143 - कहानी
*143 - कहानी*
*यह* चैताली की जिद थी। वह चाहती थी कि जब तक कोई अच्छी सी नौकरी नहीं मिल जाती, वह शादी नहीं करेगी। परिवार वाले उसे समझा-समझा के थक चूके थे। एक से बढ़कर एक रिश्तें चैताली ने अस्वीकृत कर दिये थे। इनमें रिषभ भी था। रिषभ मोबाइल शाॅप चलाता था। शहर के नुक्कड़ पर उसकी मोबाइल की दुकान थी। वहीं से चैताली को प्रतिदिन आते-जाते रिषभ देखा करता था। चैताली अक्सर रिषभ की शाॅप से मोबाइल रीचार्ज करवाया करती थी। रिषभ अपना दिल चैताली को दे चूका था। वह चैताली से शादी करना चाहता था किन्तू चैताली ने उसे भी अस्वीकार कर दिया था। चैताली के जीवन की सर्वप्रथम प्राथमिकता नौकरी थी जिसके लिए वह कढ़ी मेहनत कर रही थी। पब्लिक सेक्टर में किये उसके प्रयास सफल हुये। उसे हायर सेकेण्ड्री स्कूल में व्याख्याता की नौकरी मिल गयी। चैताली की खुशी का ठिकाना न रहा। पूरे परिवार में खुशियां मनाई जाने लगी। अब तो चैताली के लिए और भी अधिक पढ़े लिखे और समृथ घर से रिश्तें आने लगे। किन्तु चैताली ने दसवीं फेल रिषभ को स्वीकारने की इच्छा जताई। ये जिसने भी सुना आश्चर्य के मारे उसका मुंह खुला की खुला रह गया। रिषभ की तो जैसे बरसों की मुराद पुरी हो गयी थी। उसने तुरंत हां कर दी। मगर चैताली की शर्त सुनकर रिषभ के कान खड़ा हो गये। चैताली चाहती थी कि शादी के बाद रिषभ को अपनी अधुरी एजूकेशन पूरी करना होगी। इतना ही नहीं, चैताली से अधिक पढ़ाई और डिग्री उसे हासिल करनी होगी ताकी विवाह के बाद उनका रिश्ता सुगमता से आगे बढ़ता रहे।
रिषभ ने चैताली की शर्त स्वीकार कर ली। चैताली और रिषभ की शादी हो गयी। शर्त अनुसार रिषभ पढ़ाई में जूट गया। जब दसवीं का स्वाध्यायी विद्यार्थी बनकर रिषभ चैताली की ही स्कूल में पढ़ाई करने जाता, लोग तरह-तरह की बातें करते। रिषभ अवश्य विचलित हो जाता किन्तु चैताली का असीम प्रेम पाकर वह सबकुछ भूल जाता। दसवीं बोर्ड की परिक्षा के पुर्व चैताली ने रात-रात भर जागरकर रिषभ को पढ़ाया। उसके अंदर न केवल आत्मविश्वास जगाया अपितु अभ्यास के द्वारा रिषभ के सभी डाऊट भी क्लीयर किये। गणित और अंग्रेजी विषय में निपूण चैताली ने रिषभ को इन विषयोंं में निपूण बनाकर ही दम लिया। फलतः दसवीं की परिक्षा वह प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हो गया। दसवीं की सफलता से उत्साहित रिषभ अगली कक्षा की पढ़ाई में जूट गया। इस बीच वह अपनी मोबाइल शाॅप भी संभालता। चैताली जब गर्भ से हुई तब दोनों ने आपसी सहमति से तय किया किया कि जब तक रिषभ काॅलेज की पढ़ाई पूरी नहीं कर लेता, उन्हें बच्चा नहीं चाहिये। रिषभ की कढ़ी मेहनत देखकर हर कोई दंग था। पढ़ाई से हर समय जी चूराने वाला रिषभ किताबों से प्रेम करने लगा था। उसके व्यक्तित्व में एक अलग ही निखार दिखने लगा था। रिषभ की विनम्रता और नैतिकता सर्वत्र चर्चा का विषय बन गयी। बाहरवीं के बाद रिषभ काॅलेज में दाखिल हुआ। इंजीनियरिंग की पढ़ाई में वह ऐसा खोया की मोबाइल मेनूफैक्चरिंग में विशिष्ट योग्यता हासिल कर ही माना। रिषभ ने बैंक से बिजनेस लोन लेकर मोबाइल मेनूफैक्चरिंग यूनिट की स्थापना चैताली की मदद से की। मोबाइल का विज्ञापन शुरू हुआ। रिषभ का मोबाइल पुरी तरह मेड इन इंडिया था। अन्य मोबाइल की तुलना में सस्ता और टीकाऊ। चैताली स्वयं स्कूल के बाद रिषभ के बनाये मोबाइल की मार्केटिंग करने जाती। उसने अपने स्कूल में साथी शिक्षकों को रिषभ के बनाये मोबाइल विक्रय किये। नाते-रिश्तेंदार और पास-पड़ोसी रिषभ द्वारा निर्मित मोबाइल खरीदकर खुश थे। रिषभ की कस्टमर केयर सुविधा भी बेहतर थी। समय के साथ पति-पत्नी की मेहनत रंग लाने लगी। कुछ कंपनियों ने अपने एम्पलोईस को गिफ्ट देने के रिषभ को मोबाइल के बल्क में ऑर्डर दिये।
चैताली और रिषभ प्रसन्न थे। जो लोग कहा करते थे कि चैताली ने रिषभ से शादी कर जीवन की सबसे बड़ी भूल की है, वे आज चैताली से नज़र नहीं मिला सकते थे। चैताली ने अपने मजबूत इरादों से वह कर दिखाया था जो परस्पर प्रेम करने वाले प्रेमियों के लिए एक प्रेरणा थी।
समाप्त
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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमति है।
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जितेन्द्र शिवहरे (लेखक/कवि)
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अतिसुंदर कहानी जो प्रेरणादायक तो है ही साथ मे त्याग से परिपूर्ण।बधाइयां बधाइयां जितेन्द्र शिवहरे भाई।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय आपका
हटाएंआपकी कहानियां हमेशा मोरल लिए होती हैं शिक्षाप्रद और जिंदगी की हकीकत से जुड़ी हुई आभार जी बहुत शानदार रचना
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय
हटाएंबहुत अच्छी।।। शब्दो का उचित चयन। कम शब्दों में पूरे जीवन की कहानी लिखना अद्वितीय कौशल है
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आदरणीय आपका
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