चुनाव-कहानी

 चुनाव-कहानी

       सत्येन्द्र के जीवन में कभी इतना बड़ा संकट नहीं आया था। उसे जीवन और मृत्य के बीच चुनाव करना था। पत्नी सरोज ऑपरेशन थियेटर में जीवन और मौत के बीच झूल रही थी। डाॅक्टर्स सरोज और उसके गर्भस्थ शिशु में से किसी एक के ही प्राण बचाने की वकालत कर रहे थे। ऐसे में सत्येन्द्र की लिखीत में अभिस्वीकृति आवश्यक थी। जिसने अपने जीवन में कभी एक चिंटी भी नहीं मारी थी, उसे जीते-जागते इंसान को मृत्यु देने हेतु अधिकृत किया गया था। सरोज से शादी के चौदह वर्षों बाद बच्चें की आहट सुनाई दी थी। बच्चें के लिए दोनों पति-पत्नी ने क्या नहीं किया? शिशु सरोज के गर्भ में क्या आया, सत्येन्द्र के सूने जीवन में खुशियों का त्यौहार आ गया। वह इतना प्रसन्न था कि मारे खुशी के आंखों से आसूं बहने लगते। सरोज की ममता सागर में लहरों के समान हिलोरे मार रही थी। शिशु कब जन्म ले, दोनो दिन-रात यही सोच रह थे।

आठवां माह खत्म होते ही सरोज की तबीयत बिगड़ने लगी। सत्येन्द्र उसे हाॅस्पीटल लेकर भागा। डाॅक्टर्स ने सरोज को पीलिया रोग की शिकायत बताई जो आगे चलकर गर्भस्थ शिशु को भी नुकसान पहूंचा सकता था। सत्येन्द्र ने अपनी सारी जमा पूंजी सरोज के उपचार में व्यय कर दी। गंभीर प्रसव विशेषज्ञ डाॅक्टर्स की टीम ने निर्णय लिया की सरोज या शिशु दोनों में से किसी एक को ही बचाया जा सकता है।

"आप दोनों को बचाईये डाॅक्टर साहब! सुना है मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है।" सत्येन्द्र ने कहते हुये घोषणा-पत्र भर दिया।

सत्येन्द्र के निर्णय की बहुत आलोचना हुई। बीवी और बच्चें दोनों चल बसे तब क्या होगा? लोगों की घूसूर-फूसूर जारी थी। एकल बीवी को बचाने का चुनाव करता तो निष्ठूर पिता कहलाता। बच्चें को बचाता तो निर्मोही पति का तमगा मिलता। किन्तु कोई न कोई साथ तो रहता। बीच के चुनाव का परिणाम सत्येन्द्र उम्र भर नहीं भूल पायेगा। भारी निंदा सुनने के बाद भी सत्येन्द्र टस से मस नहीं हुआ। उसकी आस ऑपरेशन के चार घंटे बाद भी नहीं टूटी थी। बच्चें के रोने की आवाज़ ने सत्येन्द्र का सम्मोहन भंग किया। सत्येन्द्र को सरोज की चिंता सताने लगी। नर्स ने ओटी से बाहर आकर बताया कि जच्चा और बच्चा दोनों ठीक है। सत्येन्द्र भावुक हो उठा।  शिशु को गोद में उठाकर वह ईश्वर का धन्यवाद व्यक्त कर रहा था। सरोज मुस्कुरा रही थी। अचानक हुये इस चमत्कार ने सभी को आश्चर्य में डाल दिया था। सभी कहने पर विवश थे कि सत्येन्द्र का चुनाव सही था।


समाप्त

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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमति है।


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जितेन्द्र शिवहरे (लेखक/कवि)

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