किराए कि कोख़-कहानी

 *किराए कि कोख़-कहानी*

       *शालिनी* और नीरज की घनिष्टता दोस्ती से भी आगे निकल चूकी थी। दोनों को इस बात का पता था कि ये नैतिक नहीं है। फिर भी भावनाओं में इतना बहे कि विवाहित होते हुये भी परस्पर आपसी संतान उत्पन्न करने की योजना पर सहमती तक बन गयी। शालिनी के पति सुमंत धीर गंभीर तथा सेवाभावी प्रवृत्ति के थे। उन्हें अपनी शालिनी पर अंधविश्वास था। यही हाल नीरज की पत्नी सरिता का था। वह नीरज पर पूर्ण विश्वास करती थी। किन्तू सरिता एक तेज-तर्रार और मुंह फट महिला थी। उसे अपने हक़ के लिए लड़ना अच्छी तरह से आता था। नीजर कहीं न कहीं अंदर से डरा हुआ रहता। कहीं सरिता को उसके पर स्त्री के संबंध की जानकारी लग गयी तब नीरज का जीवन बद से बत्तर होने में ज्यादा समय नहीं लगेगा। जिस प्यार और अपने पन की तलाश में नीरज था वह उसे शालिनी से मिला था। शालिनी नीरज की दबी ख़्वाहिश जानती थी। नीरज दो बेटियों का पिता था और अब भी उसे एक बेटे की चाहत थी। सरिता तीन बार मां बन चूकी थी। जिनमें दो बार बेटियों ने जन्म लिया। एक बेटी जन्म होते ही चल बसी। सरिता के तीनों प्रसव ऑप्रेशन पद्धति से हुये थे। चौथी बार गर्भ धारण करने से सरिता के प्राणों पर संकट आ सकता था। फलतः नीरज को सरिता से अब कोई उम्मीद न थी।

शालिनी का प्यार नीरज पर इस तरह उमड़ रहा था कि वह अपनी दो-दो बेटियों के बाद भी नीरज के लिए तीसरा गर्भ धारण करने को तैयार थी। उसे अत्यंत आत्मविश्वास था कि यह संतान बेटा बनकर जन्म लेगा जो नीरज का अधुरा सपना पूरा करेगा।

नीरज और शालिनी के बीच एक हजार किलो मीटर की लम्बी दूरी थी। दोनों प्रतिदिन फोन पर बात करते। सरिता के आगमन पर फोन पर शालिनी से बात कर रहा नीरज असहज हो जाता। वह एक झूठ छिपाने के हजार झूठ बोलने से भी परहेज नहीं करता। संदेह का बीज सरिता के मन में अंकुरित हो चुका था। परिणाम स्वरूप दोनों पति-पत्नी में शीत युध्द आरंभ हो चूका था। इधर जब शालिनी को सरिता के संदेह का पता चला तब उसने जल्दी से जल्दी अपनी बहुप्रतिक्षित योजना पर अमल शुरू कर दिया। नीरज काम के बहाने अन्य शहर जा पहूंचा। जहां शालिनी उसकी पुर्व से प्रतिक्षा में थी। पुरा एक दिन दोनों ने पति-पत्नी बनकर शहर की एक होटल में गुजारा। शालिनी ने नीरज से अब कुछ आपसी संपर्क कम करने की मार्मिक अपील कर डाली ताकि न ही सुमंत को और न ही सरिता को उन दोनों पर संदेह हो।

घर लौटते ही शालिनी अपने गृहणी कार्य में व्यस्त हो गयी। नीरज भी अपने ऑफिस में बिजी हो गया। फिर वह दिन भी आया जब शालिनी ने उम्मीद की उल्टी की ख़बर नीरज को फोन पर बताई। वह प्रेग्नेंट थी। नीरज प्रसन्नता से खिल उठा। वह जल्दी से जल्दी प्रत्यक्ष जाकर शालिनी का मस्तक चूमकर उसे शुभकामनाएं देना चहता था। मगर शालिनी ने उसे रोक दिया। जब तक बच्चा गर्भ से बाहर न आ जाये, उन दोनों को संयम रखना होगा। नीरज मान गया। नीरज की प्रसन्नता भी सरिता के लिए संदेह सूचक थी। वह निगरानी में तल्लीन थी। किन्तू नीरज ऐसा कोई अवसर नहीं छोड़ता जिससे सरिता को शालिनी और उसके गर्भस्थ शिशु की कोई जानकारी हाथ लगे। मगर कहते है न कि सौ दिन का चोर एक दिन जरूर पकड़ाता था। आधी रात के अंधेरे में सरिता ने नीरज को फोन पर शालिनी से बातें करते हुये देख लिया। शालिनी की प्रसव तिथि करीब थी। दोनों उसी दिन मिलने वाले थे। सरिता ने नीरज और शालिनी को रंगे हाथ पकड़ने की योजना बनाई। नीरज ने बिलासपूर जाने के लिए ट्रेन की टिकिट बुक करवा दी। उसने सरिता से ऑफिस के काम से बाहर जाने का बोल दिया। सरिता ने भी बिलासपुर जाने के टीकीट बुक करवा ली। दोनों एक ही ट्रेन के अलग-अलग कोच में, बिना एक दूसरे को कुछ बताये बिलासपूर जाने के लिए चढ़ गए।

