फोर्टी प्लस-कहानी
*फोर्टी प्लस-कहानी*
*चेतना* विवाह की बाइसवीं सालगिरह बना रही थी। लगता था जैसे कल ही की बात हो। अठारह वर्ष की चेतना शादी कर विश्वास के घर आ गई थी। घर-गृहस्थी संवारने में पति-पत्नी इस कदर उलझे की दोनों का निजी जीवन शून्य ही रहा। महानगर जैसे शहर में दो बच्चों की परवरिश निजी जाॅब कर रहे विश्वास के अकेले की बात न थी। चेतना आगे आगे आई। उसने शिक्षिका का दायित्व संभाल लिया। मकान भी किराये का था। घर के पास ही एक निजी विद्यालय में चेतना ने नौकरी कर ली। बेटी तापसी और बेटे आर्यन को भी अपने संरक्षण में पढ़ाया। घर खर्चों में कटौती कर जैसे-तैसे जम़ीन का टूकड़ा खरीदा। तब तक बच्चें हायर सेकेण्ड्री स्कूल में आ चूके थे। होम लोन लेकर रिक्त प्लाॅट पर मकान बनवाया। दोनों की मासिक सैलेरी का अधिकाशं भाग होम लोन की किश्त में चला जाता। बचत अभियान चला-चला कर चेतना थक सी गयी थी। विश्वास भी हर समय थके-थके से नज़र आते। आखों पर चश्मा चढ़ आया था। विश्वास अपनी पत्नी चेतना के अरमान जानते थे। मगर वे अब चाहकर भी चेतना का उतना खयाल नहीं रख पाते थे। हर महिने की सैलेरी और खर्चों के जोड़-तोड़ में दोनों फोर्टी प्लस तक आ पहूंचे थे। चेतना कभी-कभी बिफर जाती। घर-गृहस्थी और बच्चों की देखभाल में उसकी जवानी धीरे-धीरे अंतिम छोर तक आ पहूंची थी। पड़ोस में रहने वाले किसी प्रसन्नचित्त कपल को चेतना जब भी देखती, हृदय में टीस सी उठ जाती। अधूरी रह चूकी उसकी ढेरों इच्छाएं एक-एक कर आंखों के सामने आ जाती। विश्वास के वे कुछ दिन बड़ी ही चिंता में बितते। बच्चों की समझाईश भी चेतना पर कोई असर नहीं करती। विश्वास ने दृढ़ता दिखाई और दोनों बच्चों की शादी को अपने जीवन का अंतिम उद्देश्य ठहराया। उन्होंने चेतना को भरोसा दिलाया कि इसके बाद उनका सारा समय सिर्फ चेतना के लिए होगा। चेतना की आस एक बार पुनः बंध गयी। विश्वास द्वारा निजी जीवन जीने के उत्साह से वह भी उत्साहित थी। जवानी जिम्मेदारियों में बित गयी तो क्या हुआ! प्रौढ़ावस्था को भी दोनों ठीक उसी तरह जीयेंगे जैसे कोई नव युगल जीता हो। माता-पिता के विचारों के विरोधी इस बार आर्यन और तापसी थे। वे नहीं चाहते थे कि आधुनिक तीव्र बाइक पर सवार और नव उमंग से भरे उनके माता-पिता युवाओं की तरह आनन्द लुटे। इससे उन्हें समाज के सामने लज्जित होने का भय सताने लगा था। मगर विश्वास की दृढ़ता के आगे दोनों भाई-बहनों की एक न चली। तापसी हाॅस्टल जाने की तैयार करने लगी। आर्यन ने भी बेंगलूरू शिफ्ट होने पर विचार कर रहा था। चेतना एक बार पुनः दुविधा में थी। एक बार दोनों बच्चों का विवाह हो जाये फिर आराम से शेष जीवन आनन्द से बीते। यह उसका विचार था। विश्वास ने समझाया कि उसके बाद नाती-पोतों से खेलते हुये बुढ़ापा कब दबे पांव आ जायेगा पता ही नहीं चलेगा। विश्वास के तर्क प्रभावित करने वाले थे। किन्तु बच्चों के विरोध के बाद स्वजीवन खुशी-खुशी कैसे जीया जा सकेगा?
चेतना की असहमति ने विश्वास को तोड़ कर रख दिया। विचारों में इतने डूबे की दिल कमजोर हो गया। यह पहला हृदयाघात था। चेतना अपने पति को हाॅस्पीटल लेकर दौड़ी। बमुश्किल विश्वास के प्राण बचाये जा सके। बच्चें भी शर्मिन्दा थे। चेतना ने निश्चय कर लिया। अब वह अपने साथ-साथ विश्वास की हर वो दबी ख्वाहिश पूरी करेगी जो जिम्मेदारीयों के बोझ तले पूरी न हो सकी थी। उस अनुभव हो चूका था। जीवन का कोई भरोसा नहीं। भाग्य से विश्वास का जीवन पुनः लौट आया। अतएव इस पुनर्जन्म को दोनों पति-पत्नी खुलकर आनन्द और उत्साह के साथ जीयेंगे। आर्यन और तापसी इस बार अपने माता-पिता के साथ खड़े थे। विश्वास का आत्मविश्वास लौट आया। वह जल्दी ही हाॅस्पीटल से रिकवर होकर घर लौटा। चेतना ने पूरे घर को फूलों से संजाकर विश्वास का स्वागत किया। चेतना के उत्साह से उत्साहित विश्वास अपना अधूरा जीवन फिर नये सिरे से जीने के लिए तैयार था। चेतना भी अपनी अधुरी ख़्वाहिशें पुरी करने विश्वास के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही थी।
समाप्त
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जितेन्द्र शिवहरे (लेखक/कवि)
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