झूठा प्यार-कहानी

     *झूठा प्यार-कहानी*

         *सभी* जानते थे कि रिया का प्यार अमृत के लिए मात्र एक छलावे से अथिक कुछ नहीं है। बहूतों ने तो अमृत को समझाया कि रिया के चक्कर में अपनी जवानी खराब न करें। रिया बहुत खुबसूरत थी उस पर जरूरत से ज्यादा चतूर और चालाक भी। वह अमृत का उपयोग अपने निजी खर्चों के लिए कर रही थी। मोबाइल रीचार्ज हो या उसके लिए शाॅपिंग हो अथवा नकद रुपयों का लेनदेन हो, रिया बखूबी अमृत को मना लेती। तनख़्वाह वाली तारिख के करीब आते ही रिया का बहुत सारा प्यार अमृत के प्रति उमड़ने लगता। जब तक आधी से ज्यादा सैलरी की खपत वह स्वयं के न करवा लेती, रिया दम नहीं लेती। अमृत पागलों की तरह रिया को चाहता था। उसकी हर एक ख़्वाहिश को पूरा करना अमृत अपने जीवन का लक्ष्य मान बैठा था। पाई-पाई जमा कर रिया के बर्थडे पर अमृत ने इस बार उसे डायमंड रिंग भेंट की थी। दो लाख रूपये की डायमंड रिंग पाकर रिया आसमान में उड़ने लगी। अमृत उसके लिए जादूई छड़ी था जिसे घुमाते ही रिया के सभी इच्छाएं पूरी हो जाती थी।

अमृत का प्यार देखकर रिया भी कभी-कभी सोच में पड़ जाती। उसे अमृत की तरह प्यार करने वाला अब तक कोई न मिला न था। किन्तु उसे पता था कि अमृत मात्र एक पढ़ाव भर है, वह उसकी मंजिल नहीं है। रिया अपने झूठे प्यार में अमृत को फंसा चूकी थी। अमृत किसी की नहीं सुनता। रिया के आगे उसे न कुछ दिखाई देता न कुछ सुनाई देता। आखों में पानी भर के रिया ने अमृत का वह मकान गिरवी रखवा दिया जिससे उसे अतिरिक्त आमदनी किराये के रूप में हुआ करती थी। मकान के एवज में प्राप्त रुपयों से रिया ने शराबी पिता शंभूनाथ के कर्जों को उतारा। कुछ सालों से अमृत अपने गांव तक नहीं जा सका था। गांव में माता-पिता को पैसे भेजने में भी वह लापरवाह हो गया था। कभी भेजता था कभी नहीं।

युवराज के संपर्क में आते ही रिया में भारी बदलाव देखे गये। वह अमृत के प्रति लापरवाह सी हो गयी। युवराज बड़े घर का इकलौता राजकुमार था। रिया को लगा कि अब सेटल होने का समय आ गया है। बस फिर क्या था! उसने स्वयं को वहीं रोक लिया। युवराज के साथ प्रेभालाप में मग्न रिया को देखते ही अमृत के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गयी। वह इतना दुःखी पहले कभी नहीं हुआ था। उसने स्वयं को कमरे में बंद कर लिया था। पड़ोसीयों ने उसके माता-पिता को सूचित किया। बुढ़े मां-बाप दोड़े-दौड़े शहर आये।

"मेरा अमृत इतना कमजोर नहीं हो सकता। उठ और फिर से नयी जिन्दगी की शुरूआत कर।" पिता श्यामलाल ने अमृत से कहा।

मां सुमित्रा अमृत के सिर पर प्यार भरा हाथ फैर रही थी।

"हां बेटा! भूल जा उसे। हमारी सबसे बड़ी दौलत तो तू है।" सुमित्रा बोली।

मां की ममता और पिता के प्यार ने अमृत को बहुत हिम्मत दी। रिया के चक्कर में अमृत अपनी धन-दौलत गंवा चूका था। जिससे वह हताश अवश्य था कि मां-बाप के उत्साहवर्धन के बाद वह सब कुछ भूलने कि कोशिश करने लगा।

