ग़ैर मर्द-लघुकथा
*ग़ैर मर्द-लघुकथा*
*यामिनी* को किसी ग़ैर मर्द के साथ देखकर सर्वेश का खुन खौल उठा। दोनों पति-पत्नी में वैभव को लेकर तीखी बहस शुरू हो गई। जो आगे चलकर दोनों की आदत-सी बन गयी। पड़ोसीयों के मुख से वैभव और यामिनी के मुलाकात के किस्से सर्वेश पहले भी कई बार सुन चुका था। यह सब सुनकर वह गुस्से में आग बबूला हो जाता। कल तो उसने यामिनी पर हाथ भी उठा दिया। यामिनी ने धीरज नहीं खोया। वह सर्वेश के मना करने के बाद भी वैभव से मिलती-जुलती रही। पूरे दस वर्ष बाद के यामिनी ने सर्वेश को बताया कि उसके पैर भारी है और सर्वेश पिता बनने वाला है। सर्वेश कांटों तो खून नहीं वाली परिस्थिति में था। इतना इलाज करवाने के बाद भी नौ वर्षों तक यामिनी मां नहीं बन सकी थी। मात्र एक वर्ष के आयुर्वेदिक उपचार के फलस्वरूप वह मां कैसे बन सकती थी? वैभव और यामिनी भी तो पिछले एक वर्ष से एक-दूसरे को जानते है! तब क्या यह बच्चा वैभव का है? सर्वेश विचारों के भंवर में बूरी तरह फंस चूका था। यामिनी अपने पति की मनःस्थिति भांप चूक थी। उसने वैभव को अपने घर बुलाया। वैभव को अपने सामने देखते ही सर्वेश गुस्से में आ गया। वह उस पर हमला करने आगे बढ़ा। यामिनी ने बीच में आकर वैभव को बचाया।
"यामिनी के पेट में पल रहा बच्चा अगर मेरा होता, तब यहां आने का साहस मैं कभी नहीं करता!" वैभव बोला।
सर्वेश शांत खड़ा था। यामिनी उसे थामे हुये थी।
"वैभव! यामिनी ने एक वर्ष तक निरंतर आयुर्वेदिक उपचार लिया है। उसने तुम्हें भी चोरी-छिपे औषधियां खिलाई है। उसकी मेहनत और लग्न का ही ये परिणाम है जो आज तुम पिता बनने वाले हो। यामिनी के तप, त्याग और समपर्ण का यूं अपमना न करो।" वैभव बोलकर दरवाजे से बाहर निकल गया।
सर्वेश चूप खड़ा था। वह शर्मिन्दा था। यामिनी ने उसे बांहों में थाम लिया। सर्वैश के आसूं छलक पड़े। जिसमें उसके मन का सारा मेल बह गया। उसका यामिनी के प्रति संदेह भी समाप्त हो गया।
समाप्त
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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमति है।
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जितेन्द्र शिवहरे (लेखक/कवि)
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