परित्यक्तता-कहानी

    *परित्यक्तता-कहानी*

       *रिचा* के विषय में जो सुनता, उसकी समझदारी और बहादुरी की दाद देना नहीं भूलता। जीवन के सबसे कठिन समय में भी रिचा ने ध्यैर्य नहीं खोया। पहले पति अमोघ से उसका रिश्ता तीन साल से ज्यादा नहीं चला। शादी के छ: महिने में ही अमोघ और रिचा के बीच मुपमुटाव आ गया, जो एक वर्ष बाद कचहरी जा पहूंचा। वहां प्रकरण पूरे दो साल चला। अमोघ की एक न चली। रिचा को अमोघ से तलाक मिल ही गया। लेकिन रिचा के माता-पिता कहां मानने वाले थे। जल्दी ही उन्होंने रिचा को मना-मूनू के अनमोल के पल्ले बांध दिया। अनमोल का व्यवहार रिचा को कुछ खास जमा नहीं। फिर भी समय के भरोसे उसने कुछ महिनों तक सब कुछ चूपचाप सहा। जब अनमोल मारपीट पर ऊतर आया तब रिचा से सहा नहीं गया और उसने विद्रोह कर दिया। जल्द ही अनमोल से भी उसे छुटकारा मिल गया। रिचा प्राईवेट फर्म में नौकरी करने लगी। साथ ही उसने अपने लेखन के शौक को भी जिन्दा रखा। कुछ ही समय में मंच पर कविता पाठ का अवसर मिला। प्राप्त अवसर को रिचा ने भरपूर भूनाया। कवि सम्मेलनों के मंच पर रिचा की मांग बढ़ने लगी। वह क्षेत्रीय और प्रांतीय कवियत्री से राष्ट्रीय कवियत्री बनने के बस कुछ कदम दूर थी। रिचा के भावपूर्ण करूण गीत श्रौताओं के हृदय भेद जाते। यूट्यूब पर उसके लाखों अनुसरणकर्ता थे। सोशल मीडिया पर रिचा छाये रहती। जब उसे प्रसिद्ध कवि तारक सक्सेना के साथ कविता पढ़ने का मौका मिला तब रिचा खुशी के मारे उछल पड़ी। तारक सक्सेना श्रृंगार रस के प्रसिद्ध कवि थे और रिचा के फेवरीट भी। वह अक्सर तारक के साथ मंच सांझा करने के दिवा स्वप्न देखा करती थी। प्रथम बार जब तारक उसके करीब आकर मंच पर बैठे तब जीवन मैं पहली बार वह अत्यधिक नर्वस दिखी। वह तिरछी नज़रों से तारक को छिपते-छिपाते देख रही थी। तारक के मनोहरहारी दर्शन रिचा के हृदय में बस गये। वह खुबसूरत नौजवान कवि कौरम में सबसे अलग था। गौर वर्ण, लाल-लाल गाल और घने काले कैश लिए तारक राजसी घराने की उन्नत पीढ़ी का युवराज प्रतित हो रहा था। चेहरे पर आधुनिक स्टाइलिश हल्की काली दाड़ी और मुंछें तारक को और भी अधिक हेण्डसम बना रही थी। सफेद कुर्ता-पतलून और उस पर नीली मोदी जैकेट तारक की सुन्दरम छवी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे। रिचा जैसे तारक के मोहपाश में बंध चूकी थी। आज काव्यपाठ करने में संभवतः पहली बार उसे थोड़ी परेशानी हुई।

अगली सुबह तारक का सुप्रभात का मैसेज अपने मोबाइल पर देखकर रिचा खुशी के मारे पागल सरीखी हो गयी। उसके पैर जमींन पर नहीं टिक रहे थे। मानो किसी ने उसके आसपास फूलों की खुशबू ही खुशबु बिखेर दी हो। उसका मन आज नाचने को कर रहा था। वह थिरकने लगी। तारक के मैसेज के जवाब में वह क्या लिखें यह सोचते-सोचते सुबह से दोपहर हो गयी। उसने चाय तक नहीं पी। बड़ी सोच विचार के बाद रिचा ने सुप्रभात मात्र लिखना ही ठीक समझा। साथ में दो फूल भेजना चाहे। किन्तु संकोच वश फूल हटा कर केवल सुप्रभात ही लिखा। प्रतिउत्तर में तारक ने रिचा के काव्यपाठ की प्रशंसा कर दी। खुशी के मारे रिचा के आंखें भर आई। उसने तारक को धन्यवाद दिया। तारक से उसने मेल-जोड़ बढ़ाया। तारक ने रिचा को कभी एहसास नहीं होने दिया की वह एक परित्यक्तता स्त्री है। वह रिचा से सामान्य महिलाओं की ही तरह व्यवहार करता। स्वयं रिचा ने अनुभव किया कि तारक एक बहुत ही सुलझा हुआ युवक है। उसने रिचा के सम्मान में कभी बड़े-बड़े कसीदें नहीं पढ़े। न ही उसे एहसास होने दिया कि रिचा अकेली होकर कोई अबला नारी है। तारक उन विचारों का भी खंडन करते दिखा जिसमें कुंवारी लड़की को खुली तिजोरी तथा तलाकसुदा स्त्री को कटी पतंग का दर्जा दिया जाता रहा है। तारक ने अपने लेखन में भी यह बात हमेशा कही कि व्यक्ति को सर्वप्रथम आत्मसंतुष्टी को खोजना चाहिए। यदि वह प्रसन्न होगा तब ही अन्य को प्रसन्न रख सकेगा। इन्हीं विचारों को आत्मसात कर चूकी रिचा ने अवसर पाकर अपने हृदय की बात तारक को बता दी।

"तुम्हें अपनाना सचमुच मेरे लिए सौभाग्य की बात होती। किन्तु इस जन्म में मैं किसी ओर को वचन दे चूका हूं। हम हमेशा अच्छे दोस्त रहेंगे।" तारक ने रिचा से कहा। वह जा चूका था।

मौन खड़ी रिचा अब भी तारक के उत्तर की गूंज सून रही थी। उसे अपने प्रेम पर गर्व था जिसने उसे सच कहने और सच सुनने का साहस दिया। उसे परित्यक्तता कहलाने से अब कोई परहेज नहीं था। तारक उसे जीवन का सही अर्थ समझाने में सफल हो चुका था।


समाप्त

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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमति है।


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जितेन्द्र शिवहरे (लेखक/कवि)

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