प्रसव की समाप्ति हो चूकी थी। शिशु का रूदन भी अशांत हृदयों को शांत न कर सका। सरिता क्रोध के अंगारे बरसा रही थी। नीरज सिर नीचे लिये खड़ा हुआ था। वह शर्मिन्दा था। शालिनी के चेहरा भी ऊतर चूका था क्योंकी सुमंत भी हाॅस्पीटल में आ पहूंचें थे। अब तक वे जिसे अपना बच्चा मान रहे थे हक़कीत में वह नीरज का खून था। इन सबके बाद भी वे शांत खड़े थे।

"सरिता जी! नीरज ने और शालिनी ने जो किया वह गल़त था। इन्हें सज़ा मिलनी ही चाहिये।" नीरज बोला।

सरिता की तेज साँसों से उसके क्रोध का अनुमान लगाया जा सकता था।

"मैं नीरज को सारी दुनियां के सामने मुंह दिखाने के लायक नहीं छोड़ूंगी।" सरिता बोली।

"नहीं! इससे नीरज के अपराध का सही आंकलन नहीं होगा। नीरज के साथ शालिनी को भी ऐसा दंड मिलना चाहिए जो दूसरे लोगों के लिए एक सबक हो।" सुमंत बोला।

"सुमंत जी! आप तय कीजिए।" सरिता बोली।

"जिस बेटे के लिए दोनों अपनी-अपनी मर्यादा की सीमा लांघ गये, उसी बेटे को इन दोनों से हमेशा-हमेशा के लिए दूर करना होगा। यही इनका आजीवन दंड होगा।" सुमंत ने फैसला सुना दिया।

"नहीं! प्लीज ऐसा मत कीजिए।" शालिनी ने रहम की भीख मांगी।

सरिता ने शालिनी के बगल में सो रहे शिशु को उठाकर सुमंत को दे दिया।

"कहाँ ले जा रहे हो मेरे बेटे को?" नीरज ने पूछा।

"अनाथ आश्रम! इसकी पुरी जिन्दगी अब अनाथालय में बीतेगी।" सरिता ने कहा।

"नहीं। आप लोग ऐसा नहीं कर सकते। आप दोनों भी रिश्तें में इस बच्चे के मां-बाप है!" शालिनी ने बेड से उठते हुये कहा।

"नहीं! यह मेरा बेटा नहीं है। दुनियां जब पूछेगी की बच्चा कहाँ गया तब कह दूंगा कि शालिनी ने किराये की कोख़ का बिजनेस शुरू किया है। किसी को अपना बच्चा पैदा करवाना हो तो कृपया शालिनी से संपर्क करें।" सुमंत आग उगल रहा था।

"नही। मेरी कोख़ किराये की नहीं है।" शालिनी की चीख निकल गयी। आधी रात में वह बिस्तर पर उठ बैठी।

"क्या हुआ शालिनी! कोई बूरा सपना देख लिया क्या?" सुमंत ने पूछा।

"हांsss वोssss बहूत बुरा सपना था!" शालिनी बोली।

"यह लो पानी पीओ और सो जाओ।" सुमंत ने पानी का गिलास शालिनी के आगे करते हुये कहा।

शालिनी ने पानी पीया। वह पूनः लेट गयी। उसकी नींद उड़ चूकी थी। शालिनी ने कुछ निश्चित किया।

अगली सुबह उसने रात का सपना नीरज को कह सुनाया। साथ ही अब तक उनके बीच में जो हुआ उसे भी भूल जाने को कहा। नीरज सरलता से नहीं माना। मगर शालिनी की लगातार बेरुखी के कारण वह अपने परिवार के प्रति वफादारी निभाने की कोशिश करने लगा। शिघ्र ही सरिता के व्यवहार में नीरज के प्रति ढेर सारा प्यार और आदर नज़र आने लगा। नीरज ने अपनी बेटियों को ही बेटो समान स्वीकारने में अब जरा भी देर नहीं की। शालिनी अपनी गृहस्थी में खुश थी और नीरज अपनी।


समाप्त

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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमति है।


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