लव मैरीज-कहानी
*लव मैरीज-कहानी*
*"आईये!"* समीर ने अपना हाथ आगे बढ़ाते हुये मुस्कान से कहा।
एक अज़नबी का हाथ अपनी ओर देखकर मुस्कान चौंक गयी। वह अपना हाथ बढ़ाना चाहती थी ताकि रास्ते की बाधा वह पार कर सके। उसकी सहेलीयां पहाड़ चढ़ते हुये उससे कुछ आगे निकल चुकी थी। मुस्कान ने देखा उसके पीछे अन्य लोग आ रहे थे जो उसके आगे बढ़ने की प्रतिक्षा में थे। क्योंकि मुस्कान आगे बढ़े तो उन्हें रास्ता मिलें! वहां मार्ग कुछ टेड़ा-मेढा था। मुस्कान को सहारे की जरूरत अनुभव भी हो रही थी। समीर का हाथ थामने के सिवाये उसके पास कोई उपाय न था। उस अनजान युवक का थाम कर मुस्कान ऊपर की ओर कदम बढ़कार तेजी से चढ़ने लगी। उसने समीर के सहयोग से पर्वत की उस बाधा को पार कर लिया था।
"थैंक्स!" मुस्कान ने समीर से कहा।
"माय प्लेज़र!" कहता हुआ समीर आगे बढ़ गया। वह ऊपर की चलते हुये हुये अपने दोस्तों से जा मिला।
मुस्कान अब पहाड़ के समतल स्थान पर खड़ी थी। समीर के हाथ के स्पर्श सिहरन की वह अब भी अनुभव कर रही थी। संभवतः गैर पुरूष का यह उसका पहला स्पर्श था। जींस टी-शर्ट पहना समीर उसकी आंखों से पलभर में ओझल हो गया।
"अरे! तु यहां खड़े-खड़े क्या कर रही है? चल अभी और ऊपर चढ़ना है।" रंभा अपनी सहेली मुस्कान के पास आकर बोली।
मुस्कान ने उसे डांटा। एक तो उसे पीछे छोड़कर तीनों सहेलियां ऊपर चढ़ गयी। पलटकर देखा भी नहीं। और अब उसे लेट आने पर चिल्ला रहीं है। तान्या, अनिता और अमृता भी वहां आ पहूंची। मुस्कान को साॅरी बोलकर वे पहाड़ चढ़ने लगी।
शिवरात्री पर देवगुराड़ियां पर्वत पर हर वर्ष भव्य मेला आयोजित होता था। पहाड़ चढ़ाई का अनुभव हर कोई लेना चाहता था। शहर से मुस्कान अपनी सहेलियों के हाथ मेला घुमने आई थी। मगर मुस्कान की नज़र अब भी उस नवयुवक को खोज रही थी जिसने उसे पहाड़ चढ़ाई करने में मदद की थी।
"आप शायद मुझे ढूंढ रही है!" समीर अचानक मुस्कान के पास आकर बोला।
पहाड़ की चोटी पर भैरु बाबा का मंदिर था। मुस्कान की सहेलियां पुजा करने के बाद मोबाइल से सेल्फी लेने में व्यस्त थी। मुस्कान भी अपने मोबाइल से वहां के स्थान की वीडियो बना रही थी।
"अरे आप!" मुस्कान बोली।
"हां मैं! मुझे लगा आपकी आखों को ज्यादा इंतजार न करना पड़े इसलिए मैं ही यहां आ गया।" समीर स्टाइल मारते हुये बोला।
"आपको कैसे पता कि मैं आपको ही ढूंढ रही थी?" मुस्कान बोली।
"जो एक बार समीर से मिल लेता है, वह समीर का दिवाना हो जाता है।" समीर बोला।
"आपको गल़तफहमी है। मैं आपको नहीं आपनी सहेलीयों को ढूंढ रही थी।" मुस्कान बोली।
"लेकिन आपकी सहेलियां तो आपके पीछे ही है!" समीर बोला।
मुस्कान ने पलटकर देखा। समीर सच कह रहा था। तान्या, अनिता और अमृता उसी के पीछे फोटो लेने में व्यस्त थीं।
मुस्कान की चोरी पकड़ी गयी थी। वह समीर से नज़रे चुराने लगी।
