तेरा-मेरा साथ रहे (लघुकथा)
तेरा-मेरा साथ रहे (लघुकथा)
आयुष्मान हाॅस्टल जा रहा था, इस खबर ने सबसे ज्यादा तपन को को प्रसन्न किया। चौदह वर्षीय आयुष्मान ने स्वयं छात्रावास में रहकर पढ़ाई करने की इच्छा जताई थी। उसके करीबी दोस्त भी वहां जाने वाले थे। पति के असामयिक निधन के बाद आयुष्मान ही अब नीमा का एकमात्र सहारा था। जिसके बल पर वह अपना शेष जीवन गुजार रही थी। तपन ने नीमा के जीवन में खुशियाँ की घर वापसी करवाई थी। नीमा के मन के किसी कोने में तपन घर कर चूका था। किन्तु आयुष्मान और तपन के बीच स्नेह पनप न सका। आयुष्मान की बेरूखी भांप कर तपन अधिकतर नीमा से दूरी बनाये रखने पर विवश था। नीमा के हृदय की बात जानकर ही आयुष्मान हाॅस्टल जाने पर अडिग है, यह बात नीमा जानती थी। ताकी तपन और नीमा को आपसी रिश्तें को स्थापित करने में कुछ निजी समय मिल सके। तपन का विवाह प्रस्ताव सुनकर नीमा प्रसन्नता से अधिक दुःखी थी।
"यदि तुम वास्तव में मुझसे प्रेम करते, तब मुझसे जुड़ी हर चीज़ तुम्हें पसंद होती। सर्वप्रथम तुम आयुष्मान का दिल जीतने की कोशिश करते।" नीमा ने तपन से दो टूक कह दिया।
तपन का सिर झुक गया। उसने आयुष्मान का दिल जीतने के लिए क्या कुछ नहीं किया? लेकिन आयुष्मान उसे पिता के रुप में स्वीकार करने को तैयार नहीं हुआ।आज नीमा से बात कर उसने कुछ निश्चय किया। तपन के चेहरे पर चमक आ गयी। उसके उत्साह को देखकर नीमा प्रसन्न थी। तपन के साथ नीमा को भी विश्वास हो चला था कि आज नहीं तो कल आयुष्मान का स्वभाव बदलेगा और वह तपन को अपना पिता के रुप में अवश्य स्वीकार करेगा। तब तक दोनों विवाह नहीं करेंगे। तपन ने आत्मविश्वास से भरे कदम नीमा के घर से बाहर रख दिये। वह आयुष्मान का दिल जीतने एक बार फिर निकल पड़ा।
समाप्त
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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमति है।
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जितेन्द्र शिवहरे (लेखक/कवि)
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