जब वह यही सब करते देखती तो उसका भी ऐसा ही करने को मन करता। मगर अश्विन को तो जैसे अपने विवाह का जैसे कोई उत्साह ही नहीं था। निधि जैसी खुबसूरत युवती से सगाई होने पर भी उसके चेहरे पर हंसी-खुशी के भाव दिखाई नहीं देते। एक-दो बार तो स्वयं निधि ने अपनी सहेलियों के उकसाने पर अश्विन को फोन लगाया। मगर अश्विन ने कोई विशेष बात नहीं की। और न ही उसने दोबारा कभी फोन किया। अश्विन के यह रवैया से निधि दुखी हो जाती। अश्विन को देखकर उसे यही लगता कि वह यह शादी महज एक औपचारिकता पूरी करने के लिए करने वाला था। निधि के साथ कुछ अन्य को भी ऐसा ही लगता। या फिर अश्विन किसी दूसरी लड़की से प्यार करता हो? उसकी कोई मजदूरी रही हो जिसके कारण वह निधि से शादी करने पर विवश हो गया हो। अश्विन के पिता रौबदार व्यक्ति थे। उनके आगे घर में किसी की नही चलती। अश्विन को पिता की आज्ञा माननी पड़ी और वह निधि से शादी करने पर राजी हो गया हो! ऐसे अनगिनत विचार निधि के मन-मस्तिष्क में कौंध रहे थे। वह अश्विन से खुलकर बातें करना चाहती थी। उसे अश्विन के मन की बात जानना थी। इसके बाद यदि उन दोनों की शादी न भी हो तो उसे गम नहीं है।

अश्विन था कि निधि से मिलने के लिए तैयारी नहीं था। मगर निधि ने फोन पर उसे साफ-साफ कह दिया यदि वह निधि से मिलने नहीं आया तब वह यह सगाई तोड़ देगी। सगाई टूटने और बदनामी के डर से अश्विन ने भेंटवार्ता के लिए हां कह दी। खजराना गणेश मंदिर पर निधि ने अश्विन को मिलने बुलाया। लटका का सा मुंह लेकर अश्विन वहां आया।

"अश्विन क्या बात है? विवाह को लेकर अन्य युवाओं की तरह आपमें उत्साह क्यो नहीं है? क्या मैं आपको पसंद नहीं या कोई दूसरी लड़की से आप प्रेम करते हो? जो भी हो वह साफ-साफ मुझे कह दो? मैं आपके साथ हूं!" निधि ने सवालों की बौछार कर दी। अश्विन समझ चुका था कि निधि अब रूकने वाली नहीं। उसे अपने मन की बात बतानी ही होगी।

"निधि! मुझे नहीं पता, यह सब क्या हो रहा है? मुझे लगता है जैसे मेरी आज़ादी छीनने की कोशिश की जा रही है। मुझे जंजीरों में जकड़ने की पुरी तैयारी है। जिम्मेदारियों के भंवर में फंसकर मेरे जवानी के दिन नष्ट हो जायेंगे।" अश्विन बोला।

निधि चाहती थी अश्विन कुछ और बोले।

"मैं एक आवारा बादल की तरह आकाश में उड़ना चाहता हूं। मुझे कोई बंदिशें नहीं चाहिये। मैं...मैं स्वतंत्र और निर्भीक होकर जीवन जीना चाहता हूं, जहां दायित्वों का डर न हो और न ही कोई त्याग, समर्पण करने की मजबूरी हो। विवाह के बाद यही सब तो होता है। मैंने कितना मना किया पिताजी को! लेकिन मेरी बात किसी ने नहीं सुनी। देखना मैं शादी वाले दिन ही घर से भाग जाऊंगा।" अश्विन बोल चूका था।

निधि हंसने लगी। तह देखकर अश्विन को बुरा लगा।

"हंस क्यों रही हो?" अश्विन ने पूछा।

"बस इतनी सी बात! इतनी सी बात पर रोनी सूरत लेकर घूम रहे हो। अगर मैं कहूं कि शादी के बाद भी वैसा ही होगा जैसा आप चाहते हो तो..!" निधि ने पूछा।

"क्या मतलब?" अश्विन ने पूछा।

"मतलब यह कि शादी के बाद भी आप वैसे ही जी सकते है जैसा आप अभी जी रहे है। पूरी स्वतंत्रता से।" निधि ने कहा।

"नहीं! ये नहीं हो सकता। शादी के बाद बीवी-बच्चों में आदमी उलझ ही जाता है। उसका सारा जीवन परिवार को संभालने में चला जाता है। उसका अपना कोई निजी जीवन बचता ही नहीं।" अश्विन बोला।

"और अगर मैं कहूं कि शादी के बाद हम अपने बच्चे पैदा नहीं करेंगे तब?" निधि बोली।

"लोग तुम्हें बांझ कहेंगे। जीना मुश्किल कर देंगे तुम्हारा।" अश्विन बोला।

"वो मेरा मैं देख लुंगी पर तुम किसी भी दायित्व में नहीं रहोगे ये मेरा वचन है।" निधि बोली।

अश्विन विचारणीय मुद्रा में था।

"तुम शादी के बाद भी जब तब कहीं भी आ जा सकोगे। तुम्हें पुरी आजादी होगी। अपने दोस्तों के साथ तुम खूब मस्ती कर सकते है। पिकनिक पर जा सकते हो, मुवी रेस्तरां और जहां तुम्हारा मन करें वहां जा सकते हो।" निधि बोली।

"क्या तुम सच कह रही हो?" अश्विन ने पूछा।

"हां! लेकिन तुम्हारी मौज-मस्ती में यदि एक दोस्त और सम्मिलित हो जाये तो क्या आप उसे अपने दोस्तों में शामिल करोगे?" निधि ने पूछा।

"दोस्त! कौन?" अश्विन ने आगे पूछा।

"मैं! आपकी दोस्त। शादी के बाद मैं आपकी पत्नी नहीं, आपकी दोस्त बनकर रहूंगी। आपके इन्जाॅय में आपका पूरा साथ दूंगी। आपको कभी कोई शिकायत का मौका नहीं दूंगी। बोलिये बनोगे मेरे दोस्त?" निधि ने पूछा। उसने हाथ आगे बढ़ाया।

अश्विन मुस्कुरा दिया। अश्विन ने निधि का हाथ पकड़ लिया। दोनों ने सिध्दि विनायक गणेश जी का आशीर्वाद लिया और मंदिर के बाहर आ गये। अश्विन के चेहरे पर अब निराशा नहीं वरन उत्साह के भाव थे। वह अब पहले की तरह विचारों में खोये रहने वाला अश्विन नहीं था। अब वह चहकने और महकने वाला अश्विन बन चूका था। निधि से मुलाकात कर वह पूरी तरह बदल चूका था। अब वह निधि को दिन में कई-कई बार वह फोन करता। अश्विन पूरी तरह निधि का दीवाना हो चूका था। निधि संतुष्ट थी। उसने अश्विन को अपना बनाने में सफलता हासिल कर ली थी। दोनों जल्द ही परिणय सुत्र में बंध गये।


समाप्त

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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमति है।


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जितेन्द्र शिवहरे (लेखक/कवि)

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