"देखीये आप...!" मुस्कान बोलना चाहती थी मगर अटक गयी।
"मैं तो कहता हूं आप मेरा नम्बर ले लीजिये। यहां से जाने के बाद अपको मेरी बहुत याद आयेगी। फोन लगाकर बात कर लेना।" समीर नखरे दिखाते हुये बोला।
मुस्कान न चाहते हुये भी मुस्कुराने पर विवश थी।
"कोई जरूरत नहीं है। मैं अनजान लोगों से बात नहीं करती।" कहते हुये मुस्कान मोबाइल से फोटो लेने लगी। जब कुछ देर बाद भी समीर का कोई प्रतिउत्तर नहीं आया तो मुस्कान को हैरत हुई। समीर इतनी जल्दी उसका पिछा छोड़ने वाला नहीं था। लेकिन उसका कोई जवाब नहीं आ रहा था। मोबाइल छोड़कर उसने यहां-वहां देखा। समीर वहां नहीं था। 'कहीं मुझे समीर का भ्रम तो नहीं हुआ था?' मुस्कान ने सोचा।
"कौन था वह लड़का?" तान्या ने आकर मुस्कान से पूछा।
मुस्कान समझ गयी की समीर यहा आया था और यह उसका कोई भ्रम नहीं था।
"कोई नहीं रे! वो पता पूंछ रहा था!" मुस्कान ने जवाब दिया।
"क्या? पता पूंछ रहा था? इस पहाड़ पर?" अनिता आश्चर्य करते हुये बोली।
"अरे! कम से कम झूठ तो ऐसा बोला कर जो गले ऊतरे!" अमृता ने कहा।
"अच्छा बाबा! साॅरी। उसका नाम समीर है, मेरा नम्बर मांग रहा था!" मुस्कान बोली।
"तुने नम्बर तो नहीं दिया न! अजनबियों का क्या भरोसा!" तान्या बोली।
"हां! और वैसे भी मुस्कान के भाईसाहब ने बड़ी मुश्किल से परमिशन दी है उसे मेला घुमने की।" अनिता बोली।
"डोन्ट वरी कुछ नहीं होगा चलो! अब पहाड़ के नीचे भी उतरना है।" मुस्कान बोली।
चारों सहेलियों ने भगवान को प्रणाम किया और पहाड़ नीचे उतरने लगी। जितने लोग पर्वत के नीचे उतर रहे थे उतने ही चढ़ाई भी कर रहे थे। आने-आने की पगडंडी एक ही थी। सभी बहुत संभल-संभल के चढ़ और उतर रहे थे। पर्वत के नीचे खुले मैदान में बड़े-बड़े रंग-बिरंगे झुले लुभा रहे थे। लाल-सफेद रंग की टेंट से बनी विभिन्न दुकानें आकर्षित का केन्द्र थी। मौत के कुएं में दौड़ रही मोटरसाइकिल की मध्यम आवाज पर्वत का सफर कर रहे भक्तों के कानों तक आ रही थी। नीचे का दृश्य मनोरम था। बायपास सड़क पर बड़े-बड़े वाहन एक दम खिलोना गाड़ी की तरह छोटे दिखाई दे रहे थे। पर्वत के इर्द-गिर्द कृषि भूमि पर हरे-भरे खेत का नज़रा बरबस ही मन मोह जाता। ताल और तालाब भी पृथ्वी की सुन्दरता में चार चांद लगा रहे थे।
मुस्कान को अपने समीप जाने क्यों समीर के होने का आभास होता। वह आगे पीछे घूम-घूम कर देखती, मगर समीर दिखाई नहीं देता।
"ठीक से नीचे देखकर ऊतर वर्नी मुंह के बल गिरेगी।" अमृता ने मुस्कान से कहा।
"नहीं गिरूंगी!" मुस्कान बोली।
"और गिरोगी भी तो मैं संभाल लुंगा!' समीर मुस्कान के बगल में चल रहा था।
मुस्कान ने समीर को देखा। वह पुनः चौंक गयीं। उसकी सहेलीयां संभल कर नीचे उतर रही थी।
"तुम?" मुस्कान ने धीमे स्वर में कहा।
"अरे वाह! आप से तुम पर इतनी जल्दी आ गयी!" समीर ने मुस्कराते हुये कहा।