राजकुमार से विवाह का सपना देख रही रिया को उस समय तगड़ा जटका लगा जब एक वयस्क पार्टी में राजकुमार ने अपने कुछ दोस्तों के सामने रिया को परोस दिया। वह महान सदमें में थी। रिया को यह मंजूर न था। उसकी अस्वीकृति पर राजकुमार बौखला गया। रिया और राजकुमार के निजी संबंध का वह आखिरी दिन साबित हुआ। उसके बाद दोनों कभी नहीं मिले। रिया दुःख के गहरे सागर में डूब गयी। अमृत से वेवफाई पर उसे पहले ही दुत्कारना मिल रही थी, उस पर राजकुमार से ब्रेकअप रिया के कर्मों का दंड समझा जाने लगा।

अमृत ने एक बार फिर अपने आपको स्थापित कर लिया। सतत परिश्रम और लग्न से उसने अपना मकान और पुस्तैनी ज्वैलरी वासिप हासिल कर ली।

अमृत और रिया की शादी कार्ड जिसने भी देखा, हैरत में पड़ गया। जिस लड़की ने अमृत को पूरी तरह बर्बाद कर दिया था, अमृत पुनः उसे अपने जीवन में शामिल कर रहा है। अमृत इष्ट मित्रों के साथ पहली बार अपने सगे संबंधियो के कोप का भागी बन बैठा था।

"मैं जानता हूं रिया को स्वीकार करने से आप सभी लोग मुझसे नाराज़ है।" विवाह समारोह में आये मेहमानों से अमृत बोला। उसके हाथ में माइक था जिसे उसने अतिथियों के बेरुखी भांपकर डी जे ऑपरेटर से ले लिया था।

"रिया ने भले ही मुझे सच्चा प्रेम कभी नहीं किया, लेकिन मेरा प्यार तो सच्चा है न! यदि मैं भी रिया को ठुकरा दूं तो उसमें और मुझसे क्या फर्क रह जायेगा?" अमृत बोला। रिया दुल्हन के वेश में सिर झुकाये खड़ी थी।

"मैं नहीं चाहता था कि लोग रिया के पश्चाताप को देखकर हमारे उस प्रेम पर उंगली उठाये जिसे मैंने ईश्वर के समान पूजा है। ये मेरे सच्चे और नि:स्वार्थ प्रेम का परिणाम ही है जो आज रिया मेरे पास फिर से लौट आई है। वर्ना उसके पास आज भी अच्छे लड़कों की कोई नहीं है।" अमृत बोला।

मेहमान अमृत की बातों में गहरी रूचि ले रहे थे। दुल्हा-दुल्हन के स्टेज के सामने अतिथियों की भीड़ जमा हो गयी।

"प्रेम तो मात्र प्रेम होता है। कुछ पाने के उद्देश्य से किया गया प्यार, प्यार तो नहीं कहा जा सकता। वह तो व्यापार हुआ न!" अमृत बोला।

अतिथि एक-दूजे का मूंह तांक रहे थे।

"रिया अपने किये पर शर्मिन्दा है, मेरे लिए यह काफी है। मैंने रिया को माफ कर दिया है, अब आप लोग भी इसे माफ कर दीजिए।" अमृत ने आगे कहा।

अमृत के माता-पिता सर्वप्रथम आगे आये। उन्हेंने रिया के सिर पर हाथ रखकर उसे अखंड सौभाग्यवती का आशीर्वाद दिया। यह दृश्य देखते ही सर्वत्र प्रसन्नता की लहर दौड़ गयी। अमृत और रिया के सफल प्यार पर तालियां बजने लगी। डी जे वाले ने संगीतमय सूमधुर फिल्मी गीत चला दिये जिस पर बच्चों के साथ बड़े भी थिरकने लगे।


समाप्त

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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमति है।


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जितेन्द्र शिवहरे (लेखक/कवि)

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