कुल्टा-कहानी
*कुल्टा-कहानी*
*विवाह* के अगले दिन ही मीना की उम्मीद से भरी उल्टीयों ने अल्केश के होश उड़ा दिये। मेडिकल चेकअप से क्लीयर हो गया कि मीना पेट से है। मीना की सास मोहिनी तो गुस्से में भुनभुना लगी।
"कुल्टा! जाने किसका पाप लेकर आई है। पहले पता होता तो ये शादी कभी न होने देती।"
मीना के ससूर जगताप ने मीना के मायके में जाकर यह सब कह सुनाया और कहा कि वे चुपचाप अपनी बेटी को मायके ले आये। मीना पर विवाह पुर्व अनैतिक संबंध के आरोप जड़कर उसे ससुराल से निकाल दिया गया।
"अच्छा हुआ जो उस कुल्टा से पिण्ड छूटा। तलाक़ होते ही हम अल्केश की दूसरी करवा देंगे।" मोहिनी बोल रही थी।
दबी आवाज़ में अल्केश कुछ कहने की कोशिश करता। मगर तेज स्वभाव की मोहिनी के आगे हमेशा की तरह उसकी आज भी घिग्घी बंध गयी।
मीना पर लगे आरोप सिद्ध होने को आतुर थे। हर कोई उसे बदचलन समझने पर विवश था।
"इस औरत के विवाह पुर्व अवैध संबंध थे। शादी के अगले दिन ही अल्केश की बीवी की मां बनने की न्यूज ये साबित करती है।" वकील साहब ने तलाक की अर्जी पर पैरवी करते हुये कोर्ट कक्ष में कहा।
मोहिनी कटघरे में सिर झूकाये खड़ी थी। अल्केश चाहते हुये भी कुछ नहीं बोल पा रहा था।
"यदि आपने अब भी कुछ नहीं कहा तो कोर्ट मान लेगी कि शादी के पहले आपके अनैतिक संबंध थे और आपने अल्केश को बिना यह बताकर उसके साथ शादी की। अर्थात आपने अल्केश को धोखा दिया है जिससे यह कोर्ट आप दोनों का तलाक मंजूर कर सकती है।" जज साबह ने मौन खड़ी मीना से तेज़ आवाज में पूछा।
"मैं मानती हूं की विवाह पुर्व मेरे किसी पुरूष के साथ शारीरिक संबंध थे। किन्तु वे अवैध नहीं थे। हम दोनों एक-दूसरे से सच्चा प्यार करते थे और शादी करना चाहते थे किन्तु लड़के के मां-बाप इस प्रेम विवाह के सख़्त खिलाफ थे।" मीना ने सच कह सुनाया।
कोर्ट ने अगली तारीख पर फैसला सुनाने की घोषणा कर दी।
अल्केश जब घर पहूंचा तो मेहमान उसे देखकर प्रसन्न हो उठे। मोहिनी द्वारा आमंत्रित अन्य लड़की वाले अल्केश को देखने आये थे। अल्केश उन्हें पहली नज़र में भा गया। उनकी तरफ से हां थी। मेहमानों के जाते ही अल्केश का सब्र जवाब दे गया।
"मां! मैं दुसरी शादी नहीं करूंगा।" अल्केश बोला।
विद्रोह के स्वर अल्केश के मुख से पहली बार निकले थे।
"उस कुल्टा ने एक दिन में तुझ पर ऐसा क्या जादु कर दिया जो तु बगावत पर उतर आया!" मोहिनी गुस्से में बोली।
"मां! मीना कुल्टा नहीं है। उसके पेट में मेरा ही अंश है। हम दोनों शादी के पहले छिप-छिप कर मिला करते थे!" अल्केश एक सांस में सच उगल गया।
"अच्छा! तो मीना वही लड़की है जिसे तु कभी इस घर की बहू बनाना चाहता था?" मोहिनी ने पूछा।
"हां मां! लेकिन आपने तो मीना से मिलने तक से इंकार कर दिया था।" अल्केश ने बताया।
मोहिनी का थप्पड़ भी अल्केश का हौसला पस्त न कर सका। उसने मीना को घर ले आने की जोरदार वकालत कर डाली।
"दुनियां वालों को मीना के गर्भस्थ शिशु के पिता का जब पता चलेगा तब हमारी कितनी बदनामी होगी?" जगताप ने मोहिनी को समझाया।
"सबकुछ जानते हुये भी मीना ने कुछ नहीं बताया, ये उसकी महानता है। वर्ना आज हम किसी को मुंह दिखाने योग्य नहीं रहते।" अल्केश की दलील में दम था।
मोहिनी को पिता-पुत्र के बहुमत के आगे झूकना पड़ा।
"तुमने इतना सब क्यों सहा? इस बच्चें का पिता मैं हूं तुम यदि यह बता देती तो इतना बड़ा बवाल नहीं होता।" अल्केश ने मीना से कहा। वह मीना को अपने घर ससम्मान ले आया था। सुहाग की सेज एक बार फिर संजायी गयी थी
"यदि मैं यह सच बता देती तो मुझे निडर और साहसी अल्केश कहां से मिलता? मैं जानती थी कि मेरी तरह तुम भी मुझे बहुत प्यार करते हो और मेरा अपमान तुम कभी सहन नहीं करोगे।" मीना बोली।
अल्केश मुस्कुरा दिया। मीना उसके हृदय से जा लगी। अल्केश का हाथ दीवार के स्वीच बोर्ड पर जा पहूंचा। उसने लाइट का स्विच ऑफ कर दिया।
समाप्त
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जितेन्द्र शिवहरे (लेखक/कवि)
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