"तुम मेरा पीछा क्यों कर रहे हो?" मुस्कान ने पूछा।
"बता दूं?" समीर ने कहा
"हां!" मुस्कान बोली।
दोनों साथ मे धीमे-धीमे कदम से नीचे ऊतर रहे थे। अन्य लोग भी साथ चल रहे थे।
"तुम मुझे अच्छी लगीं और मुझे तुम्हारे आसपास बने रहना अच्छा लग रहा है!" समीर ने कहा।
"क्या?" मुस्कान ने पूछा।
"हां! यही सच है। अच्छा! चलता हू नीचे मेले में मिलते है!" कहता हुआ समीर तेजी से नीचे ऊतरता हुआ मुस्कान की आखों से ओझल हो गया।
मुस्कान और उसकी सहेलियां थक चूकी थी। वे चारों गन्ने का जूस पीने लगे। लोगों की भीड़ में समीर अब भी मुस्कान को निहारता हुआ यहां-वहां चहलकदमी कर रहा था। पता नहीं मगर मुस्कान, समीर की तरफ खींची चली जा रही थी। समीर का उसके आसपास बने रहना मुस्कान को बहुत ही अच्छा लग रहा था। समीर का साथ उसमें गजब का उत्साह भर जाता।
"आईये! डर नहीं लगने दूंगा।" समीर का हाथ एक बार फिर मुस्कान को साथ होने का आमन्त्रण दे रहा था। मुस्कान की सभी सहेलियां सबसे ऊंचे झूले मे झूलने जा चूकी थी। किन्तु मुस्कान नहीं गयी। उसे ऊंचाई से डर लगता था।
समीर का आमन्त्रण पाकर मुस्कान अंदर ही अंदर उत्साहित थी। वह चाहती थी की वह झुले में बैठ जाएं। लेकिन एक अनजान युवक के साथ वह कैसे झुले में बैठ सकती थी?
"आओ मुस्कान! भरोसा करो मुझ पर। तुम्हारा विश्वास टूटने नहीं दूंगा।" समीर बोला।
मुस्कान जैसे मोहपाश में बंध गयी हो। उसने समीर का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। समीर ने सहारा देकर मुस्कान को झुले मे बैठाया। दोनों आमने समाने बैठ गये। समीर और मुस्कान एक-दुसरे को टक-टकी लगाये बस देख रहे थे। झुला चल पड़ा। मुस्कान की सहेलियां झुले से उतर चूकी थी। वे मुस्कान को ढूंढ रही थी। अमृता की नज़र झुले पर गयी। उसने देखा मुस्कान उसी युवक के साथ झूले में बैठी है जिसे उन्हेंने पहाड़ की चोटी पर मुस्कान से बातें करते हुये देखा था।
तान्या और अनिता भी यह दृश्य देखकर चौंक गयी। जो मुस्कान झुले के नाम तक से डरती थी वह कितने मजे के साथ झूले में बैठी थी। वह समीर से चिपकी हुई थी। बेश़क उसे डर लग रहा था। किन्तु समीर उसे हिम्मत बंधा रहा था। समीर के गले से लगी मुस्कान तिरछी आंखों से बाहर का नज़ारा देख रही थी। अब उसका डर कुछ-कुछ सामान्य होने लगी थी। उसने स्वयं अनुभव किया कि समीर के साथ इस सर्वाधिक बड़े झूले पर बैठकर उसका डर कुछ कम हुआ था। अपनी इस कमजोरी की जीत पर वह प्रसन्न थी। झुले में बैठे-बैठे वह नीचे मेले में बिखरी सुन्दरता का आनन्द ले रही थी। यहां से नीचे वह सबकुछ देख पा रही थी। उसका मन कर रहा था की अपनी दोनों बाहें हवा में खोलकर खड़ी हो जाये! समीर का साथ वह कभी भूल नहीं पायेगी। यह उसे पता था। कुछ ही दूर में वे लोग झूले के नीचे उतर आये।
"तू तो कह रही थी तुझे इस बड़े झूले में झूलने से डर लगता है!" अमृता, मुस्कान पर बरस पड़ी।
"और हमें छोड़ इस लड़के के साथ कितने मज़े से झूला झूल रही थी?" अनिता बोली।
"अच्छा! अच्छा! अब झूला झूल लिया न! अब चलो यहां से!" तान्या बोली।
मुस्कान सफाई देना चाहती थी मगर उसकी सहेलियां सुनने को तैयार न थी। 'समीर को कितना बुरा लगा होगा!' वह सोच रही थी। उसने पीछे मुढ़कर देखा, समीर वहां नहीं था। मुस्कान मुस्कुरा दी।
'समीर मतलब हवा का झोखा!' मुस्कान बड़बड़ाई।
मुस्कान और उसकी सहेलियां अब शाॅपिंग करने में व्यस्त हो गयीं। चूड़ी-कंगन, लाॅकेट और बहुत सी स्त्री सांज-सज्जा की च़ीजें उन्होंने खरीदी। मगर मुस्कान की नज़रें अब भी समीर को खोज रही थी। 'काश! समीर का नम्बर मिल पाता!' मुस्कान सोच रही थी।' शाम होने वाली थी। मेले में आये लोग लोटने लगे थे। मुस्कान की जिद पर उसकी सहेलियां समीर को खोजने लगी थी। किसी तरह समीर का नम्बर मिल जाता। मुस्कान ने उन्हें समझाया अगर समीर एक अच्छा युवक निकला तो वह बात आगे बढ़ायेगी अन्यथा मुस्कान, समीर को भूल जायेगी। उसकी सहेलियां सहमत थी। अच्छा जीवनसाथी मिलना सौभाग्य की बात है। और यदि समीर, मुस्कान के योग्य है तो उन्हें क्या आपत्ति हो सकती थी? मगर यह सब तब होगा जब समीर का मोबाइल नम्बर मिलेगा। बहुत ढूंढने पर भी समीर नहीं मिला। मुस्कान के साथ उसकी सहेलियां भी निराश थी। वे अपनी-अपनी स्कूटी पर घर लौटने की तैयारी में थी। मुस्कान अपनी सहेली अनिता के पीछे स्कूटी पर बैठ गयी। उसने अपना दुपट्टा संभाला। वह डुपट्टे को हाथ में लेकर चौंक गयी। इसके एक कौने पर मोबाइल नम्बर लिखा था। यह समीर ने तब लिखा था जब वे दोनों झूले मे झूल रहे था। मुस्कान चहक उठी। उसने अपनी सहेलियों को बताया। वे भी समीर की कलाकारी मान गयीं। चारो सहेलियां प्रसन्न होकर घर लौट गयीं।
"यह सब कोई सपना लगता है? पिछले वर्ष हम इसी मेले में मिले थे और इस साल पति-पत्नी बनकर मेला घुमने आये है!" मुस्कान ने समीर से कहा।
"मैंने तो पिछले मेले में ही भगवान भोलेनाथ से वर मांग लिया था कि है भगवान ऐसा करना कि अगले मेले में मुस्कान मेरी पत्नी बनकर आपके दर्शनों को मेरे साथ आये।" समीर बोला।
मुस्कान शरमा गयी। दोनों ने सर्वप्रथम भोलेनाथ के दर्शन किये फिर हाथों में हाथ डालें मेला घुमने निकल पड़े।
समाप्त
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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमति है।
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जितेन्द्र शिवहरे (लेखक/कवि)
177, इंदिरा एकता नगर पूर्व रिंग रोड चौराहा
मुसाखेड़ी इंदौर मध्यप्रदेश
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8770870151
7756842633
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